शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

सनातन धर्म की पवित्र पुस्तके काल्पनिक कहानी नहीं है ।




सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र से आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट और ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने एक पर्वत खोज निकाला है। यह ठीक उस मन्दराचल पर्वत की तरह है, जिससे समुद्रमंथन किया गया था और इस दौरान निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था। इस पर्वत के बीचों-बीच नाग आकृति भी मिली है। प्राथमिक जांच के बाद ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने अपनी वेबसाइट पर इस पर्वत से संबंधित जानकारियों की एक लिंक भी अपनी वेबसाइट पर डाली है।
 

बिहार और गुजरात में मिले ये दोनों पर्वत एक ही हैं :


आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी विभाग के अधिकारियों के अनुसार बिहार में भागलपुर के पास स्थित भी एक मन्दराचल पर्वत है और गुजरात के समुद्र से निकला यह पर्वत भी मन्दराचल पर्वत ही है। आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के बताए अनुसार बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है। इस तरह यह दोनों पर्वत एक ही हैं। जबकि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते। इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय है।


किस तरह मिला यह पर्वत:


सन् 1988 में पिंजरात गांव के समुद्र से द्वारका नगरी के अवशेष मिले थे। डॉ. एस.आर.राव के साथ सूरत के आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी भी एक स्पेशल कैप्सूल में समुद्र में 800 फीट की गहराई में गए थे। इस दौरान उन्हें एक यहां एक विशाल पर्वत दिखाई दिया था। तबसे इसकी जांच की जा रही थी।


पर्वत के बीचों-बीच नाग के शरीर की आकृति भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। विभाग द्वारा बारीकी से इस पर्वत की जांच की गई तो पता चला कि यह पर्वत मन्दराचल पर्वत ही है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान मन्दराचल पर्वत को ही मथा गया था।


 
अनेकों टेस्ट के बाद किया समर्थन :
 

पर्वत पर नागों की आकृतियां थीं। इसलिए आर्कियोलॉजिस्ट विभाग ने पहले यह सोचा कि शायद यह निशान लहरों से बने होंगे। इसकी पुष्टि के लिए पर्वत के अनेकों हिस्सों पर कार्बन टेस्ट किए गए। सभी टेस्ट में यही बात सामने आई कि ये निशान लहरों से नहीं बनें हैं, प्राकृतिक हैं। इसके बाद आर्कियोलॉजिस्ट ने एब्स्युलूट मैथड, रिलेटिव मैथड, रिटन मार्क्‍स, ऐइज इक्वीवेलंट स्ट्रेटग्राफिक मार्क्‍स, स्ट्रेटीग्राफिक रिलेशनशिप मैथड, लिटरेचर का उपयोग करते हुए दावा किया है कि यह वही मन्दराचल पर्वत है, जिसका उपयोग समुद्र मंथन के लिए किया गया था।

विभाग ने कर दी है पुष्टि :

आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के बताए अनुसार यू-ट्यूब पर ओशनोलॉजिस्ट विभाग ने 50 मिनट का एक वीडियो अपलोड किया है। इसमें विभाग ने पिंजरत के पास 125 किमी दूर समुद्र में 800 फुट नीचे द्वारका नगरी के अवशेषों के साथ मन्दराचल पर्वत की भी खोज की है। ओशनोलॉजिस्ट वेबसाइट पर आर्टिकल में विभाग द्वारा इस बात की पुष्टि कर दी गई है।


मितुल त्रिवेदी 42 भाषएं और 9 लिपि जानते हैं:


आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी 42 भाषाएं और 8 लिपियों के जानकार हैं। वे नासा, आर्कियोलॉजिस्ट विभाग और इसरो से भी जुड़े हुए हैं। हडप्पा-मोहेंजोदडो की भाषा का उन्हीं ने अनुवाद किया था।


मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

नरेंद्र मोदी जी के जीवन के बारे में कुछ अनछुए पहलू

मोदी अपने परिवार के साथ महेसाणा जिले के वडनगर में रहा करते थे। तभी एक साधू वडनगर आया। मोदी की मां हीराबा से उस साधू ने बेटों की कुंडली मांगी। हीराबा ने मोदी के साथ उनके बड़े भाई सोमभाई की भी कुंडली दिखाई।
 




साधू ने सोमभाई की कुंडली देखकर कहा... इसका जीवन तो सामान्य ही रहेगा, लेकिन तुम्हारे छोटे बेटे नरेंद्र  का जीवन उथल-पुथल भरा रहेगा। इसकी कुंडली में ऐसा योग है कि यह या तो एक दिन राजा बनेगा या फिर शंकराचार्य की तरह एक महान संत की सिद्धि हासिल करेगा।

इसी बीच मोदी की पूजा-पाठ में भी बहुत रुचि हो गई। वे अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत करने लगे तो परिजन को चिंता होने लगी कि कहीं ये सचमुच में ही साधू न बन जाए। मोदी को सभी ने बहुत समझाया, लेकिन उनके दिमाग से साधू बनने की बात निकल ही नहीं रही थी। इसी के चलते परिवार ने मोदी की शादी करवा देने का फैसला लिया। उन्हें लगा कि शादी हो जाने के बाद वह परिवार में व्यस्त हो जाएगा। परिवार ने आनन-फानन में न सिर्फ मोदी की शादी के लिए वधु जशोदाबेन की तलाश कर ली, बल्कि उनके ही गांव जाकर मोदी की शादी भी कर दी। यह वह समय था, जब बड़ों के फैसलों का छोटे विरोध नहीं कर सकते थे और इस समय बाल विवाह प्रचलित था ।
शादी के बाद मोदी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। अब वे बड़े हो चुके थे और परिवार ने तय किया कि अब मोदी की पत्नी को घर बुला लेना चाहिए। अभी तक जशोदाबेन का गौना नहीं हुआ था और वे अपने माता-पिता के साथ ही रहा करती थीं। यह बात सुनते ही मोदी ने न कह दिया और कहा कि उन्हें वैवाहिक जीवन में कोई रुचि नहीं। वे साधू बनना चाहते हैं और इसके लिए हिमालय पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।

परिजन मोदी को मनाते रहे, लेकिन मोदी अपनी जिद पर ही अड़े रहे। हालांकि मोदी मां हीराबेन का बहुत सम्मान करते थे। वे उनका आदेश नहीं टाल सकते थे। इसलिए उन्होंने मां से कहा कि मैं तुम्हारी मर्जी और आशीर्वाद के बगैर नहीं जा सकूंगा, लेकिन फिर भी मैं आपसे कहना चाहता हूं कि मुझे साधू बनना है। मोदी की जिद के आगे खुद मां हीराबा झुक गईं और उन्होंने मोदी को वैवाहिक बंधन से मुक्ति पाने और साधू बनने का आशीर्वाद दे दिया।

क्यों वापस मोदी?

इसके बाद मोदी हिमालय की कंदराओं में जा पहुंचे और साधुओं के साथ रहने लगे। साधुओं के साथ वे ईश्वर की तलाश में दर-दर भटकते रहे। हालांकि उनकी उम्र अब भी बहुत छोटी थी, लेकिन फिर भी वे जीवन के वास्तविक अर्थ की तलाश में निकल पड़े थे। उनकी छोटी सी उम्र को देखते हुए एक साधू ने उन्हें समझाया कि ईश्वर की तलाश समाज की सेवा करके भी की जा सकती है। इसके लिए साधू बने रहने की कोई जरूरत नहीं।

इसके बाद मोदी हिमालय से वडनगर वापस आ गए। लेकिन फिर भी उन्होंने अपना वैवाहिक जीवन शुरू नहीं किया। दरअसल वे अपने घर सिर्फ एक दिन के ही लिए आए थे। परिवार भी अब पूरी तरह समझ चुका था कि मोदी को सांसारिक जीवन में रुचि नहीं। परिजन ने उनकी पत्नी जशोदाबेन के परिजन को भी सूचना दे दी थी कि वे मोदी को वैवाहिक बंधन से मुक्ति दे दें। इसके लिए पूरे परिवार ने जशोदाबेन के परिवार से माफी मांगी। मोदी के परिजन को इस फैसले का दुख था, लेकिन मोदी अपनी जिद पर अडिग थे।

माता को दुख, पिता को अंतिम समय तक रहा रंज :

लेखिका कालिंदी रांदेरी के शब्दों में.. मैं जब मोदी की मां हीराबा से मिली तो उनकी आंखों में आंसू ही थे। उनका कहना था कि मोदी के मर्जी के खिलाफ उनकी शादी कराना जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। हीराबा ने बताया कि मोदी के पिता को तो अंतिम समय तक इस बात का रंज रहा कि उन्होंने जबर्दस्ती मोदी पर शादी थोप दी थी।

मोदी की बारात बैलगाड़ी में गई थी। विवाह के बाद मोदी अपने परिवार के साथ वापस घर आ गए थे। परिवार ने निश्चय किया था कि मोदी की मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद बहू का गौना करवा लिया जाएगा। लेकिन इसके बाद ही मोदी वैवाहिक बंधनों से अपने आपको मुक्त कर हिमालय की कंदराओं में जा पहुंचे। वे हिमालय से वापस आए भी तो सिर्फ एक दिन के लिए ही।

मोदी खुद चाहते थे कि उनकी पुस्तक में उनकी शादी के बारे में लिखा जाए:

सन् 2009 में पत्रकार एमवी कामत के साथ मिलकर ‘नरेंद्र मोदी, द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न स्टेट’ नामक किताब लिखने वाली कालिंदी रांदेरी बताती हैं कि जब मैंने मोदी से उनकी किताब लिखने के बारे में बात की तो मोदी ने इच्छा जाहिर की थी कि किताब में उनके बचपन के साथ उनकी शादी के बारे में भी लिखा जाए।

कालिंदी बताती हैं कि जब मैंने मोदी से उनकी शादी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इस बारे में आप मेरे बड़े भाई सोमभाई से बात कीजिए। वे आपको इस बारे में विस्तार से पूरी बात बताएंगे। इसके बाद कालिंदी ने सोमभाई से बात की उन्होंने खुलकर पूरी बात बताई और इस तरह यह जानकारी सामने आई ।

कालिंदी बताती हैं कि मोदी का पूरा परिवार उनकी शादी के बारे में खुलकर बात करता है। हालांकि सभी का यही कहना है कि मोदी पर जबर्दस्ती शादी थोपकर परिवार ने बहुत बड़ी गल्ती की थी।



लेखिका कालिंदी रांदेरी की किताब से साभार

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

ये कैसी जिंदगी ?

नोट---: आप सभी से विनम्र निवेदन है की इस ब्लॉग  को एक वार समय निकाल कर जरूर पढ़े । 



इस ब्यक्ति को मैं सन 2007 से जानता हु । आरम्भ में जब मैंने इसे देखा तो बहुत दया आई इसके ऊपर और मैं अधिकांसतः इन्हे कुछ न कुछ खाने के लिए किसी होटल से दिला देता हु । ये देवास में सभी जगह पर घूमते रहते है पर इनका मुख्य अड्डा हमारे मार्केट के आसपास ही रहता है । आप को जानकर आस्चर्य होगा की ये खाने के बाद भी '' प्लास्टिक की रस्सी'' (जिससे बड़े बड़े कार्टून पैक होते है) चबाते रहते है , यहाँ तक की पॉलीथिन भी चबाते है । फिर भी ज़िंदा है , वाह रे ऊपर वाले तेरी लीला अपरंपार है ।
जब मार्केट में इनके बारे में पता चला तो मैं उसे सुन कर दंग रह गया , आपको भी इसे सच्चाई से रूबरू करा रहा हु ।
इनकी बीबी भी है और बच्चे भी है इन्हे भिक्षा में जो भी रुपये मिलते है ओ इनकी बीबी छीन ले जाती है ।
मित्रो जीवन की जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम सभी अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके ।



एक दर्द एक चीख एक पुकार है,
कंटक शूल सी चुभती खार है ।
बैचैन खाली गुजरते हर सत्र,
नित मैले मलिन होते चरित्र ।
कष्ट कम्पित उभरती वेदना,
मायूसियों का ह्रदय भू भेदना ।
लिख रहा हुँ मैं भाव विधि,
मिट गयी हर अनमोल निधि ।
भूख गरीबी कण कण बसी,
कही खो गयी निश्छल हसी ।
हर अंतरात्मा छलनी हुयी,
अपराध आवश्यकता की जननी हुयी ।
रिश्तो में उभरी एक दरार है,
सब पराये स्वार्थ का करार है
सब पराये स्वार्थ का करार है
हुयी महंगाई इंसान बिक रहा है,
लुप्त सच्चाई फरेब टिक रहा है ।
बहशी अस्मत से खेल इतिहास लिख रहा है
काल के आगोश में संसार दिख रहा है ।
जाने कितने दर्द कितनी चीख कितनी पुकार है,
भूमी के सीने पर चुभती कंटक शूल सी खार है ।
अफसोस मैं बस सवेदना लिख रहा हुँ,
ह्रदय की सच्ची वेदना लिख रहा हुँ ।

'नौकरशाह' ने बनाया ‘आयरन लेडी’ पर इंदिरा गांधी ने किया विश्वासघात ?

भारतीय राजनीति में ‘दी आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नेहरू परिवार से जुड़े होने के कारण भले ही किसी पहचान की मुहताज कभी नहीं रही हों लेकिन नेहरू परिवार की बेटी से अलग भारतीय इतिहास में अगर भारत के सबसे सक्सेसफुल और पहली महिला प्रधानमंत्री की हैसियत वह रखती हैं तो इसके पीछे कारण नेहरू से जुड़ा होना नहीं बल्कि वह एक शख्स है जिसका दिमाग इंदिरा गांधी के हर फैसले में होता था. प्रधानमंत्री और ‘लौह महिला’ तो इंदिरा गांधी कही गईं लेकिन अगर पी एन हक्सर का दिमाग नहीं होता तो इतिहास भी आज से बिल्कुल विपरीत होता. शायद तब इंदिरा ‘लौह महिला’ की जगह ‘सबसे कमजोर’ महिला, सबसे लोकप्रिय की जगह सबसे अलोकप्रिय और भारत की सबसे सक्सेसफुल प्रधानमंत्री की जगह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में जानी जातीं.
         एक समय इंदिरा गांधी ‘गूंगी गुड़िया’ के नाम से जानी जाती थीं. 1967 में पी एन हक्सर (परमेश्वर नारायण हक्सर) इंदिरा गांधी के निजी सचिव बने और फिर गूंगी गुड़िया के इमेज से निकलकर एक ‘लौह महिला’ के रूप में इंदिरा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता गया. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो 1967–1973 का दौर इंदिरा की लोकप्रियता का दौर था पर कैबिनेट से भी ज्यादा प्रभावकारी पी एन हक्सर थे. जवाहर लाल नेहरू के करीबियों में रहे कश्मीरी पंडित और लंदन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पढ़ाई करने वाले हक्सर की हैसियत इसी से आंकी जा सकती है कि 1973 तक इंदिरा के प्रधानमंत्रित्व काल में प्रधानमंत्री की ओर से पारित किए जाने वाले जितने फैसले होते थे अखबारों में वह इस तरह लिखा जाता था ‘प्रधानमंत्री कार्यालय का फैसला है कि…’
Politics in India

राजनीतिक कॅरियर से जुड़ने की शुरुआत
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई पूरी कर वापस लौटने के बाद हक्सर ने वकालत शुरू कर दी. 1960 में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें विदेश मंत्रालय में काम करने का अवसर दिया. भारतीय राजदूत के पद पर काम करने वाले वे पहले भारतीय थे. प्रधानमंत्री कार्यालय से इंदिरा गांधी के निजी सचिव के रूप में जुड़ने से पहले वे नाइजीरिया तथा ऑस्ट्रिया में भारतीय राजदूत के पद पर काम कर चुके थे. 1967 में इंदिरा गांधी ने हक्सर को अपना निजी सचिव बनाया और उसके बाद इंदिरा ने लगातार तरक्की की.
PN Haksar


इंदिरा गांधी की तरक्की में सबसे मजबूत कड़ी
इंदिरा गांधी के विरोधी और उनको मानने वाले भी देश-विदेश नीतियों में इंदिरा की सफलता के पीछे हक्सर का कूटनीतिक और कुशाग्र दिमाग होने की बात मानते हैं. बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मुद्दा हो या उसी को आधार बनाकर अपने मजबूत विरोधी मोरारजी देसाई को वित्त मंत्रालय से हटाने का फैसला या बांग्लादेश गठन में सहयोग का फैसला, सबमें हक्सर की ही सलाह थी. राजनीति से जुड़ने से पहले ही हक्सर नेहरू परिवार के करीबी थे इसलिए नेहरू परिवार के लिए उनकी विश्वसनीयता पर किसी को शक न था. नेहरू के काल में राजदूत और लंदन में भारतीय उच्चायुक्त रहकर अपनी प्रशासनिक काबिलियत भी हक्सर साबित कर चुके थे. 1973 में, जब तक वे पीएमओ में प्रधान सचिव के पोस्ट पर रहे इंदिरा गांधी की लोकप्रियता चरम पर रही. 1973 में इंदिरा गांधी ने उन्हें खुद ही प्रधान सचिव के पद से हटा दिया. कहने को पी एन हक्सर को पीमओ से हटाकर योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन इसके पीछे की हकीकत कुछ और ही थी. इंदिरा गांधी का इसके बाद जो हश्र हुआ वह शायद किसी से छुपा नहीं. 2 साल की इमरजेंसी का फैसला और चुनाव में जबरदस्त हार इसका सबसे बड़ा नतीजा था. सत्ता में आने के बाद भी वह ज्यादा दिनों तक शासन नहीं कर पाईं. अगर पीएम हक्सर इंदिरा के साथ होते तो शायद ऐसा कभी नहीं होता.
Indian Politics

आखिर पीएमओ पद से क्यों हटाए गए हक्सर ?

इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी की तानाशाह हरकतें धीरे-धीरे प्रचार में आ रही थीं. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के भी अधिकांश सदस्य संजय की नीतियों से नाखुश थे. पार्टी के अंदर और बाहर भले ही इतनी संजय विरोधी लहर थी लेकिन इंदिरा फिर भी संजय गांधी की नीतियों से प्रभावित थीं और उनके प्रभाव में आकर कई फैसले लेने लगी थीं.]
Indira with Sanjay Gandhi

हक्सर ने इंदिरा को समझाने की कोशिश की कि संजय की छवि उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रही है इसलिए वे कुछ दिनों के लिए संजय को खुद से दूर कहीं बाहर भेज दें. इंदिरा इससे खुश नहीं थीं. उन्होंने हक्सर से कहा कि सभी संजय की खिलाफत कर रहे हैं ऐसे में वे खुद भी उसका साथ कैसे छोड़ दें. नतीजे के तौर पर इंदिरा को तो यह बात इमरजेंसी काल के बाद अपनी शाख गंवाने के बाद समझ आई लेकिन हक्सर को तुरंत पीएमओ से हटाकर योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया.

नेहरू के काल में प्रतिष्ठित माना जाने वाला यह विभाग हक्सर के इसके उपाध्यक्ष बनने के समय अपनी गरिमा खो चुके राजनीतिज्ञों का जमावड़ा माना जाने लगा था. हक्सर की नजर से देखें तो यह उन्हें अपमानित करने वाला फैसला था. एक इंसान जिसका दबदबा इतना था कि उसके कमरे में आते ही कैबिनेट मंत्री भी खड़े हो जाया करते थे, इंदिरा से ज्यादा पार्टी सदस्य हक्सर से डरते थे, उसे अचानक अर्श से फर्श पर लाने वाला था यह फैसला. पर यह भी कांग्रेस और भारतीय राजनीति के इतिहास का एक बड़ा सच है कि इंदिरा गांधी के पूरे राजनीतिक कॅरियर को देखें तो यह इंदिरा की सबसे बड़ी भूल थी. अगर हक्सर होते तो न संजय गांधी की मौत होती, न ऑपरेशन ब्लू स्टार होता और न ही भारत की सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा की मौत होती ,1998 में मौत से पहले 10 वर्षों तक हक्सर के आंखों की रौशनी नहीं थी. राजनीति के महारथी रहे वे लेकिन खाना बनाने में अच्छे-अच्छे कुक को मात दे दें. इंदिरा गांधी के अनुरोध पर खास उनके लिए ही कई बार उन्होंने खाना बनाया. संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में भी उनका कोई सानी नहीं था. हक्सर अपनी बेटी को हमेशा कहते थे कि ‘मार्क्स पर मत जाओ, मार्क्स रिमार्क्स नहीं होता.” इसलिए मैथ में कम नंबर आने की बात जानकर वे बेटी को डांटते नहीं बल्कि आइस्क्रीम खिलाने ले जाते. उन्होंने खुद के लिए भी यह बात साबित कर दी. भले ही इंदिरा ने उन्हें पीएमओ से हटाकर उनका ग्रेस कम करने की कोशिश की थी लेकिन उनके बिना इंदिरा की हालत हक्सर के रिमार्क्स ही हैं.

Note--जागरण जक्सन से साभार 

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

रामायण की वो रोचक बातें, जो न कभी बताई गर्इं न दिखाई गईं

भगवान श्रीराम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और राक्षसराज रावण के जीवन का वर्णन यूं तो कई ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन सभी में वाल्मीकि रामायण में लिखे गए तथ्यों ko ही सबसे सटीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण में कुछ ऐसी रोचक बातें बताई गई हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम हमको कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जो शायद अब तक आप नहीं जानते थे। जानिए कौन सी हैं वो बातें-


1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था, उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी।

2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली, तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए।

4- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।

भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे।

5- गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।

रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

6- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया, तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।

10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

12- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

13- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

14- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने जब लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

15- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र था और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।

16- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)

17- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

18- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया, तब माता पार्वती भयभीत हो गई थीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

19- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।

20- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा, तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

21- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला, तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।

22- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा, लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

23- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।

24- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।

वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

25- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा।

उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया।


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बात की दुनिया में लात का क्या काम ?






 हमें सबसे ज्यादा घृणा उस आदमी से है जो तर्क छोड़ कर ''सोटा'' उठा लेता है । बेचारे

 केजरीवाल, नन्हीं-सी जान।आखिर खता क्या है उनकी ?

 बदलाव की बात ही तो कर रहे हैं। ईमानदारी का परचम फहराने में जुटे हैं लेकिन जिसे देखिए वही थप्पड़-घूंसा चला रहा है।

 क्यों भई क्यों?

 आज थप्पड़ चला। कल लात चलेगी। परसों लाठी और इसके बाद तो कोई सीमा ही नहीं। लेकिन एक सवाल हमारे मन में बार-बार उठता है कि ऎसा क्या है जो लोग केजरीवाल से इतने नाराज हैं।

राजनीति में नाराजगी चलती रहती है। यहां जब एक दल वाले ही परस्पर राजी नहीं रहते तो विपक्ष वालों से उम्मीद करना बेकार है। हमें तो नाराजगी का एकमात्र कारण नजर आता है उम्मीदों का टूटना। नेतागण जनता के सामने वादों की इतनी बड़ी पोटली रख देते हैं कि वह बावली हो जाती है। लेकिन जब पोटली खोलने पर चीथड़े और फटे पुराने गाबे निकलते हैं तो आदमी मायूस हो जाता है। अरविन्द भाई के मामले में भी यही नजर आ रहा है। एक बात और, कभी भी अपने विरोधी को पिटता देख तालियां नहीं बजानी चाहिए। हमें याद है कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में जब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चल रहा था तो एक सिरफिरे ने शरद पवार के तमाचा जड़ दिया था और तब यह खबर सुनते ही केजरीवाल के गुरू अन्ना हजारे ने तुरंत कहा था कि क्या एक ही तमाचा मारा।

इस तमाचे पर केजरीवाल ने प्रतिक्रिया की थी कि यह जनता के असंतोष की अभिव्यक्ति है। भाई जब पवार के गाल पर पड़ा तमाचा किसी का असंतोष हो सकता है तो फिर केजरीवाल के गाल पर पड़ा थप्पड़ भी ऎसा ही कुछ हो सकता है। आप हमारे इस तर्क से यह न मान लेना कि हम अरविन्द भाई के गाल पर पड़े तमाचे को जायज मान रहे हैं। कदापि नहीं। भगवान  ने आदमी को दिमाग दिया है, तर्कशक्ति दी है। लोकतंत्र संवाद और विचार से चलता है। मारपीट करके हम बेवजह अपनी डेमोक्रेसी को दबंगई की तरफ धकेल रहे हैं। इतनी अर्ज नेताओं से जरूर करेंगे कि भैया उतने ही वादे उछालो जो पूरे कर सको । और यह बात सभी नेताओ पर  लागू होती है ।

नरेंद्र मोदी कोई ब्यक्ति नहीं बल्कि एक सोच है ।

सुप्रभात मित्रो । जय जय श्री राम । जय श्री कृष्णा ।

मित्रो जब  से चुनाव की हलचल सुरु हुई , जव से सत्ता जाने का भय सताने लगा  सत्ताधीशो को तो सत्ताधीशो ये सभी सहयोगी नरेंद्र  मोदी  पर कोई भी ज़ुबानी  हमला करने से नहीं चूक रहे है । बहुत दिन तक गुजरात दंगो के नाम पर , फिर महिला जासूसी के नाम पर और  अब उनकी पत्नी के नाम पर विलाप सुरु है । पर जब एक खानदान विशेष  और उनकी 
वयोवृद्ध पार्टी किसी महिला को लेकर चिंता  जाहिर करता है तो मुझे वयोवृद्ध पार्टी के नेताओ की संस्कृत और वयोवृद्ध पार्टी के पितामह नेता की महिलाओ के साथ  कई अश्लील तस्वीर घूमने लगती है ।



खैर छोड़िये मुख्या मुद्दे पर आता हु । जहा तक मेरा सोचना है ''नरेंद्र मोदी '' कोई ब्यक्ति या गुजरात का मुख्यमंत्री नहीं है बल्कि ये तो एक सोच एक नेतृत्व है ।

मैं  यहाँ स्पस्ट कर दू की मैं  ना तो मैं  बीजेपी  का प्रचार कर रहा हु  न  ही मोदी  का और  न ही बीजेपी का  पिट्ठू न समझिएगा मुझे  न ही उस चश्मे से मुझे देखने का प्रयास करिएगा ।


   आज ,निहायत आम और त्रस्त जनता, भयभीत  ,ठगी गई और उलझी हुई जनता । संवाद भी जनता से ही है ,संशय  भी जनता के ही हैं; तो चलिये शुरू करते हैं –



हाँ भाई तो बताइये मोदी ही क्यूँ –?

 आप /काँग्रेस/सपा /बसपा —क्यों नही ?

आइये क्यों नही से शुरुआत करें जिस से आगे ये हमारी बातों में व्यवधान न डालें –आप –मतलब केजरी वाल जी अच्छे आदमी हैं /लगते थे –शुरुआत अच्छी की अन्ना  जी के साथ –महत्वाकांक्षी हैं ,मगर कन्फ़्यूज्ड  हैं; कहीं टिक नही सकते, अदर्शवाद की बातें करते हैं, भ्रष्टाचार खत्म करने की बातें करते हैं ; मगर जब भी हाथ कोई मौका आता है सुधार का ,तंत्र में कोई न कोई कमी बता कर वहाँ से निकल लेते हैं ,अगले  बड़े  लक्ष्य के सपने दिखा कर -कितने लोग आईएएस /आईपीएस/आईएफ़एस बनने का सपना लिए रहते हैं- नही बन पाते –आप बने –छोड़ा कि  भ्रष्टाचार है –अरे भाई तंत्र को सुधारो ,तंत्र में रह कर; प्रयास तो करो –अन्ना  जी को पकड़ा, फिर छोड़ा क्यों  कि  बनी नही ,सामंजस्य नही बैठा –अलग पार्टी बनाई ;शुरुआत अच्छी की ;इतनी अच्छी, जितनी खुद को उम्मीद नही थी- गले पड़ा ढ़ोल न बजाते बने न उतारते ,यथार्थ से दूर, किए गए वादों को पूरा करने की झलक भी दिखाई और फिर भाग छूटे  क्यों कि  सत्ता में कुछ करने की गुंजाइश नही थी।  अब आप की नज़र है केंद्र के चुनावों पर ; अब आप ही बताएं जो व्यक्ति इन जिम्मेदारियों को नही सम्हाल सका, जहां भी थोड़ा सा मुश्किल देखी और भाग छूटा वो देश के पीएम पद की ज़िम्मेदारी क्या सम्हालेगा ?  जहां आप सुधार कर सकते हो, जितना सुधार कर सकते हो ,उतना तो करो- ये क्या की जुबानी सब्ज बाग दिखाओऔर  जैसे पहला रास्ता दिखे  भाग लो अपने समर्थकों, अनुयायियों को नीचा दिखा कर; ये कमजोरी है व्यक्तित्व की- ऐसे लोग सिर्फ सपनों में जीते हैं और कठिनाइयाँ सामने आते ही मुंह चुराने लगते हैं, जिम्मेदारियों से ;स्वप्न द्रष्टा कह लीजिये या स्वप्ञ्जीवा -ऐसे लोग सदैव दूसरों में कमियाँ निकालते रहते हैं खुद आगे बढ़ कर कुछ नही कर सकते । और क्या आपको लगता है की हमारे देश की स्थिति इस समय ऐसी है कि  हम एक भी और एक्सपरिमेंट कर सकें –थैंक्स टु  हमारी वयोवृद्ध पार्टी जिसने हमें स्वतंत्र कराया जिसके पुराने नेताओं के ढ़ोल वो अब भी बजाते रहते हैं क्यों कि  नया क्या सुनाएँगे –घोटालों की बाढ़ –सीमा की असुरक्षाएँ ,विदेश नीतियों की विफलताएँ ,अर्थव्यवस्था का बिगड़ता गणित ,प्रधानमंत्री का कमजोर व्यक्तित्व ,और राजनीति  और देश को एक परिवार के हाथों का खिलौना बनाने की साजिश जैसा की आज ही प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की हालिया किताब 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग ऐंड अनमेंकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' को एक कमजोर प्रधान मंत्री बताया यहाँ तक की मनमोहन सिंह को कुर्शी तो दे दिया पर ताकत  लिया आज  सीमा पर मारे जाते जवान और आपकी चुप्पी ,देशद्रोहियों की वकालत ,धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ,विदेशी बैंकों  में जमा काला धन ,किस किस चीज का जवाब देंगे आप -तो अच्छा है चलो ,गांधी बाबा की चादर में मुंह छुपा लेते हैं ,नेहरू जी की टोपी पहन लेते हैं -आखिर तो ये सब कोंग्रेसी थे न पता नही ये सब आज होते तो शायद इन भ्रष्टाचारियों की जमात को देख या तो राजनीति छोड़ देते या फिर दुनिया -बहर हाल तो चलें बात करें अपनी सपा /बसपा पर वैसे बात क्या करनी है इनका सुशासन तो यूपी की जनता देख हे रही है -एक जातियों में जहर घोलती है तो दूसरी धर्म के नाम पर विष  बीज बोती  है -इनकी तो बात करना ही समय व्यर्थ करना है ;वैसे भी इन्हें तो मोल तोल करना है -अपनी कुछ एक सीटों का जो इनके हिस्से आजाएंगी धर्म और जाति  की शतरंजी बिसात बिछा कर और विष वमन कर के । 




क्रमसः ------

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

क्यों टूटती है सामाजिक मर्यादाएं ?

हर रिश्ते की अपनी एक मर्यादा होती है लेकिन जब कोई मर्यादा को लांघ जाता है तो रिश्ते अपनी गरिमा ही नहीं विश्वास भी खो बैठते हैं। आखिर क्यों बन जाते हैं ऎसे अमर्यादित रिश्ते जिनकी समाज में कोई जगह नहीं है , कई बार कुछ ऎसी शर्मनाक घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनी होती हैं जिन्हें पढकर मन घृणा और शर्म से भर जाता है और ऎसी खबरों को पढकर बस एक ही ख्याल दिमाग में आता है कि रिश्तों की मर्यादा को कौन सा कीडा खाए जा रहा है ?

आखिर समाज किस गर्त में जा रहा है,?

जहां लडका अपनी मौसी की बेटी को भगाकर ले गया, कहीं दामाद ने सास के संग भागकर विवाह कर लिया तो कहीं बहू ने अपने ससुर को पति बना लिया तो कहीं भताजे ने अपनी हम उम्र बुआ से ही विवाह कर लिया। रिश्तों को कलंकित कर देने वाले ए कृत्यों के पीछे भी लोगों ने तर्क गढ़ा प्यार का। क्या वाकई ये सभी घटनाएं प्यार को दर्शाती हैं। बडे बुजुर्गो से ये तो सुना था कि इंसान प्यार में जात-पांत, धर्म नहीं देखता है लेकिन ये कभी नहीं सुना था कि इंसान प्यार में रिश्तों की पवित्रता की दहलीज को भी लांघ जाता है। शर्म से गडा देने वाली ये घटनाएं आखिर क्यों संस्कारों से भरे इस समाज में घटित हो रही हैं।

मनोचिकित्सकों के अनुसार ऎसी घटनाएं जीवन में आई तीव्रता का परिणाम है और जब जिंदगी की ग़ाडी अति तीव्रता से चलती और बिना किसी नियम के चलती है तो दुर्घटना होने के अवसर उतने ही बढ़ जाते हैं। कई बार ऎसा भी होता है कि लडका या लडकी अपने मौसेरे या चचरे भाई-बहन में अपने भावी जीवनसाथी के गुण देखने लगते हैं। कई कारण होते हैं जिनकी वजह से अमुक लडका या लडकी उनके रोलमॉडल बन जाते हैं और वैसे ही गुण वाला इंसान या वही इंसान उनके दिलो-दिमाग में रच बस जाता है तो वो उसे पाने के लिए रिश्तों की मर्यादा को तोडने से भी परहेज नहीं करते हैं ।