भारतीय
राजनीति में ‘दी आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी नेहरू परिवार से जुड़े होने के कारण भले ही किसी पहचान की मुहताज कभी
नहीं रही हों लेकिन नेहरू परिवार की बेटी से अलग भारतीय इतिहास में अगर
भारत के सबसे सक्सेसफुल और पहली महिला प्रधानमंत्री की हैसियत वह रखती हैं
तो इसके पीछे कारण नेहरू से जुड़ा होना नहीं बल्कि वह एक शख्स है जिसका
दिमाग इंदिरा गांधी के हर फैसले में होता था. प्रधानमंत्री और ‘लौह महिला’
तो इंदिरा गांधी कही गईं लेकिन अगर पी एन हक्सर का दिमाग नहीं होता तो
इतिहास भी आज से बिल्कुल विपरीत होता. शायद तब इंदिरा ‘लौह महिला’ की जगह
‘सबसे कमजोर’ महिला, सबसे लोकप्रिय की जगह सबसे अलोकप्रिय और भारत की सबसे
सक्सेसफुल प्रधानमंत्री की जगह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में जानी
जातीं.
एक समय
इंदिरा गांधी ‘गूंगी गुड़िया’ के नाम से जानी जाती थीं. 1967 में पी एन
हक्सर (परमेश्वर नारायण हक्सर) इंदिरा गांधी के निजी सचिव बने और फिर गूंगी
गुड़िया के इमेज से निकलकर एक ‘लौह महिला’ के रूप में इंदिरा की लोकप्रियता
का ग्राफ बढ़ता गया. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो 1967–1973 का दौर
इंदिरा की लोकप्रियता का दौर था पर कैबिनेट से भी ज्यादा प्रभावकारी पी एन
हक्सर थे. जवाहर लाल नेहरू के करीबियों में रहे कश्मीरी पंडित और लंदन
यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पढ़ाई करने वाले हक्सर की हैसियत इसी से
आंकी जा सकती है कि 1973 तक इंदिरा के प्रधानमंत्रित्व काल में
प्रधानमंत्री की ओर से पारित किए जाने वाले जितने फैसले होते थे अखबारों
में वह इस तरह लिखा जाता था ‘प्रधानमंत्री कार्यालय का फैसला है कि…’
राजनीतिक कॅरियर से जुड़ने की शुरुआत
लंदन
स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई पूरी कर वापस लौटने के बाद हक्सर ने वकालत
शुरू कर दी. 1960 में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें विदेश मंत्रालय में काम
करने का अवसर दिया. भारतीय राजदूत के पद पर काम करने वाले वे पहले भारतीय
थे. प्रधानमंत्री कार्यालय से इंदिरा गांधी के निजी सचिव के रूप में जुड़ने
से पहले वे नाइजीरिया तथा ऑस्ट्रिया में भारतीय राजदूत के पद पर काम कर
चुके थे. 1967 में इंदिरा गांधी ने हक्सर को अपना निजी सचिव बनाया और उसके
बाद इंदिरा ने लगातार तरक्की की.
इंदिरा गांधी की तरक्की में सबसे मजबूत कड़ी
इंदिरा
गांधी के विरोधी और उनको मानने वाले भी देश-विदेश नीतियों में इंदिरा की
सफलता के पीछे हक्सर का कूटनीतिक और कुशाग्र दिमाग होने की बात मानते हैं.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मुद्दा हो या उसी को आधार बनाकर अपने मजबूत
विरोधी मोरारजी देसाई को वित्त मंत्रालय से हटाने का फैसला या बांग्लादेश
गठन में सहयोग का फैसला, सबमें हक्सर की ही सलाह थी. राजनीति से जुड़ने से
पहले ही हक्सर नेहरू परिवार के करीबी थे इसलिए नेहरू परिवार के लिए उनकी
विश्वसनीयता पर किसी को शक न था. नेहरू के काल में राजदूत और लंदन में
भारतीय उच्चायुक्त रहकर अपनी प्रशासनिक काबिलियत भी हक्सर साबित कर चुके
थे. 1973 में, जब तक वे पीएमओ में प्रधान सचिव के पोस्ट पर रहे इंदिरा
गांधी की लोकप्रियता चरम पर रही. 1973 में इंदिरा गांधी ने उन्हें खुद ही
प्रधान सचिव के पद से हटा दिया. कहने को पी एन हक्सर को पीमओ से हटाकर
योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन इसके पीछे की हकीकत कुछ और ही थी.
इंदिरा गांधी का इसके बाद जो हश्र हुआ वह शायद किसी से छुपा नहीं. 2 साल
की इमरजेंसी का फैसला और चुनाव में जबरदस्त हार इसका सबसे बड़ा नतीजा था.
सत्ता में आने के बाद भी वह ज्यादा दिनों तक शासन नहीं कर पाईं. अगर पीएम
हक्सर इंदिरा के साथ होते तो शायद ऐसा कभी नहीं होता.
आखिर पीएमओ पद से क्यों हटाए गए हक्सर ?
इंदिरा के
छोटे बेटे संजय गांधी की तानाशाह हरकतें धीरे-धीरे प्रचार में आ रही थीं.
यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के भी अधिकांश सदस्य संजय की नीतियों से नाखुश
थे. पार्टी के अंदर और बाहर भले ही इतनी संजय विरोधी लहर थी लेकिन इंदिरा
फिर भी संजय गांधी की नीतियों से प्रभावित थीं और उनके प्रभाव में आकर कई
फैसले लेने लगी थीं.]
हक्सर ने
इंदिरा को समझाने की कोशिश की कि संजय की छवि उनकी छवि को नुकसान पहुंचा
रही है इसलिए वे कुछ दिनों के लिए संजय को खुद से दूर कहीं बाहर भेज दें.
इंदिरा इससे खुश नहीं थीं. उन्होंने हक्सर से कहा कि सभी संजय की खिलाफत कर
रहे हैं ऐसे में वे खुद भी उसका साथ कैसे छोड़ दें. नतीजे के तौर पर इंदिरा
को तो यह बात इमरजेंसी काल के बाद अपनी शाख गंवाने के बाद समझ आई लेकिन
हक्सर को तुरंत पीएमओ से हटाकर योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया.
नेहरू के
काल में प्रतिष्ठित माना जाने वाला यह विभाग हक्सर के इसके उपाध्यक्ष बनने
के समय अपनी गरिमा खो चुके राजनीतिज्ञों का जमावड़ा माना जाने लगा था.
हक्सर की नजर से देखें तो यह उन्हें अपमानित करने वाला फैसला था. एक इंसान
जिसका दबदबा इतना था कि उसके कमरे में आते ही कैबिनेट मंत्री भी खड़े हो
जाया करते थे, इंदिरा से ज्यादा पार्टी सदस्य हक्सर से डरते थे, उसे अचानक
अर्श से फर्श पर लाने वाला था यह फैसला. पर यह भी
कांग्रेस और भारतीय राजनीति के इतिहास का एक बड़ा सच है कि इंदिरा गांधी के
पूरे राजनीतिक कॅरियर को देखें तो यह इंदिरा की सबसे बड़ी भूल थी. अगर
हक्सर होते तो न संजय गांधी की मौत होती, न ऑपरेशन ब्लू स्टार होता और न ही
भारत की सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा की मौत होती ,1998
में मौत से पहले 10 वर्षों तक हक्सर के आंखों की रौशनी नहीं थी. राजनीति
के महारथी रहे वे लेकिन खाना बनाने में अच्छे-अच्छे कुक को मात दे दें.
इंदिरा गांधी के अनुरोध पर खास उनके लिए ही कई बार उन्होंने खाना बनाया.
संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में भी उनका कोई सानी नहीं था. हक्सर
अपनी बेटी को हमेशा कहते थे कि ‘मार्क्स पर मत जाओ, मार्क्स रिमार्क्स नहीं
होता.” इसलिए मैथ में कम नंबर आने की बात जानकर वे बेटी को डांटते नहीं
बल्कि आइस्क्रीम खिलाने ले जाते. उन्होंने खुद के लिए भी यह बात साबित कर
दी. भले ही इंदिरा ने उन्हें पीएमओ से हटाकर उनका ग्रेस कम करने की कोशिश
की थी लेकिन उनके बिना इंदिरा की हालत हक्सर के रिमार्क्स ही हैं.
Note--जागरण जक्सन से साभार