सोमवार, 14 अप्रैल 2014

ये कैसी जिंदगी ?

नोट---: आप सभी से विनम्र निवेदन है की इस ब्लॉग  को एक वार समय निकाल कर जरूर पढ़े । 



इस ब्यक्ति को मैं सन 2007 से जानता हु । आरम्भ में जब मैंने इसे देखा तो बहुत दया आई इसके ऊपर और मैं अधिकांसतः इन्हे कुछ न कुछ खाने के लिए किसी होटल से दिला देता हु । ये देवास में सभी जगह पर घूमते रहते है पर इनका मुख्य अड्डा हमारे मार्केट के आसपास ही रहता है । आप को जानकर आस्चर्य होगा की ये खाने के बाद भी '' प्लास्टिक की रस्सी'' (जिससे बड़े बड़े कार्टून पैक होते है) चबाते रहते है , यहाँ तक की पॉलीथिन भी चबाते है । फिर भी ज़िंदा है , वाह रे ऊपर वाले तेरी लीला अपरंपार है ।
जब मार्केट में इनके बारे में पता चला तो मैं उसे सुन कर दंग रह गया , आपको भी इसे सच्चाई से रूबरू करा रहा हु ।
इनकी बीबी भी है और बच्चे भी है इन्हे भिक्षा में जो भी रुपये मिलते है ओ इनकी बीबी छीन ले जाती है ।
मित्रो जीवन की जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम सभी अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके ।



एक दर्द एक चीख एक पुकार है,
कंटक शूल सी चुभती खार है ।
बैचैन खाली गुजरते हर सत्र,
नित मैले मलिन होते चरित्र ।
कष्ट कम्पित उभरती वेदना,
मायूसियों का ह्रदय भू भेदना ।
लिख रहा हुँ मैं भाव विधि,
मिट गयी हर अनमोल निधि ।
भूख गरीबी कण कण बसी,
कही खो गयी निश्छल हसी ।
हर अंतरात्मा छलनी हुयी,
अपराध आवश्यकता की जननी हुयी ।
रिश्तो में उभरी एक दरार है,
सब पराये स्वार्थ का करार है
सब पराये स्वार्थ का करार है
हुयी महंगाई इंसान बिक रहा है,
लुप्त सच्चाई फरेब टिक रहा है ।
बहशी अस्मत से खेल इतिहास लिख रहा है
काल के आगोश में संसार दिख रहा है ।
जाने कितने दर्द कितनी चीख कितनी पुकार है,
भूमी के सीने पर चुभती कंटक शूल सी खार है ।
अफसोस मैं बस सवेदना लिख रहा हुँ,
ह्रदय की सच्ची वेदना लिख रहा हुँ ।

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