बर्तमान परिपेक्ष में यदि दोस्ती की बात करे तो ये सिर्फ स्वार्थ सिध्धि का एक माध्यम मात्र बन गया है । यहाँ तक की लोग दोस्ती की आड़ में ना जाने क्या क्या स्वार्थ सिध्धि करते है ।या करने की आशा रखते है ..खासकर आज की यूवा पीढ़ी ,उसमे भी खसकर लडको और लडकियों की दोस्ती सिर्फ जिस्मानी आकर्षण का केंद्र बिंदु होता है और यदि लडको -लडको की दोस्ती की बात की जाए तो यहाँ भी स्वार्थ सिध्धि ही मुख्या बजह बनती है । कहा है आज कृष्ण -सुदामा की मित्रता ?
चलिए अब सोसल नेट्वर्किंग की दोस्ती की बात कर लिया जाए ,यहाँ पर हम कोसो दूर बैठे है और एक दुसरे को दोस्त बना बैठे है निश्चयत ही हमारे बीच में कोई स्वार्थ नहीं है । पर हम यहाँ भी अपने स्वार्थ से बाज नहीं आते है और यहाँ के स्वार्थ भी अजीबो गरीब होते है जबकि
दोस्ती, एक सलोना और सुहाना अहसास है, जो संसार के हर रिश्ते से अलग है। तमाम मौजूदा रिश्तों के जंजाल में यह मीठा रिश्ता एक ऐसा सत्य है जिसकी व्याख्या होना अभी भी बाकी है। व्याख्या का आकार बड़ा होता है। लेकिन गहराई के मामले में वह अनुभूति की बराबरी नहीं कर सकती। इसीलिए दोस्ती की कोई एक परिभाषा आजतक नहीं बन सकी।
दोस्ती, शुद्ध और पवित्र मन का मिलन होती है। एक बेहद उत्कृष्ट अनुभूति, जिसे पाते ही तनाव और चिंता के सारे तटबंध टूट जाते हैं।। उलझनों की जंजीरें खुल जाती है। दोस्ती एक ऐसा आकाश है जिसमें प्यार का चांद मुस्कुराता है, रिश्तों की गर्माहट का सूर्य जगमगाता है और खुशियों के नटखट सितारे झिलमिलाते हैं। एक बेशकीमती पुस्तक है दोस्ती, जिसमें अंकित हर अक्षर, हीरे, मोती, नीलम, पन्ना, माणिक और पुखराज की तरह है, बहुमूल्य और तकदीर बदलने वाले।
एक सुकोमल और गुलाबी रिश्ता है दोस्ती, छुई-मुई की नर्म पत्तियों-सा। अंगुली उठाने पर यह रिश्ता कुम्हला जाता है। इसलिए दोस्त बनाने से पहले अपने अन्तर्मन की चेतना पर विश्वास करना जरूरी है।
सचाई, ईमानदारी, परस्पर समझदारी, अमिट विश्वास, पारदर्शिता, समर्पण, सम्मान जैसे श्रेष्ठ तत्व दोस्ती की पहली जरूरत है। दोस्त वह विश्वसनीय शख्स होता है जिसके समक्ष आप अपने मन की अंतिम परत भी कुरेद कर रख देते हैं। एक सच्चा दोस्त आपके विकसित होने में सहायता करता है। उसका निश्छल प्रेम आपको पोषित करता है। जिसके साथ आप अपनी ऊर्जा व निजता बांटते हैं।
दोस्ती की नवविकसित नन्ही कोंपल को जमाने के प्रदूषण से बचाना जरूरी है। तमाम उम्र इंसान को एक अच्छे दोस्त की तलाश रहती है। इसी तलाश में यह पता चलता है कि दोस्ती का एक रंग नहीं होता। अलग-अलग रंगों से सजी दोस्ती कदम-कदम पर अपना रूप दिखाती है। कई दोस्त दोस्ती की गरिमा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। अकसर अच्छी दोस्ती को शक की दीमक लग जाती है जो अन्तत: उसे खोखला कर के छोड़ती है।
दोस्तों, शक दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठकर उनको जाने न दो...
दोस्ती, उस गठरी के समान होती है जिसमें बंधी होती है ढेर सारी बातें, गहरे रिश्ते और खूबसूरत अहसास। इस गठरी को तुरंत खोलना चाहिए। वरना वे बातें, जो तह कर रखी हैं, वे रिश्ते, जो सिलवटों से भर गए हैं, और वे अहसास, जो गुड़-मुड़ हो गए हैं, उसमें ही गल सकते हैं, फट सकते हैं, सड़ सकते हैं। इस गठरी को मिलन सूर्य की गुनगुनी धूप में खोल कर फैलाया जाए। जैसे ही नमी दूर होगी खिल उठेगीं ढेर सारी बातें, रिश्ते और अहसास।
वॉशिंगटन अर्विंग ने कहा है - सच्ची दोस्ती कभी व्यर्थ नहीं जाती, यदि उसे प्रतिदान नहीं मिलता तो वह लौट आती है और दिल को कोमल और पवित्र बनाती है।
एक मीठी-सी कविता दोस्ती के नाम-
दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है
जो आमंत्रित करता है हमें
'आओ, खूब नहाओ,
हंसी-खुशी की
मौज-मस्ती की
शंख-सीपियां
जेबों में भरकर ले जाओ!
आओ, मुझमें डुबकी लगाओ,
गोता लगाओ
खूब नहाओ
प्यार का मीठा पानी,
हाथों में भरकर ले जाओ...!
चलिए अब सोसल नेट्वर्किंग की दोस्ती की बात कर लिया जाए ,यहाँ पर हम कोसो दूर बैठे है और एक दुसरे को दोस्त बना बैठे है निश्चयत ही हमारे बीच में कोई स्वार्थ नहीं है । पर हम यहाँ भी अपने स्वार्थ से बाज नहीं आते है और यहाँ के स्वार्थ भी अजीबो गरीब होते है जबकि
दोस्ती, एक सलोना और सुहाना अहसास है, जो संसार के हर रिश्ते से अलग है। तमाम मौजूदा रिश्तों के जंजाल में यह मीठा रिश्ता एक ऐसा सत्य है जिसकी व्याख्या होना अभी भी बाकी है। व्याख्या का आकार बड़ा होता है। लेकिन गहराई के मामले में वह अनुभूति की बराबरी नहीं कर सकती। इसीलिए दोस्ती की कोई एक परिभाषा आजतक नहीं बन सकी।
दोस्ती, शुद्ध और पवित्र मन का मिलन होती है। एक बेहद उत्कृष्ट अनुभूति, जिसे पाते ही तनाव और चिंता के सारे तटबंध टूट जाते हैं।। उलझनों की जंजीरें खुल जाती है। दोस्ती एक ऐसा आकाश है जिसमें प्यार का चांद मुस्कुराता है, रिश्तों की गर्माहट का सूर्य जगमगाता है और खुशियों के नटखट सितारे झिलमिलाते हैं। एक बेशकीमती पुस्तक है दोस्ती, जिसमें अंकित हर अक्षर, हीरे, मोती, नीलम, पन्ना, माणिक और पुखराज की तरह है, बहुमूल्य और तकदीर बदलने वाले।
एक सुकोमल और गुलाबी रिश्ता है दोस्ती, छुई-मुई की नर्म पत्तियों-सा। अंगुली उठाने पर यह रिश्ता कुम्हला जाता है। इसलिए दोस्त बनाने से पहले अपने अन्तर्मन की चेतना पर विश्वास करना जरूरी है।
सचाई, ईमानदारी, परस्पर समझदारी, अमिट विश्वास, पारदर्शिता, समर्पण, सम्मान जैसे श्रेष्ठ तत्व दोस्ती की पहली जरूरत है। दोस्त वह विश्वसनीय शख्स होता है जिसके समक्ष आप अपने मन की अंतिम परत भी कुरेद कर रख देते हैं। एक सच्चा दोस्त आपके विकसित होने में सहायता करता है। उसका निश्छल प्रेम आपको पोषित करता है। जिसके साथ आप अपनी ऊर्जा व निजता बांटते हैं।
दोस्ती की नवविकसित नन्ही कोंपल को जमाने के प्रदूषण से बचाना जरूरी है। तमाम उम्र इंसान को एक अच्छे दोस्त की तलाश रहती है। इसी तलाश में यह पता चलता है कि दोस्ती का एक रंग नहीं होता। अलग-अलग रंगों से सजी दोस्ती कदम-कदम पर अपना रूप दिखाती है। कई दोस्त दोस्ती की गरिमा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। अकसर अच्छी दोस्ती को शक की दीमक लग जाती है जो अन्तत: उसे खोखला कर के छोड़ती है।
दोस्तों, शक दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठकर उनको जाने न दो...
दोस्ती, उस गठरी के समान होती है जिसमें बंधी होती है ढेर सारी बातें, गहरे रिश्ते और खूबसूरत अहसास। इस गठरी को तुरंत खोलना चाहिए। वरना वे बातें, जो तह कर रखी हैं, वे रिश्ते, जो सिलवटों से भर गए हैं, और वे अहसास, जो गुड़-मुड़ हो गए हैं, उसमें ही गल सकते हैं, फट सकते हैं, सड़ सकते हैं। इस गठरी को मिलन सूर्य की गुनगुनी धूप में खोल कर फैलाया जाए। जैसे ही नमी दूर होगी खिल उठेगीं ढेर सारी बातें, रिश्ते और अहसास।
वॉशिंगटन अर्विंग ने कहा है - सच्ची दोस्ती कभी व्यर्थ नहीं जाती, यदि उसे प्रतिदान नहीं मिलता तो वह लौट आती है और दिल को कोमल और पवित्र बनाती है।
एक मीठी-सी कविता दोस्ती के नाम-
दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है
जो आमंत्रित करता है हमें
'आओ, खूब नहाओ,
हंसी-खुशी की
मौज-मस्ती की
शंख-सीपियां
जेबों में भरकर ले जाओ!
आओ, मुझमें डुबकी लगाओ,
गोता लगाओ
खूब नहाओ
प्यार का मीठा पानी,
हाथों में भरकर ले जाओ...!
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