!! भारतीय संस्कृत पर कुठाराघात !!
दो और दस रुपये के सिक्के पर जो क्रूसेडर क्रॉस
खुदा हुआ है वह असल में फ़्रांस केशासक लुई द पायस
(सन् 778 से सन् 840) द्वारा जारी किये गये
सोने के सिक्के में भीहै। लुई का शासनकाल फ़्रांस में
सन् 814 से 840 तक रहा, और उसी ने इस
क्रूसेडर क्रॉसवाले सिक्के को जारी किया था।
(लुई द पायस के सिक्के का चित्र देखें) अब चित्र
मेंविभिन्न प्रकार के “क्रॉस” देखिये जिसमें सबसे
अन्तिम आठवें नम्बर वाला क्रूसेडरक्रॉस है जिसे
दस रुपये के नये सिक्के पर जारी किया है, जिसे
सन् 2006 में ही ढालागया है, लेकिन
जारी अभी किया।
जैसा कि चित्र में दिखाया गया है इस क्रूसेडर
क्रॉस में चारों तरफ़ आड़ी और खड़ीलाइनों के बीच
में चार बिन्दु हैं। RBI अधिकारियों का एक
हास्यापद तर्क है कि यह चिन्ह असल में देश
की चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है,
जिसमें चारों बिन्दु एकता को प्रदर्शित करते हैं,
तथा“अंगूठे” और “विक्ट्री साइन” का उपयोग
नेत्रहीनोंकी सुविधा के लिये किया गया है…
अर्थात सूर्य, कमल, गेहूँ की बालियाँ, अशोक
चक्र, सिंह आदि देश की एकता और
संस्कृति को नहीं दर्शाते? तथा इसके पहले
जो भी सिक्के थे उन्हें नेत्रहीन नहीं पहचान पाते
थे? किसे मूर्ख बना रहे हैं ये?
माइनो सरकार जबसे सत्ता में आई है, भारतीय
संस्कृति के प्रतीक चिन्हों पर एक के बाद आघात
करती जा रही है। सिक्कों से भारत माता, भारत
के नक्शे और अन्य राष्ट्रीय महत्व के चिन्ह गायब
करके “क्रॉस”, “अंगूठा” और “विक्ट्री साइन”
के मूर्खतापूर्ण प्रयोग किये गये हैं, केन्द्रीय
विद्यालय के प्रतीक चिन्ह “उगते सूर्य के साथ
कमल पर रखी पुस्तक” को भी बदल दिया गया है,
सरकारी कागज़ों, दस्तावेजों और वेबसाईटों से
धीरे-धीरे “सत्यमेव जयते” हटाया जा रहा है,
दूरदर्शन के “स्लोगन” “सत्यं शिवम् सुन्दरम्” में
भी बदलाव किया गया है, बच्चों को “ग” से
“गणेश” की बजाय “गधा” पढ़ाया जा रहा है,
तात्पर्य यह कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक
चिन्हों को समाप्त करने के लिये धीरे-धीरे अन्दर
से उसे कुतरा जा रहा है, और “भारतीय ”
जैसा कि वे हमेशा से रहे हैं, अब भी गहरी नींद में
गाफ़िल हैं।
किसी कौम को पहले मानसिक रूप से खत्म करने के
लिये उसके सांस्कृतिक प्रतीकों पर
हमला बोला जाता है, उसे सांस्कृतिक रूप से
खोखला कर दिया जाता है, पहलेअपने
“सिद्धान्त” ठेल दिये जाते हैं,
दूसरों की संस्कृति की आलोचना करके, उसे
नीचा दिखाकर एक अभियान चलाया जाता है,
इससे संस्कृति परिवर्तन का काम आसान
हो जाता है और वहकौम बिना लड़े
ही आत्मसमर्पण कर देती है,
क्योंकि उसकी पूरी एक पीढ़ी पहले ही मानसिक
रूप से उनकी गुलाम हो चुकी होती है। वेलेंटाइन-
डे, गुलाबी चड्डी, पब संस्कृति, अंग्रेजियत, कम
कपड़ों और नंगई को बढ़ावा देना,
आदि इसी “विशाल अभियान” का एक
छोटा सा हिस्सा भर हैं।
किसी भी देश के सिक्के एक ऐतिहासिक धरोहर
तो होते ही हैं, उस देश की संस्कृति औरवैभव
को भी प्रदर्शित करते हैं। पहले एक, दो और पाँच
के सिक्कों पर कहीं गेहूँ कीबालियों के, भारत के
नक्शे के, अशोक चिन्ह के, किसी पर
महर्षि अरविन्द, वल्लभभाईपटेल
आदि महापुरुषों के चेहरे की प्रतिकृति,
किसी सिक्के पर उगते सूर्य, कमल के
फ़ूलअथवा खेतों का चिन्ह होता था, लेकिन ये “
क्रूसेडर क्रॉस”, “अंगूठा” और “विक्ट्री साइन”
दिखाने वाले सिक्के ढाल कर सरकार
क्या साबित करना चाहती है, यह अबस्पष्ट
दिखाई देने लगा है।इस देश में “राष्ट्र-
विरोधियों” का एक मजबूत नेटवर्क तैयार
हो चुका है, जिसमें मीडिया, NGO, पत्रकार,
राजनेता, अफ़सरशाही सभी तबकों के लोग मौजूद
हैं, तथा उनकी सहायता के लियेकुछ प्रत्यक्ष और
कुछ अप्रत्यक्ष लोग “कांग्रेसी-वामपंथी” के नाम
से मौजूद हैं।
इन सिक्कों के जरियेआनेवाली पीढ़ियों के लिये
यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि,
सन् 2006 के काल में भारत पर “इटली की एक
महारानी”राज्य करती थी… तथा भारत
की जनता में ही कुछ “जयचन्द” ऐसे भी थे जो इस
महारानी की चरणवन्दना करते थे और कुछ
“चारण-भाट” उसके गीत गाते थे................
AAP ITNAA ACHCHA BLAAG LIKHTE HAI ! MAIN TO DHANY HO GAYAA AAPKE BLAAG KO PADHKRA ! OR AAPKAA fb MITRA BANKAR !
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