रूद्राक्ष का शब्दिक अर्थ है रुद्राक्ष रूद्राक्ष रूद्र माने भगवान शिव
तथा अक्ष का अर्थ होता है आशु यानि भगवान शिव के आसुओं से रूद्राक्ष की
उत्पत्ति हुयी है। रूद्राक्ष की महत्ता और उपयोग हिन्दू धर्म की परम्परा से
जुड़ा है। धर्म, तन्त्र, योग एवं चिकित्सा की नजर में रूद्राक्ष काफी
प्रासगिंक और प्रशसंनीय है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में रूद्राक्ष को महाऔषधि
के रूप में वर्णित किया गया है।
रूद्राक्ष की जड़ से लेकर फल तक सभी
का अलग-अलग तरीके से प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर किया जा
सकता है। स्कन्द पुराण और लिंग पुराण के अनुसार रूद्राक्ष आत्म शक्ति एवं
कार्य क्षमता में वृद्धि करने वाला एंव कार्य व व्यवसाय में प्रगति करवाता
हैं। जिस प्रकार सें भगवान शिव कल्याणकारी है, उसी प्रकार से रूद्राक्ष भी
अनेक प्रकार की संमस्याओं का निष्पादन करने में सक्षम हैं।
रूद्राक्ष
की भारतीय ज्योतिष में भी काफी उपयोगिता है। ग्रहों के दुष्प्रभाव को नष्ट
करने में रूद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है, जो अपने आप में एक अचूक उपाय
है। गम्भीर रोगों में यदि जन्मपत्री के अनुसार रूद्राक्ष का उपयोग किया
जाये तो आश्चर्यचकित परिणाम देखने को मिलते है। रूद्राक्ष की शक्ति व
सामथ्र्य उसके धारीदार मुखों पर निर्भर होती है। एक मुखी से लेकर एक्कीस
मुखी तक जो रूद्राक्ष देखें गये है, उनकी अलौकिक शक्ति और क्षमता अलग-अलग
रूप में प्रदर्शित होती है। इसकी क्षमता और शक्ति उत्पत्ति स्थान से भी
प्रभावित होती हैं।
जावा ,बाला और मलयद्वीप में उत्पन्न रूद्राक्ष
तथा भारत और नेपाल में उत्पन्न रूद्राक्षों से कहीं अधिक सामर्थयवान एवं
ऊर्जाशील होते है। हिमालय तथा तराई-क्षेत्र में उत्पन्न रूद्राक्ष, दक्षिण
भारत में उत्पन्न रूद्राक्षों की अपेक्षा अधिक प्रभावशली होते है। नेपाल
में उत्पन्न गोल और कांटेदार एक-मुखी रूद्राक्ष बेहद ऊर्जावान एवं
शक्तिशाली होता है। एक मुखी, दस मुखी तथा चैदहमुखी रूद्राक्ष मिलना अत्यन्त
दुर्लभ है। पन्द्रह से इक्कीस मुखी तक रूद्रास बाजार में उपलब्ध नहीं है।
जहाँ -कहीं पर भी उपलब्ध है। वे पूजनघर में स्थान पाये हुये हैं
उपयोगः-
रूद्राक्ष का उपयोग तीन प्रकार से किया जाता है।
1-पूजन में । 2-शरीर में धारण करने में, 3-औषिध के रूप में ।
एकमुखी
रूद्राक्ष को शिवरूप मानकर विधिवत पूजन करने का विधान है। दो मुखी से
चैदहमुखी तक के रूद्राक्ष को शरीर में धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष को बाजू
में, शिखा में, हाथों में व माला रूप में तथा औषधी आदि के रूप में
रूद्राक्षा का उपयोग किया जाता है। रूद्राक्ष को भस्म बनाकर घिसकर तथा
रूद्राक्ष को गंगाजल से शुद्ध करके खाया-पिया और चाटा जाता हैं। रूद्राक्ष
का सर्वोत्कृष्ट और गोपनीय उपयोग तन्त्र साधना में भी किया जाता है|
रुद्राक्ष तन्त्र साधना में कुण्डली जाग्रत कराने का मुख्य साधन है।
पहचानः-वर्तमान
में कौन सी वस्तु असली और कौन नकली यह समझ पाना टेढी खीर हैं । जब लोग
अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए खाद्य पदार्थो में मिलावट कर देते हैं, जो
स्वास्थ्य और जीवन दोनों कें लिए घातक है, तो भला कैसी उम्मीद की जाये कि
अन्य वस्तुयें बाजार में असली ही मिलेगी। रूद्राक्ष का किसी भी प्रकार में
उपयोग करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि जिसे हम उपयोग में ला रहे
है,वह असली है या नकली ,अन्यथा लाभ करने के बजाय हानि ही करेगा।
1-रूद्राक्ष
को जल में डालने से यह डूब जाये तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान
व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम की लकड़ी के बने रूद्राक्ष
आसानी से पानी में डूब जाते हैं।
2-तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर
उसके ऊपर रूद्राक्ष रखकर फिर दूसरा तांबेका टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख
दिया जाये और एक अॅगुली से हल्के से दबाया जाये तो असली रूद्राक्ष नाचने
लगता है। यह पहचान अभी तक प्रमाणिक हैं।
3- शुद्ध सरसों के तेल में
रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर
वह अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह धूमिल हो जायेगा।
!! दो मुखी रूद्राक्ष !!
दो मुखी रूद्राख गौ हत्या से लगने वाले पाप से
मुक्ति दिलाने वाला होता है। यह रूद्राक्ष अपने-आप में आलौकिक शक्ति धारण
किये रहता है। द्विमुखी रूद्राक्ष को शरीर के किसी भी अंग में धारण से
मानसिक शन्ति एंव पारिवार में आपसी प्रेम व सौहार्द्ध बना रहता है। यदि
कार्य व व्यापार में निरन्तर हानि हो रही है, तो दो मुखी रूद्राक्ष धारण
करने से लाभ मिलता है।
मन, बुद्धि, विवेक पर इस रूद्राक्ष का विशेष
प्रभाव रहता है। जिन जाताकों के वैवाहिक जीवन में आपसी अनबन की स्थिति बनी
रहती है तो वह लोग पति व पत्नी दोनों को दो मुखी रूद्राक्ष भिमन्त्रित करके
गले में धारण करने से शीघ्र ही मतभेद दूर होकर उनमें एकता व परस्पर प्रेम
की भावना बलवती होने लगती है। जिन युवक-युवितियों के विवाह में बिलम्ब या
बाधा आ रही है, उन्हे यह रूद्राक्ष धराण करने से शुभ परिणाम मिलते है।
दोमुखी रूद्राक्ष धारण करने से चन्द्र ग्रह से सम्बन्धित दोष भी दूर हो जाते है।
धारण
विधि- किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन ताम्रपाद में बेल
पत्र रखकर, उसके उपर द्विमुखी रूद्राक्ष रखकर कुश या बेल पत्र से शुद्ध जल
से, 11 बार निम्न मन्त्र से-
'ॐ नमस्ते देवदेवाय महादेव मौलिने।
जगद्धात्रे सवित्रे च शंकराय शिवाय च''।। जल छिड़कर तत्पश्चात दूध छिड़के। फिर गंगा जल से परिमार्जित कर रूद्राक्ष को ताम्रपाद में रख दें। तीसरे दिन पूर्णमासी को उसी भांति सामने रखकर गंगाजल से स्नान करायें। उसके पश्चात हवन कुण्ड में अष्ठांग हवन सामग्री से 108 बार '' नमः शिवाय'' से स्वाहा करते हुये हवन करना चाहिए। हवन के बाद रूद्राक्ष का श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद रूद्राक्ष को माथे से स्पर्श से कराकर धारण करना चाहिए। उपरोक्त विधि से शुद्ध करके रूद्राक्ष को धारण करने पर आशा के अनुरूप लाभ प्राप्त होगा।
'ॐ नमस्ते देवदेवाय महादेव मौलिने।
जगद्धात्रे सवित्रे च शंकराय शिवाय च''।। जल छिड़कर तत्पश्चात दूध छिड़के। फिर गंगा जल से परिमार्जित कर रूद्राक्ष को ताम्रपाद में रख दें। तीसरे दिन पूर्णमासी को उसी भांति सामने रखकर गंगाजल से स्नान करायें। उसके पश्चात हवन कुण्ड में अष्ठांग हवन सामग्री से 108 बार '' नमः शिवाय'' से स्वाहा करते हुये हवन करना चाहिए। हवन के बाद रूद्राक्ष का श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद रूद्राक्ष को माथे से स्पर्श से कराकर धारण करना चाहिए। उपरोक्त विधि से शुद्ध करके रूद्राक्ष को धारण करने पर आशा के अनुरूप लाभ प्राप्त होगा।
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