1.शूद्रों
के लिएकहा जाता है कि वे अनार्य थे, आर्यों के शत्रु थे। आर्यों ने उन्हें
जीता था और दास बना लिया। ऐसा था तो यजुर्वेद और अथर्ववेदके ॠषि शूद्रों
के लिए गौरव की कामना क्यों करते हैं?शूद्रों का अनुग्रह पाने की इच्छा
क्यों प्रकट करते हैं?
2.शूद्रों के लिएकहा जाता है कि उन्हें वेदों के
अध्ययन का अधिकार नहीं है। ऐसा था तो शूद्र सुदास,ऋषि द्रिघत्मा,काक्सिवत
और उसकी पुत्री घोषा ऋग्वेद के मन्त्रों के रचनाकार कैसे हुए?ऐतरेय,रेक्वा
ने उपनिषद लिखा ऐलुष ने
ऋगवेद पर शोध किया ।नारद,वशिष्ठ,व्यास,वाल्मिकी
शुद्र हि माने जाते हैँ ।
3.शूद्रों के लिए कहाजाता है, उन्हें यज्ञ करने
का अधिकार नहीं है। ऐसा था तो सुदास ने अश्वमेध कैसे किया? शतपथ ब्राह्मण
शूद्र को यज्ञकर्ता के रूप में कैसे प्रस्तुत करता है? और उसे कैसे सम्बोधन
करना चाहिए, इसके लिए शब्द भी बताता है।
4.शूद्रों के लिए कहा जाता है कि उन्हें उपनय...न
संस्कार का अधिकार नहीं है। यदिआरम्भ से ही ऐसा था तो इस बारे में विवाद
क्यों उठा? बदरि और संस्कारगणपति क्यों कहते हैं कि उसे उपनयन का अधिकार है
?
5.शूद्र के लिए कहा जाता है कि वह सम्पत्ति संग्रह नहीं कर सकता।
ऐसा थातो मैत्रायणी और कठक संहिताओं में धनीऔर समृद्ध शूद्रों का उल्लेख
कैसे है?महाभारत मेँ उषीनारा,काक्शीब त,देवका जैसे शुद्र राजाओँ का वर्णन
है देखेँ (1:114), (2:21, 12:172)
6.शूद्र के लिए कहा जाता है कि वह
राज्य का पदाधिकारी नहीं हो सकता। ऐसाथा तो महाभारत में राजाओं के मंत्री
शूद्र थे, ऐसा क्यों कहा गया?
वेदों के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों में से एक यह भी है कि वे
ब्राह्मणवादी ग्रंथ हैं और शूद्रों के साथ अन्याय करते हैं |
हिन्दू/सनातन/वैदिक धर्म का मुखौटा बने जातिवाद की जड़ भी वेदों में बताई
जा रही है और इन्हीं विषैले विचारों पर दलित आन्दोलन इस देश में चलाया जा
रहा है |
परंतु, इस से बड़ा असत्य और कोई नहीं है | इस श्रृंखला में
हम इस मिथ्या मान्यता को खंडित करते हुए, वेद तथा संबंधित अन्य ग्रंथों से
स्थापित करेंगे कि -
१.चारों वर्णों का और विशेषतया शूद्र का वह अर्थ है ही नहीं, जो मैकाले के मानसपुत्र दुष्प्रचारित करते रहते हैं |
२.वैदिक जीवन पद्धति सब मानवों को समान अवसर प्रदान करती है तथा जन्म- आधारित भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं रखती |
३.वेद
ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वोच्च गुणवत्ता स्थापित करने के साथ ही सभी
के लिए समान अवसरों की बात कहता हो | जिसके बारे में आज के मानवतावादी तो
सोच भी नहीं सकते |
आइए, सबसे पहले कुछ उपासना मंत्रों से जानें कि वेद शूद्र के बारे में क्या कहते हैं -
यजुर्वेद १८ | ४८
हे
भगवन! हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों
में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं
सत्य के दर्शन कर सकूं |
यजुर्वेद २० | १७
जो अपराध हमने गाँव,
जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध
हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए
हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुडाइए |
यजुर्वेद २६ | २
हे
मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र
के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण,
क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी
कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद १९ | ३२ | ८
हे ईश्वर ! मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद १९ | ६२ | १
सभी
श्रेष्ट मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों,
शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |
इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि -
-वेद में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण समान माने गए हैं |
-सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सम्मान दिया गया है |
-और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूद्र के साथ किए गए अपराध भी शामिल हैं |
-वेद के ज्ञान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है |
-यहां
ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में शूद्र शब्द वैश्य से पहले आया
है,अतः स्पष्ट है कि न तो शूद्रों का स्थान अंतिम है और ना ही उन्हें कम
महत्त्व दिया गया है |
इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूद्रों का स्थान अन्य वर्णों की ही भांति आदरणीय है और उन्हें उच्च सम्मान प्राप्त है |
यह कहना कि वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय है जिससे भेदभाव बरता जाए - पूर्णतया निराधार है |
अगले लेखों में हम शूद्र के पर्यायवाची समझ लिए गए दास, दस्यु और अनार्य शब्दों की चर्चा करेंगे |
http://en.wikipedia.org/wiki/ Sudra_Kingdom
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http://en.wikipedia.org/wiki/ List_of_Shudra_Hindu_saints
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2.शूद्रों के लिएकहा जाता है कि उन्हें वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं है। ऐसा था तो शूद्र सुदास,ऋषि द्रिघत्मा,काक्सिवत और उसकी पुत्री घोषा ऋग्वेद के मन्त्रों के रचनाकार कैसे हुए?ऐतरेय,रेक्वा ने उपनिषद लिखा ऐलुष ने
ऋगवेद पर शोध किया ।नारद,वशिष्ठ,व्यास,वाल्मिकी शुद्र हि माने जाते हैँ ।
4.शूद्रों के लिए कहा जाता है कि उन्हें उपनय...न संस्कार का अधिकार नहीं है। यदिआरम्भ से ही ऐसा था तो इस बारे में विवाद क्यों उठा? बदरि और संस्कारगणपति क्यों कहते हैं कि उसे उपनयन का अधिकार है ?
5.शूद्र के लिए कहा जाता है कि वह सम्पत्ति संग्रह नहीं कर सकता। ऐसा थातो मैत्रायणी और कठक संहिताओं में धनीऔर समृद्ध शूद्रों का उल्लेख कैसे है?महाभारत मेँ उषीनारा,काक्शीब त,देवका जैसे शुद्र राजाओँ का वर्णन है देखेँ (1:114), (2:21, 12:172)
6.शूद्र के लिए कहा जाता है कि वह राज्य का पदाधिकारी नहीं हो सकता। ऐसाथा तो महाभारत में राजाओं के मंत्री शूद्र थे, ऐसा क्यों कहा गया?
वेदों के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों में से एक यह भी है कि वे ब्राह्मणवादी ग्रंथ हैं और शूद्रों के साथ अन्याय करते हैं | हिन्दू/सनातन/वैदिक धर्म का मुखौटा बने जातिवाद की जड़ भी वेदों में बताई जा रही है और इन्हीं विषैले विचारों पर दलित आन्दोलन इस देश में चलाया जा रहा है |
परंतु, इस से बड़ा असत्य और कोई नहीं है | इस श्रृंखला में हम इस मिथ्या मान्यता को खंडित करते हुए, वेद तथा संबंधित अन्य ग्रंथों से स्थापित करेंगे कि -
१.चारों वर्णों का और विशेषतया शूद्र का वह अर्थ है ही नहीं, जो मैकाले के मानसपुत्र दुष्प्रचारित करते रहते हैं |
२.वैदिक जीवन पद्धति सब मानवों को समान अवसर प्रदान करती है तथा जन्म- आधारित भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं रखती |
३.वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वोच्च गुणवत्ता स्थापित करने के साथ ही सभी के लिए समान अवसरों की बात कहता हो | जिसके बारे में आज के मानवतावादी तो सोच भी नहीं सकते |
आइए, सबसे पहले कुछ उपासना मंत्रों से जानें कि वेद शूद्र के बारे में क्या कहते हैं -
यजुर्वेद १८ | ४८
हे भगवन! हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं सत्य के दर्शन कर सकूं |
यजुर्वेद २० | १७
जो अपराध हमने गाँव, जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुडाइए |
यजुर्वेद २६ | २
हे मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद १९ | ३२ | ८
हे ईश्वर ! मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद १९ | ६२ | १
सभी श्रेष्ट मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |
इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि -
-वेद में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण समान माने गए हैं |
-सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सम्मान दिया गया है |
-और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूद्र के साथ किए गए अपराध भी शामिल हैं |
-वेद के ज्ञान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है |
-यहां ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में शूद्र शब्द वैश्य से पहले आया है,अतः स्पष्ट है कि न तो शूद्रों का स्थान अंतिम है और ना ही उन्हें कम महत्त्व दिया गया है |
इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूद्रों का स्थान अन्य वर्णों की ही भांति आदरणीय है और उन्हें उच्च सम्मान प्राप्त है |
यह कहना कि वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय है जिससे भेदभाव बरता जाए - पूर्णतया निराधार है |
अगले लेखों में हम शूद्र के पर्यायवाची समझ लिए गए दास, दस्यु और अनार्य शब्दों की चर्चा करेंगे |
http://en.wikipedia.org/wiki/
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http://en.wikipedia.org/wiki/
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