राजतंत्र से भी बदतर भारतीय लोकतंत्र हो रहा है ,,क्योकि आज लोकतंत्र के नाम पर राजतन्त्र बनाम परिवार तंत्र हो गया है ..एक ही खानदान से बहुत से नुमाइंदे निकल रहे है जिनका पेसा ही राजनीत बन गई है ...किसी पार्टी का नाम नहीं लुगा नहीं तो मिर्ची लग जायेगी इन पार्टियों के नेताओं को ..खासकर क्षेत्रीय पार्टिया तो हद कर रही है ..
लोकतंत्र के इतिहास को अगर खंगाला जाय तो समझ में आएगा कि भारतवर्ष को अन्य लोकतान्त्रिक देशों की तुलना में लोकतंत्र काफी आसानी से या यूं कहिये लगभग घलुआ में हाशिल हो गया .....लोकतंत्र ! अमेरिका में लोकतंत्र की खातिर सैकड़ों वर्ष जंग हुई,अब्राहम लिंकन से लेकर बी.टी.वाशिंगटन तक की कहानी दुनिया चाह के भी भुला नहीं सकती ! हम तो गुलामी के दौर से गुजर रहे थे और हमारी राजतांत्रिक व्यवस्था को छिन्न -भिन्न करने का काम अंग्रेजों ने पहले ही कर दिया था। यानि कि गुलाम हुआ था राजतांत्रिक भारत और आजाद हुआ सूद-मूल लेकर लोकतान्त्रिक भारत के रूप में ! और उसी अपनी गलती का अंग्रेजों को भोग भोगना पड़ा भारत को मुक्त करने के रूप में ! लाख हम चिल्ला लें लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है का गलतिय नारा अंग्रेजों का ही दिया हुआ था........
लेकिन आज आजादी के तिरसठ सालों बाद भी हम ऐसे मानसिक दिवालियेपन कि स्थिति से गुजर रहे हैं कि संसद और विधानसभाओं तक में नेताओं को उठा के मार्शल से फेक्वाया जाता है,इतना ही नहीं महिला विधायिकाओं तक को ! ये क्या है ,कहाँ चली गयी सत्तासीन नेताओं को ऊचीं मानसिकता ,जहाँ दो विरोधी ध्रुव के लोग भी एक दुसरे का सम्मान करते थे ! ये तो राजतन्त्र से भी बदतर है ! अतः ,इसके विरोध में व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठ कर सारे दलों के नेताओं को आगे आना चाहिए जिससे देश कि संसद,विधायिका का तो कम से कम मटियामेट होने से बच जाय.........
लोकतंत्र के इतिहास को अगर खंगाला जाय तो समझ में आएगा कि भारतवर्ष को अन्य लोकतान्त्रिक देशों की तुलना में लोकतंत्र काफी आसानी से या यूं कहिये लगभग घलुआ में हाशिल हो गया .....लोकतंत्र ! अमेरिका में लोकतंत्र की खातिर सैकड़ों वर्ष जंग हुई,अब्राहम लिंकन से लेकर बी.टी.वाशिंगटन तक की कहानी दुनिया चाह के भी भुला नहीं सकती ! हम तो गुलामी के दौर से गुजर रहे थे और हमारी राजतांत्रिक व्यवस्था को छिन्न -भिन्न करने का काम अंग्रेजों ने पहले ही कर दिया था। यानि कि गुलाम हुआ था राजतांत्रिक भारत और आजाद हुआ सूद-मूल लेकर लोकतान्त्रिक भारत के रूप में ! और उसी अपनी गलती का अंग्रेजों को भोग भोगना पड़ा भारत को मुक्त करने के रूप में ! लाख हम चिल्ला लें लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है का गलतिय नारा अंग्रेजों का ही दिया हुआ था........
लेकिन आज आजादी के तिरसठ सालों बाद भी हम ऐसे मानसिक दिवालियेपन कि स्थिति से गुजर रहे हैं कि संसद और विधानसभाओं तक में नेताओं को उठा के मार्शल से फेक्वाया जाता है,इतना ही नहीं महिला विधायिकाओं तक को ! ये क्या है ,कहाँ चली गयी सत्तासीन नेताओं को ऊचीं मानसिकता ,जहाँ दो विरोधी ध्रुव के लोग भी एक दुसरे का सम्मान करते थे ! ये तो राजतन्त्र से भी बदतर है ! अतः ,इसके विरोध में व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठ कर सारे दलों के नेताओं को आगे आना चाहिए जिससे देश कि संसद,विधायिका का तो कम से कम मटियामेट होने से बच जाय.........
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