इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।।
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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012
!! लडकिया सच में पराया धन होती है ?
बचपन से ही हर घर मे यही सुना कि लड़की का क्या वो तो परायी अमानत होती पराया धन होती है यह बात सिर्फ राजपूत सामाज में ही नहीं सभी समाज में कही जाती है । कुछ हद तक तो एक समय के लिए मुझे भी लगा की वाकई बेटियाँ पराया धन होती हैं क्यूंकी पाल पोस कर, पढ़ा लिखा कर फिर एक अच्छा रिश्ते ढूँढ कर उसको घर से विदा करना कितना (अब सुखद कहूँ या दुखद भाव दोनो ही आते हैं उस वक्त जब बेटी को विदा किया जाता है) बड़ा और पुण्य का काम है| किंतु बेटी को घर भी नही बिठाया जा सकता ....... पुरानी रीत चली आ ...रही है, एक ना एक दिन तो बेटी को विदा करना है, ये तो रीत सबको निभानी होती है चाहे वो ग़रीब हो या अमीर|
किंतु तभी ख़याल आया बेटी पराया धन कहाँ होती हैं ......... आपको थोड़ा सा भी कष्ट हो बेटी तुरंत हाज़िर होती है ......... यदि आपको प्यास लगी हो तो बेटी तुरंत पानी लाती है चाहे वो खाना ही क्यूँ ना खा रही हो ........| यदि आपको सिर दर्द है तो तुरंत सिर दबाने बैठ जाती है .........| शादी के बाद भी बेटी का झुकाव अक्सर अपने माता पिता की ओर ही रहता है ..... फिर भी ये पराया धन ही कहलाती है ........ |
तो सोचो क्या कोई पराया इतना कर सकता है आप के लिए ...... मुझे तो नही लगता .......
बेटियाँ सुख की छाया होती हैं फिर भी उनको बचपन से ही पराया धन कहा जाता है ... क्यूँ, समझ से बाहर है ....|
हाँ आजकल कुछ आधुनिक माता पिता इनको पराया धन नहीं मानते । तो आप सभी के बिचार आमंत्रित है की क्या लडकिया सच में पराया धन होती है ?
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