भारतीय जनता पार्टी में सिर्फ बाबूसिंह कुशवाहा के आनेमात्र से देशभर में भाजपा में भ्रष्टों को संरक्षण देने की गंभीर बहस शुरू हो गई है और हम भूल गये हैं कि ये बाबूसिंह कुशवाहा कहां थे और किन आरोपों के कारण ये भ्रष्ट शिरोमणि करार दिये गये. उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त नामक संस्था की रपटों पर शासन के आखिरी चंद लम्हों में माया मेमसाहब को दर्जन भर मंत्री भ्रष्ट नजर आने लगे और एक एक करके उन्होंने उन मंत्रियों को दरवाजा दिखा दिया. यही दर दर भटकते मंत्री अब दूसरों दलों की शरण ले रहे हैं.
इन भ्रष्ट मंत्रियों पर बहस के बीच क्या उस सरकार की मुखिया पर बात नहीं होनी चाहिए जो इन भ्रष्टों को अपने दामन में लपेटे पांच साल प्रदेश में लूट का कारोबार करती रही? लोकआयुक्त की जिन रिर्पोटों के आधार पर मुख्यमंत्री मायावती ने अपनें कुख्यात मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान मंत्रियों के मंत्रिमण्डल से बर्खास्तगी का एक अभियान सा छेड़ दिया है। क्या इतने से मायावती ईमानदारी का तमगा हासिल कर लेंगी? पाँच सालों तक एक महाभ्रष्ट एवं बे-इमान सरकार चलानें का उन पर लगा बदनुमा दाग मिट सकता है�? अगर नहीं तो फिर यह राजनीति नौटंकी क्यों? यहाँ यह काबिलेगौर है कि, मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान मंत्रियों की बर्खास्तगी का स्वंाग तब रचा गया जब चुनाव सर पर आ गया इतना ही नहीं मैडम माया नें भ्रष्ट मंत्रियों की बर्खास्तगी के लिए रफ्तार तब पकड़ा जब चुनावी आचार संहित लागू हो गई। यानि कि अपने मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान सहयोगियों को आखिरी समय तक माया मेम साहब ने लूटने खाने की पूरी आजादी दे रखी थी।
सच तो यह है कि, प्रदेश में भ्रष्टों बे-इमानों एवं अपराधियों की सरकार बनने का सहज अंदाज उसी दिन हो गया था जब 2007 की बसपा सरकार का शपथ ग्रहण समारोह ही अपराधियों को मंत्री बनानें के श्री गणेश से हुआ था। प्रदेश के इतिहास में यह पहला अवसर था कि जेल में बंद किसी विधायक (आनंद सेन यादव) का नाम शपथ ग्रहण वाले मंत्रियों की सूची में था। यह जानते हुए भी कि वह विधायक शपथ लेनें ततक नहीं आ सकता। बहरहाल, पाँच साल माया सरकार नें इन्हीं भ्रष्ट एवं अपराधी विधायकों-मंत्रियों के साथ प्रदेश में लूट-खसोट का एक कीर्तिमान स्थापित किया है। और अब जब चुनाव सर पर है तो वह संदेश देनें का ढोंग किया जा रहा है
खुद मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के आरोप में सी0बी0आई0 जाँच और कार्यवाही को लेकर मामला सुप्रीमकोर्ट में लम्बित है। मायावती के भाई आनंद पर तीन सौ फर्जी कम्पनियाँ बनाकर अरबों रूपयों की लूट का आरोप लोकआयुक्त के यहाँ भाजपा के किरोट सोमैय्या नें लखा रखा है। इसी तरह फर्जी कम्पनियाँ बनाकर पिछले करीब पौने पाँच सालों मतें चर्चित शराब माफिया पोंटी चड्ढा और मायावती के भाई आनंद पर आबकारी की कमाई लूटने का आरोप है। बसपा में ब्राह्मण चेहरे के सबसे कद्दावर नेता पं. सतीशचन्द्र मिश्र के विरूद्ध भी करोड़ों-अरबों रूपयों के घोटाले का आरोप लग रहा है।
एक गैर सरकारी रिर्पोट के मुताबिक, मायावती के इस राज में बसपा के नाम पर सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराने वाले छुटभैय्ये नेता व कार्यकर्ता तक तखपति नहीं करोडपति हो चुके हैं। और जो ठीक-ठाक कद के हैं उनकी गिनती अब अरबपतियों में होनं लगी है। करीब एक लाख से ज्यादा नए अमीर मायावती के इस राज में पैदा हो चुके हैं, जिनमें मंत्री से लेकर संतरी, चपरासी से लेकर अफसर और बसपा नेता तक शामिल हैं। राज्य के अस्सी प्रतिशत ठेकों पर बसपा विधायकों के परिवार वालो या फिर रिश्तेदारों के कब्जे हैं। नब्बे प्रतिशत विधायक एवं उनके लगुए-भगुए बीते इन साढ़े चार सालों में �रियल स्टेट� में घुस गए। जहाँ जमीनें हाथ लगी, कब्जा जमाया। राज्य में ऐसा कोई धंधा नहीं बचा, जहाँ से हाथी की सवारी करनें वालों नें दोनों हाथों से पैसा न कमाया हो या फिर धंधे में पैसा न लगाया हो। राज्य का स्वास्थ्य विभाग तो सिर्फ नाम के लिए बदनाम रहा है। उससे कहीं ज्यादा लूट तो दूसरे विभागों में जारी है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पिछले लगभग पाँ सालों तक किए गए लूट-खसोट पर यह कहना संभवतः अनुचित नहीं होगा कि - �यहाँ दाल में काला नहीं� बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। राज्य की मुख्यमंत्री सहित शायद ही ऐसा कोई अभागा मंत्री बचा हो जिसके दामन पर भ्रष्टाचार के दाग न लगे हों। बावजूद इसके भय-मूख और भ्रष्टाचार के विरूद्ध हाथी की तरह चिघाड़ने वाली मुख्यमंत्री मायावती चुनाव से पहले यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि - �उनकी सरकार में भ्रष्टचार किसी भी कीमत पर बर्दास्त नहीं है। हालांकि, मुख्यमंत्री मायावती का यह संदेश राज्य की जनता के गले नहीं उतर रहा है। अब ओर जहाँ �पकड़� में आए भ्रष्ट मंत्रियों एवं विधायकों के टिकट काट रही हैं मायावती तो वही, दूसरी ओर उन्ही भ्रष्ट मंत्रियों-विधायकों के परिजनों को विधानसभा चुनाव के टिकट दिए जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में चुनाव की तिथियाँ घोषित होनें के एक दिन बाद ही मुख्यमंी मायावती नें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण लोक आयुक्त की जांच में धिरे सरकार के चार मंत्रियों को एक साथ बर्खास्त कर दिया। सरकार से बर्खास्त हुए मंत्रियों में उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी, कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान मंत्री राजपाल त्यागी, पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री अवधेश कुमार वर्मा और होमगार्ड्स एवं प्रान्तीय रक्षा दल राज्यमंत्री हरिओ शामिल हैं। इन सभी पर भ्रष्टाचार समेत अन्य आरोप भी हैं। परिवहन मंत्री रामअचल राजभर तथा आयुर्वेद चिकित्सा मंत्री ददन मिश्र के भी लोकआयुक्त की सिफारिश पर धमार्थ कार्य राजय मंत्री राजेश त्रिपाठी, पशुधन एवं दुग्धविकास राज्यमंत्री अवध पाल सिंह यादव, माध्यमिक शिक्षा मंत्री रतनलाल अहिरवार को लाल बत्ती सुख से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में अरबों रूपयों के घोटाले एवं तीन-तीन हत्याओं के कारण मायावती के किचन कैबिनेट मंत्री रहे परिवार कल्याण मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र को भी पद से हाथ धोना पड़ा है। मायावती के खास मानें जाने वाले काबीना मंत्री नसीमुद्दीन एवं उनकी एमएलसी पत्नी हुश्ना सिद्दीकी लोक आयुक्त की जाँच के घेरे में हैं। बावजूद इसके मायावती नें नसीमुद्दीन के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही करनें की कोई जहमत नहीं उठाई है, बल्कि उन्हें अन्य विभागों का भी कार्यभार सौंप दिया गया है। प्रदेश के उच्च शिक्षामंत्री रहे राकेशधर त्रिपाठी के खिलाफ लोक आयुक्त के यहाँ शिकायतें दर्ज हुई थी। इसके अलावा भी उनकी कई शिकायतें थीं। इसी वजह से उनका टिकट काटकर पहले उनके भतीजे पंकज त्रिपाठी को हण्डिया से टिकट दिया गया बाद में पंकज त्रिपाठी का भी टिकट काटते हुए राकेशधर त्रिपाठी को मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करनें का फरमान जारी कर दिया गया।
प्रदेश के कृषि शिक्षा मंत्री राजपाल त्यागी का नाम तब उभरा, जब इलाहाबाद उच्चन्यायालय नें 2009 में हुए रविन्द्र त्यागी मुठभेड़ कांड की सीबीआई जाँच के आदेश दिए थे। इस मामले में रविन्द्र त्यागी की पत्नि नें राजपाल पर हत्या का आरोप लगाया था। पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री अवधेश कुमार वर्मा और होमगार्डस एवं प्रान्तीय रक्षादल मंत्री हरिओम के खिलाफ लोकआयुक्त की शिकायतों के अलावा अन्य कई आरोप है। कैबिनेट मंत्री चन्द्रदेव राम यादव नें लोकआयुक्त को दिए अपनें बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंत्री रहते हुए हेडमास्टर का वेतन लिया है।
मयावती मंत्रिमण्डल के परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के विरूद्ध एक परिवाद दाखिल हुआ है। जो कि अपनें आप में हास्यप्रद एंव हैरतअंगेज भी है। परिवाद के अनुसार-परिवाहन मंत्री रामअचल राजभर राजनीति में आनें से पहले अपनें गृह जनपद अम्बेडकर नगर एवं आस-पास के कस्बों में नि सिर्फ चूहा मार दवा बेचकर ही बल्कि �भांड मण्डली� में नाच-गा कर अपनें परिवार का जीविको पार्जन किया करते थे। लेकिन बसपाई राजनीति में पैर पसारते ही रामअचल राजभर की आर्थिक स्थिति में दिन दूनी-रात चौगुनी की रफ्तार से इजाफा होता गया। परिवाद में परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के आर्थिक साम्राज्य का जो दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किया गया तो भी उक्त रामअचल की �अचल� सम्पत्तियाँ पचासों करोड़ से ऊपर की साबित होती है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री मायावती की कृपादृष्टि रामअचल पर अब तक बनी हुई है।
मुख्मंत्री मायावती के कथित �आपरेशनक्लीन� के बावजूद माया मंत्रिमण्डल में अभी भी जयबीर सिंह, बेदराम भाटी, दद्दू प्रसाद, धर्म सिंह सैनी अयोध्यापाल, और राज्यमंत्री जयबीर सिंह जैसे स्वनामधन्य कुख्यात मंत्री मायावती मंत्रिमण्डल की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री मायावती द्वारा पिछले दिनों चलाए जा रहे �औचक निरीक्षण� के दौरान एक महिला नें स्वयं मुख्यमंत्री से मिलकर मंत्री जयबीर सिंह के खिलाफ पंचायत चुनाव में पैसे लेने का आरोप लगाया। शिकायत के बाद इस मंत्री पर कार्यवाही करनें की बजाए उसी शिकयतकर्ता महिला को जेल भिजवा दिया गया। इसी प्रकार राज्यमंत्री जयबीर सिंह पर एक युवती नें अपनें पिता के अपहरण और हत्या का आरोप लगाया उस महिला को इंसाफ मिलने को कौन कहे उल्टे उसी के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करवा कर उसे जेल भिजवा दिया गया।
प्रदेश के खेलमंत्री अयोध्यापाल का �बहाशीयाना खेल� तो किसी भी सभ्य समाज को शर्मशार कर देने वाला है बावजूद इसके अयोध्यापाल �माननीय मंत्री� की कुर्सी पर विराजमान है। वेदराम भाटी के खिलाफ भी �तिहरे हत्याकाण्ड� का मामला था लेकिन प्रदेश के डीजीपी से जाँच करा कर वेदराम भाटी को क्लीनचिट दे दी गई। ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद पर कमला नामक एक लड़की नें आरोप लगाया कि �नौकरी दिलानें के नाम पर� मंत्री दद्दू प्रसाद उसका शारिरिक शोषण करते रहे लेकिन उसे नौकरी नहीं दिलवाये। कमला बनाम दद्दू प्रसाद का यह प्रकरण मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा पर दद्दू प्रसाद की इस �दादागिरी� पर �माया की गाज� नही गिरी।
मायावती मंत्रिमण्डल में उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय बसपाई राजनीति में महत्वपूर्ण ब्राह्मण चेहरा हैं। उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय के विरूद्ध लोकआयुक्त के यहाँ निजी क्षेत्र से महंगी बिजली खरीदनें, आय से अधिक सम्पत्ति इकठ्ठा करनें, विधायक निधि का दुरूपयोग करनें और सरकारी जमीन पर बलात् कब्जा करनें जैसी कई गंभीर शिकायतों का परिवाद दाखिल हुआ। जिस पर लोकआयुक्त कार्यालय से उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय को नोटिस भी जारी कर दी गई। बाद में सारे मामले अदालत में विचाराधीन होनें के कारण लोकआयुक्त नें रामबीर उपाध्याय की जांच बंद कर दी। जिस पर 31 दिसम्बर को अपनें गृहजनपद हाथरस में एक आमसभा में माया के उर्जा मंत्री रामबीर उपाध्याय नें लोकआयुक्त को मंच से सार्वजनिक रूप से धमकानें में गुरेज नहीं किया।
उपरोक्त तमाम तथ्यों के बाद भी अगर मुख्यमंत्री मायावती यह दावा करते नहीं थक रही हैं कि - भ्रष्ट एवं भ्रष्टाचारियों को बर्दास्त नहीं किया जाएगा तो फिर मायावती को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए कि वे किस सीमा तक होने वाली लूट को भ्रष्टाचार मानेगी।
इन भ्रष्ट मंत्रियों पर बहस के बीच क्या उस सरकार की मुखिया पर बात नहीं होनी चाहिए जो इन भ्रष्टों को अपने दामन में लपेटे पांच साल प्रदेश में लूट का कारोबार करती रही? लोकआयुक्त की जिन रिर्पोटों के आधार पर मुख्यमंत्री मायावती ने अपनें कुख्यात मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान मंत्रियों के मंत्रिमण्डल से बर्खास्तगी का एक अभियान सा छेड़ दिया है। क्या इतने से मायावती ईमानदारी का तमगा हासिल कर लेंगी? पाँच सालों तक एक महाभ्रष्ट एवं बे-इमान सरकार चलानें का उन पर लगा बदनुमा दाग मिट सकता है�? अगर नहीं तो फिर यह राजनीति नौटंकी क्यों? यहाँ यह काबिलेगौर है कि, मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान मंत्रियों की बर्खास्तगी का स्वंाग तब रचा गया जब चुनाव सर पर आ गया इतना ही नहीं मैडम माया नें भ्रष्ट मंत्रियों की बर्खास्तगी के लिए रफ्तार तब पकड़ा जब चुनावी आचार संहित लागू हो गई। यानि कि अपने मंत्रिमण्डल के भ्रष्ट एवं बे-इमान सहयोगियों को आखिरी समय तक माया मेम साहब ने लूटने खाने की पूरी आजादी दे रखी थी।
सच तो यह है कि, प्रदेश में भ्रष्टों बे-इमानों एवं अपराधियों की सरकार बनने का सहज अंदाज उसी दिन हो गया था जब 2007 की बसपा सरकार का शपथ ग्रहण समारोह ही अपराधियों को मंत्री बनानें के श्री गणेश से हुआ था। प्रदेश के इतिहास में यह पहला अवसर था कि जेल में बंद किसी विधायक (आनंद सेन यादव) का नाम शपथ ग्रहण वाले मंत्रियों की सूची में था। यह जानते हुए भी कि वह विधायक शपथ लेनें ततक नहीं आ सकता। बहरहाल, पाँच साल माया सरकार नें इन्हीं भ्रष्ट एवं अपराधी विधायकों-मंत्रियों के साथ प्रदेश में लूट-खसोट का एक कीर्तिमान स्थापित किया है। और अब जब चुनाव सर पर है तो वह संदेश देनें का ढोंग किया जा रहा है
खुद मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के आरोप में सी0बी0आई0 जाँच और कार्यवाही को लेकर मामला सुप्रीमकोर्ट में लम्बित है। मायावती के भाई आनंद पर तीन सौ फर्जी कम्पनियाँ बनाकर अरबों रूपयों की लूट का आरोप लोकआयुक्त के यहाँ भाजपा के किरोट सोमैय्या नें लखा रखा है। इसी तरह फर्जी कम्पनियाँ बनाकर पिछले करीब पौने पाँच सालों मतें चर्चित शराब माफिया पोंटी चड्ढा और मायावती के भाई आनंद पर आबकारी की कमाई लूटने का आरोप है। बसपा में ब्राह्मण चेहरे के सबसे कद्दावर नेता पं. सतीशचन्द्र मिश्र के विरूद्ध भी करोड़ों-अरबों रूपयों के घोटाले का आरोप लग रहा है।
एक गैर सरकारी रिर्पोट के मुताबिक, मायावती के इस राज में बसपा के नाम पर सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराने वाले छुटभैय्ये नेता व कार्यकर्ता तक तखपति नहीं करोडपति हो चुके हैं। और जो ठीक-ठाक कद के हैं उनकी गिनती अब अरबपतियों में होनं लगी है। करीब एक लाख से ज्यादा नए अमीर मायावती के इस राज में पैदा हो चुके हैं, जिनमें मंत्री से लेकर संतरी, चपरासी से लेकर अफसर और बसपा नेता तक शामिल हैं। राज्य के अस्सी प्रतिशत ठेकों पर बसपा विधायकों के परिवार वालो या फिर रिश्तेदारों के कब्जे हैं। नब्बे प्रतिशत विधायक एवं उनके लगुए-भगुए बीते इन साढ़े चार सालों में �रियल स्टेट� में घुस गए। जहाँ जमीनें हाथ लगी, कब्जा जमाया। राज्य में ऐसा कोई धंधा नहीं बचा, जहाँ से हाथी की सवारी करनें वालों नें दोनों हाथों से पैसा न कमाया हो या फिर धंधे में पैसा न लगाया हो। राज्य का स्वास्थ्य विभाग तो सिर्फ नाम के लिए बदनाम रहा है। उससे कहीं ज्यादा लूट तो दूसरे विभागों में जारी है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पिछले लगभग पाँ सालों तक किए गए लूट-खसोट पर यह कहना संभवतः अनुचित नहीं होगा कि - �यहाँ दाल में काला नहीं� बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। राज्य की मुख्यमंत्री सहित शायद ही ऐसा कोई अभागा मंत्री बचा हो जिसके दामन पर भ्रष्टाचार के दाग न लगे हों। बावजूद इसके भय-मूख और भ्रष्टाचार के विरूद्ध हाथी की तरह चिघाड़ने वाली मुख्यमंत्री मायावती चुनाव से पहले यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि - �उनकी सरकार में भ्रष्टचार किसी भी कीमत पर बर्दास्त नहीं है। हालांकि, मुख्यमंत्री मायावती का यह संदेश राज्य की जनता के गले नहीं उतर रहा है। अब ओर जहाँ �पकड़� में आए भ्रष्ट मंत्रियों एवं विधायकों के टिकट काट रही हैं मायावती तो वही, दूसरी ओर उन्ही भ्रष्ट मंत्रियों-विधायकों के परिजनों को विधानसभा चुनाव के टिकट दिए जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में चुनाव की तिथियाँ घोषित होनें के एक दिन बाद ही मुख्यमंी मायावती नें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण लोक आयुक्त की जांच में धिरे सरकार के चार मंत्रियों को एक साथ बर्खास्त कर दिया। सरकार से बर्खास्त हुए मंत्रियों में उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी, कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान मंत्री राजपाल त्यागी, पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री अवधेश कुमार वर्मा और होमगार्ड्स एवं प्रान्तीय रक्षा दल राज्यमंत्री हरिओ शामिल हैं। इन सभी पर भ्रष्टाचार समेत अन्य आरोप भी हैं। परिवहन मंत्री रामअचल राजभर तथा आयुर्वेद चिकित्सा मंत्री ददन मिश्र के भी लोकआयुक्त की सिफारिश पर धमार्थ कार्य राजय मंत्री राजेश त्रिपाठी, पशुधन एवं दुग्धविकास राज्यमंत्री अवध पाल सिंह यादव, माध्यमिक शिक्षा मंत्री रतनलाल अहिरवार को लाल बत्ती सुख से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में अरबों रूपयों के घोटाले एवं तीन-तीन हत्याओं के कारण मायावती के किचन कैबिनेट मंत्री रहे परिवार कल्याण मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र को भी पद से हाथ धोना पड़ा है। मायावती के खास मानें जाने वाले काबीना मंत्री नसीमुद्दीन एवं उनकी एमएलसी पत्नी हुश्ना सिद्दीकी लोक आयुक्त की जाँच के घेरे में हैं। बावजूद इसके मायावती नें नसीमुद्दीन के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही करनें की कोई जहमत नहीं उठाई है, बल्कि उन्हें अन्य विभागों का भी कार्यभार सौंप दिया गया है। प्रदेश के उच्च शिक्षामंत्री रहे राकेशधर त्रिपाठी के खिलाफ लोक आयुक्त के यहाँ शिकायतें दर्ज हुई थी। इसके अलावा भी उनकी कई शिकायतें थीं। इसी वजह से उनका टिकट काटकर पहले उनके भतीजे पंकज त्रिपाठी को हण्डिया से टिकट दिया गया बाद में पंकज त्रिपाठी का भी टिकट काटते हुए राकेशधर त्रिपाठी को मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करनें का फरमान जारी कर दिया गया।
प्रदेश के कृषि शिक्षा मंत्री राजपाल त्यागी का नाम तब उभरा, जब इलाहाबाद उच्चन्यायालय नें 2009 में हुए रविन्द्र त्यागी मुठभेड़ कांड की सीबीआई जाँच के आदेश दिए थे। इस मामले में रविन्द्र त्यागी की पत्नि नें राजपाल पर हत्या का आरोप लगाया था। पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री अवधेश कुमार वर्मा और होमगार्डस एवं प्रान्तीय रक्षादल मंत्री हरिओम के खिलाफ लोकआयुक्त की शिकायतों के अलावा अन्य कई आरोप है। कैबिनेट मंत्री चन्द्रदेव राम यादव नें लोकआयुक्त को दिए अपनें बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंत्री रहते हुए हेडमास्टर का वेतन लिया है।
मयावती मंत्रिमण्डल के परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के विरूद्ध एक परिवाद दाखिल हुआ है। जो कि अपनें आप में हास्यप्रद एंव हैरतअंगेज भी है। परिवाद के अनुसार-परिवाहन मंत्री रामअचल राजभर राजनीति में आनें से पहले अपनें गृह जनपद अम्बेडकर नगर एवं आस-पास के कस्बों में नि सिर्फ चूहा मार दवा बेचकर ही बल्कि �भांड मण्डली� में नाच-गा कर अपनें परिवार का जीविको पार्जन किया करते थे। लेकिन बसपाई राजनीति में पैर पसारते ही रामअचल राजभर की आर्थिक स्थिति में दिन दूनी-रात चौगुनी की रफ्तार से इजाफा होता गया। परिवाद में परिवहन मंत्री रामअचल राजभर के आर्थिक साम्राज्य का जो दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किया गया तो भी उक्त रामअचल की �अचल� सम्पत्तियाँ पचासों करोड़ से ऊपर की साबित होती है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री मायावती की कृपादृष्टि रामअचल पर अब तक बनी हुई है।
मुख्मंत्री मायावती के कथित �आपरेशनक्लीन� के बावजूद माया मंत्रिमण्डल में अभी भी जयबीर सिंह, बेदराम भाटी, दद्दू प्रसाद, धर्म सिंह सैनी अयोध्यापाल, और राज्यमंत्री जयबीर सिंह जैसे स्वनामधन्य कुख्यात मंत्री मायावती मंत्रिमण्डल की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री मायावती द्वारा पिछले दिनों चलाए जा रहे �औचक निरीक्षण� के दौरान एक महिला नें स्वयं मुख्यमंत्री से मिलकर मंत्री जयबीर सिंह के खिलाफ पंचायत चुनाव में पैसे लेने का आरोप लगाया। शिकायत के बाद इस मंत्री पर कार्यवाही करनें की बजाए उसी शिकयतकर्ता महिला को जेल भिजवा दिया गया। इसी प्रकार राज्यमंत्री जयबीर सिंह पर एक युवती नें अपनें पिता के अपहरण और हत्या का आरोप लगाया उस महिला को इंसाफ मिलने को कौन कहे उल्टे उसी के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करवा कर उसे जेल भिजवा दिया गया।
प्रदेश के खेलमंत्री अयोध्यापाल का �बहाशीयाना खेल� तो किसी भी सभ्य समाज को शर्मशार कर देने वाला है बावजूद इसके अयोध्यापाल �माननीय मंत्री� की कुर्सी पर विराजमान है। वेदराम भाटी के खिलाफ भी �तिहरे हत्याकाण्ड� का मामला था लेकिन प्रदेश के डीजीपी से जाँच करा कर वेदराम भाटी को क्लीनचिट दे दी गई। ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद पर कमला नामक एक लड़की नें आरोप लगाया कि �नौकरी दिलानें के नाम पर� मंत्री दद्दू प्रसाद उसका शारिरिक शोषण करते रहे लेकिन उसे नौकरी नहीं दिलवाये। कमला बनाम दद्दू प्रसाद का यह प्रकरण मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा पर दद्दू प्रसाद की इस �दादागिरी� पर �माया की गाज� नही गिरी।
मायावती मंत्रिमण्डल में उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय बसपाई राजनीति में महत्वपूर्ण ब्राह्मण चेहरा हैं। उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय के विरूद्ध लोकआयुक्त के यहाँ निजी क्षेत्र से महंगी बिजली खरीदनें, आय से अधिक सम्पत्ति इकठ्ठा करनें, विधायक निधि का दुरूपयोग करनें और सरकारी जमीन पर बलात् कब्जा करनें जैसी कई गंभीर शिकायतों का परिवाद दाखिल हुआ। जिस पर लोकआयुक्त कार्यालय से उर्जामंत्री रामबीर उपाध्याय को नोटिस भी जारी कर दी गई। बाद में सारे मामले अदालत में विचाराधीन होनें के कारण लोकआयुक्त नें रामबीर उपाध्याय की जांच बंद कर दी। जिस पर 31 दिसम्बर को अपनें गृहजनपद हाथरस में एक आमसभा में माया के उर्जा मंत्री रामबीर उपाध्याय नें लोकआयुक्त को मंच से सार्वजनिक रूप से धमकानें में गुरेज नहीं किया।
उपरोक्त तमाम तथ्यों के बाद भी अगर मुख्यमंत्री मायावती यह दावा करते नहीं थक रही हैं कि - भ्रष्ट एवं भ्रष्टाचारियों को बर्दास्त नहीं किया जाएगा तो फिर मायावती को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए कि वे किस सीमा तक होने वाली लूट को भ्रष्टाचार मानेगी।
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