समय का महत्व ही जीवन दर्शन है ,मैं कई महीनो से देख रहा हु की हमारे कुछ मित्र फेसबुक में अनवश्यक बहस में अपना अनिवार्य समय नष्ट करते है ,,मूर्खो से अनावश्यक रूप से बहस करके अपना समय नष्ट करते है ,,,समय को जाने और पहचाने ,,जिसने समय की कीमत नहीं पहचाना है उसकी पहचान नष्ट हो जाती है ,, समय ही जीने की राह.. समय के साथ दो बातें हमेशा ध्यान रखी जाएं, उसका आना और जाना। आते हुए समय की चुनौती को समझा जाए और गुजरते हुए वक्त के नुकसान को पकड़ा जाए। भारतीय संस्कृति ने तो समय को भी काल रूप में देव माना है। उसमें प्राण जैसी अनुभूति दी है। समय को जीवनरूप में स्वीकार कर मान दिया है। आज का काम आज किया जाए, यह सिर्फ कहावत नहीं है, पूरा जीवन दर्शन है। कबीर ने अपनी एक पंक्ति में ‘पल में परलय’ शब्द का बहुत सही उपयोग किया है। काल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब? आज की चूक एक बहुत बड़ा धक्का है। इसकी चोट जीवन के अंतिम समय तक असर करती है। यूं तो समय बहुत हल्का होता है, हौले-हौले गुजरता है। शीतल और सुगंधित पवन की तरह समय भी आनंद देता बीत जाता है, लेकिन विलंब और टालने की वृत्ति आते ही अपने आप को भारी बना देता है और हर अगले दिन वह अपने भार को मल्टीपल कर लेता है। इसीलिए टाले हुए काम बोझ बनकर अशांत बनाते हैं। साथ ही हमारे व्यक्तित्व को अप्रिय व आलोचनापूर्ण बना देते हैं। भारी समय अपने साथ अंधकार भी लाता है। वक्त की बर्बादी अपराध है। ऐसे लोग खुद का समय भी नष्ट करते हैं और दूसरे के समय का महत्व भी नहीं समझ पाते। यदि समय के मामले में स्फूर्त रहना है तो हर कार्य करने के पूर्व थोड़ा शांत होकर, विश्राम मुद्रा में अपने भीतर उतरें, एक गहरे प्रकाश को पकड़ने का प्रयास करें, जो हमारे भीतर होता ही है, फिर काम करें। भीतर उतरकर मौन साधना समय का सम्मान ही होता है।
दूसरा एक बात और है जो समय के अनुकूल अपने में बदलाव नहीं लाता है वह पिछाड जाता है ,,समय के साथ चले और समय की कीमत पहचाने ,,,
नोट --लेख अभी जारी है .......
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