आज यह फोटो देखा तो एक घटना याद आ गई ।।
रामायण सीरियल चल रहा था मेरे मकान मालिक के घर भी टीवी नही थी । तो उनके साथ पड़ोस में जाकर देखते थे । रविवार को सुबह ही नहा धोकर तैयार हो जाते थे और सीरियल सुरु होने के पहले ही पड़ोस में जाकर अपनी सीट सुरक्षित कर लेते थे फर्स पर ।
सीरियल सुरु होने के पांच मिनट पूर्व ही गृहस्वामिनी टीवी के पास पूजा वाली थाली सजा कर रख लेती थी । सीरियल सुरु होते ही गृहस्वामिनी धूप, दीप, जलाकर आरती करती और फिर जब तक सीरियल चलता तब तक ऐसा सन्नाटा छा जाता रूम में की एक दूसरे की सांस लेने की आवाज तक सुनाई दी जाती । यदि कोई खांसने लगता तो सभी उसी को घूर कर देखने लगते और यदि किसी ने पूं पां कर दिया तो उसे तुरंत उठाकर बाहर कर देते । कभी कभी तो मुझे भी इस विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता तो बड़ी कुशलता के साथ पृष्ठ भाग को एक किनारे से हल्का सा उठा कर वायु निर्गमन कर प्रदूषण फैला देता, दबाते रहो जिसे अपनी नाक दबाना हो ।।
वैसे तो इस कुकृत्य के लिए विज्ञापन का समय चुनता ।
एक बार पड़ोसी गांव चले गए । अब इस रविवार को कहां देखा जाय रामायण ?
चूंकि अपुन रंगरूट/बैचलर किराएदार थे इस लिए आस पास वाले ज्यादा भाव नही देते थे । इस लिए कहीं जुगाड नही लगा तो हमारी मित्र मंडली (पांच लोग) पास में ही सिंधी की किराना की दुकान के सामने ही जम गए । चूंकि हम सिंधी के यहां से किराना का समान बहुत कम लेते थे इस लिए सिंधी भी ज्यादा भाव नही देता था ।
अब रोड में खड़ी भीड़ बात चीत लिए बिना रह नहीं सकती, तो आवाज साफ साफ सुनाई नही देती । कुछ देर बाद मैने सिंधी को बोला "भैया थोड़ा आवाज बढ़ा दीजिए, सुनाई नही दे रहा है" । सिंधी मेरी आवाज तो सुना पर इग्नोर कर दिया तो दुबारा फिर से बोला तो बड़ी अकड़ के साथ बोला "जाकर तेरे घर में देख ले, मेरी टीवी में इतनी ही आवाज है" । "तेरे" शब्द सुनते ही तन बदन में आग लग गई । मैं भी अकड़ गया और जोर से चिल्लाकर बोला "ओए,जरा तमीज से बात कर" । सिंधी और जोर से चिल्लाया, सिंधी को लगा की ये तो यहां कालोनी में नया नया किराये दार है, बाहरी है फिर भी चिल्ला रहा है, इस लिए सिंधी जोर से चिल्लाया और बोला "चल हट यहां से नही तो अभी....." बस इतना बोलकर चुप हो गया । अब मैं खड़े हुए लोगो के बीच से आगे बढ़ा और काउंटर में बैठा सिंधी के पास गया और बोला "अब बोल" । सिंधी कुछ बोलता उसके पहले ही गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया । लो हो गई रामायण की जगह महाभारत । सिंधी जब तक मुझे मारता मैने फिर से धर दिया । अब पकड़ा पकड़ी हुई, मेरे रिवाड़ी (रीवा) संगी साथी मुझे पकड़ कर ले आए कमरे में । सीरियल समाप्त होने के कुछ देर बाद सिंधी मकान मालिक के पास आया और पूरी बात बताया और कमरा खाली करवाने के लिए बोला । मकान मालिक के कुछ बोलते उसके पहले ही उनकी छोटी लड़की मनु बोल दिया " बघेल भईया से कमरा खाली नहीं करवाऊंगी" । मनु ने बोल दिया, यानी यही होगा, मकान मालिक कुछ नही बोले तो सिंधी फिर बोला "इसको निकालो तुम्हारे घर से" । मकान मालिक बोले "मनु से बात करो" । सिंधी तुनक कर चला गया ।
दरअसल मकान मालिक बिधुर थे तीन लड़कियों में दो को शादी कर दिया , मनु बहुत लाड़ की थी, उसकी बात टालते नही थे ।।
शाम को हम रीवा वाले आठ दस नए नए रंगरूट इकट्ठे हुए और टीवी खरीदने का प्लान बन गया । बाजार गए और टीवी का रेट पता लगा आए । "Crown" ब्लैक & व्हाइट टीवी (सटर वाली) 3650/ रू की पसंद आई । 3650/ रू 1988 में बहुत होते थे ।।
चूंकि तब हम लोगो की अधिकतम सेलरी 300/ रू थी, जी हां 300/ रू. । सबने अपनी अपनी बचत बता दिया । सुबह हम सभी ड्यूटी चले गए । और ड्यूटी के बाद 5 बजे फिर सभी मेरे कमरे में इकठ्ठे हुए और सबने अपनी बचत रख दिया । कुल 3600 रू हो गए । हम 8 लोग टीवी खरीदने गए और ठेले में टीवी रखकर ले आए 😀😀 । दुकान वाले ने 50/ रू की छूट दिया ।।
ठेले में टीवी आते देख मुहल्ले के बच्चे दौड़ पड़े "बघेल भईया टीवी लाए,बघेल भईया टीवी लाए" । सिंधी के साथ मारपीट से लोग मुझे और मेरा उपनाम जानने लगे ।
टीवी ले तो आए पर ये तो सोचा ही नही था कि रखेंगे किधर, क्योंकि हमारे दस बाय 12 SQ फिट के कमरे में तीन रूम पार्टनर ओ भी जमीन में बिस्तर लगे ।
मकान मालिक के कुल तीन तो कमरे, एक में हम किरायेदार बाकी दो कमरे मकान मालिक यूज करते ।
खैर मकान मालिक के आगे वाले कमरे में टीवी एक टेबल पर रख दिया । बड़ी मुस्किल से एंटीना लगाया और हो गई टीवी सुरु ।
टीवी लाने वाली बात हमारे रीवा वालों के बीच चर्चा की विषय बन गया, क्योंकि मुझे नौकरी किए हुए मात्र 7 माह ही हुआ था । इतनी जल्दी इतनी मंहगी टीवी कैसे ले आए ? इतने रुपए कहां पाए ?? आदि आदि....चर्चाएं चली...।
अगले रविवार को OMG.... हमारे रीवा के जितने भी बैचलर लड़के थे सभी आ धमके रामायण देखने...😀😀
बैठने की तो छोड़िए, कमरे में खड़े होने की जगह नही थी ।
हालांकि टीवी लाने के 3 सप्ताह बाद ही मकान मालिक का रूम छोड़कर पास में ही ठाकुर भवन में आ गया रहने ।
और यहां पर एक साल में तीन लोहे की पलंग टूटी थी 😀🤣 क्योंकि एक पलंग में आठ दस लोग बैठ जाते थे ।
टीवी लाने के बाद एक दिन हम पांच छः रिवाड़ी भाई सिंधी की दुकान में गए और मैं बोला "आपकी टीवी में आवाज कम हो तो मेरे रूम में देख लिया करें रामायण" । सिंधी कुछ नही बोला हम अकड़ते हुए आ गए उसकी दुकान से ।
तो ये थी टीवी कथा...😀
#NSB
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