इतना होने के बाद भी बदन सिंह ने राजा की उपाधि धारण नहीं की और ताउम्र खुद को कच्छवाहों का नौकर कहता रहा। वह हर साल दशहरा दरबार में हाजिरी लगाने के लिए जयपुर आता था और सवाई जय सिंह के धोक लगा कर जाता था।
बदन सिंह का उत्तराधिकारी सूरजमल था । सूरजमल असल में बदन सिंह का पुत्र नहीं था। उसकी (सूरजमल की) मां एक शादीशुदा महिला थी जिसपर मोहित होकर बदन सिंह ने उसे अपने हरम में रख लिया था। बाद में बदन सिंह ने सूरजमल को अपने पुत्र की तरह ही पाला। सूरजमल एक कुशल राजनीतिज्ञ था तथा शुरू से ही उसने मुगलों से अच्छे संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। इस प्रकार हम देखते हैं की 1745 में जब मुगल सेना अली मुहम्मद रुहेला का विद्रोह दबाने जाती है तो जाट उस सेना के साथ मुगलों की तरफ़ से लड़ रहे थे।
सूरजमल से प्रभावित हो मुगल वज़ीर सफदर जंग ने उसे अपने बेड़े में शामिल कर लिया था। इसी के तहत वजीर ने बादशाह से अपील कर बदन सिंह को राजा का और सूरजमल को कुमार बहादुर की उपाधि दिलवाई तथा साथ ही साथ सूरजमल को मथुरा का फौजदार भी नियुक्त करवा दिया (यही कारण है कि आज भी भरतपुर के जाट फौजदार सरनेम का इस्तेमाल करते हैं जो उन्हें मुगल बादशाह की बदौलत मिला था)। इसके बाद जाटों की प्रतिष्ठा में काफी बढ़ोतरी हुई क्योंकि उनके सरदार को स्वयं मुगल बादशाह ने राजा की उपाधि नवाजी थी।
सूरजमल के मुगलों से मैत्रीपूर्ण संबंध एवं उसके बढ़ते प्रभाव से उसका राजपूतों से टकराव होना निश्चित था। 1753 में सफदर जंग की मदद से उसने घसेड़ा के जागीरदार बहादुर सिंह बड़गुर्जर पर अचानक हमला बोल दिया। मुगलों और जाटों की संयुक्त सेना ने किले का घेराव कर लिया । यह सीज करीब 3 महीने तक चली। आखिरकार जब किले में रसद सामग्री समाप्त हो गई और कोई दूसरा विकल्प नहीं होने के कारण अंदर मौजूद क्षत्राणियो ने जौहर किया और बहादुर सिंह तथा उसके 25 सैनिक केसरिया कर जाटों और मुगलों पर टूट पड़े। मात्र इन 25 राजपूतों ने करीब 1500 जाटों को मौत के घाट उतार दिया। इतिहास में शायद पहला मौका था जब राजपूत महिलाओं को एक हिंदू सेना के हमले के कारण जौहर करना पड़ा। आज इसे " हिंदुआ सूरज" भी कह रहे हैं लोग।
सफदर जंग के बादशाह के खिलाफ विद्रोह में सूरजमल उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था। उसके जाट सैनिकों ने दिल्ली के बाहरी हिस्सों को लूटा और इतना उत्पात मचाया की इसे जाटगर्दी कहा जाने लगा। मुख्य दिल्ली की तरफ जाने की इनकी हिम्मत नहीं हुई, जहां मुगल सैनिक थे। So called दिल्ली की जीत और चित्तौड़ के किले का दरवाजा , क्या रूहानी कहानियां चल रही हैं, आजकल।
दिल्ली के जिन निर्दोष व्यापारियों को लूटा गया था वे सभी ज्यादातर हिंदू थे। इसी तरह हिंदू महिलाओं से बलात्कार और हिंदुओं की हत्या ही सबसे ज्यादा हुई।
1757 में अहमद शाह अब्दाली ने मथुरा पर धावा बोला। सूरजमल इस सच्चाई से भली भांति परिचित था की उसके जाट सैनिक अफगानों के सामने नहीं टिक पाएंगे। अतः उसने अब्दाली से संधि करना उचित समझा और एक मोटी रकम पेश कर चालाकी से अपने राज्य को पठानों के हमले से बचाने में सफल रहा।
सूरजमल और नजीब रुहेला का आपसी संघर्ष चलता रहता था। इसी तरह एक युद्ध में पठानों ने सूरजमल की सेना पर हमला बोल दिया। इस लड़ाई में सूरजमल तुरंत मारा गया। सैय्यद मुहम्मद खान रुहेला ने हुकुम दिया की सूरजमल का सर काटकर उसे भाले पर लगा दिया जाए। यह दृश्य देखने के बाद डरी हुई जाट सेना वहां से भाग खड़ी हुई।
इस तरह सूरजमल की मृत्यु हुई है। जादूनाथ सरकार लिखते है की सूरजमल एक सामान्य कद का था। शरीर मोटा और रंग बेहद काला था। बदन सिंह की तरह सूरजमल भी हर साल जयपुर में दशहरा दरबार में नजराना भेंट करने और जयपुर राजा सवाई माधो सिंह को धोक लगाने जाता था।
आजकल वोटों की राजनीति के चलते "हिंदुआ सूरज" और अजेय योद्धा और पता नही क्या क्या इनका नया इतिहास बनाया जा रहा है और नए नायक कागजों पर पैदा किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ वास्तविक नायकों के मान मर्दन और इतिहास विकृतिकरण की बाढ़ आई हुई है।
Source: Fall of the Mughal Empire: Volume 2 by Jadunath Sarkar.
History of Jaipur by Jadunath Sarkar