बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

मोदी सरकार में बिजली में कितना सुधार हुआ ?

क्या आप अभी भी पीक सीज़न में लगातार लंबी अवधि के लिए पावर कट्स का सामना कर रहे हैं ?
एक बिजली आउटेज (जिसे पावर कट, पावर आउट, पावर ब्लैकआउट, पावर फेल्योर या ब्लैकआउट भी कहा जाता है) एक विशेष अवधि के लिए बिजली का एक अल्पकालिक या दीर्घकालिक नुकसान होता है. बिजली नेटवर्क में बिजली जाने के कई कारण हैं. इन कारणों के उदाहरणों में पॉवर स्टेशनों पर कोई फॉल्ट, विद्युत संचरण लाइनों में क्षति, सबस्टेशन या वितरण प्रणाली के अन्य हिस्सों को नुकसान, शॉर्ट सर्किट, या बिजली के मुख्य तार में अधिभार (ओवरलोड) शामिल हैं.
बिजली की कमी (पीक डिमांड) के विभिन्न वर्षों के आंकड़े नीचे दिए गए हैं।
📌 यूपीए 1 (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -13.24%
🖇️ 2004-05 : -11.66 % बिजली की कमी
🖇️ 2005-06 : -12.29 % बिजली की कमी
🖇️ 2006-07 : -13.80 % बिजली की कमी
🖇️ 2007-08 : -16.60 % बिजली की कमी
🖇️ 2008-09 : -11.86 % बिजली की कमी
📌 यूपीए 2 (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -9.33%
🖇️ 2009-10 : -12.72 % बिजली की कमी
🖇️ 2010-11 : -9.84 % बिजली की कमी
🖇️ 2011-12 : -10.63 % बिजली की कमी
🖇️ 2012-13 : -8.98 % बिजली की कमी
🖇️ 2013-14 : -4.49 % बिजली की कमी
📌 एनडीए (05 साल)
📎 औसत बिजली की कमी = -1.81%
🖇️ 2014-15 : -4.70 % बिजली की कमी
🖇️ 2015-16 : -3.20 % बिजली की कमी
🖇️ 2016-17 : -1.63 % बिजली की कमी
🖇️ 2017-18 : -2.00 % बिजली की कमी
🖇️ 2018-19* : +2.50 % बिजली की अधिकता
🙌 हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि 'मोदी सरकार' पावर कट्स को कम करने में सफल रही है.
स्रोत: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए 18-19 रिपोर्ट)

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

मानवता की सेवा से असीम सुख





हो सकता है यह पोस्ट आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं हो पर यह मेरे जीवन की बहुत अहम् घटना है !
पहले मुझे डायरी लिखने की सौक था । दशहरे की साफ सफाई कर रहा था तो डायरी हाँथ लग गई जिसमें 7 सितम्बर 1994 की एक घटना का जिक्र था ।
मैं और मेरे 2 दोस्त रामेश्वर भार्गव (शिवपुरी) और बृंदावन साहू (कटनी) रात्रि पाली की ड्यूटी करके सुबह 7:40 पर पैदल ही घर जा रहे थे । टाटा चौराहे के आगे निकले तो देखा कि रोड के किनारे बरसाती पन्नी (पोलोथिन) से ढकी हुई एक पोटली पड़ी थी, जिसमे हरकत हो रही थी, जिज्ञासा बस हम तीनों पास जाकर देखा तो लगा कि कोई लेटा हुआ है । मैं झुककर पोलोथिन को हटाया ओह पन्नी हटाते ही जो दृश्य दिखा उसे देखकर मैं सहम गया और खड़ा हो गया,तब तक दोनों मित्रो ने भी वह दृश्य देख लिया था । मैं पन्नी से वापस ढांक दिया और हम तीनों विचार विमर्श करने लगे कि क्या किया जाय..इसे इसी हालत में छोड़कर चले जाएं या मानव होने की जिम्मेदारी निभाये ?
आखिर में मानवता जीत गई, हम किसी तिपहिया,चार पहिया वाहन के इंतजार में खड़े हो गए पर जो भी वाहन आये तो वह दृश्य देखकर उसे हॉस्पिटल ले जाने से इंकार कर दे !
पानी गिर रहा था, आखिर में हम तीनों अपने अपने छाते फोल्ड करके उस पोटली को किनारा पकड़कर करीब 6KM दूर हॉस्पिटल की तरफ चलने लगे तो पोटली से बड़े बड़े कीड़े (लगभग आधा इंच तक के कीड़े) हमारे हाथों पर रेंगने लगे, अजीब सी सिरहन दौड़ गई पूरे जिश्म में ! करीब आधा KM दूर तक जाने के बाद एक ऑटो वाला फिर से दिखा तो उसे इसारा करके रोंका और हॉस्पिटल तक छोड़ने का निवेदन किया तो तैयार हो गया क्योकि उसे हमने वह दृश्य नहीं देखने दिया ! हम MG हॉस्पिटल आ गए ऑटो वाले सही स्थित को जान गया तो 1 रुपये भी नही लिया !
हम उस पोटली को उठाये आपातकालीन वार्ड में पहुँच गए और डॉक्टर से देखने की गुहार लगाई तो डाक्टर ने एक नर्स को भेजा नर्स दृश्य देखते ही लगभग चीख उठी ''उई माँ'' कहते हुए तुरंत ही डाकटर के पास चली गई हैरान-परेशान डाक्टर साहब आये और पॉलीथिन को उठा कर देखा और तुरंत ढक दिए और पूछने लगे कहा से लाये ? और हमारे बारे में पूछा ! डाक्टर साहब हम तीनो की नेक नियति देखकर द्रवित हो गए और बोले ''मैं इसका इलाज करूंगा'' ! और फिर नर्स को बोले ''इसे ले चलो रूम में'' पर नर्स हिम्मत हार चुकी थी, तब हम तीनो ने उस पोटली को उठाया और डाक्टर के बताये रूम पर लेकर रख दिए !
डाक्टर साहब ने पोलोथिन को हटा दिया और देख कर बोले ''ये ज़िंदा कैसे है'' ?
और फिर नर्स को सभी स्टूमेंट्स लाने के लिए कहा ! हम तीनो वही खड़े थे ! डाक्टर साहब बोले इसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा आप लोग वहन कर लोंगे क्या ?
हम तीनो एक स्वर में हां कहे ! तो साहब हम तीनो की तरफ ऐसे देखे जैसे हम 8 वां अजूबा हो !
तब तक नर्स आ गई और डाक्टर साहब भर्ती की सभी औपचारिकताये पूर्ण कर अपने काम में जुट गए ! भर्ती पर्चे में कौन है ? कहाँ से है ? क्या है नाम ? कुछ भी नहीं लिखा !
दरअसल एक महिला थी, महिला क्या कहे बल्कि महिला का एक कंकाल कहे ! जिसके सिर पर बड़े बड़े घाव थे और उस घाव में बड़े बड़े कीड़े पड़ गए थे,सिर का करीब 30% हिस्सा लगभग खोखला हो चुका था ! उसके शरीर में सभी जगह कीड़े रेंग रहे थे ! डाक्टर साहब नर्स को बोला पहल पूरे शरीर की सफाई करों ! नर्स मुँह बनाने लगी तब दुसरी नर्स को बुलाया ओ तैयार हो गई ! चूँकि मामला महिला का था इस लिए डाक्टर साहब हम तीनो को बाहर कर दिए ! करीब एक घंटे बाद हमे बुलाया और दवाई का लम्बा सा पर्चा पकड़ा दिया ! हम मेडिकल स्टोर पर गए और पूछा ''कितने की दवाई होंगी'' ! तब मेडिकल स्टोर वाले ने करीब 800 रूपये बताया जो की हमारी पेमेंट का तीसरा भाग था ! चूँकि हम तीनो को पेमेंट उसी दिन मिली थी इस लिए बिना देर किये हम तीनो ने दवाई ले लेकर डाक्टर को दे दिया और बोले ''सर हम देख सकते है अब'' ! हां कहने पर हम पास गए तब उस महिला का चेहरा देखा ! इस हालत में भी उस महिला के चेहरे में पीड़ा के कोई भाव नहीं थे, ओ हमारी तरफ बड़ी कातर निगाहों से देखकर कांपते हुए हाथ उठाये और हाथ जोड़ दिए ! और उसके आँखों से अश्रु धारा बह चली !
महिला के कपडे बदल कर हॉस्पिटल के कपडे पहना दिए गए ! महिला की उम्र लगभग 30-32 वर्ष के आसपास रही होगी ! गोरा रंग, गोल मटोल चेहरा जो की हड्डियों के ढांचे में बदला हुआ था !
जब बड़े डाक्टर आ गए तो महिला को आपातकालीन वार्ड से हटा कर जनरल प्राइवेट वार्ड में कर दिया, उस समय उस वार्ड का खर्चा सिर्फ 30 रूपये प्रतिदिन था ! हम वहन करने के लिए सहर्ष तैयार हो गए ! महिला के सिर में घाव के अतरिक्त बांकी शरीर स्वस्थ था, और कोई बीमारी नहीं निकली बस कमजोरी इतनी थी की बोल भी नहीं पाती थी ठीक से ! चलना फिरना तो दूर की बात !
चूकि हम तीनो रात्रि पाली करके आये थे, दोपहर के 1 बज गए थे इस लिए दो को भेज दिया और मैं रुक गया पर मेरे रूम में पत्नी को खबर करने के लिए कह दिया और उन्हें शाम को आने के लिए कहा ! मैं रूम में अकेला बचा तो महिला से कुछ पूछता चाहा ! पर महिला बोलने में असमर्थ थी !
उसके सिर की तरफ देखा तो फिर से कीड़े बाहर निकल रहे थे, मैं तुरंत डाक्टर के पास गया और बताया तो डाक्टर बोले ''इतनी जल्दी कीड़े नहीं मरेंगे समय लगेगा'' तब पूछा ''आखिर कितने दिन लगेगा'' तो डाक्टर बोले ''दिन नहीं महीनों लग जायेंगे ठीक होने में'' तब मैंने खर्च पूछा तो डाक्टर बोले ''कम से कम 500 रूपये रोज लगेंगे'' ! सुनकर मैं चिंतित हो गया क्योकि हमारी पेमेंट से इलाज सम्भव नहीं था ! मन ही सोचने लगा की इलाज कैसे करवाया जाए ! फिर दिमाग में आया क्यों न भीख मांगी जाय इस नेक कार्य के लिए ! मैं नाइट ड्यूटी करके आया था, नींद और थकावट बहुत हो गई तो नर्स को बोलकर पास में ही शुक्रवारिया हाट में 3 बजे रूम चला गया ! शाम को 6 बजे फिर से तीनो एकत्रित हुए और इलाज के लिए रूपये कहाँ से आये इस पर विचार विमर्श करने लगे ! सबसे पहले कलेक्टर से मिलकर हॉस्पिटल में मुफ्त इलाज की गुहार लगाई जाए और अगले दिन हम बड़ी मुश्किल से 3 घंटे के इन्तजार के बाद कलेक्टर साहब से मिले ! पूरी बात बताई तो कलेक्टर साहब ने हॉस्पिटल में फोन करके पूछा जब सच निकला तो अपने सेकेट्री को हॉस्पिटल भेजा हमारे साथ ! सेकेट्री वापस गया और रिपोर्ट बताया तो फ्री इलाज की ब्यवस्था हो गई ! रूम का किराया भी नहीं लगेगा ! पर हॉस्पिटल में इतनी अच्छी दवाई मिलती नहीं ! इस लिए महिला में कोई ख़ास सुधार नहीं हो रहा था ! मजबूर होकर एक सप्ताह बाद कलेक्टर साहब से फिर से मिला और चन्दा उगाहने की अनुमति चाहा ! जो कुछ सर्तो के साथ मिल गई !

कलेक्टर साहब से चंदे उगाही की अनुमति मिलते ही सबसे पहले हमने महिला की बीमारी के बारे में डाक्टर से लिखवाया, उसके इलाज का खर्च अनुमानित लिखवाया, महिला के सिर की कई फोटो ले कर बनवाया जिसे चंदे मांगते समय दिखाने का प्लान बनाया ! हमारा कार्यक्षेत्र का कारखाना लिया ! सभी बड़े बड़े मैनेजरों से मिला छोटे से छोटे वर्कर से मिला जिससे हमे भरपूर सहयोग मिला ! मात्र 5 दिन में ही हमें 8372 रूपये चन्दा मिल गया ! लगभग महीने भर के खर्चा की चिंता से मुक्ति मिली !
यदि उस समय सोशल मीडिया होती तो सायद आसानी से चन्दा मिल गया होता !
अब हम महिला को प्रतिदिन अच्छे अच्छे फल फ्रूट जूस आदि देने लगे ! करीब 12 दिन बाद कीड़े निकलना बंद हो गए ! पर सिर का घाव जस का तस बना था ! अब रूपये की परेशानी नहीं थी इस लिए अच्छी से अच्छी दवाई देने लगे डाक्टर ! करीब एक माह बाद महिला चलने फिरने लगी ! इस एक माह के दौरान उसकी कैसे सेवा किया हम तीनो ही जानते है ! नर्स सिर्फ कपडे बदलती और उसे लेट्रीन बाथरूम ले जाती, नहलाती ! बाकी सभी सेवा कार्य हम तीनो करते ! देखने तो कई परिचित - अपरिचित आते और कुछ मदद करके चले जाते !

जब कारखाने से चन्दा मिलना बंद हो गया तो, दूसरे कारखाने के गेट पर खड़े होकर चन्दा मांगने लगे ! जब कारखानों से मिलना बंद हो गया तो हम बाजार में, कालोनी में घूम घूम कर चन्दा मांगने लगे, कुछ देते कुछ दुत्कार का भगा देते ! जब देवास की सभी कालोनियों से चन्दा मिल गया तो हम आसपास के गाँवों में रुख किया ! चन्दा में रूपये की जगह अनाज मिलता जिसे हम लेकर बाजार में बेच देते और रूपये लेते ! इस तरह करीब 6 माह हमने चन्दा उगाही किया और महिला का ठीक से इलाज करवाया ! जब ओ बोलने लायक हुई तो अपनी पूरी आपबीती बताया, सुन कर दुःख भी हुआ क्रोध भी आया ! (उसकी आपबीती और पहचान यहाँ लिखना उचित नहीं है,सिर्फ इतना ही लिखता हूँ की महिला शादी सुदा थी पर पति की मार खा खाकर इस हालत में आ गई) ! 6 माह में महिला लगभग ठीक हो गई ! उसके सिर का घाव पूरी तरह से ख़त्म हो गया तो डाक्टर छुट्टी देने की बात करने लगे ! अब हमारे सामने उस महिला के भविष्य की चिंता हुई ! क्या करेगी ? कहाँ जाएगी ? कैसे पेट भरेगी ? आदि चिंता सताने लगे !

महिला पूरी तरह से स्वस्थ हो गई तो उसके चेहरे, शरीर में निखार आ गया वह एक सुन्दर युवती दिखने लगी ! एक दिन उससे पूछ लिया ''अब कहाँ जाओगी'' ? तो रुआंसी होकर बोली ''यही कही कोई काम दिलवा दो आप लोग तो यही रहकर पेट भर लिया करुँगी, मेहनत मजूरी करके'' ! सवाल ये था की हम तीनो किराए के मकान में रहते थे, हमारे पास जगह नहीं थी उसे रखने के लिए ! नौकरी की बात जहाँ करू वही पर पहचान मुख्य रोड़ा बन जाती ! पढ़ी लिखी थी थोड़ थोड़ा अंग्रेजी भी पढ़ समझ लेती थी ! हॉस्पिटल के बड़े अधिकारी से मिले की यही हॉस्पिटल में रख लीजिये, झाड़ू पोछा लगा दिया करेगी ! यही पर मरीजों को मिलने वाला खाना खाकर रह लेगी पर डाक्टर तैयार नहीं हुए ! तब एक डाक्टर के हाथ पाँव जोड़कर उनके घर में ही नौकरानी के रूप में रखवाने में सफल हो गए ! अब महिला उस डाक्टर के घर पर ही बतौर नौकरानी, वेतन के रूप में कपड़ा और खाना ! महिला तैयार हो गई !

इन 6 महीनो में महिला काफी घुल मिल गई थी हम तीनो ने कई बार अपनी पत्नियों से भी मिलवाया ! उसे हम लोगो के रहने के कमरे भी मालूम हो गए थे, कहाँ नौकरी करते है ये सब उसे पता चल गई थी ! डाक्टर के घर नौकरानी बनकर रहने के बाद हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा गए थे पर चिंता लगातार रहती थी ! एक अनजाना सा रिश्ता बन गया था उसके साथ !
बीच बीच में 15-20 दिन में हम उससे डाक्टर के घर जाकर मिल लेते ! उसके सिर में घाव की जगह थोड़े थोड़े बाल उग आये उसका चेहरा भर गया, शरीर भी स्वस्थ हो गया ! धीर धीर देखने लायक लगने लगी ! हमने सोचा अब इसके लिए कोई लड़का मिल मिल जाए तो इसकी शादी करा दिया जाय !
इस तरह डाक्टर के घर नौकरानी के रूप में करीब 5 माह बीत गए अब महिला खुस रहने लगी जब भी हम मिलते तब भैया भैया कहते उसके होठ नहीं सूखते ! सच में वह बहन जैसी लगने लगी ! अब खूब स्वस्थ हो गई या कहिये उसका वदन भर गया, चेहरे में लालिमा आ गई ! अब बहन की दृष्टि से देख रहा हूँ तो उसके शरीर का और अधिक बखान नहीं कर पा रहा हूँ ! जब भी मिलते तो दौड़ कर आती और हम तीनो के पाँव छू लेती और डाक्टर साहब की पत्नी से पूछकर चाय जरूर पिलाती ! डाक्टर की पत्नी हम तीनो का बहुत सम्मान करती ! बार बार यही कहती ''आजके युग में कोई गैर के लिए इतना नहीं करता, आप तीनो तो साक्षात् देवता हो'' आदि आदि ! तब प्रसंसा सुनना अच्छा नहीं लगता था !

हम तीनो ने अपने अपने परिचितों को उस महिला के बारे में बताकर उसकी शादी लायक लड़के की तलाश में लग गए ! और वह तलाश भी पूरी हुई ! हमारे ही कारखाने में में एक खाती पटेल का लड़का था करीब 28-29 साल का ! जिसकी शादी नहीं हो रही थी क्योकि उसके पास जमीन सिर्फ दो बीघे थी इस बजह से उसे कोई लड़की देने को तैयार नहीं था, लड़के के पिता नहीं थे सिर्फ माँ थी, पास के ही गाँव से थे रोज सायकल से ड्यूटी आते और चले जाते, लड़का कारखाने में हेल्पर था उस समय उसे करीब 1900 रूपये पेमेंट मिलता था ! (हालांकि उस जमाने में हम तीनो दोस्त भी सायकल छाप ही थे) ! लड़के को और उसकी माँ को उस महिला से मिलवाया तो दोनों शादी के ले किये राजी हो गए ! उस महिला से पूछा से पूछा तो उसने दिल को छू लेने वाली बात बोली ''आप मुझे रोड से मरने की हालत में उठाकर लाये और ज़िंदा किया तो मुझे अब मरने नहीं देंगे आप लोगो पर विश्वास है, ये आपका दिया हुआ जीवन है जो कहेंगे मानूगी'' ! और इस तरह बिना किसी मुहूर्त्त के 07 नंवम्बर 1995 को ''वर्षा'' की शादी करवा दिया ! (वर्षा नाम इस लिए रखा क्योकि वह हमें वरसात में मिली थी)
समय बीतता गया, वर्षा को दो लड़के हो गए, वर्षा का जीवन खूब खुसी खुसी बीतने लगा हम जिम्मेदारी से मुक्त हो गए तो वर्षा की खोजख़बर लेना बंद कर दिए !

और समय बीता तो भार्गव साहब का सलेक्शन ''भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र इंदौर'' ( CAT''सेंटर फार एडवांस टेक्नोलॉजी'') में हो गया तो देवास से चले गए ! साहू जी भी देवास छोड़कर वापस कटनी चले गए और अच्छे वकील बन गए ! हम सायकल छाप वाले बड़ी बड़ी कारो, बड़े बड़े घरो के मालिक बन गए सायद उसी महिला की दुआ लगी ! --
इस पूरी घटना को मैंने डायरी में करीब 40 पेज में लिखा हुआ रखा है जो आज भी सुरक्षित है !बहुत ही सार्ट में लिखा,म यदि डिटेल में लिखता तो ऐसी ही 20 पोस्ट बन जाती ! पढता कौन इस लिए नहीं लिखा !
यदि आपने पूरी पोस्ट पढ़ा तो आपको बहुत बहुत धन्यवाद .....

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

सलीम अनारकली की झूठी कहानी

सलीम अनारकली और अकबर या अकबर अनारकली और सलीम?: 20वी शताब्दी की कल्पना या 16वी शताब्दी का कलुषित सत्य?
आज सलीम अनारकली, एक मुगल शहजादे सलीम, जो बाद में बादशाह जहांगीर बना और महल की बांदी अनारकली के मुहब्बत की कहानी को कौन नही जानता है? ये मुहब्बत ऐसी थी की अनारकली के लिये सलीम ने मुगल बादशाह अकबर के विरुद्ध विद्रोह तक कर दिया था और उसकी कीमत अनारकली ने दीवार में चुनवा कर दी थी। यह एक और बात है कि अकबर बड़ा महान और न्यायप्रिय था, उसने अनारकली की माँ को दिये वचन की लाज रखते हुये अनारकली को चोर रास्ते से जिंदा निकलवा दिया था।
आज भारत की कॉकटेल पीढ़ी के लिये यही इतिहास है जो 1962 में के. आसिफ की फ़िल्म 'मुगल-ए-आजम' द्वारा स्थापित किया गया था। यह एक ऐसा इतिहास है, जो खुद इतिहास में नही है। इस अनारकली का जिक्र न अकबर के शासनकाल पर लिखित अबुल फजल की 'अकबरनामा' में है और न जहांगीर की 'ताज़ाक़-ए-जहाँगीरी' में है, जो उसके 1605 से 1622 के शासनकाल का वर्णन करती है।
फिर सवाल यह पैदा होता है कि यह के. आसिफ की अनारकली आयी कहाँ से और क्यों आयी?
इसको जानने और समझने के लिये हमें 1920 के लौहार चलना पड़ेगा जहां एक नाटककार इम्तियाज़ अली 'ताज' थे जो उस वक्त गवर्मेंट कॉलेज लौहार में पढ़ते थे। उन्होंने अपने कॉलेज के पास बने एक पुराने मकबरे को देखा था जिसको अनारकली का मकबरा कहा जाता था। वहां उस कब्र पर यह दोहा लिखा हुआ था।
ता कयामत शुक्र गोयं कर्द गर ख्वाइश रा
आह! गर मन बज बीनाम रुइ यार ख्वाइश रा
- मजनूं सलीम अकबर


इसका अर्थ है कि,
हे खुदा में तुझको कयामत तक याद करूँगा,
एक बार फिर मेरे हाथों में महबूबा का चेहरा आजाये।
यह मजनूं सलीम अकबर, जहांगीर ही था जिसने 1615 में इस कब्र पर मकबरा बनवाया था। इतिहास में यह कहीं दर्ज नही है कि इस कब्र में कौन है लेकिन लाहौर में यही माना जाता है कि यह अनारकली की है। इम्तिहाज़ अली 'ताज' ने इस मकबरे, उस पर जहांगीर की लिखी इश्क में डूबी दो लाइन और लाहौर में बुजुर्गों से सुने मुगलिये किस्सों को पिरो कर आशिकी का, एक नाटक लिखा और दुनिया को सलीम अनारकली की दास्तान ए मुहब्बत पेश कर दी। यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि नाटक के शुरू में ही लेखक ने यह लिखा था कि यह कल्पित कथा है, इसका इतिहास से कोई लेना देना नही है। लेकिन एक मुगलिये शहजादे और महल की नाचनेवाली के इश्क का किस्सा कुछ इस तरह चढ़ा की तथ्यों को हटाते हुये, यह नाटकों, नौटंकियों और फिल्मों के सहारे नया इतिहास बन कर लोगो तक पहुंच गया।
इसी इम्तिहाज़ अली 'ताज' की कहानी को, के. आसिफ ने एक राजनैतिक प्रपोगंडे को स्थापित करने के लिये, 'मुगल ए आज़म' के लिये, अलग ढंग से लिखा और दिखाया था। भारत को 1947 में मुसलमानों ने धर्म के आधार पर तोड़ा था इसलिये बहुसंख्यक हिन्दुओ के बीच मुस्लिम इतिहास और खुद मुसलमानों की छवि अच्छी बनाने के लिये अकबर को धर्मनिर्पेक्षिता का आदिपुरुष बना कर परोसा गया था। इसी लिये अकबर को एक ऐसा मुगल शासक दिखाया गया जो न सिर्फ धर्मनिरपेक्ष है बल्कि हिन्दू पत्नी को हिन्दू ही रहने देता है। जबकि जहाँगीरनामा व तत्कालीन मुगलकालीन दस्तावेज़ बताते है कि अकबर की 36 पत्नियां थी(उपपत्नी और रखैलें की संख्या 200 तक थी)जिसमे 12 राजपुताना की थी और उसमे से एक जोधा बाई थी, जो मरने के बाद दफनाई गयी थीं। 16वी शताब्दी के अकबर को ऐसा शासक दिखाया गया जो 20वी शताब्दी के मुसलमानों की टू नशन थ्योरी को नकारता है।
वैसे तो 1953 में एक फ़िल्म 'अनारकली' भी आई थी लेकिन उसका जिक्र इसलिये नही कर रहा हूँ क्योंकि मुगल ए आज़म ने जो भारत की सायक़ी को प्रभावित किया है वो अनारकली ने नही किया है। अनारकली एक शहजादे और दरबार मे नाचनेवाली की प्रेम कहानी थी लेकिन मुगल ए आज़म एक पोलटिकल प्रपोगंडा को बढ़ाने के लिये, हथियार के रूप में इस्तेमाल की गई थी। इसी फिल्मी इतिहास के घाल मेल में अनारकली की जीवन दान देने वाला अकबर महान हो गया और खुद लाहौर में अनारकली का मकबरा होते हुये भी, अनारकली ही गुम हो गयी।
अब चलते है 19वी शताब्दी में जब पहली बार किसी भारतीय लेखक ने अनारकली का नाम लिया था। नूर अहमद चिश्ती ने 1860 में अपनी किताब 'तहक़ीक़ात-ए-चिश्तिया' में लिखा कि 'अकबर महान की सबसे खूबसूरत और पसंदीदा रखैल अनारकली थी, जिसका असली नाम नादिरा बेगम उर्फ शरफ़-उन-निस्सा था। ऐसा माना जाता है कि उसकी मौत, हरम की दूसरी जलनखोर रखैलों द्वारा जहर देने से हुई थी और उसका मकबरा अकबर के हुक्म से बना था'।
यहां अकबर द्वारा मकबरा बनवाये जाने की बात गलत लगती है क्योंकि कब्र पर सलीम अकबर उर्फ जहांगीर लिखित दोहा खुदा है। अनारकली का फिर जिक्र 1892 में सईद अब्दुल लतीफ की 'तारीख-ए-लाहौर' में आया है, जिसमे लिखा है कि,' अनारकली का नाम नादिरा बेगम उर्फ शरफ़-उन-निस्सा ही था और वो अकबर की रखैल ही थी लेकिन उसको अकबर ने, सलीम के साथ अवैध सम्बन्ध होने के शक में, जिंदा चुनवा दिया था'
इसका मतलब यह है कि लाहौर में अनारकली के अस्तित्व को लेकर कोई शक नही था लेकिन वो अकबर की रखैल के रूप में जानी गयी थी। यहां अकबर द्वारा जिंदा चुनवाये जाने की बात भी कही गयी है और सलीम के साथ उसके सम्बंध होने को भी माना गया है। इसका मतलब यह है कि 20वी शताब्दी की सलीम की मुहब्बत अनारकली, 19वी शताब्दी में अकबर की रखैल और बाप अकबर के साथ बेटे सलीम के साथ भी हमबिस्तर होने वाली थी।
लेकिन 19वी शताब्दी से पहले अनारकली कहाँ छुपी थी? लाहौर में मकबरा और सलीम के इश्क में डूबे दोहे सबूत के तौर पर होने के बाद भी लोग उसको क्यों भुला देना चाहते थे या फिर क्यों तथ्यों को ठीक से नही रख पा रहे थे?
चलिये थोड़ा और पीछे उसी जमाने मे चलते है। इतिहास में अनारकली का पहला जिक्र एक ब्रिटिश घुम्मकड़ व व्यापारी विलियम फिंच के संस्मरणों में मिलता है। फिंच ने 1608 से 1611 तक में नील का व्यापार करने के लिये लाहौर की यात्रा की थी। उस वक्त जहांगीर को बादशाह बने 3 वर्ष हो चुके थे। उसने लिखा है कि,' अनारकली बादशाह अकबर की बीबियों में से एक थी जो जिसकी उम्र करीब 40 साल की थी लेकिन बहुत खूबसूरत थी। वो अकबर के पुत्र दानियाल शाह की मां थी। अकबर को यह शक हो गया था कि उसकी बीबी अनारकली का उसके बेटे सलीम, जो उस वक्त करीब 30 साल का और तीन बच्चों का बाप था, के साथ इन्सेस्टियस(सगे सम्बन्धियो में यौनाचार्य) सम्बंध है। इससे कुपित अकबर ने अनारकली की ज़िंदा चुनाव दिया था। जहांगीर जब 1605 में बादशाह बना तो अपनी मुहब्बत के प्रतीक के तौर पर कब्र पर मकबरा बनवाया था'।
विलियम फिंच के बाद आये एक ब्रिटिश यात्री एडवर्ड टेरी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि,' बादशाह अकबर ने शहजादे सलीम को उत्तराधिकारी से हटा देने की धमकी दी थी क्योंकि अनारकली, जो अकबर की प्रिय बीबी थी उसके साथ सलीम के सम्बंध थे। बाद में अकबर जब अपनी मृत्यु शैय्या पर था, उसने सलीम को इस गुनाह के लिये माफ कर दिया था'।
इसी बात पर अब्राहम रैली ने 2000 में प्रकाशित अपनी किताब 'द लास्ट स्प्रिंग: द लाइव्स एंड टाइम्स ऑफ द ग्रेट मुग़लस' में शंका व्यक्त करते हुए लिखा है कि,' ऐसा लगता है कि अकबर और सलीम के बीच 'ओएडिपालकॉन्फ्लिक्ट'(माँ और पुत्र के बीच सम्भोग को लेकर संघर्ष) था'। उन्होंने यहां अनारकली के शहजादे दानियाल होने की संभावना को भी व्यक्त किया है।
रैली ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिये अब्दुल फजल, जिन्होंने अकबरनामा लिखी थी, द्वारा उल्लेखित एक घटना को आधार बनाया है। वो लिखते है कि एक शाम शाही हरम के पहरेदारों ने हरम में पकड़े जाने पर सलीम को पीटा था। कहानी यह बताई जाती है कि एक पागल शाही हरम में घुस आया था और सलीम उसको पकड़ने के लिए हरम में घुस आया था लेकिन पहरेदारों ने उसी को ही पकड़ लिया था। यह सुनकर की कोई हरम में घुस आया है, बादशाह अकबर गुस्से में खुद ही वहां पहुंच गये और तलवार से कब उसका गला काटने जारहे थे तब ही उन्होंने सलीम का चेहरा देख कर हाथ रोक लिया था। रैली का मानना है कि शाही हरम में सलीम ही घुसा था लेकिन उसको बचाने के लिये एक पागल का जिक्र किया गया है।
16वी शताब्दी में जन्मी और मरी अनारकली, 21वी शताब्दी में अकबर की बीबी/रखैल की यात्रा करते हुये 5 शताब्दियों में अकबर के दरबार की बांदी बन चुकी है। वो शहजादे सलीम की मां से, शहजादे सलीम उर्फ जहांगीर की महबूबा बन चुकी है। वो अपने बेटे से इन्सेस्टस अवैध यौन सम्बंध रखने वाली से, सलीम के प्रेम में गिरफ्त मुगल-ए-आज़म बन चुकी है।
क्या ऐसा तो नही महान अकबर की अनारकली और शहजादे सलीम के 16वी शताब्दी के मुग़लिया सत्य की शर्मिंदगी ने अनारकली के अस्तित्व को आज, अनारकली को कल्पना बना दिया गया है?
मैं समझता हूँ की ऐसा ही है और इसी लिये लाहौर में अनारकली की शानदार मकबरे के होते हुये भी धर्मनिर्पेक्षिता के चश्मे से लिखा वामपंथियों का मुगलकालीन इतिहास उससे आंख चुराता रहा है।