हो सकता है यह पोस्ट आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं हो पर यह मेरे जीवन की बहुत अहम् घटना है !
पहले मुझे डायरी लिखने की सौक था । दशहरे की साफ सफाई कर रहा था तो डायरी हाँथ लग गई जिसमें 7 सितम्बर 1994 की एक घटना का जिक्र था ।
मैं और मेरे 2 दोस्त रामेश्वर भार्गव (शिवपुरी) और बृंदावन साहू (कटनी) रात्रि पाली की ड्यूटी करके सुबह 7:40 पर पैदल ही घर जा रहे थे । टाटा चौराहे के आगे निकले तो देखा कि रोड के किनारे बरसाती पन्नी (पोलोथिन) से ढकी हुई एक पोटली पड़ी थी, जिसमे हरकत हो रही थी, जिज्ञासा बस हम तीनों पास जाकर देखा तो लगा कि कोई लेटा हुआ है । मैं झुककर पोलोथिन को हटाया ओह पन्नी हटाते ही जो दृश्य दिखा उसे देखकर मैं सहम गया और खड़ा हो गया,तब तक दोनों मित्रो ने भी वह दृश्य देख लिया था । मैं पन्नी से वापस ढांक दिया और हम तीनों विचार विमर्श करने लगे कि क्या किया जाय..इसे इसी हालत में छोड़कर चले जाएं या मानव होने की जिम्मेदारी निभाये ?
आखिर में मानवता जीत गई, हम किसी तिपहिया,चार पहिया वाहन के इंतजार में खड़े हो गए पर जो भी वाहन आये तो वह दृश्य देखकर उसे हॉस्पिटल ले जाने से इंकार कर दे !
पानी गिर रहा था, आखिर में हम तीनों अपने अपने छाते फोल्ड करके उस पोटली को किनारा पकड़कर करीब 6KM दूर हॉस्पिटल की तरफ चलने लगे तो पोटली से बड़े बड़े कीड़े (लगभग आधा इंच तक के कीड़े) हमारे हाथों पर रेंगने लगे, अजीब सी सिरहन दौड़ गई पूरे जिश्म में ! करीब आधा KM दूर तक जाने के बाद एक ऑटो वाला फिर से दिखा तो उसे इसारा करके रोंका और हॉस्पिटल तक छोड़ने का निवेदन किया तो तैयार हो गया क्योकि उसे हमने वह दृश्य नहीं देखने दिया ! हम MG हॉस्पिटल आ गए ऑटो वाले सही स्थित को जान गया तो 1 रुपये भी नही लिया !
हम उस पोटली को उठाये आपातकालीन वार्ड में पहुँच गए और डॉक्टर से देखने की गुहार लगाई तो डाक्टर ने एक नर्स को भेजा नर्स दृश्य देखते ही लगभग चीख उठी ''उई माँ'' कहते हुए तुरंत ही डाकटर के पास चली गई हैरान-परेशान डाक्टर साहब आये और पॉलीथिन को उठा कर देखा और तुरंत ढक दिए और पूछने लगे कहा से लाये ? और हमारे बारे में पूछा ! डाक्टर साहब हम तीनो की नेक नियति देखकर द्रवित हो गए और बोले ''मैं इसका इलाज करूंगा'' ! और फिर नर्स को बोले ''इसे ले चलो रूम में'' पर नर्स हिम्मत हार चुकी थी, तब हम तीनो ने उस पोटली को उठाया और डाक्टर के बताये रूम पर लेकर रख दिए !
डाक्टर साहब ने पोलोथिन को हटा दिया और देख कर बोले ''ये ज़िंदा कैसे है'' ?
और फिर नर्स को सभी स्टूमेंट्स लाने के लिए कहा ! हम तीनो वही खड़े थे ! डाक्टर साहब बोले इसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा आप लोग वहन कर लोंगे क्या ?
हम तीनो एक स्वर में हां कहे ! तो साहब हम तीनो की तरफ ऐसे देखे जैसे हम 8 वां अजूबा हो !
तब तक नर्स आ गई और डाक्टर साहब भर्ती की सभी औपचारिकताये पूर्ण कर अपने काम में जुट गए ! भर्ती पर्चे में कौन है ? कहाँ से है ? क्या है नाम ? कुछ भी नहीं लिखा !
दरअसल एक महिला थी, महिला क्या कहे बल्कि महिला का एक कंकाल कहे ! जिसके सिर पर बड़े बड़े घाव थे और उस घाव में बड़े बड़े कीड़े पड़ गए थे,सिर का करीब 30% हिस्सा लगभग खोखला हो चुका था ! उसके शरीर में सभी जगह कीड़े रेंग रहे थे ! डाक्टर साहब नर्स को बोला पहल पूरे शरीर की सफाई करों ! नर्स मुँह बनाने लगी तब दुसरी नर्स को बुलाया ओ तैयार हो गई ! चूँकि मामला महिला का था इस लिए डाक्टर साहब हम तीनो को बाहर कर दिए ! करीब एक घंटे बाद हमे बुलाया और दवाई का लम्बा सा पर्चा पकड़ा दिया ! हम मेडिकल स्टोर पर गए और पूछा ''कितने की दवाई होंगी'' ! तब मेडिकल स्टोर वाले ने करीब 800 रूपये बताया जो की हमारी पेमेंट का तीसरा भाग था ! चूँकि हम तीनो को पेमेंट उसी दिन मिली थी इस लिए बिना देर किये हम तीनो ने दवाई ले लेकर डाक्टर को दे दिया और बोले ''सर हम देख सकते है अब'' ! हां कहने पर हम पास गए तब उस महिला का चेहरा देखा ! इस हालत में भी उस महिला के चेहरे में पीड़ा के कोई भाव नहीं थे, ओ हमारी तरफ बड़ी कातर निगाहों से देखकर कांपते हुए हाथ उठाये और हाथ जोड़ दिए ! और उसके आँखों से अश्रु धारा बह चली !
महिला के कपडे बदल कर हॉस्पिटल के कपडे पहना दिए गए ! महिला की उम्र लगभग 30-32 वर्ष के आसपास रही होगी ! गोरा रंग, गोल मटोल चेहरा जो की हड्डियों के ढांचे में बदला हुआ था !
जब बड़े डाक्टर आ गए तो महिला को आपातकालीन वार्ड से हटा कर जनरल प्राइवेट वार्ड में कर दिया, उस समय उस वार्ड का खर्चा सिर्फ 30 रूपये प्रतिदिन था ! हम वहन करने के लिए सहर्ष तैयार हो गए ! महिला के सिर में घाव के अतरिक्त बांकी शरीर स्वस्थ था, और कोई बीमारी नहीं निकली बस कमजोरी इतनी थी की बोल भी नहीं पाती थी ठीक से ! चलना फिरना तो दूर की बात !
चूकि हम तीनो रात्रि पाली करके आये थे, दोपहर के 1 बज गए थे इस लिए दो को भेज दिया और मैं रुक गया पर मेरे रूम में पत्नी को खबर करने के लिए कह दिया और उन्हें शाम को आने के लिए कहा ! मैं रूम में अकेला बचा तो महिला से कुछ पूछता चाहा ! पर महिला बोलने में असमर्थ थी !
उसके सिर की तरफ देखा तो फिर से कीड़े बाहर निकल रहे थे, मैं तुरंत डाक्टर के पास गया और बताया तो डाक्टर बोले ''इतनी जल्दी कीड़े नहीं मरेंगे समय लगेगा'' तब पूछा ''आखिर कितने दिन लगेगा'' तो डाक्टर बोले ''दिन नहीं महीनों लग जायेंगे ठीक होने में'' तब मैंने खर्च पूछा तो डाक्टर बोले ''कम से कम 500 रूपये रोज लगेंगे'' ! सुनकर मैं चिंतित हो गया क्योकि हमारी पेमेंट से इलाज सम्भव नहीं था ! मन ही सोचने लगा की इलाज कैसे करवाया जाए ! फिर दिमाग में आया क्यों न भीख मांगी जाय इस नेक कार्य के लिए ! मैं नाइट ड्यूटी करके आया था, नींद और थकावट बहुत हो गई तो नर्स को बोलकर पास में ही शुक्रवारिया हाट में 3 बजे रूम चला गया ! शाम को 6 बजे फिर से तीनो एकत्रित हुए और इलाज के लिए रूपये कहाँ से आये इस पर विचार विमर्श करने लगे ! सबसे पहले कलेक्टर से मिलकर हॉस्पिटल में मुफ्त इलाज की गुहार लगाई जाए और अगले दिन हम बड़ी मुश्किल से 3 घंटे के इन्तजार के बाद कलेक्टर साहब से मिले ! पूरी बात बताई तो कलेक्टर साहब ने हॉस्पिटल में फोन करके पूछा जब सच निकला तो अपने सेकेट्री को हॉस्पिटल भेजा हमारे साथ ! सेकेट्री वापस गया और रिपोर्ट बताया तो फ्री इलाज की ब्यवस्था हो गई ! रूम का किराया भी नहीं लगेगा ! पर हॉस्पिटल में इतनी अच्छी दवाई मिलती नहीं ! इस लिए महिला में कोई ख़ास सुधार नहीं हो रहा था ! मजबूर होकर एक सप्ताह बाद कलेक्टर साहब से फिर से मिला और चन्दा उगाहने की अनुमति चाहा ! जो कुछ सर्तो के साथ मिल गई !
कलेक्टर साहब से चंदे उगाही की अनुमति मिलते ही सबसे पहले हमने महिला की बीमारी के बारे में डाक्टर से लिखवाया, उसके इलाज का खर्च अनुमानित लिखवाया, महिला के सिर की कई फोटो ले कर बनवाया जिसे चंदे मांगते समय दिखाने का प्लान बनाया ! हमारा कार्यक्षेत्र का कारखाना लिया ! सभी बड़े बड़े मैनेजरों से मिला छोटे से छोटे वर्कर से मिला जिससे हमे भरपूर सहयोग मिला ! मात्र 5 दिन में ही हमें 8372 रूपये चन्दा मिल गया ! लगभग महीने भर के खर्चा की चिंता से मुक्ति मिली !
यदि उस समय सोशल मीडिया होती तो सायद आसानी से चन्दा मिल गया होता !
अब हम महिला को प्रतिदिन अच्छे अच्छे फल फ्रूट जूस आदि देने लगे ! करीब 12 दिन बाद कीड़े निकलना बंद हो गए ! पर सिर का घाव जस का तस बना था ! अब रूपये की परेशानी नहीं थी इस लिए अच्छी से अच्छी दवाई देने लगे डाक्टर ! करीब एक माह बाद महिला चलने फिरने लगी ! इस एक माह के दौरान उसकी कैसे सेवा किया हम तीनो ही जानते है ! नर्स सिर्फ कपडे बदलती और उसे लेट्रीन बाथरूम ले जाती, नहलाती ! बाकी सभी सेवा कार्य हम तीनो करते ! देखने तो कई परिचित - अपरिचित आते और कुछ मदद करके चले जाते !
जब कारखाने से चन्दा मिलना बंद हो गया तो, दूसरे कारखाने के गेट पर खड़े होकर चन्दा मांगने लगे ! जब कारखानों से मिलना बंद हो गया तो हम बाजार में, कालोनी में घूम घूम कर चन्दा मांगने लगे, कुछ देते कुछ दुत्कार का भगा देते ! जब देवास की सभी कालोनियों से चन्दा मिल गया तो हम आसपास के गाँवों में रुख किया ! चन्दा में रूपये की जगह अनाज मिलता जिसे हम लेकर बाजार में बेच देते और रूपये लेते ! इस तरह करीब 6 माह हमने चन्दा उगाही किया और महिला का ठीक से इलाज करवाया ! जब ओ बोलने लायक हुई तो अपनी पूरी आपबीती बताया, सुन कर दुःख भी हुआ क्रोध भी आया ! (उसकी आपबीती और पहचान यहाँ लिखना उचित नहीं है,सिर्फ इतना ही लिखता हूँ की महिला शादी सुदा थी पर पति की मार खा खाकर इस हालत में आ गई) ! 6 माह में महिला लगभग ठीक हो गई ! उसके सिर का घाव पूरी तरह से ख़त्म हो गया तो डाक्टर छुट्टी देने की बात करने लगे ! अब हमारे सामने उस महिला के भविष्य की चिंता हुई ! क्या करेगी ? कहाँ जाएगी ? कैसे पेट भरेगी ? आदि चिंता सताने लगे !
महिला पूरी तरह से स्वस्थ हो गई तो उसके चेहरे, शरीर में निखार आ गया वह एक सुन्दर युवती दिखने लगी ! एक दिन उससे पूछ लिया ''अब कहाँ जाओगी'' ? तो रुआंसी होकर बोली ''यही कही कोई काम दिलवा दो आप लोग तो यही रहकर पेट भर लिया करुँगी, मेहनत मजूरी करके'' ! सवाल ये था की हम तीनो किराए के मकान में रहते थे, हमारे पास जगह नहीं थी उसे रखने के लिए ! नौकरी की बात जहाँ करू वही पर पहचान मुख्य रोड़ा बन जाती ! पढ़ी लिखी थी थोड़ थोड़ा अंग्रेजी भी पढ़ समझ लेती थी ! हॉस्पिटल के बड़े अधिकारी से मिले की यही हॉस्पिटल में रख लीजिये, झाड़ू पोछा लगा दिया करेगी ! यही पर मरीजों को मिलने वाला खाना खाकर रह लेगी पर डाक्टर तैयार नहीं हुए ! तब एक डाक्टर के हाथ पाँव जोड़कर उनके घर में ही नौकरानी के रूप में रखवाने में सफल हो गए ! अब महिला उस डाक्टर के घर पर ही बतौर नौकरानी, वेतन के रूप में कपड़ा और खाना ! महिला तैयार हो गई !
इन 6 महीनो में महिला काफी घुल मिल गई थी हम तीनो ने कई बार अपनी पत्नियों से भी मिलवाया ! उसे हम लोगो के रहने के कमरे भी मालूम हो गए थे, कहाँ नौकरी करते है ये सब उसे पता चल गई थी ! डाक्टर के घर नौकरानी बनकर रहने के बाद हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा गए थे पर चिंता लगातार रहती थी ! एक अनजाना सा रिश्ता बन गया था उसके साथ !
बीच बीच में 15-20 दिन में हम उससे डाक्टर के घर जाकर मिल लेते ! उसके सिर में घाव की जगह थोड़े थोड़े बाल उग आये उसका चेहरा भर गया, शरीर भी स्वस्थ हो गया ! धीर धीर देखने लायक लगने लगी ! हमने सोचा अब इसके लिए कोई लड़का मिल मिल जाए तो इसकी शादी करा दिया जाय !
इस तरह डाक्टर के घर नौकरानी के रूप में करीब 5 माह बीत गए अब महिला खुस रहने लगी जब भी हम मिलते तब भैया भैया कहते उसके होठ नहीं सूखते ! सच में वह बहन जैसी लगने लगी ! अब खूब स्वस्थ हो गई या कहिये उसका वदन भर गया, चेहरे में लालिमा आ गई ! अब बहन की दृष्टि से देख रहा हूँ तो उसके शरीर का और अधिक बखान नहीं कर पा रहा हूँ ! जब भी मिलते तो दौड़ कर आती और हम तीनो के पाँव छू लेती और डाक्टर साहब की पत्नी से पूछकर चाय जरूर पिलाती ! डाक्टर की पत्नी हम तीनो का बहुत सम्मान करती ! बार बार यही कहती ''आजके युग में कोई गैर के लिए इतना नहीं करता, आप तीनो तो साक्षात् देवता हो'' आदि आदि ! तब प्रसंसा सुनना अच्छा नहीं लगता था !
हम तीनो ने अपने अपने परिचितों को उस महिला के बारे में बताकर उसकी शादी लायक लड़के की तलाश में लग गए ! और वह तलाश भी पूरी हुई ! हमारे ही कारखाने में में एक खाती पटेल का लड़का था करीब 28-29 साल का ! जिसकी शादी नहीं हो रही थी क्योकि उसके पास जमीन सिर्फ दो बीघे थी इस बजह से उसे कोई लड़की देने को तैयार नहीं था, लड़के के पिता नहीं थे सिर्फ माँ थी, पास के ही गाँव से थे रोज सायकल से ड्यूटी आते और चले जाते, लड़का कारखाने में हेल्पर था उस समय उसे करीब 1900 रूपये पेमेंट मिलता था ! (हालांकि उस जमाने में हम तीनो दोस्त भी सायकल छाप ही थे) ! लड़के को और उसकी माँ को उस महिला से मिलवाया तो दोनों शादी के ले किये राजी हो गए ! उस महिला से पूछा से पूछा तो उसने दिल को छू लेने वाली बात बोली ''आप मुझे रोड से मरने की हालत में उठाकर लाये और ज़िंदा किया तो मुझे अब मरने नहीं देंगे आप लोगो पर विश्वास है, ये आपका दिया हुआ जीवन है जो कहेंगे मानूगी'' ! और इस तरह बिना किसी मुहूर्त्त के 07 नंवम्बर 1995 को ''वर्षा'' की शादी करवा दिया ! (वर्षा नाम इस लिए रखा क्योकि वह हमें वरसात में मिली थी)
समय बीतता गया, वर्षा को दो लड़के हो गए, वर्षा का जीवन खूब खुसी खुसी बीतने लगा हम जिम्मेदारी से मुक्त हो गए तो वर्षा की खोजख़बर लेना बंद कर दिए !
और समय बीता तो भार्गव साहब का सलेक्शन ''भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र इंदौर'' ( CAT''सेंटर फार एडवांस टेक्नोलॉजी'') में हो गया तो देवास से चले गए ! साहू जी भी देवास छोड़कर वापस कटनी चले गए और अच्छे वकील बन गए ! हम सायकल छाप वाले बड़ी बड़ी कारो, बड़े बड़े घरो के मालिक बन गए सायद उसी महिला की दुआ लगी ! --
इस पूरी घटना को मैंने डायरी में करीब 40 पेज में लिखा हुआ रखा है जो आज भी सुरक्षित है !बहुत ही सार्ट में लिखा,म यदि डिटेल में लिखता तो ऐसी ही 20 पोस्ट बन जाती ! पढता कौन इस लिए नहीं लिखा !
यदि आपने पूरी पोस्ट पढ़ा तो आपको बहुत बहुत धन्यवाद .....
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