आज महिला दिवस है , हम सभी मित्र बड़े जोर सोर से सोसल नेट्वर्किंग साइटों में महिलाओ का सम्मान करते हुए ,उनको पुचकारते हुए , खासकर ''कूल डूड'' टाइप अपनी गर्ल फ्रेंड को इम्प्रेश करने में कुछ ज्यादा ही नैतिकवान दिखाने का प्रयास कर रहे है , मैं भी सोचा चलो मैं भी अपनी जननी (स्त्री) पर कुछ कह दू ।
इसलिए अगर इन तथ्यों को ध्यान में रखकर आपस में बात की जाती हैं तो कोई संदेह नहीं कि दोनों आपस में एक अच्छा सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो सकेंगे पर पुरुष अभी भी इस चीज को नहीं समझा या समझ कर भी मानने को तैयार नहीं होगा तो अपने को नुक्सान में ही पायेगा जैसा मैंने ऊपर भी लिखा कि महिलाए अब बदल रही हैं उनमे निर्णय लेने कि क्षमता भी आती जा रही हैं उनमें समग्र देखने की क्षमता तो है ही इसलिए अब अच्छी प्रबंधन कर्मी भी बनती जा रही हैं आम जिंदगी में भी देखे तो महिलाए घर और दफ्तर का काम ज्यादा आसानी से कर पाती हैं .जबकि पुरुष सिर्फ दफ्तर का काम करके थक जाता है कुछ और उन्हें बोला जाये तो झुंझला जाता है और अपनी शारीरिक श्रेष्टता की वजह से काबू पाने की कोशिश करता हैं ।
अब शारीरिक श्रेष्ठता पर आते हैं यह भी कुछ तो ठीक हैं पर ज्यादा पुरुष की बनायीं हुई चीज हैं क्योकि वास्तविक तौर पर .शारीरिक शक्ति से ज्यादा मानसिक शक्ति मायने रखती हैं और पुरुष ने इस मामले में भी स्त्री की मानसिक शक्ति को अपने अनुरूप किया हुआ हैं उसने इसके लिए अपने ग्रंथो का सहारा लिया हुआ हैं जहा स्त्री या तो पुरुष के पीछे चलने वाली हैं जैसे सीता, उर्मिला , रुक्मणि आदि उनका नाम हमेशा पुरुष के साथ ही आता हैं जैसा पुरुष ने कह दिया वैसा उन्होंने कर दिया या फिर संहार का रूप दिखाया जाता हैं जब उनके प्रति मुश्किलों की अति हो जाती हैं तब वो ऐसा रूप धर लेती हैं तब उनके साथ कोई पुरुष नहीं होता और घर चलाने के लिए हमेशा पहला रूप ही अच्छा माना गया यह हम सब आज भी देखते हैं हमेशा यही कहा जाता हैं कि सीता की तरह अपनी ससुराल में रहना यह कह कर लड़की को कभी विदा नहीं किया जाता कि ससुराल में दुर्गा बनकर रहना तो महिलाए को सीता की क्षवि में ही स्वीकारा गया दुर्गा वाला रूप आज तक पसंद नहीं किया गया लेकिन दुर्गा को पूजा जाता हैं तो यह सिर्फ महिलाओ का नियंत्रण में रखने के लिए कभी किया गया होगा पर अगर असल में में देखे तो आम तौर पर आम स्त्री का रूप इन दोनों के कही बीच में होता हैं जहा वो जो उसको चाहते हैं उनके साथ सीता बनकर बात करती हैं जो परेशांन करते हैं उनके साथ दुर्गा वाला रूप भी अख्तियार कर लेती हैं कहने का मतलब है कि आज वो पुरुष की तरह कर्ता ही हैं इसलिए अब उसकी शक्ति को पहचानना और उसको एक इंसान की तरह मान देना समय की जरूरत भी हैं और उचित भी है ।
मित्रो दरअसल महिला और पुरुष दोनों के दिमाग की सरंचना अलग होती है इसलिए दोनों के सोचने का तरीका भी
अलग - अलग होता हैं , अगर छोटे लड़के और लड़कियों को खेलते देखे तो आप गौर
करेंगे कि जहा लडको को पसंद होती है कार,बन्दूक या ऐसे ही
और तरह के खिलोने जिनसे वो अपनी. प्रभुता /उच्चता दिखा
सके , वही लड़किया खेलती मिलेंगी घर- गुडियो से, इस से पता चलता है कि जहाँ लड़कियाँ शुरू से ही रिश्तों-नातो को जीवन में प्रमुखता
से लेती है वही लड़के अपने को.ही सिद्ध करने पर बल देते
हैं और यही से दोनों की सोच में फरक होना शुरू हो जाता हैं । इस से आगे देखे तो पाएंगे कि पुरुष जहा किसी भी कार्य को छोटे-छोटे टुकड़े में विभाजित कर फिर छोटे-छोटे टुकडो पर
अपना ध्यान केंद्रित कर उनको हल करने की सोचता है और उनको हल भी
करता है, वही स्त्री किसी भी कार्य/ समस्या को समग्र रूप
से देखती है वो उसे टुकडो में विभाजित नहीं कर पाती अगर इसको समझने
कि कोशिश करे तो उसके लिए मै उधारण दूँगा मित्रता का जहा महिलाए
मित्र को मित्र की तरह ही देखती हैं वो उसे स्त्री और पुरुष के नाते नहीं
देखती वही पुरुष मित्र को बहुत जल्दी स्त्री और पुरुष में विभाजित कर
देता हैं फिर उसके बाद वो जहा आकर्षित होता हैं वही अपने ध्यान को
केंद्रित कर देता हैं और इसको आप सबने अच्छे से यहाँ महसूस भी किया
होगा, एक और विषय हैं ''प्यार'' इसमें भी बहुत आसानी से दोनों की सोच में
फरक देखा जा सकता हैं जहा स्त्री के लिए प्यार का मतलब प्यार ही हैं वो
उसे ''विभाजित'' नहीं करती जबकि पुरुष उसे तुरंत रूमानी और जिस्मानी प्यार
में विभाजित कर देता है रूमानी को वो एक तरफ रख देता है और फिर उसके
बाद प्यार के मायने अक्सर उसके लिए जिस्मानी हो जाते हैं और उसकी नज़रे
उसी तरह से फिर देखने लगती हैं जिस से महिलायों को काफी परेशानी का सामना
भी करना पड़ता हैं । तो इन सब के चलते महिलायों का दायरा बहुत बढ़ जाता है क्योकि वो किसी भी उस
चीज को विभाजित नहीं कर पाती जहा उसे कोई निर्णय लेना होता हैं इसलिए ज्यादातर फिर वो भ्रमित भी हो जाती है उसे पता तो होता है कि यह सही है या गलत पर शायद उसके पास उसको साबित करने के लिए ,विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की कुछ कमी होती है क्योकि अभी तक महिलाए घरों में परदे में रहती थी इसलिए दुनिया को ज्यादा देखने /समझने का मौका नहीं मिलता था पर अब यह बदलता जा रहा है महिलाए भी दुनिया को जानना समझना
चाहती है और इस तरफ बढ़ भी रही हैं आप सब महिलाए जो इस वक्त मेरे लेख
को पढ़ रही हैं...वो सब इस बात का प्रमाण है महिलायों के
विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के बारे में इसलिए भी कहा जाता
है क्योकि लड़कियाँ जहा साहित्य में ज्यादा रूचि दिखाती हैं और वही
पुरुष ज्यादातर गणित विषय को अपनाते है कहा जाता है कि लड़कियों
की गणित में रूचि कम होने की वजह से
वो चीजों को छोटे टुकडो में विभाजित कर अपना ध्यान उन पर केंद्रित नहीं कर
पाती और गणित में कम रूचि की वजह से ही विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया नहीं कर
पाती पर आज के जमाने में यह परिस्तिथि भी बदल रही है और काफी
महिलाये भी अब गणित में रूचि लेने लगी है और अब विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण
भी रखती है इसीलिए काफी बड़े-बड़े पदों पर भी कार्यरत थी और है जैसे नैना किदवई इंदिरा नूयी नीलम धवन ,चंदा कोचर आदि तो वर्त्तमान में किरण वेदी , मीरा कुमार , मायावती ,ममता बनर्जी ,जयललिता आदि पर फिर भी यह संख्या अभी बहुत ही कम हैं । पर शायद अभी इस क्षेत्र में अनुभव भी कम हैं इसलिए जब भी ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न होती हैं तब स्त्री को कुछ
नहीं सूझता कि वो क्या करे और वो अपने परिजन पुरुषों की
तरफ उन समस्याओ के समाधान के लिए भी देखती है पर पुरुष सोचता है कि महिलायों की समझ बहुत कम है और वो उसको अपने से काफी निम्न समझने लगता है और कभी-कभी कुछ पुरुष इसलिए उसकी तौहीन भी करते हैं पर
यह सत्य से बहुत परे हैं क्योकि स्त्रियों का सोच-विचार का दायरा
जैसे ऊपर लिखा वो अलग है वो समग्र है वो किसी भी समस्या को अपने और अपने परिवार के फायदे-नुक्सान को सोचते हुए निर्णय लेने की
कोशिश करती हैं वही पुरुष के लिए पहले उसकी
अपनी उपलब्धि है फिर अपना फायदा उसके बाद बाकी लोग.आते हैं इसलिए वो बाकि लोगो के बारे में ज़रा देर से सोच पाता है और यही
सोच स्त्री को पुरुष से अलग करती हैं क्योकि यह दोनों की सोच
में बुनियादी फर्क हैं ।
इसलिए अगर इन तथ्यों को ध्यान में रखकर आपस में बात की जाती हैं तो कोई संदेह नहीं कि दोनों आपस में एक अच्छा सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो सकेंगे पर पुरुष अभी भी इस चीज को नहीं समझा या समझ कर भी मानने को तैयार नहीं होगा तो अपने को नुक्सान में ही पायेगा जैसा मैंने ऊपर भी लिखा कि महिलाए अब बदल रही हैं उनमे निर्णय लेने कि क्षमता भी आती जा रही हैं उनमें समग्र देखने की क्षमता तो है ही इसलिए अब अच्छी प्रबंधन कर्मी भी बनती जा रही हैं आम जिंदगी में भी देखे तो महिलाए घर और दफ्तर का काम ज्यादा आसानी से कर पाती हैं .जबकि पुरुष सिर्फ दफ्तर का काम करके थक जाता है कुछ और उन्हें बोला जाये तो झुंझला जाता है और अपनी शारीरिक श्रेष्टता की वजह से काबू पाने की कोशिश करता हैं ।
अब शारीरिक श्रेष्ठता पर आते हैं यह भी कुछ तो ठीक हैं पर ज्यादा पुरुष की बनायीं हुई चीज हैं क्योकि वास्तविक तौर पर .शारीरिक शक्ति से ज्यादा मानसिक शक्ति मायने रखती हैं और पुरुष ने इस मामले में भी स्त्री की मानसिक शक्ति को अपने अनुरूप किया हुआ हैं उसने इसके लिए अपने ग्रंथो का सहारा लिया हुआ हैं जहा स्त्री या तो पुरुष के पीछे चलने वाली हैं जैसे सीता, उर्मिला , रुक्मणि आदि उनका नाम हमेशा पुरुष के साथ ही आता हैं जैसा पुरुष ने कह दिया वैसा उन्होंने कर दिया या फिर संहार का रूप दिखाया जाता हैं जब उनके प्रति मुश्किलों की अति हो जाती हैं तब वो ऐसा रूप धर लेती हैं तब उनके साथ कोई पुरुष नहीं होता और घर चलाने के लिए हमेशा पहला रूप ही अच्छा माना गया यह हम सब आज भी देखते हैं हमेशा यही कहा जाता हैं कि सीता की तरह अपनी ससुराल में रहना यह कह कर लड़की को कभी विदा नहीं किया जाता कि ससुराल में दुर्गा बनकर रहना तो महिलाए को सीता की क्षवि में ही स्वीकारा गया दुर्गा वाला रूप आज तक पसंद नहीं किया गया लेकिन दुर्गा को पूजा जाता हैं तो यह सिर्फ महिलाओ का नियंत्रण में रखने के लिए कभी किया गया होगा पर अगर असल में में देखे तो आम तौर पर आम स्त्री का रूप इन दोनों के कही बीच में होता हैं जहा वो जो उसको चाहते हैं उनके साथ सीता बनकर बात करती हैं जो परेशांन करते हैं उनके साथ दुर्गा वाला रूप भी अख्तियार कर लेती हैं कहने का मतलब है कि आज वो पुरुष की तरह कर्ता ही हैं इसलिए अब उसकी शक्ति को पहचानना और उसको एक इंसान की तरह मान देना समय की जरूरत भी हैं और उचित भी है ।
अब समापन पर यही कहना चाहुगा कि सिर्फ आज ही महिला दिवस नहीं बनाये बल्कि रोज रोज महिला दिवस मनाये ,पर मनाने का तरीका बदल दे “नारी को सम्मान से ज्यादा सहयोग दे ,उन्हें जीवन का सम्पूर्ण सुखो का भोग करने दे ”।
मेरी माता जी |
मित्रो मेरे जीवन में कई महिलाओ का बहुत प्रभाव रहा है पर सबसे अधिक प्रभाव मेरी माँ का रहा है माता जी का डॉट भरा प्यार -स्नेह और सीख आज भी काम आती है । पर मेरे जीवन में, मैं मेरी पत्नी के प्रभाव को नकार नहीं सकता हु जीवन के पथ पर पत्नी का अतुलनीय सहयोग रहा है उसी का परिणाम है कि आज मैं पत्नी जी के कारण आपने आपको बहुत सुखी और समृद्ध मानता हु ।
मेरी पत्नी श्री मती रेणू सिंह बाघेल |
माँ, बहन, पत्नी और पुत्री। जीवन में कितना कुछ दिया है सबने।
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