सोमवार, 1 अप्रैल 2013

!! मैं मुर्ख दिवस पर मुर्ख बन गया !!

!! दोस्तों सुप्रभात जय हिन्द जय भारत ...जय जय श्री राम...!!

आज सुभ सुबह पर ऑफिस आया ..की 5 मिनट बाद श्री मती जी का फोन आ गया मैंने सोचा अभी अभी तो घर  से आया हु फिर ये मोबाइल बला क्यों बज गया पत्नी के नाम पर  सुबह -सुबह इतनी जल्दी फोन क्यों ? मेरा दिल धाकड़ गया किसी अनजाने भय से डरते हुए फोन को रिसीव किया ...संदेस था की आज "मुर्ख दिवस " है आप सावधान रहना कोई मुर्ख नहीं बना दे आपको ...! मैं सतर्क हो गया और श्रीमती जी  को धन्यवाद बोला ..की आपने आज बचा लिया मुरख  बन जाने से ...!

         और काम में ब्यस्त हो गया की सुना  ऑफिस के दरवाजे में दस्तक हुई मैंने देखा एक ऑफिस वाली मेडम सामने खडी है मैंने उनकी तरफ प्रश् वाचक द्रष्टि से देखा तो बोली की आपसे कोई मिलना चाहता है ..मैंने सोचा की इतनी सुबह ..मैंने बोला भेज दीजिये ...! 

                            एक ब्यिक्ति जिसकी सकल सूरत और कपडे से ही लग रहा था की काफी परेसान है ..मैंने बोला की फरमाए भाई क्या है ? (मैंने सोचा की मेरे किसी स्टूडेंट के कोई पैरेंट्स तो ऐसे  नहीं है ) ओ ब्यक्ति कातर भरी और आशा पूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखा और बोला की साहब भूखा हु परिवार सहित ..दो दिन से अन्न का दान नहीं गया पेट में और ओ पूरी  कहानी सुना दिया मुझे जो कुछ इस तरह से है ..!


         " साहब मैं बिधर्भ क्षेत्र महाराष्ट्र से हु ,और वह सुखा के कारण मजदूरी की तलास में आपके MP में आ गया जो ठेकेदार लाया था ओ रोज 100 रुपये की मजदूरी देने का वादा किया था पति -पत्नी सहित कम करने पर 175 रूपये रोज देने का वादा किया था पर कुछ दिन तो कम दिया और 100 रूपये रोज की दर से मजदूरी भी दिया बाकी 75 रूपये रोज रख लेता और कहता की जब वापस जाओगे महाराष्ट्र तो एक साथ दे दुगा पर अब उसने काम भी देना बंद कर दिया और ओ 75 रुपये के हिसाब से 45 दिन की बची मजदूरी में से सिर्फ 1000 रूपये दिया ,जो काम की तलास में हमने परिवार के पेट भरने में लगा दिया  !  जब ठेकेदार से और रूपये मागा तो मार कर भगा दिया और बोल जा ,जो करना है कर ले ! और साहब अब महाराष्टर जा रहा हु पर जाने के लिए किराया नहीं है और दो दिन से भूखे है हम बच्चो सहित "
                    मुझे बहुत दया आई उस ब्यक्ति पर मैंने बोला टीक है कहा है तुम्हारा परिवार (मैंने सोचा कही ये मुर्क तो नहीं बना रहा है मुझे आज मुर्ख दिवस पर) चलो बताओ तो मैं उसके साथ हो लिया और पास ही "जिला सहकारी पंजीयक कार्यालय " (यह ऑफिस मेरे करेले के पास ही स्थित है )के पास जाकर देखा की दो बच्चे भूख से रोते -बिलबिलाते  हुए और एक माँ की बेबस आँखे देखा मैंने ,बच्चो की रुदन पर मेरी भी
आंखे ज़रा सी  नम हो  गई ..मैंने पर्श टटोला और उसे बोला की लो भाई 50 रूपये और नास्ता  कर लो भूख शांत हो जायेगी तो ओ बोला की साहब आप तो मुझे नास्ता नहीं कराओ बल्कि 3 किलो आटा  और कुछ सब्जी दिला दो मैं बना खा लुगा ! इस पर मैंने बोल कैसे बनोगे तो उसने अपना स्टोव और अन्य बर्तन दिखाया तब मुझे तसल्ली हुई मैंने बोल टीक है और मैंने मेरे एक शिक्षक को भेजकर 3 किलो आटा मागवा दिया और बोला की  सब्जी वालो की दूकान तो इतने जल्दी खुलती नहीं ..तो ओ उदास" माँ " बोलती है की साहब " नमक " है मेरे पास नमक रोटी  खा लूगी ! ओह ..ये सब्द सुनकर मुझे ऐसा लगा की जैसे किसी ने मेरे दिल  पर एक हथौड़ा  जड़ दिया हो ! सच में भूख बहुत बुरी चीज है .कास ये पेट नहीं होता ! मैंने उसे कहा की टीक भाई आप यही  पर  कैम्पस के पास ही इस  "जिला सहकारी पंजीयक कार्यालय " में पेड़ की छाया में ही रोटी बना लो और मैंने देखा की ओ रोटी बनाने की तैयारी करने लगा और मैं मेरे ऑफिस में भरी मन से बैठ गया ...!!
 ०१/०/२०१३ ....८.५५ AM  

          ओ भूखा परिवार रोटी बनाने लगा .और उन्हें इतनी भूख लगी थी की और रोटी में नमक का घोल चुपड़ कर ५ -५ रोटी खा गए ...! इतने में करीब 10 बजे सब्जी वालो की दूकान खुल गई ..मैं उनके लिए सब्जी मागवा दिया और उनकी रोटी सब्जी बन  गई और ओ बच्चो सहित पेट भर खा लिया फिर आया मेरे पास और बोला की साहब कुछ पैसा दे दो तो मैं मेरे गाव चला जाऊ ! तब मैंने उसे बोला की चलो तुम्हारे ठेकेदार के खिलाफ रिपोर्ट कर देते है तुम्हारे पैसे मिल जायेगे तब उसने कातर  भरी निगाह से मेरी तरफ देखा और बोला की साहब जाने दो उसके कर्मो का फल उसे मिलेगा ..मैं कोई गलत करम किया तय उसी का फ़ल्में भुगत रहा हु ..मैं नहीं करुगा उसके खिलाफ रिपोर्ट तब मैंने बोला  टीक है और  मैंने उसे जेब से 200 रुपये और निकाल कर दिया और बोला की ट्रेन से चले जाओ ...और मैंने उसे  बताया की इंदौर से आपके गाव के आस पास के स्टेशन होगा वह तक चले जाओगे ! और देवास  रेलवे स्टेशन की तरफ जाने वाला रास्ता बता दिया उसे और ओ फिर चले गए ....पर बहुत से प्रश्न मेरे मन में छोड़ गए ...!
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अब  मुझे लग रहा है की  "अप्रैल -फूल बनाने का मौलिक अधिकार वर्षों से नेताओं के पास सुरक्षित है और हम जैसे आम इंसानों का फूल बनने. का जन्मसिद्ध अधिकार वर्षों से सुरक्षित है । लेकिन इस साल अप्रैल -फूल बने और बनाएं ...। समझदार वही है जो किसी को फूल बनाये और शरीफ वह है जो फूल बन जाये ....।  और मैं इस तरह मुर्ख बन गया सुबह -सुबह .....?    

पर मुझे इस मुर्खता पर ज़रा सा भी पस्याताप नहीं है ....!
०१/०४/२०१३ २.४५ PM

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