पाकिस्तान का असली दुश्मन कौन है? यही वह परम प्रश्न है, जो
पाकिस्तान का भूत, भविष्य और वर्तमान तय करता है। अब तक उसे अपना सिर्फ एक
दुश्मन दिखाई पड़ता थाभारत। मगर अब पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल अशफाक
परवेज कयानी ने पहली बार एक नई बात कही है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान
का असली दुश्मन अंदरूनी है, बाहरी नहीं। बाहरी यानी कौन? जाहिर है भारत!
भारत के अलावा कौन हो सकता है? न चीन, न अफगानिस्तान, न ईरान। रूस और
अमेरिका का तो सवाल ही नहीं उठता। पिछले 65 साल से भारत को अपना एकमात्र
दुश्मन मान लेने के कारण ही पाकिस्तान की यह दुर्दशा हुई है। उसके नेताओं
ने अपने अवाम के दिल में ठोक-ठोककर यह बात जमा दी थी कि भारत के लोगों को
पाकिस्तान का निर्माण स्वीकार नहीं है। वे पाकिस्तान को खत्म करके ही दम
लेंगे। अत: अवाम का सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि वह भारत से पाकिस्तान की
रक्षा करे। इस कर्तव्य की पूर्ति के लिए उसे जो भी कुर्बानी देनी पड़े,
सहर्ष दे। यदि लोकतंत्र को भी स्वाहा करना हो तो करे। इसी का नतीजा था कि
वहां एक के बाद एक फौजी तख्तापलट होते रहे। यदि सत्ता नेताओं के हाथ में
रही, तो वह भी नाममात्र के लिए। सत्ता का असली संचालन फौज ने ही किया।
भारत से पाकिस्तान की रक्षा नेता लोग नहीं, फौज ही करने वाली थी। फौज
जैसे ही पाकिस्तान की छाती पर सवार हुई, उसने अपनी मांसपेशियां फुलानी शुरू
कर दीं। जो पाकिस्तान 'हिंदू वर्चस्व' का मुकाबला करने के लिए जिन्ना ने
खड़ा किया था, वही पाकिस्तान पश्चिमी वर्चस्व के आगे चारों खाने चित लेट
गया। वह 'सीटो' और 'सेन्टो' पैक्टों का सदस्य बन गया। फौज ने पाकिस्तान को
अमेरिका का दुमछल्ला बना दिया। उसकी संप्रभुता को लंगड़ा कर दिया। अमेरिका
ने पाकिस्तान को सोवियत संघ के खिलाफ मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। उसने
पाकिस्तान को भरपूर मुआवजा दिया। फौजी साजो-सामान के अलावा हर साल करोड़ों
डॉलर की आर्थिक सहायता दी। इस बेहिसाब आर्थिक मदद पर फौजियों व नौकरशाहों
ने जमकर हाथ साफ किए। नेतागण भी पीछे नहीं रहे। उन्हें पाकिस्तान की
गुह्रश्वतचर संस्था 'आईएसआईÓ ने मालामाल कर दिया। सिर्फ ठगी गई पाकिस्तानी
जनता। पाकिस्तान में जितनी गरीबी, आर्थिक विषमता, असुरक्षा व अशांति है,
उतनी दक्षिण एशिया के किसी भी देश में नहीं है। पाकिस्तान में असंतोष का यह
ज्वालामुखी पहले दिन से धधक रहा है।
ज्वालामुखी का यह लावा फूटकर बह न निकले और सत्ताधीशों को भस्म न कर
दे, इसलिए फौज को रह-रहकर कोई न कोई बहाना ढूंढऩा पड़ता है। वह है, भारत को
दुश्मन बताकर उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ देना। चार युद्धों में भारत से
बराबर मात खाने वाली फौज ने अपने देश के भी दो टुकड़े करवा दिए। पूर्वी
बंगाल दूर था, इसलिए वह आसानी से बांग्लादेश बन गया, लेकिन बलूचिस्तान,
पख्तूनिस्तान औ र सिंध में भी अलगाव का अलाव निरंतर जल रहा है। इसके लिए भी
पाकिस्तान की फौज भारत के सिर दोष मढ़ती रहती है।
फौज के इसी रवैये का नतीजा है कि पाकिस्तान के सभी प्रांतों में
आतंकवाद फैल गया है। लोग आखिर अपना गुस्सा प्रकट करेंगे या नहीं? पहले
अमेरिका के इशारे पर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद फैलाया,
अब वही आतंकवाद मियां के सिर मियां की जूती बन गया है। 50 हजार से ज्यादा
पाकिस्तानी मारे गए हैं। बेनजीर भुट्टो के अलावा कई मंत्री, मुख्यमंत्री,
राज्यपाल और नेता भी आतंक के शिकार हुए हैं। इसी आतंक को जनरल कयानी
पाकिस्तान का सबसे बड़ा और अंदरूनी दुश्मन बता रहे हैं। वे कह रहे हैं कि
अब पाकिस्तान को एक नए फौजी सिद्धांत
के मुताबिक काम करना पड़ेगा। अंदरूनी दुश्मन से निपटने की तैयारी करनी
पड़ेगी। इसका यह अर्थ लगाना जल्दबाजी ही मानी जाएगी कि भारत के प्रति
पाकिस्तानी फौज का नजरिया रातोंरात बदल गया है। लेकिन अब आशा की जानी चाहिए
कि भारत से संबंध-सुधार के नेताओं के प्रयासों में फौज कम से कम अड़ंगा
लगाएगी। यूं भी ओसामा बिन लादेन कांड, महरान अड्डे और रावलपिंडी मुख्यालय
पर आतंकी हमले जैसी कई घटनाओं ने पाकिस्तानी फौज की छवि का कचूमर निकाल
दिया है। यदि पाकिस्तानी फौज और विभिन्न मजहबी तत्व अपने दिमागों पर पड़े
भारत-घृणा के परदे को हटा सकें, तो पाकिस्तान को एक समृद्ध, सबल और
शांतिपूर्ण देश बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। पिछले चार-पांच वर्षों में
फौज के साथ-साथ पाकिस्तान के नेताओं की इज्जत भी पैंदे में बैठ गई है।
इसीलिए क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान और कनाडा से आए हुए डॉ. ताहिर उल
कादरी जैसे लोगों के पीछे आजकल लाखों लोगों की भीड़ जमा हो रही है। यदि
पाकिस्तान की फौज और नेता मिलकर अब भी यही सपना पाले हुए हैं कि उन्हें
भारत-घृणा की नाव पार ले जाएगी तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे पाकिस्तान में
ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया जैसा नजारा देखें।
भारत-घृणा के भाव ने ही भारत और पाकिस्तान के बीच नकली शक्ति-संतुलन
के सिद्धांत को जन्म दिया। भारत की बराबरी करने के चक्कर में पाकिस्तान ने
परमाणु बम तक बना डाला। उसे इस्लामी बम का नाम दे दिया। भारत के विरुद्ध
घृणा फैलाने के लिए उसने इस्लाम का दुरुपयोग किया। पाकिस्तान को
'निजामे-मुस्तफा' बनाने के बहाने आतंकवाद का गढ़ बना दिया। अब जनरल कयानी
और प्रधानमंत्री रजा परवेज अशरफ कहते हैं कि हमारी फौज तो भारत से लडऩे के
लिए बनी थी, आतंकवाद से लडऩे के लिए नहीं। अब भी इन दोनों ने नाम लेकर नहीं
कहा है कि हमें भारत से खतरा नहीं है। बस इशारा किया है। जरा वे आगे बढ़ें
और खुलकर भारत से दोस्ती की बात कहें, फिर देखें कि पाकिस्तान का रातोंरात
रूपांतर होता है कि नहीं ।
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