बुधवार, 30 जनवरी 2013

मुझे गाँधी जी पसंद नहीं है क्यों ?

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इस लिंक को डाउनलोड करे और पढ़े  की गाँधी जी की हत्या क्यों हुई ?

आज महात्मा गाँधी जी की पुन्य तिथि है ! मैं बारम्बार नमन करता हु गाँधी जी को पर आज तक कुछ प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला मुझे ..कौन देगा इस प्रश्नों का उत्तर ?

1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता.|
                                            कुछ तथ्य –
1 - एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू ओरतों के बलात्कार हुए) और यह सब हुआ गाँधी के खिलाफत आन्दोलन के कारण |

2 – 1920... तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर आन्तरिक विरोध के बाद भी एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला

3 - गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन रहे।”
”उत्तर में यह कहना शुरू कर दिया कि - मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया सिर्फ मारा गया जबकि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।

4 – इतने बड़े दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोगली नीत पर कोई फर्क नहीं पड़ा मुसलमानों को खुश करने के लिए इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। “
5 - गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम किया |
6 - श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए |
7 - महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ एनी नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ ‘ |

8 - महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्त करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी ‘

9 – खिलाफत आन्दोलन का समर्थ कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था |

10 - डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था था – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी था कुछ कंग्रेस्सी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया | एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे की हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुस्त करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए ”

11 - डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘भारत का बिभाजन ‘ के प्रष्ठ १८७ पर गाँधी जी पर प्रहार करते हुए लिखा था :
‘गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने मैं चुकते नहीं थे किन्तु गाँधी जी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया | उन्होंने चुप्पी साढ़े राखी | ऐसी मानसिकता का केवल इस तर्क पर ही विश्लेषित की जा सकती है की गाँधी जी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए कुछ हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था (उसी पुस्तक के प्रष्ठ १५७ पर )

12 - मालाबार और मुल्तान के बाद सितेम्बर १९२४ मैं कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीसाद अत्याचार ढाए | कोहाट के इस दंगे मैं गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रिधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था ‘ खिलाफत आन्दोलन मैं मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुसह्परिणाम सामने आ रहे हैं की जगह जगह मुस्लमान घोर पस्विकता का प्रदर्शन कर रहे हैं ‘

महात्मा गाँधी ने 1919 ई. में 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया। खिलाफत के प्रश्न को भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाकर गांधी जी ने उलेमा वर्ग को प्रतिष्ठा प्रदान की और विशाल मुस्लिम समाज की मजहबी कट्टरता को संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर बढ़ने का अवसर प्रदान किया।
अगर खिलाफत आन्दोलन नहीं होता तो मुस्लिम लीग का वजूद एक क्षेत्रिय्र दल जैसा ही रहता और कभी बटवारा न हुआ होता
हम कह सकते हैं की मोपला और खिलाफत आन्दोलन के कारण ही मुस्लिम नेताओं को आधार मिला देश के बटवारे का हिन्दुओं के कत्लेआम का |
खिलाफत आंदोलन ने आम मुस्लिम समाज में राजनीतिक जागृति पैदा की और अपनी शक्ति का अहसास कराया।
गांधी जी के नेतृत्व में हिन्दू समाज समझ रहा था कि हम राष्ट्रीय एकता और स्वराज्य की दिशा में बढ़ रहे हैं और मुस्लिम समाज की सोच थी कि खिलाफत की रक्षा का अर्थ है इस्लाम के वर्चस्व की वापसी।
यह सोच खिलाफत आंदोलन के प्रारंभ होने के कुछ ही महीनों के भीतर अगस्त 1921 में केरल के मलाबार क्षेत्र में वहां के हिन्दुओं पर मोपला मुसलमानों के आक्रमण के रूप में सामने आयी। हिन्दुओं के सामने "इस्लाम या मौत" का विकल्प प्रस्तुत किया गया।
एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू ओरतों के बलात्कार हुए) सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में "टाइम्स आफ इंडिया" में जो खबर छपी वह इस प्रकार है-
"विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया। उन्हें अल्पकालिक पत्नी के रूप में इस्तेमाल किया। हिन्दू महिलाओं को डराकर उनके साथ बलात्कार किया। हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया।"

जबकि मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के अमदाबाद अधिवेशन में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा-

"मोपला प्रदेश दारुल अमन नहीं रह गया था, वह दारुल हरब में तब्दील हो गया था। मोपलाओं को संदेह था कि हिन्दू अंग्रेजों से मिले हुए हैं, जबकि अंग्रेज मुसलमानों के दुश्मन थे। मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने कुरान और तलवार का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह स्वैच्छिक मतान्तरण है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।"
(राम गोपाल-इंडियन मुस्लिम-ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157)

यद्यपि इस आंदोलन की पहली मांग खलीफा पद की पुनस्र्थापना तथा दूसरी मांग भारत की स्वतंत्रता थी। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा0 हेडगेवार इसे ‘अखिल आफत आंदोलन’ तथा हिन्दू महासभा के डा0 मुंजे ‘खिला-खिलाकर आफत बुलाना’ कहते थे; पर इन देशभक्तों की बात को गांधी जी ने नहीं सुना।

कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण का जो देशघाती मार्ग उस समय अपनाया था, उसी पर आज भारत के अधिकांश राजनीतिक दल चल रहे हैं।

इस आंदोलन के दौरान ही मो0 अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया। इसी बीच खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद अंग्रेजों की शरण में आकर माल्टा चले गये। आधुनिक विचारों के समर्थक कमाल अता तुर्क नये शासक बने। देशभक्त जनता ने भी उनका साथ दिया। इस प्रकार खिलाफत आंदोलन अपने घर में ही मर गया; पर भारत में इसके नाम पर अली भाइयों ने अपनी रोटियां अच्छी तरह सेंक लीं।
अब अली भाई एक शिष्टमंडल लेकर सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज से खलीफा बनने की प्रार्थना करने गये। शाह ने तीन दिन तक मिलने का समय ही नहीं दिया और चैथे दिन दरबार में सबके सामने उन्हें दुत्कार कर बाहर निकाल दिया।

भारत आकर मो0 अली ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये। इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी; पर वहां उनके मजहबी भाइयों ने उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली। वापस लौटते हुए उन्होंने भी देश भर में दंगे और लूटपाट की।

कभी कभी इतिहास अपने आप को दोहराता है | क्या कांग्रेस ने तुस्टीकरण की नीति महात्मा गाँधी से सीखी थी | इसके लिए मैं इतिहास के पन्नों के कुछ अंश आपके सामने रखना चाहता हूँ |

क्या महात्मा गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम नहीं किया था ?

प्रथम विश्व युद्ध मैं जब स्थिति बदली तो तुर्की अंग्रेजों के विरुद्ध और जर्मनी के पछ मैं हो गया | विश्व युद्ध मैं जर्मनी की पराजय के पश्चात अंग्रेजों ने तुर्की को मजा चखने के लिए तुर्की को विघटित कर दिया | अंग्रेज तुर्की के खलीफा के विरोद मैं सामने आ गए | मुसलमान खलीफा को अपना नेता मानते थे | उनमे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की लहर दौड़ गई |

भारत के मुस्लिम नेताओं ने इस मामले को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध सन १९२१ मैं “खिलाफत आन्दोलन” शुरू किया | मुस्लिम नेताओं तथा भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए गाँधी जी ने मोतीलाल नेहरु के सुझाव पर कांग्रेस की ओर से खिलाफत आन्दोलन के समर्थन की घोषणा की |

श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए | गाँधी जी खिलाफत आन्दोलन के खलीफा ही बन गए | मुसलमानों व कांग्रेस ने जगह जगह प्रदर्शन किये | ‘अल्लाह हो अकबर’ जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी|

महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ एनी नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्वा देता हूँ ‘
भले ही भारतीय मुसलमान खिलाफत आन्दोलन करने के वावजूद अंगेजों का बाल बांका नहीं कर पाए किन्तु उन्होंने पुरे भारत मैं मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ को जहरीले सर्प की तरह जिन्दा कर डाला |

खिलाफा आन्दोलन की की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश मैं दंगे करने शुरू कर दिए |

केरल मैं मालावार छेत्र मैं मुस्लिम मोपलाओं ने वहां के हिन्दुओं पे जो अत्याचार ढाए, उनकी जिस बर्बरता से हत्या की उसे पढ़कर हरदे दहल जाता है | हिन्दू महासभा के नेता स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने आगे चलकर मालावार छेत्र का भर्मद कर वहां के अत्याचारों व हत्याकांड की प्रस्थ्भूमि पर ‘मोपला’ नामक उपन्यास लिखा था |

खिलाफा आन्दोलन का समर्थ कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था | मोपलाओं द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्या का जब आर्य समाज तथा हिन्दू महासभा ने विरोध किया तब भी गाँधी जी मोपलाओं को ‘शांति का दूत’ बताने से नहीं चुके | महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्त करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी ‘

अ. भा. कांग्रेस की अध्याछा रही परम विदुषी डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था था – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी था कुछ कंग्रेस्सी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया | एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे तेही की हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुस्त करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए ”

महात्मा गाँधी कांग्रेसी मुसलमानों को तुस्त करने के लिए मोपला विद्रोह को अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह बताकर आततायिओं को स्वाधीनता सेनानी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे जबकि मोपला मैं लाखों हिन्दुओं की नश्रंस हत्या की गयी और २०, ००० हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर मुस्लिम बनया गया |

मोपलाओं द्वारा किये गए जघन्य अत्याचारों पर डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘भारत का बिभाजन ‘ के प्रष्ठ १८७ पर गाँधी जी पर प्रहार करते हुए लिखा था :
‘गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने मैं चुकते नहीं थे किन्तु गाँधी जी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया | उन्होंने चुप्पी साढ़े राखी | ऐसी मानसिकता का केवल इस तर्क पर ही विश्लेषित की जा सकती है की गाँधी जी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए कुछ हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था (उसी पुस्तक के प्रष्ठ १५७ पर )
मालाबार और मुल्तान के बाद सितेम्बर १९२४ मैं कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीसाद अत्याचार ढाए | कोहाट के इस दंगे मैं गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रिधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था ‘ खिलाफत आन्दोलन मैं मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुसह्परिणाम सामने आ रहे हैं की जगह जगह मुस्लमान घोर पस्विकता का प्रदर्शन कर रहे हैं ‘

दिसम्बर १९२४ मैं बेलगाँव मैं प. मदनमोहन मालवीय जी की अध्याछ्ता मैं हुए हिन्दू महासभा के अधिवेशन मैं कांग्रेस की मुस्लिम पोषक नीति पर कड़े प्रहार कर हिन्दुओं को राजनीतिक द्रस्ती से संगठित करने पर बल दिया गया |

इतिहासकार शिवकुमार गोयल ने अपनी पुस्तक मैं कांग्रेस की भूमिका का उल्लेख किया है |यह देश का दुर्भाग्य रहा है की कांग्रेस ने इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं बोला | जब आर्य समाज, हिन्दू महासभा और अन्य हिन्दू संगठनो ने सुधिकरण अभियान चलाया तो यह लोग कट्टरपंथियों की नजरों मैं काँटा बन गए| स्वामी श्रधानंद जी शिक्षाविद तथा आर्य प्रचारक के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी थे | वह कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी थे |

स्वामी जी ने और लाला लाजपत राय ने यह महसूस किया की अगर मुस्लिमो और इसाईओं को हिन्दुओं के निर्बाध धर्मान्तरण की छूट मिलती रही तो यह हिंदुस्तान की एकता के लिए भरी खतरा सिद्ध होगा | स्वामी श्रधानंद जी , लाला लाजपत राय जी और महात्मा हंसराज जी ने धरम परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को पुन: वैदिक धरम मैं शैल करने का अभियान शुरू किया |

कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने इनके द्वारा चलाये जा रहे शुधि आन्दोलन का विरोध शुरू कर दिया | कहा गया की यह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर कर रहा है . गाँधी जी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया की वे इस अभियान मैं भाग ना लें | स्वामी श्रधानंद जी ने उत्तर दिया, ‘मुस्लिम मौलवी’ तबलीग’ हिन्दुओं के धरमांतरण का अभियान चला रहे हैं ! क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी ? कांग्रेस मुस्लिमों को तुस्त करने के लिए शुधि अभियान का विरोध करती रही लेकिन गांधीजी और कांग्रेस ने ‘तबलीग अभियान ‘ के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा | स्वामी श्रधानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया |

स्वामी श्रधानंद जी शुधि अभियान मैं पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए | ६० मलकाने मुसलमानों को वैदिक (हिन्दू) धरम मैं दीक्षित किया गया | उन्मादी मुसलमान शुधि अभियान को सहन नहीं कर पाए | पहले तो उन्हें धमकियां दी गयीं, अंत मैं २२ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली मैं अब्दुल रशीद नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली |

स्वामी श्रधानंद जी की इस निर्संस हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला परन्तु गाँधी जी ने यौंग इंडिया मैं लिखा , ” मैं भिया अब्दुल रशीद नामक मुसलमान, जिसने श्रधानंद जी की हत्या की है , का पछ लेकर कहना चाहता हूँ , की इस हत्या का दोष हमारा है | अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसका उत्तरदायित्व हम लोगों पर है | देशाग्नी भड़काने के लिए केबल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं | ”
स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों २० जनवरी १९२७ के ‘श्रधानंद’ के अंक मैं अपने लेख मैं गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा – गाँधी जी ने अपने को सुधा हर्दय , ‘महात्मा’ तथा निस्पछ सिद्ध करने के लिए एक मजहवी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है | मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं |

गाँधी जी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों मैं लेख लिखकर स्वामी श्रधानंद जी तथा आर्य समाज के ‘शुधि आन्दोलन ” की कड़ी निंदा की | दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के बलात धरमांतरण के विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया |

मोपला कांड के चश्मदीद गवाह रहे केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी माधवन नॉयर अपनी किताब 'मालाबार कलपमÓ में लिखते हैं कि मोपलाकांड में हिन्दुओं का सिर कलम कर थूवूर के कुओं में फेंक दिया गया।

क्या ऊपर की लाइन पढ़ के थोड़ी तकलीफ हुई तो एक बात याद रखो “मुस्लिम करें तो अल्लाह अल्लाह हिन्दू करें तो बहुत बुरा बहुत बुरा “ ये गांधी का सिद्धांत था | आज कांग्रेस तथा अन्य दलों का है कल भी होगा ऊपर लिखे अन्य महापुरुषों के विचार पढ़े सत्य अंधेरे को चीर के बाहर निकलता दिखाई देगा |

"जिगर मैंने छुपाया लाख अपना दर्दे-गम लेकिन।
बयाँ कर दी मेरी सूरत ने सारी कैफियत दिल की।।"
नोट - जिसे दर्द हो इतिहास की किताबे पढ़े सभी तथ्य किताबों से ही निकाले हैं और ये सब बोलने और लिखने वाले बिके हुए नहीं थे | सभी का स्वतंत्रता में योगदान है और सभी अभिनंदनीय हैं |

तिलक,तराजू और तलवार – इनको मारो जूते चार ???

तिलक,तराजू और तलवार – इनको मारो जूते चार ..इस से बढ़कर घटिया बयानबाजी क्या हो सकती है ...?
अगर आप ये लिख कर गूगल देवता पे खोज करोगे तो आपके सामना कांशी राम जी और मायावती जी के चित्र भी आ जायेंगे क्योंकि ये नारा देने वाले यही थे।
और ऐसे ही कई सारे बयान और नेतागण भी देते रहते हैं लेकिन किसी पे आज तक केस दर्ज नहीं हुया वहीँ अगर कोई अन्य व्यक्ति ऐसा कुछ कह दे तो तुरंत उस पर केस दर्ज कर दिए जाते हैं। सब जानते और मानते हैं की भर्ष्टाचार कोई विशेष समुदाय नहीं करता,,लगभग सब इसमें लिप्त हैं लेकिन
क्या हर चीज की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बस इसी राजनीतिज्ञ वर्ग को रह गई है ..?
जब हम किसी जाती के ख़ास को कुछ कह देते है गलती से भे तो हमारे ऊपर SC ST एक्ट लागू कर दिया जाता है और हमें जेल भेजने के लिए दबाब बना देते है ये सेकुलर नेता ....उस समय पर मायावाती जी या कासीराम जी पर कोई केस क्यों नह...ीं चलाया गया था ? जबकि आज आशीष नंदी जी के उपर sc st एक्ट के अंतर्गत केस दायर कर दिया .....

मायावती जी आज भी खुलेआम घूम रही है क्यों ?

क्या सभी नियम हम सवर्णों को सताने के लिए ही बनाए गए ?

क्या ये बदले की राजनीती नहीं है ?

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

आखिर हिन्दू होने का खामियाजा कब तक भुगतेगे?


दामिनी बलात्कार काण्ड में सबसे जादा क्रूरता करने बाले अभियुक्त मोहम्मद अफरोज को Juvenile Court द्वारा नाबालिग माने जाने तथा उसकी हड्डियों की जाँच की दिल्ली पुलिस की माँग को खारिज करने के विषय में मुझे अपने मित्र अजित भोसले के माध्यम से कुछ तथ्य मिले है ... बो तथ्य आप सबके लिये पेश है क्योकि ये विषय सार्वजानिक चर्चा का होने के साथ उस घटना से सम्बंधित है जिसमे एक निर्दोष को वीभत्स बलात्कार झेलने के साथ अपनी जान भी गवानी पड़ी थी ................!!!


देश के बुद्धिजीवियों / कानूनविदों से विशेषकर छद्म धर्मनिरपेक्षता वादियों से सवाल .....
सवाल का जवाब देने से पहले यह ध्यान रखें कि
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जिस तथाकथित नाबालिग ने सबसे ज्यादा क्रूरता दिखाई... बेरहमी से पीटा और कई बार दुष्कर्म किया... लोहे की रॉड से पेट की आतें तक फाड़ दी ..जो उस मासूम की मौत के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, उसे भारतीय न्यायपालिका ने नाबालिग मान लिया है... ज्यादा से ज्यादा 3 साल की सजा होगी वो भी तब जब जुर्म साबित हो ! यही वह नाबालिग है जिसने उस पीड़िता को बस में यह कह कर बैठाया था कि "" दीदी आ जाईये हम आपको छोड़ देंगे ""
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1. भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के अनुसार 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी (नाबालिग - Juvenile) के साथ पति द्वारा किया गया सम्भोग भी बलात्कार है फिर एक नाबालिग (Juvenile) के द्वारा 18 वर्ष से अधिक महिला / कन्या के साथ ज़बरदस्ती किया गया यौनाचार / बलात्कार के आरोप की सजा के निर्धारण के लिए 18 वर्ष की आयु आवश्यक क्यों ?????
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2. इस देश मे मुस्लिम लॉ (Muslim Law) के अनुसार नाबालिग 15 साल की मुस्लिम लड़की का निकाह / शादी मान्य है । तो नाबालिग (Juvenile) बलात्कारी (Rapist) को सजा क्यो नहीं ????? बलात्कार का अपराध स्वयेमेव अपराधी की आयु प्रमाणित करता है जो की उसके वयस्क (ADULT) होने का प्रमाण है । क्या कानूनविद / समाजशास्त्री / और वैज्ञानिक यह मानते है की बलात्कार नाबालिग (Juvenile) और वयस्क (ADULT) दोनों द्वारा किया जा सकता है, अगर ऐसा है भी तो इस घ्रणित अपराध की सजा के लिए आयु निर्धारण क्यों ?????
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3. उच्चतम न्यायालय द्वारा " शाहबानो प्रकरण " में दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) के अंतर्गत दिए गए निर्णय को तुष्टिकरण की राजनीति के तहत Muslim Personal Law - दीवानी विधि (Civil Law) का हवाला देकर राजीव गांधी सरकार ने संविधान संशोधन के द्वारा उलट दिया था तो क्या बलात्कार जैसे घ्रणित और गंभीर अपराध के लिए सजा देने हेतु आयु निर्धारण ( दीवानी प्रक्रिया - Civil Procedure) को छोड़कर Muslim Criminal Law के सिद्धांत आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत (An eye for an eye, a tooth for a tooth) को अपनाकर सजा नहीं दी जानी चाहिए !
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4. भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार के अपराध से सम्बंधित है ! भारत में अपराध और अपराधशास्त्र का आधार है - आशय - Intention, दुराशय - Mens Rea, कार्य - Act और लोप - Omission जिसके अनुसार मोहम्मद अफरोज द्वारा अपराध किया गया फिर आयु का निर्धारण क्यों ???
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5. अगर मोहम्मद अफरोज को नाबालिग माना जायेगा तो अपराध के घटक के रूप दिल्ली सरकार और बस मालिक नहीं आयेंगे क्या ??? क्योंकि जब एक बाल श्रमिक को बस में नौकरी पर रखा गया और उच्चतम न्यायलय के आदेश और निर्देश के बावजूद काले शीशे (Tinted Glass) वाली बस सड़क पर दौड़ रही थी तो ज़िम्मेदार कौन ???????????
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6. अगर वोट की राजनीति के तहत मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की जा सकती है तो बलात्कार के आरोपी को सजा देने के लिए नाबालिग (Juvenile) की आयु 18 वर्ष से घटाकर 12 वर्ष क्यों नहीं की जा सकती है ????????

Source :- कुमार रमन श्रीवास्तव

!! 2600 साल पहले चलता था राम का सिक्का !!


  क्या भगवान राम कीजगह सिर्फ आस्था में है ??क्या रामायण महर्षि वाल्मीकि की कल्पना की उपज है ?? ये सवाल काफी समय से... लोगों को मथते रहे हैं।
इस इतिहास का एक पन्ना पहली बार खोला है एक मुस्लिम आर्कियोलॉजिस्ट ने।
राजस्थान के इस आर्कियोलॉजिस्ट ने देश के सबसे पुराने पंचमार्क सिक्कों से ये साबित कर दिया है कि राम में आस्था ढाई हजार साल पहले भी वैसी ही थी, जैसी आज है।
इतिहास में सबसे ज्यादा सिक्का, सिक्कों का ही चलता है। वो इतिहास को एक दिशा देते हैं। घटनाओं के सबूत देते हैं और यही सबूत बाद में इतिहास की किताबों में जुड़ जाते हैं। हिंदुस्तान के इतिहास के लिए ऐसी ही अहमियत है पंचमार्क सिक्कों की। वो सिक्के जिन्हें सबसे पुराना माना जाता है। ये हजारों साल पहले पीट-पीटकर बनाए गए।
इतिहासकार इन्हें आहत सिक्केभी कहते हैं। इन्हीं सिक्कों में कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने देशी-विदेशी आर्कियोलॉजिस्ट् स को करीब 100 साल तक उलझाए रखा।
उन पर नजर आती थीं तीन अबूझ मानव आकृतियां। आखिर वो कौन थे। उन्हें अब तक कोई नहीं पहचान सका था। इतिहासकार पिछली एक सदी से इस सवाल पर जूझते रहे लेकिन अब ये पहेली सुलझ गई है। विदेशी आर्कियोलॉजिस्ट जॉन ऐलन ने जिन्हें थ्री मैन कहा था उन्हें एक भारतीय ने पहचान लिया है। ये भारतीय हैं राजस्थान के आमेर किले के सुपरिटेंडेंट जफरुल्ला खां।
इनका कहना है कि अगर किसी की हिंदू संस्कृति और इतिहास पर पकड़ हो तो इस पहेली को सुलझाना मुश्किल नहीं। उनका दावा है कि ये आकृतियां राम, लक्ष्मण और सीता की हैं।
जफरुल्ला खां ने इस फैसले तक आने से पहले कई साल खोजबीन की। हिंदू मान्यताओं, रामायण और दूसरे धर्मग्रंथों को पढ़ा-समझा। साथ ही राम के चरित्र और पंचमार्क सिक्कों की बारीकी से पड़ताल की। जफरुल्ला ने पाया कि तीन आकृतियों में दो के एक-एक जूड़ा है जबकि एक की दो चोटियां हैं। तीसरी आकृति किसी महिला की लगती है।
ये महिला दूसरे पुरुष के बांयी ओर खड़ी है। हिंदू धर्मके मुताबिक स्त्री हमेशा पुरुष के बांयी ओर खड़ी होती है। तब जफरुल्ला खां इस नतीजेपर पहुंचे कि ये राम, सीता और लक्ष्मण के सिवा कोई नहीं हो सकता।
उनकी बात इससे भी साबित होती है कि सभी पंचमार्क सिक्कों पर सूर्य का निशान होता है लेकिन तीन मानव आकृतियों वाले इन सात तरह के पंचमार्क सिक्कों पर सूर्य का निशान नहीं मिला। इसकी वजह थी कि भगवान राम खुद सूर्यवंशी थे इसलिए अगर किसी सिक्के पर रामकी तस्वीर होती है, तो वहां सूर्य के निशान की जरूरत नहींहोती थी।
जफरुल्ला यहीं नहीं रुके। उन्होंने यूनानी और इस्लामिकसिक्कों में दिखाए गए धार्मिक चरित्रों को भी देखा-परखा। उनका दावा है कि हिंदू धर्म में राम, सीता और लक्ष्मण शुरू से ही आस्था के सबसे बड़े प्रतीक हैं। इसलिए पंचमार्क सिक्कों पर मौजूद ये थ्री-मैन भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ही हैं।
जफरुल्ला ने इन सिक्कों पर मौजूद एक और आकृति को पहचाना।उन्होंने इसे हनुमान की आकृति बताया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में उन्होंने अपनी खोज के नतीजे रखे। इसके बाद भारतीय मुद्रा परिषद ने जफरुल्ला का दावा मान लिया और उनका पेपर भी छाप दिया।
जफरुल्ला के दावे ने अब हकीकतका चोला पहन लिया है। उनकी खोज ने राम को इतिहास पुरुष बना दिया है। उन्होंने साबित कर दिया है कि राम कुछ सौ साल पुराने चरित्र नहीं हैं। आस्थाओं में राम ढाई हजार सालपहले भी थे और इसका सबूत हैं ये सिक्के। जफरुल्ला खां की इस खोज पर भरोसा करें तो तय हैकि ढाई हजार साल पहले भी राम की पूजा होती थी, यानी राम केवल रामायण में ही नहीं, इतिहास के दस्तावेजों में भी हैं।

देश का युवा जाग गया है क्या ?

देश का युवा जाग गया है क्या ?
भारत देश संभावनाओं का देश है और युवा वर्ग उन संभावनाओं को चरितार्थ करने का एक सशक्त माध्यम ऐसी स्तिथि में ये एक दुसरे के पूरक हुए और राजनीती का अर्थ है राज यानी साशन करने की सोच और एक मजबूत इंसान ही राज कर सकता है एक प्रगतिशील देश के निर्माण का दायित्व युवाओं पर है “गर हम देश की हालत बताने लंगेंगे तो पत्थर भी आसूं बहाने लगेंगे इंसानियत तो खो गयी है हैवानियत में कहीं इसे ढूढने में अब ज़माने लगेंगे “ युवा वर्ग अपने हक़ के लिए लड़ने के लिए हमेशा तत्पर नजर आता है आप अगर इन्टरनेट पर भी देखे तो आपको इस वर्ग के लोग ही सबसे अधिक सजग और क्रन्तिकारी विचार प्रस्तुत करते हुए मिलेंगे पर अगर जमीनी हकीकत देखि जाये तो जहाँ वास्तव में इनकी जरूरत है और जहाँ ये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं वहां मूल रूप से इनकी भागीदारी में एक नकरात्मक सोच नजर आती है .राजनीती में युवाओं के नाम पर पूर्व और तात्कालिक मंत्रियों के बेटे और बेटियां ही नजर आते हैं .आप एक विद्यालय में या विश्वविद्यालय में जाएँ तो आप पाएंगे की राजनीती में सक्रिय भूमिका निभाने को कोई भी विद्यार्थी शायद ही तैयार हो.हम खुद अधिकार वाला स्थान नहीं पाना चाहते हैं और सोचते हैं की कोई और हमारी तकदीर बदल देगा पड़ोस में चोरी होती है तब भी हम चुप बैठ कर उस दिन का इन्तेजार करते है जब वो चोर हमारे घर को अपना निशाना बनायेंगे हम किसी भी हमले के बाद चार बार चिल्लाते हैं और अपने काम में लग जाते हैं .जो लोग सही तरीके से विरोध करने की समझ रखते हैं वो घर में बैठे रहते हैं और कुछ मुर्ख लोग सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाकर अपना विरोध दर्ज करते हैं .किसी सामाचार चैनल में चल रहे कार्यक्रम के दौरान युवा वर्ग बहुत जोर शोर से अपनी बात रखता है पर वोट करने के समय अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती में लगा रहता है .विकास के लिए हमे आगे आना होगा अगर हमे ये मालूम हैं की चीजें कैसे बदल सकती हैं तो क्यों न हम आगे आयें और हम उसे बदले न की कुछ होने का इन्तेजार करें -“अगर हम समस्या का समाधान नहीं हैं तो हम भी समस्या का हिस्सा हैं “

रविवार, 27 जनवरी 2013

!! सत्य सिर्फ सत्य होता है FB में दुष्प्रचार करने वालो से सावधान रहे !!

      कल रात में मेरे FB मित्र श्री मान अशोक पांडे  जी से किसी बिषय पर चर्चा हो रहे थे उस समय पर अशोक पण्डेजी ने मुझे एक संजीवनी बूटी दिया ..बस वही  हे से यह ब्लॉग लिखने की प्रेरणा  मिली  .धन्यवाद  श्री मान अशोक पांडे जी को !

नोट----.यह ब्लॉग उन लोगो को समर्पित है जो मेरे खिलाफ दिन भर FB में दुष्प्रचार करते रहते  है !


    जिस देश की संस्कृति में सीता सावित्री को आदर्श माना जाता है, दुर्गा लक्ष्मी की पूजा होती है उसी देश में महिलाओं पर सर्वाधिक अत्याचार हो रहे हैं. क्यों ?   

       शायद आजदी के पूर्व अंग्रेजों के राज में महिलाएं ज्यादा सुरक्षित थी, अंगे्रजों के राज में कानून का भय था, भ्रूण हत्या या दहेज पाप समझा जाता था और डाक्टरी पेशा सेवा का माध्यम था..पर आज ??

ज्यादा समय नहीं हुआ है, चालीस वर्ष पूर्व तक गांवों के लोग दूध, घी में मिलावट पाप समझते थे किन्तु आज खुलआम मिलावट कर रहे है क्यों ? 

 आज से कुछ साल पहले  पानी बेचने की तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था.पर आज ?

आज का इंसान बदल गया है ...! प्रतिवर्ष लाखों कन्याएं जन्म लेने से ही पूर्व मार दी जाती है. दहेज दानव के कारण प्रतिवर्ष सैकड़ों विवाहिता मौत को गले लगा रही है और डाक्टरी पेशे से दानवी रुप धारण करलिया है...!

 आज से पचपन वर्ष पूर्व पं. प्रदीप ने एक गीत लिखा था

""देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई, भगवान कितना बदल गया इंसान... चांद न बदला सूरज न बदला न बदला रे आसमान कितना बदल गया इंसान""

 भारत सरकार का प्रतीक चिन्ह सत्यमेव जयते..! याने सत्य की विजय.. सत्य के बारे में कहा जाता है कि ....

"सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं "

श्री  गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी मानस में लिखा है कि ...

" धरम न दूसर सत्य समाना, आगाम निगम पुराण बखाना "

 शिर्डी के साईं  बाबा और गुरु नानक सहित सिखों के दसों गुरुओं ने सत श्री अकाल का नारा दिया... गीता, कुरान, बाइबल, गुरग्रंत साहिब सभी का सार है सत्य..! .बापू ने इसी सार को अपने जीवन का ध्येय बनाया...! और सत्य और अहिंसा के बल पर आजादी हांसिल की. अंग्रेज भी गांधीजी के सत्याग्रह से परेशान होकर देश छोड़ कर चले गए ? लेकिन इस देश में जो काले अंग्रेज  सत्तात में आए, उन्होंने सत्य और अहिंसा को छोड़ कर असत्य और हिंसा के बल पर राज किया और कर रहे हैं... सभी जानते हैं कि जितने भी राजनीतिक दल है वे सब सत्ता का सुख भोग चुके हैं, और सभी भ्रष्ट सिद्ध हुए हैं.. याने एक भी राजनेता सत्यवादी नही है...?
             
  हमारे आधुनिक प्रवचनकार जो अपने को संत कहलाने का विज्ञापन करते हैं वे भी अरबपति बन रहे हैं... उनके प्रवचनों के बाद देश में असत्य वातावरण बना, हिंसा बढ़ी और  ऩारी उत्पीड़ऩ.और बढ़ा क्यों ?

  फिर राजनेताओं और इन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों में अंतर क्या है ?
     आखिर यह कब तक चलेगा, कब तक झूठ, फरेब और ब्याभिचार  के बल पर सत्ता प्राप्त की जाती रहेगी.. और जिस देश में नारी को पूजा जाता है उस देश में नारी के साथ कब तक अत्याचार होते रहेंगे...कब तक ..?
             यह जो समाज का पतन हो रहा है उसके लिए सरकार कम समाज ज्यादा दोषी है, हम हर काम के लिए सरकार को दोषी बताते हैं... बलात्कार व्यक्ति करता है बदनाम पुलिस होती है, उसका मतलब यह नहीं कि पुलिस वाले सत्यवादी राजा हरिशचंद के वंशज है, सवाल यह उठता है कि हर समाज चाहे तो वह इसे रोक सकता है, जैसा कि साठ वर्ष पूर्व तक था, कि समाज में बुरा काम करने वाले का बहिक्षार होता था, आज क्यों नहीं होता ? हम चाहे कितनी तरक्की कर लें, कितना धन कमा लें, बड़े बड़े आलीशन भवन बना लें और लक्झरी कारों में घूमे..! लेकिन जब तक व्यक्ति का आचरण नहीं  बदलेगा, तब तक यह नकली तरक्की बेकार है, इसका कोई मूल्य नहीं... हर क्षेत्र में मूल्यों में गिरावट आ रही है, इस गिरावट को रोकने के लिए कोई गांधी, विवेकानंद, राजाराम मोहनराय पैदा नहीं होंगे.. यदि आज मैं या आप  समाज को आइना दिखा रहे हैं तो हमें समझना होगा कि डाक्टरी पेशा एक पवित्र पेशा है, डाक्टर को हम भगवान के बाद दूसरा व्यक्ति मानते हैं... इस पवित्र पेशे को अपवित्रत करने वालों का बहिषकार होना चाहिए और बहिषकार होना चाहिए उन जनप्रतिनिधियों का जो झूठे और मक्कार है...बहिषकार होना चाहिए नारी पर अत्याचार करने वालों का.. यह काम सरकार से ज्यादा समाज का है, क्योंकि समाज ही सरकार को चुनती है, जिस दिन समाज यह काम करने लगेगा उसी दिन सत्या की जीत होगी...!
          और बहिस्कार  उन  लोगो  का  भी  होना  चाहिए  जो  समाज   में किसी  भी  तरह  का  दुष्प्रचार  करते  है किसी  के बारे  में झूठा प्रचार करते है .किसी के भी चरित्र हनन की नापाक कोशिश करते है.!

                 आज भी देश की 90 प्रतिशत जनता बुराई को पसपंद नहीं करती, लेकिन बुराई के खिलाफ एक जुट भी नहीं होती क्यों इस बिषय पर गहन चिंतन की जरुरत है जिस दिन बुराई से लड़ऩे वाले एकजुट हो जाएंगे, उसी दिन बुराई समाप्त हो जाएगी.. रावण को मारा तो श्रीराम जी ने था, लेकिन उनके पीछे थी असंख्य वानर सेना...गांधी या जयप्रकाश के आंदोलन में जितने भी लोग शामिल हुए वे सभी अराजनीतिक थे..उन सभी का ध्येय था बुराई के खिलाफ एकजुट होने का.! तो आइये ऐसे लोगो का बहिस्कार  करे जो सामाज  में किसी भी तह का अपराध करते है ..अपराध छोटा हो बाद .अपराध होता है ...यदि हम अपराध को आरम्भ  में ही रोक ले तो ना तो अपराध बढे  ,,और न ही अपराधी बढे !


       अंत में उन लोगो को मेरा यहे कहना है की "सत्य परेसान हो सकता है पराजित नहीं " बंधू जितना मन चाहे जोर लगा लो ..मुझे परेसान तो कर सकते है ..पर मुझे मेरे रस्ते से भटका नहीं सकते है ...

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

!! आतंकवाद एक संगठित विचारधारा है..!!

आतंकवाद एक संगठित विचारधारा है। एक निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किये गये हिंसात्मक तथा अनैतिक कार्यों द्वारा सरकार पर दबाव डालना अतंकवाद है। यह एक ऐसा सैद्धान्तिक तरीका है जिसके द्वारा कोई संगठित गिरोह अपने घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का योजनाबध्द ढंग़ से इस्तेमाल करता है। आतंकवादी समूह समाज में डर एवं दहशत का माहौल पैदा कर सरकार से अपनी मांगे मनवाते हैं।
आतंकवाद आज अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। यह किसी एक देश से सम्बन्धित नहीं है। विश्व के लगभग 62 देश आतंकवाद से ग्रस्त हैं। लेकिन आतंकवाद की कीमत भारत को ही सबसे ज्यादा चुकानी पड़ी है। मोस्ट वांटेड आतंकी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर पूरे विश्व के लोग राहत की सांस ले रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह नहीं है। उसके मारे जाने मात्र से आतंकी गतिविधियों में कोई कमी आने वाली नहीं हैं। क्योंकि आतंकवाद कुछ लोगों का मिशन बन चुका है और इनका संगठनात्मक ढांचा आज भी मौजूद है इसलिए संगठनात्मक ढांचे को ध्वस्त किये बिना आतंकवाद पर लगाम लगाना सम्भव नहीं है। वे दारूल हरब को दारूल इस्लाम में परिवर्तित करना चाहते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति में वे लगे हैं। आज एक लादेन मारा गया है और रोज सैकड़ों ओसामा पैदा हो रहे हैं तो इन लादेनों से निजात कैसे मिल सकती है। भारत में तो लादेनों की कमी नहीं है। हर गली एवं शहर में आपको एक लादेन मिल जायेगा। इसके लिए जरूरी है कि इसके मूल में जाना होगा और आतंकवादी विचारधारा को खत्म करना होगा। अन्यथा जब तक इस विचारधारा पर चोट नहीं की जायेगी तब तक ओसामा बिन लादेन जैसे ख्रूखांर आतंकवादी पैदा होकर विश्व समुदाय के समक्ष एक चुनौती के रूप में सामने आते रहेंगे। इसके खात्मे के लिए पूरे विश्व को एक साथ खुलेमन से पहल करनी होगी। अमेरिका को भी अपना रवैया स्पष्ट करना होगा। वह पूरे विश्व में केवल अपनी दादागीरी चलाना चाहता है। वह दूसरे देशों को अस्त्र, शस्त्र एवं कठोर कानून निर्माण एवं प्रयोग से रोकता है और शान्ति का पाठ पढ़ता है उल्टे वह इसके विपरीत आचरण करता है। वह जानता है कि अमेरिका से दी जाने वाली रकम पाक आतंकी गतिविधियों को रोकने के बजाए उसको बढ़ाने में मद्द करता है, लेकिन फिर भी अमेरिका इस को रोकने के बजाए इसमें इजाफा ही करता जा रहा है। वैसे ओसामा के मारे जाने से उसको दी जाने वाली सहायता राशि रोकने की बातें उसके ही देश में उठने लगी हैं।
ओसामा बिन लादेन पाक की मिलिट्री अकादमी की नाक के नीचे मारे जाने से उसका सच एक बार फिर सामने आ गया है। वैसे भारत बार-बार अमेरिका से यह बात उठाता रहा है कि पाक अपने यहाँ आतंकी कैम्पों को बन्द नहीं कर रहा है और अमेरिका से प्राप्त धनराशि को भारत के खिलाफ प्रयोग करता है लेकिन अमेरिका इस बात हमेशा को नजरन्दाज करता रहा है। इस समय पाक किंकर्तव्‍यविमूढ़ की स्थित में है। एक तरफ उसको मुस्लिम कट्टरपंथियों का दबाव झेलना पड़ रहा है तो दूसरी ओर विश्व समुदाय का आक्रोश। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. और पाकिस्तानी सेना का आतंकवादियों से सांठगांठ जगजाहिर है। 1947 में पाकिस्तान ने नारा लगााया था कि ‘कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है’ एवं हंस के लिया है पाकिस्तान लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान’। इस मंसूबे को अंजाम देने के लिए उसने 1947 में कबाइलियों के वेश में भारत पर हमला कर दिया। लेकिन उनको शिकस्त खानी पड़ी। फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान भारत की 80 हजार वर्ग कि.मी. भूमि पर जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं। जो कि जम्मू कश्मीर की कुल भूमि का 40 प्रतिशत बनता है। कब्जा करने में सफल रहा। 1965 में फिर पाकिस्तान ने हमला किया लेकिन उस समय भी हमारी सेनाओं ने पाकिस्तान को लाहौर तक खदेड़ दिया था। 1971 में फिर पाकिस्तान ने प्रयास किया, भारत ने पाकिस्तान को तोड़ कर बंग्लादेश बना दिया। उस युध्द में पाकिस्तान की 93000 हजार सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। तब पाक के ध्यान में आया कि प्रत्यक्ष युद्व मे भारत को हराना संभव नहीं है। तब पाकिस्तान के तत्कालीन अध्यक्ष जनरल जिया और विश्व के अनेक नेता तथा अनेक कट्टरपंथी मूवमेंट के नेता एकत्रित हुए और उन्होंने आई.एस.आई. चीफ के नेतृत्व में ‘आपरेशन टोपेक’ को जन्म दिया। जिसको प्रारम्भ में प्राक्सीवार कहा गया। भारत के सन्दर्भ में इसके दो स्लोगन थे। एक था कश्मीर तो बहाना है लाल किला निशाना है’ और दूसरा था ‘Let India should be braken to piece.’ आई.एस. आई. चीफ ने कहा हम भारत में इस प्रकार के आतंक की खेती करेंगे कि पूरा भारत हजारों से अधिक स्थानों से एक साथ रक्तस्राव कर रहा होगा। भयग्रस्त होगा, किंकर्तव्‍यविमूढ़ होगा और आपस में लड़ रहा होगा। इसलिए आपरेशन टोपेक के अन्तर्गत 1972 में इस आतंकवाद को उसने नाम दिया जिहादी आतंकवाद और इसके लिए उसने विभिन्न नामों से आतंकी संगठन खड़े किये गये। आज देश में जिहादी आतंकवाद के 90 गिरोह काम कर रहे हैं। इनका उद्देश्य किसी न किसी तरीके से भारत को कमजोर करना, दिशाहीन करना प्रमुख है।
जेहादी आतंकवाद से आज पूरा विश्व ग्रसित है। इस्लाम का पूरा इतिहास रक्तरंजित है। मुसलमानों ने विशष रूप से जो आक्रामक युध्द क्षमता प्राप्त की उसे जेहाद कहा गया। जब तक जमात ए इस्लामी जिहाद को गैर इस्लामी घोषित नहीं करती तब तक इस्लाम की तुलना आतंक के पर्याय के रूप में की जाती रहेगी। अल्लाह के नाम पर लडाई लडने को जिहाद कहते हैं। मदरसों में जिहाद एवं युद्व की शिक्षा दी जाती है। इस विचारधारा का उदय ही घृणा, हिंसा और छल कपट के लिए ही हुआ है। शाब्दिक अर्थ में जिहाद का अर्थ है- प्रयास इस्लाम ने जिहाद की अवधारणा को अल्लाह के उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुस्लिमों के बीच धर्मयुद्व के रुप में प्रस्तुत किया। जिहाद का वास्तविक अर्थ कुरान के शब्दों में इस प्रकार हैर् उनसे युद्व करो जो अल्लाह और कयामत के दिन में विश्वास नही करते जो उस पन्थ को स्वीकार नही करते जो सच का पन्थ है और जो उन लोगों का पन्थ है जिन्हें कुरान दी गई है और तब तक युद्व करो जब तक वह उपहार न दे दें और दीनहीन न बना दिये जायें पूर्णता झुका न दिये जायें’। सूरा 9 आयत 5 , गैर मुस्लिमों के विरुद्व युद्व ही जिहाद है। इस्लाम के अनुसार जिहाद अल्लाह की सेवा के लिए लडा जाता है। इस्लामी शब्दकोश में मुहम्मद साहब के उपदेश में जिनका विश्वास नही है उनके विरुद्व धर्मयुद्व ही जिहाद है। सूरा -2 आयत 193 में कुरान कहता है ‘उनके विरुद्व तब तक युद्ध करो जब तक मूर्ति पूजा पूर्णता: बन्द न हो जाय और अल्लाह के पंथ की विजय सर्वसम्पन्न न हो जाय।
पाकिस्तान हमारी एक तिहाई भूमि पर अवैद्य कब्जा किये हुए है और उसी भूमि पर आतंकी शिविर लगा कर उन्हें जिहाद का प्रशिक्षण देकर भारत के खिलाब प्रयोग करता है। यह सब भारत सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव एवं आतंक के खिलाफ ढ़िलाई को प्रदर्शित करता है। अन्यथा देश मे इतने बडे- बडे हमले हुए फिर भी भारत सरकार चेतावनी एवं अल्टीमेटम के सिवा कुछ नहीं कर पाई। जब भी भारत में कोई भी बड़ा हमला होता है तो भारत हमेशा अमेरिका की तरफ ताकता है। अमेरिका हमें न्याय दिलायेगा? प्रधानमंत्री विरोध जताते हैं, वार्ता नहीं करेंगे ढोंग करते हैं उल्टे फिर वार्ता की पेशकश करते हैं। यह भारतीय प्रधानमंत्री की कमजोरी ही कही जायेगी। भारत सरकार को तो पाक से स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि अगर वार्ता होगी तो सिर्फ गुलाम कश्मीर पर इससे कम कुछ भी मान्य नहीं है। यही उचित समय है पाक के ऊपर दबाव बनाने का। ‘जग नहीं सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन’ यह नियति की रीति है कि दुर्बल हमेशा सताये जाते हैं। नियम कानून उन पर लागू नहीं होते हैं। इसलिए अगर शान्ति की ही चर्चा करते रहोगे तो शेष बचा कश्मीर भी हमारे हाथ से निकल जायेगा और भारत का भविष्य भी अधर में पड़ जायेगा। जैये 1962 में हमारे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पंचशाील के सिद्धान्त और हिन्दी चीनी भाई- भाई का राग अलापते रहे और चीन ने भारत पर आक्रमण कर हजारों वर्ग कि.मी. भूमि पर कब्जा कर लिया। संसद भवन, अक्षरधाम वाराणसी में संकटमोचन हनुमान मंदिर अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि पर हमला एवं मुम्बई के ताज होटल पर हमला हुआ लेकिन भारत लगातार वार्ता प्रक्रिया को बढ़ा रहा है। अमेरिका से निवेदन कर रहा है। पाक को सबूतों एवं आतंकियों की सूची थमा रहा है फिर भी पाक मानने को तैयार नहीं हो रहा है। भारत को इसके लिए निर्णायक युद्व छेड़ने की आवश्यकता है। पाक से साफ- साफ कहना चाहिए कि गुलाम कश्मीर खाली करो, सारे आतंकवादियों को भारत के हवाले करो अन्यथा हम अपनी शक्ति के बल पर जो भी आवश्यक होगा वह सब करने के लिए बाध्य होंगे।
साभार--बृजनन्दन यादव 

संस्कार और सभ्यता क्या है ??

वर्तमान में विकासवादी भोगप्रधान युग में व्यक्ति प्राय: अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं की परिधि में सिमटता चला जा रहा है। आर्थिक प्रवाह, संचार क्रान्ति तथा वैज्ञानिक प्रगति, व धर्म संस्कृति सभ्यता तथा चेतना के मूल स्वरूप से युवा पीढ़ी को ही नहीं अपितु वृद्ध एवं किशोरों को स्वेच्छाचारी जीवन जीने की मृगतृश्णा में दौड़ने को जाने- अनजाने में विवश कर रही है। तथा कथित धार्मिक धृतराश्ट्र धर्म को युग धर्म के अनुसार नई परिभाशाओं को मक्कड़ जाल में ही अपनी बुद्धि कौशल समझते हैं। और विभिन्न समुदायों की उपासना पद्धति को ही धर्म समझा जाने लगा है।धर्म वह कवच है जिससे सम्पूर्ण मानव समाज को आधि-व्याधि से सुरक्षित करते हुए Þसर्वभूतेहितेरताß की भावना को प्राणि मात्र के कल्याण की कामना को पुश्ट करते हुए आध्यात्मक तथा आत्मीयता के पर्यावरण की संरचना समय रहते की जा सकती है। आत्मा के बिना शरीर, धर्म के बिना समाज मृतवत् है।
धर्मराज-द्रौपदी तथा सत्यवान-सावित्री का दर्शन आने वाली पीढ़ी के लिए काल्पनिक कथाओं के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा।
संस्कृति संस्कारों के अभाव में संस्कृति की चर्चा करना आत्मवचना के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं संस्कारों के वैज्ञानिक रहस्य से अपरिचित वर्तमान के तथाकथित समाज सुधारक संस्कारों की उपेक्षा ही नहीं अपितु उपहास करने में आत्म गौरव समझ रहे है। दुर्भाग्य है कि प्रशासन तथासिक्षा इसमें सह सिक्षा एवं समान अधिकारों को आग लगाकर उदण्डता, अनुशासनहीन, आचरणविहीन युवा पीढ़ी की फसल तैयार करने में प्राण-प्रज्ञा से सिक्षा के उच्च व्यवसायीकरण में जुटे है।
संस्कृत तथा संस्कृति नामक ग्रन्थ डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपने राश्ट्रव्यापी वैिश्वकचिन्तन परक विचार विस्तार से व्यक्त किए है। वर्तमान के िशक्षाविदों को उसे अवश्य पढ़ना चाहिए।
राम-कृश्ण के देश में जन्म लेने वाले धर्म तथा संस्कार विहीन पशुवत जीवन जीने वालों के पद चिन्हों पर चलकर अर्थात पिश्चम के योगवाद से अनुप्राणित तथा कथित िशक्षित राजनैतिक वर्ग ही जातिहीन, धर्मविहीन, अनुशासनहीन सामाजिक एवं राश्ट्रीय विकास का पक्षधर है।
भारतवशZ के अतिरिक्त किसी भी देश में संस्कृति एवं चरित्र को प्राथमिकता नहीं दी जाती यह विश्वविदित कटु सत्य है। संस्कृति से ही मानवीय मूल्यों की गुणवत्ता का आंकलन होता है संस्कारों के प्रति दैनिक तथा व्यक्तिगत जीवन में अन्तरनिश्ठा ही संस्कृति संरक्षण का साश्वत् आधार है।
सभ्यता समाज के पारिवारिक, अनुवांिशक, ऐतिहासिक, धार्मिक, भौगोलिक जीवनशैली की संवाहिका है। वर्तमान के पढ़े लिखे सभ्य कहलाने वाले आधूनिक समाज की दृिश्ट में सभ्यता का प्रतीक जीवन स्तर है। जीवन के महत्व से अनभिज्ञ युवापीढ़ी वास्तविक सभ्यजनों को अिशक्षित मानती है। सभ्यता िशक्षा से ही नहीं, सभ्यता पूर्वजों के सामाजिक, एकान्तिक तथा व्यावहारिक जीवन से परम्परागत अधिकार के रूप में सहज प्राप्त होती है। जल्दी सोना, जल्दी जागना प्रकृतिप्रदत्त समाज की पहली पहचान है। वर्तमान में रात में देर तक जागना, देर से उठना भारतीय भौगोलिक दृिश्ट से भारतीय सभ्यता के प्रतिकूल है। Þउठ जाग मुसाफिर भोर भयों अबेरैन कहां जो सोवत हैß
प्रात: काल जागरण भगवद् स्मरण, धार्मिक साहित्य स्वाध्याय अभिवादन देव, द्विज गुरू तथा माता-पिता तथा वृद्धों को प्रणाम करना हमारी सभ्यता है। आज हम स्वयं इसका और आने वाली पीढ़ी को कितना पालन करते है यहीं हमारी सभ्यता का मानदण्ड है।
चेतना के विशय जानने के पूर्व हमें स्पश्ट रूप से ज्ञान होना चाहिए, चेतन, अथचेतन तथा अचेतन में क्या अन्तर है। चेतना के वास्तविक परिज्ञान के समाज सुधारक, मनोवैज्ञानिक, राजनैतिक, धार्मिक, जनप्रतिनिधि, सामाजिक तथा व्ौयक्तिक चेतना के विकारण के विशय में योजनाएं बनाने लगते हैं परन्तु उनकी अपनी चेतना का क्या स्तर है इस पर गम्भीरता से बुद्धिजीवियों को विचार करना चाहिए। िशक्षाविदों को सम्मेलन इस प्रकार एक सकारात्मक कदम उठाए तभी राश्ट्रीय सामुहिक, सामाजिक चेतना का वास्तविक लाभ सभी को मिल सकेगा। हशZ का विशय है कि िशक्षाविद् धर्म सभ्यता संस्कृति चेतना के विशय में सामुहिक चिन्तन के लिए एकत्रित हो रहे है।

!! हाथी और कुत्ते !!

भाई साहब आप सभी को प्रणाम .सुप्रभात ..जय हिन्द ..जय भारत ..जय जय श्री राम......

..आप सभी को दैनिक जीवन में एक बिशेष बात देखने को मिली होगी ..और ओ बनात ये है की ..जब हाथी कही से भी निकलता है तो उसके डील डौल को देखर डर के मारे कुत्ते भोकना सुरु कर देते है झुण्ड बनाकर ..पर हाथी अपने मस्ती भरी चाल में चलता रहता है ...हाथी उन कुत्तो के भोकने की अहमियत नहीं देता है .....वही हाल कुछ इस समय मेरे साथ हो रहा है .FB में ! मैं कुत्तो के भोकने के फिकर बिल्कुल भी नहीं करता हु ..जिसे भोकना है भोके ..और अपनी उर्जा खराब करे ..मेरे सुभ कामनाये भोकने वालो के साथ है .‘यदि हाथी कुत्तों के पीछे दौड़ता है, तब उनका (कुत्तों) का महत्व बढ़ता है.. इस वजह से हाथी पीछे नहीं मुड़ता बल्कि आगे ही बढ़ता जाता है... वे वह कह सकते हैं जो उन्हें पसंद है..मैं ध्यान नहीं देता हूं.. मैं अब भी कहना चाहूंगा कि मुझे क्यों कुत्तों के पीछे भागना चाहिए.’’! मैं मानता हूं कि शैतान को भी ईश्वरीय अस्तित्व को चुनौती देने का अधिकार है... मूर्खो को भी अवसर मिलना चाहिए कि वे सज्जन पुरशो की लानत-मलामत कर सकें भगवान् उन्हें लम्बी उम्र और अच्छी से अच्छी उर्जा देता रहे जिससे ओ कुत्ते अपने स्वभाव के अनुसार भोकते रहे ..और मुहल्ले वालो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहे ........जिससे की लोग इन कुत्तो को भूल नहीं जाये ....

यदि सिंह अहिंसक हो जाए, गीदड़ भी शौर्य दिखाते हैं!
यदि गरुड़ संत सन्यासी हो, बस सर्प पनपते जाते हैं !!
इस शांति अहिंसा के द्वारा अपना विनाश आरंभ हुआ !
जब से अशोक ने शस्त्र त्यागे, भारत विघटन प्रारंभ हुआ!!
सोचा था धर्म रक्षण को श्री कृष्णकहीं से पैदा हो जाएगे !
लेकिन पराजित मन के भीतर श्री कृष्ण कहाँ से आयेंगे !!


नोट --यह ब्लॉग उन लोगो को समर्पित है जो दिन रात मेरे खिलाफ ब्लागरो की दुनिया और फेसबुक की दुनिया में दुष्प्रचार करते रहते है !

बुधवार, 23 जनवरी 2013

!! भंगी श्री मान रामनाथ बसोर और मैं !!

नोट --मेरे इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद उन लोगो को सबसे अधिक दुष्प्रचार करने का मोका मिलेगा ..जो मेरे राजपूत होने पर संदेह करते है ...फिर भी मैं मेरे मन की बात लिखुगा जिसको जो सोचना हो मेरे बारे में सोचे ..ब्लॉग में लिखी बाते सत-प्रतिसत सत्य है = == == == == == == == 
         
                बात उन दिनों की है जब मैं सन 1983 में  डिप्लोमा करता था उस समय पर कालेज में हमारे रीवा के कई साथी थे जिसमे सभी जातियों के क्षात्र थे !.उन्ही  में से एक थे "रामनाथ बसोर " जो की भंगी जाती से थे ,रामनाथ जी को उनके जाती के कारण कालेज  के हर कोने पर जलील होना पड़ता था ,तो ओ कभी कभी  बहुत दुखी  होकर एक कोने में बैठ जाते थे .एक दिन मेरी नजर उनके ऊपर पडी और उनसे जाकर उनका इस तरह से अलग थलग बैठने का कारण पूछा तो जो सच्ची रामनाथ जी ने मुझे बताया उससे मुझे बहुत दुःख हुआ ,रामनाथ जी के साथ उच्च जाती के लोग तो भेदभाव करते ही थे ..पर रामनाथ जी  के सामान ही आरक्षण प्राप्त करके प्रवेश लेने वाले अन्य तथाकथित नीच जाती के क्षात्र भी उनके साथ उतना ही भेदभाव करते थे जितना की उच्च जाती के क्षात्र करते थे ..क्योकि रामनाथ जी हिन्दू वर्णऔर जाती ब्यवस्था के सबसे नीचे  तबके के इंसान जो ठहरे ! 
                    खैर रामनाथ जी को, मैंने बोला की कल से आपके साथ कोई कुछ नहीं करेगा और ना ही आपको कोई अपमानित केरगा आपकी जाती के नाम से ! मैं अगले दिन कालेज में घुसते ही रामनाथ जी के कंधे पर हाथ रखकर कालेज में प्रवेस किया मैं ,तो  बहुत से दोस्तों और अन्य क्षत्रो ने मेरे इधर  कुछ इस तरह देखा जैसे मैंने कोई बहुत ही बड़ा अपराध कर दिया हो ...कई ने आकर बोल की "ये क्या है बाघेल साहब ?  आप एक भंगी  के  कंधे  में  इस तरह हाथ रख कर  घूमोगे  तो ये तो एक दिन  हमारे  सर  पर बैठ जाएगा पर  मैंने उन सभी  को यथोचित जबाब देकर विवाद किये बिना आगे बढ़ गया मैं चाहता तो उनसे विवाद भी  कर सकता था ..पर सोचा की रामनाथ को ये अकेले परेसान करेगे इससे अच्छा  है इनसे विवाद नहीं किया ...और इस तरह धीरे -धीरे रामनाथ जी को कुछ हद तक सम्मानित स्थित में ले आया .! और इस तरह तीन साल निकल गए उस पोलीटेक्निक कालेज में .इसी दौरान हम 13 क्षात्रो का सलेक्सन हो गया किर्लोस्कर ब्रदर लिमिटेड देवास में ...और उन्ही में से एक नाम रामनाथ जी का भी था ! 
                      और हम इस तरह से इंदौर -बिलासपुर ट्रेन की जनरल बोगी में बैठकर 13 ओक्टूबर 1986 को  देवास आ गए .जहा पर मेरा तो क्या उन १३ में से कोई भी परिचित नहीं रहता था देवास में ! 
                       ट्रेन से  करीब २.०० बजे हम  रेलवे स्टेशन पर उतर गए ...अनजान जगह अनजान लोग  .कोई जन पहचान का नहीं है इस नए सहर में ...हम सभी 13 मुसाफिर इधर उधर इश्टेसन में भटक  रहे थे ..समझ नहीं आ रहा था क्या करू किधर जाऊ ,फिर  सोचा की चलो कारखाने के गेट पर चलते है वह से सायद रहने का कोई ठिकाना मिल जाए ! किर्लोस्कर ब्रदर लिमिटेड कारखाना पास ही है रेलवे स्टेशन के ! 
                    हम सब यही  प्लान बना हे रहे थे आपस में बघेलखंडी बोली में  की हमारे रीवा के एक सज्जन (साक्षात् देवता ) श्री मान महेंद्र कुमार गौतम साहब (ब्राह्मण जाती से) मिल गए हमें रेलवे स्टेशन ! हमारी आपस की बात चीत को सुनकर ओ हमारे पास आये (हम आपस में बघेलखंडी में बाते कर रहे थे इस कारन उन्होंने हमें भाषा बोली के कारण पहचान लिया) श्री मान महेंद्र कुमार गौतम साहब हमारे पास आये और बात चीत किया ..उस दिन.पता लगा की परदेश में कोई अपना मिल जाए तो कितना अच्छा लगता है ! गौतम जी ने अपने पिता जी को ट्रेन में बैठने आये हुए थे ..ओ अपने पिता को ट्रेन में बिठाया और हम 13 लोगो को बोला की चलो उठाओ अपना अपना सामान और मेरे साथ आओ ,हम सभी किसी आज्ञाकारी बालक की तरह उनका अनुशरण किया और उनके १० बाय १० फिट के रूम में आ गए .अब आप खुद ही कल्पना करे की हम 13 लोग उनके रूम में किस तरह से बैठे होगे ! 
                                     गौतम जी ने हम सभी से हमारा नाम पता पूछ की कौन किस गाव के है हम सबने बताया पर रामनाथ जी इधर उधर छिपते रहे नाम  बताने से ,पर गौतम जी भी थे की नाम पूछ ही लिया और जब नाम का पता चला तो गौतम जी के चेहरे में एक अजीब सी मुस्कान और ब्याकुलता मुझे दिखाई दिया ! खैर जान पहचान के बाद फिर सभी के लिए किराए से कमरे तलासाने की बारी आई ..हम सभी गौतम जी के पीछे पीछे किसी आज्ञाकारी बालक की तरह चल दिए फिर से और करीब 2 घंटे में गौतम जी ने सभी के लिए 4 कमरे की तलास कर लिया और सभी अपने अपने पसंद के अनुसार रूम पार्टनर भी चुन लिया और अपना अपना सामान लेने के लिए चल दिए गौतम जी के रूम पर !
                    सभी अपने अपने लिए रूम पार्टनर आपस में  बना लिया .पर रामनाथ बसोर जी को उनकी भंगी जाती के कारण कोई भी साथ रखने को तैयार नहीं हुआ .और रामनाथ जी की क्या हम किसी की भी हैसियत नहीं थी की अलग से रूम लेकर रह सके ..क्योकि उस समय पर हम लोगो की  पेमेंट थी 300 रुपये प्रतिमाह और रूम का किराया था  150 रूपये प्रतिमाह ! समस्या विकट थी ! ये बात मैंने गौतम  जी को बताया और बोला की  रामनाथ जी  लिए कोई सस्ता सा कमरा बता दीजिये जहा पर ये अकेले रह सके .गौतम जी ने फिर से प्रयास किया ..पर 100 रुपये प्रतिमाह से कम का कोई कमरा नहीं मिला उस समय पर   ...अब विकट समस्या थी ..रामनाथ जी को कोई अपने साथ रखने को तैयार नहीं था ..यहाँ तक की दो बंधू  चमार जाती से थे ओ भी न हीं तैयार हुए मेरे कई बार समझाने के बाद भी .अब रामनाथ जी के पास एक ही विकल्प था ..वापस रीवा लौट जाना और बास के टोकरी बना कर बेचना .या फिर नगर निगम में झाड़ू लगाने की नौकरी  करना ! ये बात रामनाथ जी ने मुझे बताया और रोने लगे इतना कह कर .! 
            ( शेष भाग से आगे का हिस्सा नीचे से पढ़े )
 मुझे बहुत दया आई रामनाथ जी पर और मन में एक अपराधबोध की भावना भरा गई की देखो ये भी अपना ही भाई है एक इन्सान है ,पर आज हम लोग इसके साथ कैसा ब्यवहार कर रहे है सिर्फ इसकी जाती के कारण (उस समय पर मेरे मन में हिन्दू -मुस्लिम वाली भावना बिलकुल भी नहीं थी ).जबकि ये भी हमारे लोगो जैसे सामान्य रंग रूप के ..ये जो खाते,पहनते  है वही हम लोग भी  खाते पहनते है ,पर सिर्फ जाती के कारण हम सभी इस तरह का ब्यवहार करते है ये कहा तक उचित है ? यही प्रश्न बार बार मेरे मन में उठने लगा {हलाकि की इसी तरह का भेदभाव मैंने मेरे गाव में मेरे घर में भी देखा है,जब हमारे घर में खेतो में काम करने वाले तथाकथित नीच जाती के मजदुर आते थे तो उस समय पर अपने जूते उतारकर हाथ में ले लेते थे उसके बाद ही घर के प्रवेस द्वारा पर आते थे और उनके आते हि मेरी माता जी और बड़ी भाभी जी कुछ ज्यादा ही चिंतित हो जाते थी की कोई कही कुछ छू नहीं दे की ओ सामान छुतिहा हो जाए हलाकि उस समय इन बातो का गाव में मेरे लिए कोई ख़ास लगाव का बिषय नहीं था ,क्योकि मैं कच्छा 8 वी से ही बाहर आ गया पढ़ाई के लिए } और इसी उधेड़बुन में  हम सभी गौतम जी के कमरे में आ गए .और मैंने आगे होकर रामनाथ जी की समस्या को उठाया सभी के सामने ,पर कोई भी अपने साथ रखने के लिए तैयार नहीं हुआ ..गौतम जी भी बहुत ही सज्जन ब्यक्ति थे ...उनकी भी इक्षा थी की रामनाथ वापस नहीं जाए रीवा ! जब सभी  तरफ से दरवाजे बंद हो गए रामनाथ जी के लिए तो मुझे लगा की अब मुझे ही शंकर जी बनकर ये जहर पीना होगा ..और मैं बहुत हिम्मत करके रामनाथ जी को मेरे साथ रूम पार्टनर बनाने के लिए तैयार हो गया .इतने में मेरे पहले वाले रूम पार्टनर श्री जगन्नाथ पटेल (कुर्मी जाती से) ने मुझे एक किनारे ले जाकर बोले की क्या ठाकुर साहब आप पगला गए हो क्या ? एक भंगी को अपने साथ रखोगे ..कैसे छुएगे उसे रोज रोज ...तो मैंने श्री जगन्नाथ पटेल जी को बोला की पटेल जी आप ट्रेन में रामनाथ के कंधे पर सर टिका कर रात भर सोते रहे उस समय क्यों भूल गए थे की ये तो मेहतर है
इस तरह काफी बहस के बाद ,मैं श्री जगन्नाथ पटेल जी को समझाने में कामयाब रहा .और रामनाथ जी मेरे साथ रुम में करीब 1  साल तक रहे हला कि रामनाथ जी ने अपनी मर्यादा का पूरा ख्याल रखा .....और फिर राम नाथ जी एक साल के बाद NTPC "शक्तिनगर"  में नौकरी लग गई और ओ चले गए  देवास से ..पर आज भी कभी कभी मिलते है तो यही कहते है की ठाकुर साहब आपके कारण आज इस मुकाम पर पहुचा हु नहीं तो  बॉस की टोकरी बनता नजर आता ! 

रामनाथ जी जब मेरे साथ रहने लगे सुरुआत में लगभग सभी जाति के लोगो ने मेरा बिरोध किया !  यहाँ तक की मैं 6 माह तक किसी के रूम में नहीं गया ,कंपनी की केन्टीन में रामनाथ के साथ कोई खाना नहीं खाता पर मैं अकेला रामनाथ की टेबल में बैठकर उनके साथ खाता । पर कुछ माह  बाद सभी मित्रो में रामनाथ घुलने -मिलने लगे पर उनकी किस्मत अच्छी थी और NTPC (नेसनल थर्मल पावर कार्पोरेसन) में नौकरी लग गई 

             मैं मेरे सभी मित्रो से आग्रह करुगा की आपस में जातिवाद के बाते भूल कर हिंदुत्व/इंसानियत को देखे.....!


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मंगलवार, 22 जनवरी 2013

!! भगवा आतंकवाद ??

जिस तरह से कांग्रेश पुरे हिन्दू समुदाय को "भगवा आतंकवाद " कह रही है ..उससे तो यही लगता है की आगे आने वाले समय हिन्दुओ के लिए कितना कठिन होगा ...इसके पहले भी हिन्दू ..सदियों से सोया हुआ था ..परिणाम क्या निकला ..सनातन सिमटते -सिमटते ...आज सिर्फ भारत और नेपाल में .रह गया ..चलो उस समय की बात को हम नजरअंदाज करते है क्योकि उस समय पर तलवार का जोर -जबरजस्ती का जमाना था ..हम जान की भय के कारण ज्यादा बिरोध नहीं कर पाए ....पर अब तो लोकतंत्र है ..अब तो जागो .....नहीं तो ये कांग्रेसी इटालियन क्रिश्चिन मेम के साथ मिलकर सभी को ...इसाइयत ....और मुस्लिम वोट के लालच में इस्लामिक बना देगी और हम इसी तरह से मुह तकते रहेगे एक दुसरे का ..अभी भी समय है ..एज जुट हो जाओ ..नहीं तो अगले १०० साल में अल्प्संखयक की श्रेणी में आ जाओगे ..सुधर जाओ भाइयो ..समहल जाओ भाइयो ......हिन्दुओ को आतंकी बना रहे है ये कांग्रेश वोट के लालच में ..क्या अप अपना वोट इसी तरह से कांग्रेश को देते रहेगे ? सोचिये ..अभी भी वक्त है ..सम्हल जाए ...... ..और खुल कर ..RSS और बीजेपी का साथ दे ..नहीं तो बाद... में आपको सिर्फ पस्याताप करना पडेगा .......
हमारे देश की आबादी मेँ 80% लोग अपने को हिँदू कहते है और कुछ हिँदू विरोधी या यू कहे सेकुलरी लेबल माथे पे लगाये हिदूत्तव की बाते करते है लेकिन अगर मूंल्याकन करे तो हम हिँदुत्तव पर खरे नही उतरेगे क्या तिलग लगाने मात्र से अपने को हिँदू मान ले या फिर मंदिर मे जा कर दान देकर या अपना रौब दिखा कर अपने को हिँदू कहे जय श्री राम के ओजपूर्ण नारे लगा कर हुड़दंग करना हि ......हिँदुत्तव है आज अगर हम अपने को हिँदु कह रहे है वह झूठ है क्यो की हिँदू की परिभाष संस्कार हम तो भूल ही.... चुके है साथ ही हमारी आने वाली पीढी अपने को हिँदू कहलाने मे शर्म महसूस करे तो आप किसे दोषी मानेगे ये एक गंभीर समस्या है इसलिये एक अंखड हिँदु राष्ट्र की आवशकता है लेकिन कुछ सत्ता लोलुपता के चलते इस मुद्दे पर जबान नही खोलते और ना हि.... कोई सामाजिक संघठन कोई ठोस कदम उठा रहा है ....मुझे दुख इस बात का है हम ना वो संस्कार अपने युवाओ को दे नही पा रहै जो हमे वेदो से मिले है हमने वेदो को एक किताब भर मान लिया है क्या हम एसा कर के हिदुत्तव को ....गर्त की और ले जा रहे है आंडबरो से घिरा हिँदू सिर्फ अपना हि हित साधने मे लगा है जातिवाद और रूड़ीवादी परपरांओ मे उलझ कर हिँदु एकता को कमजोर कर रहा है आज आधुनिकता की आड़ मे अपने विचार से विमुख हम केवल अपनी संस्कृति का..... मजाक उड़ाने मे मस्त है मै उन सेकुलरो को आह्वान करता .....हू जाग जाओ और नहि तो हमे फिर को ई गजनी या अंग्रेज गुलाम बना कर भारत की पावन भूमि को इंगलिस्तान या को ई पाक्सितान बना डालेगे अगर सम्मान से जीना है तो वेदो और भारतिय सनातन धव्जा थाम कर आगे आओ भारत माता बुला रही है ..................
 जय भारत जय सनातन तुझको मेरा प्रणाम एक हो लक्ष्य एक हो हमारा ध्यान ना कुरूतियो का दल दल हो ना हो हम धर्मभीरु ना कोई मिथक आंडम्बर हो संस्कार और संयम केभूषण जातिप्रथा का हो दूर कुपोषण एक मानवता चिर परिचित हो तृष्णा मिटे हर मातृ भूमि की हरिता ... ओर सिँचित हो लज्जा हो नारी मे इतनी शोशित समाज ना कर पाये वीर प्रसूता बन आज तू महापुरूष को तु फिर जाये अपने अपने पथ चुन लेना जीवन का समय अब शेष नही सियार शासन आ गया सत्य का परिवेश नही विनती है कर्णधार देश के तुम ना मुह फेर लेना देशद्रोहियो के प्राण लेना देश की आन मे प्राण देना ....जय भारतजय जय श्री राम .......जय जय श्री राम .......जय जय श्री राम .......जय जय श्री राम .......जय जय श्री राम .......जय जय श्री राम ......

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

!! प्यार किया नहीं जाता बल्कि हो जाता है ?

दरअसल प्यार कुदरत का अनमोल तोहफा है..यह ऐसी दौलत है जो हर किसी के पास अथाह होने के बाद भी हर कोई अतृप्त रहता है, प्यार तलाशता रहता है..जीव-जगत के छोटे-बड़े सभी प्राणियों के पास प्यार का अथाह सागर है.. फिर भी हर कोई हर किसी से प्यार पाना चाहता है...पोता, दादा से प्यार चाहता है, भाई, बहन से प्यार चाहता है, पड़ोसी पड़ोसी से प्यार चाहता है, छात्र शिक्षक से प्यार चाहता है, जानवर अपने मालिक से प्यार चाहता है यानी हम अपने से संबंधित हर जीव से प्यार की आस रखते हैं......प्यार जब हो जाए तो चैन नहीं, ना हो तो बेचैनी, हो गया तो समझना मुश्किल, ना हो तो जीना मुश्किल। समझ जाएं तो कहना मुश्किल, और कह दें तो जवाब का अनजाना डर। आखिर करें तो क्या करें ? आइए जानें प्यार क्या होता है, कैसे होता है और कब होता है ?

        प्यार के कुछ और लक्षण खास आपके लिए :
* एक दिन वह दिखाई न दे तो आपके दिल में अनेक अशुभ बातें आने लगें। दिल बुरी तरह से घबराने लगे।
* उसके बिना जिंदगी नीरस, फालतू, बकवास या आधी-अधूरी लगने लगे।
* किसी को फोन करते समय भूल से उसका मोबाइल नंबर डायल कर दें।
* मोबाइल की घंटी बजने या मिस कॉल आने पर ऐसा लगे उसने ही कॉल किया होगा।
* फोन पर घंटों बातें करने के बावजूद दिल न माने और बातें करने की इच्छा बनी रहे।
* रोमांटिक फिल्म में हीरो की जगह स्वयं को व हीरोइन की जगह उसके होने की कल्पना करने लगें।
* आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे।
* पत्र-पत्रिकाओं में राजनीति, सामाजिक, करियर आदि की खबरों को छोड़कर फैशन, फिटनेस, ब्यूटी टिप्स, माई फस्ट लव, लव टिप्स आदि आप पढ़ना पसंद करने लगें।
* अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें।
* आपको अपना डेट ऑफ बर्थ भले याद नहीं हो लेकिन उसके डेट ऑफ बर्थ से लेकर उसके पूरे फैमिली का बायोडाटा जबानी याद हो।
Romance tips in hindi

* गजलें और दर्द भरे गीत आप बड़े ध्यान से सुनने लगें। दूसरों को भी ऐसे गीत सुनने की सलाह देने लगें। गजल, शेरो-शायरी पर लंबा लेक्चर देने लगें। मानो उसके बारे में आपको बड़ा नॉलेज है।
* खुद में जादू की शक्ति संचार हो जाने की कल्पना करें। आपको ऐसा लगने लगे कि आप खुद गायब होकर कुछ ही पलों में कहीं से कहीं पहुँच सकते हैं।
* अपने कम्प्यूटर के पासवर्ड में उसके नाम का कोड रखें।
* जब भी वह उठकर कहीं जाए (बाथरूम भी) तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें।
* उसके पालतू कुत्ते, बिल्ली को भी चूमने का आपका मन करने लगे।
* आपके पास कैमरा होने पर उसकी ढेर सारी तस्वीरें उतारने का दिल करे।
* जब वह किसी लड़के/ लड़की के साथ बात करे तो आपको ईर्ष्या होने लगे। उस लड़के/ लड़की का गला घोंट देने की इच्छा होने लगे।

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

History of bhati > जैसलमेर के शासक


जैसलमेर राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के आरंभ में ११७८ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल के द्वारा किया गया। भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुरा व द्वारिकाके यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुल व लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मद्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था। अत: ये भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह,मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।
सन ११७५ ई. के लगभग मोहम्मद गौरी के निचले सिंध व उससे लगे हुए लोद्रवा पर आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया व राजसत्ता रावल जैसल के हाथ में आ गई जिसने शीघ्र उचित स्थान देकर सन् ११७८ ई. के लगभगत्रिकूट नाम के पहाड़ी पर अपनी नई राजधानी स्थापित की जो उसके नाम से जैसल-मेरु - जैसलमेर कहलाई।
दिल्ली सल्तनत के साथ
जैसलमेर राज्य की स्थापना भारत में सल्तनत काल के प्रारंभिक वर्षों में हुई थी।मध्य एशिया के बर्बर लुटेरे इस्लाम का परचम लिए भारत के उत्तरी पश्चिम सीमाओं से लगातार प्रवेश कर भारत में छा जाने के लिए सदैव प्रयत्नशील थे। इस विषय परिस्थितियों मेंइस राज्य ने अपना शैशव देखा व अपने पूर्ण यौवन के प्राप्त करने के पूर्व ही दो बार प्रथम अलउद्दीन खिलजी व द्वितीय मुहम्मद बिन तुगलक की शाही सेना का कोप भाजन बनना पड़ा। सन् १३०८ के लगभग दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की शाही सेना द्वारा यहाँ आक्रमणकिया गया व राज्य की सीमाओं में प्रवेशकर दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया। यहाँ के राजपूतों ने पारंपरिक ढंग से युद्ध लड़ा। जिसके फलस्वरुप दुर्ग में एकत्र सामग्री के आधार पर यह घेरा लगभग ६ वर्षों तक रहा। इसी घेरे की अवधि में रावल जैतसिंह का देहांत हो गया तथा उसका ज्येष्ठ पुत्र मूलराज जैसलमेर के सिंहासन परबैठा। मूलराज के छोटे भाई रत्नसिंह ने युद्ध की बागडोर अपने हाथ में लेकर अन्तत: खाद्य सामग्री को समाप्त होतेदेख युद्ध करने का निर्णय लिया। दुर्ग में स्थित समस्त स्रियों द्वारा रात्रि को अग्नि प्रज्वलित कर अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर कर लिया। प्रात: काल में समस्त पुरुष दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु सेना पर टूट पड़े। जैसा कि स्पष्ट था कि दीर्घ कालीन घेरे के कारण रसद न युद्ध सामग्री विहीन दुर्बल थोड़े से योद्धा, शाही फौज जिसकी संख्या काफी अधिक थी तथा खुले में दोनों ने कारण ताजा दम तथा हर प्रकार के रसद तथा सामग्री से युक्त थी, के सामने अधिक समयतक नहीं टिक सके शीघ्र ही सभी वीरगति को प्राप्त हो गए।
तत्कालीन योद्धाओं द्वारा न तो कोई युद्ध नीति बनाई जाती थी, न नवीनतम युद्ध तरीकों व हथियारों को अपनाया जाता था, सबसे बड़ी कमी यह थी कि राजा केपास कोई नियमित एवं प्रशिक्षित सेना भी नहीं होतीथी। जब शत्रु बिल्कुल सिर पर आ जाता था तो ये राजपूत राजा अपनी प्रजा को युद्ध का आह्मवाहन कर युद्ध में झोंक देते थे व स्वयं वीरगति को प्राप्त कर आम लोगों को गाजर-मूली की तरह काटने के लिए बर्बर व युद्ध प्रिया तुर्कोंके सामने जिन्हें अनगिनत युद्धों का अनुभव होता था, निरीह छोड़े देते थे। इस तरह के युद्धों का परिणाम तो युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही घोषित होता था।
सल्तनत काल में द्वितीय आक्रमण मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) के शासन काल में हुआ था, इस समय यहाँ का शासक रावल दूदा (१३१९-१३३१ ई.) था, जो स्वयं विकट योद्धा था तथा जिसके मन में पूर्व युद्ध में जैसलमेर से दूर होने के कारण वीरगति न पाने का दु:ख था, वह भी मूलराज तथा रत्नसिंह की तरह अपनी कीर्ति को अमर बनाना चाहता था। फलस्वरुप उसकी सैनिक टुकड़ियों ने शाही सैनिक ठिकानों पर छुटपुट लूट मार करना प्रारंभ कर दिया। इन सभी कारणों से दण्ड देने के लिए एक बार पुन: शाही सेना जैसलमेर की ओर अग्रसर हुई। भाटियों द्वारा पुन: उसी युद्ध नीति का पालन करते हुए अपनी प्रजा को शत्रुओं के सामने निरीह छोड़कर, रसद सामग्री एकत्र करके दुर्ग के द्वार बंद करके अंदर बैठ गए। शाही सैनिक टुकड़ी द्वारा राज्य की सीमा में प्रवेशकर समस्त गाँवों में लूटपाट करतेहुए पुन: दुर्ग के चारों ओर डेरा डाल दिया। यह घेरा भी एक लंबी अवधि तक चला। अंतत: स्रियों ने एक बार पुन: जौहर किया एवं रावल दूदा अपने साथियों सहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। जैसलमेर दुर्ग और उसकी प्रजा सहित संपूर्ण-क्षेत्र वीरान हो गया।
परंतु भाटियों की जीवनता एवं अपनी भूमि से अगाध स्नेह ने जैसलमेर को वीरान तथा पराधीन नहीं रहने दिया। मात्र १२ वर्ष की अवधि के उपरांत रावल घड़सी ने पुन: अपनी राजधानी बनाकर नए सिरे से दुर्ग, तड़ाग आदि निर्माण कर श्रीसंपन्न किया। जो सल्तनत काल के अंत तक निर्बाध रुपेण वंश दर वंश उन्नति करता रहा। जैसलमेर राज्य ने दो बार सल्तनत के निरंतर हमलों से ध्वस्त अपने वर्च को बनाए रखा।
मुगल काल में
मुगल काल के आरंभ में जैसलमेर एक स्वतंत्र राज्य था। जैसलमेर मुगलकालीन प्रारंभिक शासकों बाबर तथा हुँमायू के शासन तक एक स्वतंत्र राज्य के रुप में रहा। जब हुँमायू शेरशाह सूरी से हारकर निर्वासित अवस्था में जैसलमेर के मार्ग से रावमाल देव से सहायता की याचना हेतु जोधपुर गया तो जैसलमेर के भट्टी शासकों ने उसे शरणागत समझकर अपने राज्य से शांति पूर्ण गु जाने दिया। अकबर के बादशाह बनने के उपरांत उसकी राजपूत नीति में व्यापक परिवर्तन आया जिसकी परणिति मुगल-राजपूत विवाह में हुई। सन् १५७० ई. में जब अकबर ने नागौर में मुकाम किया तो वहाँ पर जयपुर के राजा भगवानदास के माध्यम से बीकानेर और जैसलमेर दोनों को संधि के प्रस्ताव भेजे गए। जैसलमेर शासक रावल हरिराज ने संधि प्रस्ताव स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथीबाई के साथ अकबर के विवाह की स्वीकृति प्रदान कर राजनैतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया। रावल हरिराज का छोटा पुत्र बादशाह दिल्ली दरबार में राज्य के प्रतिनिधि के रुप में रहने लगा। अकबर द्वारा उस फैलादी का परगना जागीर के रुप में प्रदान की गई। भाटी-मुगल संबंध समय के साथ-साथ और मजबूत होते चले गए। शहजादा सलीम को हरिराज के पुत्र भीम की पुत्री ब्याही गई जिसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया गया था। स्वयं जहाँगीर ने अपनी जीवनी में लिखा है - 'रावल भीम एक पद और प्रभावी व्यक्ति था, जब उसकी मृत्यु हुई थी तो उसका दो माह का पुत्रथा, जो अधिक जीवित नहीं रहा। जबमैं राजकुमार था तब भीम की कन्या का विवाह मेरे साथ हुआ और मैने उसे 'मल्लिका-ए-जहांन' का खिताब दिया था। यह घराना सदैव से हमारा वफादार रहा है इसलिए उनसे संधि की गई।'
मुगलों से संधि एवं दरबार में अपने प्रभाव का पूरा-पूरा लाभ यहाँ के शासकों ने अपने राज्य की भलाई के लिए उठाया तथा अपनी राज्य की सीमाओं को विस्तृत एवं सुदृढ़ किया। राज्य की सीमाएँ पश्चिम में सिंध नदी व उत्तर-पश्चिम में मुल्तान की सीमाओं तक विस्तृत हो गई। मुल्तान इस भाग के उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण राज्य की समृद्धि में शनै:शनै: वृद्धि होने लगी। शासकों की व्यक्तिगत रुची एवं राज्य मेंशांति स्थापित होने के कारण तथा जैन आचार्यों के प्रति भाटी शासकों का सदैव आदर भाव के फलस्वरुप यहाँ कई बार जैन संघ का आर्याजन हुआ। राज्य की स्थिति ने कई जातियों को यहाँ आकर बसने को प्रोत्साहित कियाफलस्वरुप ओसवाल, पालीवाल तथा महेश्वरी लोग राज्य में आकर बसे व राज्य की वाणिज्यिक समृद्धि में अपना योगदान दिया।
भाटी मुगल मैत्री संबंध मुगल बादशाह अकबर द्वितीय तक यथावतबने रहे व भाटी इस क्षेत्र में एक स्वतंत्र शासक के रुप में सत्ता का भोग करते रहे। मुगलों से मैत्री संबंध स्थापित कर राज्य ने प्रथम बार बाहर की दुनिया में कदम रखा। राज्य के शासक, राजकुमार अन्य सामन्तगण, साहित्यकार, कवि आदि समय-समय पर दिल्ली दरबार में आते-जाते रहते थे। मुगल दरबार इस समय संस्कृति, सभ्यता तथा अपने वैभव के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात होचुका था। इस दरबार में पूरे भारत के गुणीजन एकत्र होकर बादशाह के समक्ष अपनी-अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया करते थे। इन समस्त क्रियाकलापों का जैसलमेर की सभ्यता, संस्कृति, प्राशासनिकसुधार, सामाजिक व्यवस्था, निर्माणकला, चित्रकला एवं सैन्य संगठन पर व्यापक प्रभावपड़ा।
मुगल सत्ता के क्षीण होते-होते कई स्थानीय शासक शक्तिशाली होते चले गए। जिनमें कई मुगलों के गवर्नर थे, जिन्होंने केन्द्र के कमजोर होने के स्थिति में स्वतंत्र शासक के रुप में कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। जैसलमेर से लगे हुए सिंध व मुल्तान प्रांत में मुगल सत्ता के कमजोर हो जाने से कई राज्यों का जन्म हुआ, सिंध में मीरपुर तथा बहावलपुर प्रमुख थे। इन राज्यों ने जैसलमेर राज्य के सिंध से लगे हुए विशाल भू-भाग को अपने राज्य में शामिल कर लिया था। अन्य पड़ोसी राज्य जोधपुर, बीकानेरने भी जैसलमेर राज्य के कमजोर शासकों के काल में समीपवर्ती प्रदेशों में हमला संकोच नहींकरते थे। इस प्रकार जैसलमेर राज्य की सीमाएँ निरंतर कम होती चली गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन के समय जैसलमेर का क्षेत्रफल मात्र १६ हजार वर्गमील भर रह गया था। यहाँ यह भी वर्णन योग्य है कि मुगलों के लगभग ३०० वर्षों के लंबे शासन में जैसलमेर पर एक ही राजवंश के शासकों ने शासन किया तथा एक ही वंश के दीवानों ने प्रशासन भार संभालते हुए उस संझावत के काल में राज्य को सुरक्षित बनाए रखा।
जैसलमेर राज्य में दो पदों का उल्लेख प्रारंभ से प्राप्त होता है, जिसमें प्रथम पद दीवान तथा द्वितीय पद प्रधान का था। जैसलमेर के दीवान पद पर पिछले लगभग एक हजार वर्षों से एक ही वंश मेहता (महेश्वरी) के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता रहा है। प्रधान के पद पर प्रभावशाली गुट के नेता को राजा के द्वारा नियुक्त किया जाता था। प्रधान का पद राजा के राजनैतिक वा सामरिक सलाहकार के रुप में होता था, युद्ध स्थिति होने पर प्रधान, सेनापति का कार्य संचालन भी करते थे। प्रधान के पदों पर पाहू और सोढ़ा वंश के लोगों का वर्च सदैव बना रहा था।
मुगल काल में जैसलमेर के शासकों का संबंध मुगल बादशाहों से काफी अच्छा रहा तथा यहाँ के शासकों द्वारा भी मनसबदारी प्रथा का अनुसरण कर यहाँ के सामंतों का वर्गीकरण करना प्रारंभ किया। प्रथा वर्ग में 'जीवणी' व 'डावी' मिसल की स्थापना की गई व दूसरे वर्ग में 'चार सिरै उमराव' अथवा 'जैसाणे रा थंब' नामक पदवी से शोभित सामंत रखे गए। मुगल दरबार की भांति यहाँ के दरबार में सामन्तों के पद एवं महत्व के अनुसार बैठने व खड़े रहने की परंपरा का प्रारंभ किया। राज्य की भूमि वर्गीकरण भी जागीर, माफी तथा खालसा आदि में किया गया। माफी की भूमि को छोड़कर अन्य श्रेणियां राजा की इच्छानुसार नर्धारित की जाती थी। सामंतों को निर्धारित सैनिक रखने की अनुमति प्रदान की गई। संकट के समय में ये सामन्त अपने सैन्य बल सहित राजा की सहायता करते थे। ये सामंत अपने-अपने क्षेत्र की सुरक्षा करने तथा निर्धारित राज राज्य को देने हेतु वचनबद्ध भी होते थे।

!! हथेली का अंगूठा क्या कहता है ?

यदि आप हस्त रेखा पर बिश्वास करते है तो पढ़िए .हमारी हथेली का अंगूठा तीन भागों में विभक्त रहता है। प्रथम ऊपर वाला भाग यदि अधिक लंबा हो तो व्यक्ति अच्छी इच्छा शक्ति वाला होता है। वह किसी पर निर्भर नहीं होता। ऐसे लोग अपना काम स्वयं पूरा करने की योग्यता रखते हैं। यदि किसी व्यक्ति के अंगूठे का मध्य भाग यदि लंबा हो तो व्यक्ति अच्छी तर्क शक्ति वाला और बुद्धिमान होता है।
         यदि किसी व्यक्ति की हथेली में अंगूठे का अंतिम भाग जो कि शुक्र पर्वत  से लगा हुआ होता है, वह हिस्सा अंगूठे के प्रथम और द्वितीय भाग से अधिक लंबा हो तो व्यक्ति अधिक कामुक होता है। यदि यह हिस्सा सामान्य हो तो कामुकता की दृष्टि से व्यक्ति सामान्य रहता है।
                 ऐसा इंसान डरपोक हो सकता है जो अपने अंगूठों को हमेशा अंगुलियों में दबाकर कर रखता है। ऐसी आदत वाले व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी होती है। वह हर कार्य डरते-डरते करता है। इसके साथ ही इन लोगों को किसी भी कार्य को पूर्ण करने में काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। 
                          जो लोग बुद्धिमान और चतुर होते हैं उनका अंगूठा सुंदर और आकर्षक होता है। सुंदर अंगूठे वाले लोग समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। जिन लोगों का अंगूठा छोटा, बेडोल, मोटा होता है वे लोग अधिकांशत: असभ्य, दूसरों का निरादर करने वाले और क्रूर स्वभाव के हो सकते हैं ..हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों के अंगूठे अधिक लचीले और आसानी से पीछे की ओर मुड़ जाते हैं वे लोग कल्पनाशील हो सकते हैं। ऐसे लोग नई-नई योजनाएं बनाने में माहिर होते हैं। सामान्यत: ऐसे लोग अधिक खर्चीले भी होते हैं।
                         जिस व्यक्ति का अंगूठा लंबा और हथेली के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ हो वह व्यक्ति सर्वगुण संपन्न होता है। ऐसे लोग सभी कार्य पूरी कुशलता के साथ करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। जिन लोगों की हथेली में अंगूठा सामान्य से अधिक छोटा हो तो वे लोग निर्बल हो सकते हैं और उनकी कार्य क्षमता भी बहुत कम होती है। 
 हस्तरेखा के अनुसार दोनों हाथों की गहराई से जांच करने के बाद ही सटीक भविष्यवाणी की जा सकती हैं। यहां बताए  गए अंगूठे के प्रभाव हथेली की अन्य स्थितियों से बदल भी सकते हैं। अत: यह बात ध्यान रखने योग्य है कि हथेली की सभी रेखाओं, हथेली, अंगुलियों की बनावट का भी अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।