यह सच है भारत सोने की चिड़िया थी, किन्तु यहाँ के लोग गरीब। भारत
पारसमणी रूपी अथाह धन सम्पदा से परिपूर्ण था, जो मंदिरों में संचित था। वह
धन केवल सावंतों एवं पुजारियों के लिये ही था, आम भारतीय के लिये नहीं।
विदेशी आततायी इस पावन धरा के संपर्क में आकर इसे लूटकर पारसमणी के स्पर्श
से सोने की तरह ही कीमती सम्पत्ति से परिपूर्ण हो गये।
1.महमूद
गजनबी ने नगरकोट के किले(जो पहाड़ पर स्थित था) को घेर लिया। उसके पास
रहने वाले लोंगो का कत्ल किया(हिन्द के लोग इसे बुतों का खजाना कहते थे)
सोना, चाँदी और जवाहरात वहाँ इस कदर थे कि जोकिसी बादशाह के खजाने में भी
नहीं थे। महमूद को वहाँ से साठ लाख दीनार सुर्ख, सौ मन चाँदी और सोने के
वर्तन, सौ मन कुन्दन (सोना), दो हजार मन शुद्ध चाँदी तथा तीस मन जवाहरात
प्राप्त हुये।
–त्वारीख फरिश्ता 40 और त्वारीख बहारस्तान नवल किशोर प्रेम मुफती गुलाम सरवर लाहौरी पृष्ठ 259.
2.
फिर महमूद ने थानेसर मंदिर को(जिसका नाम जगसोम, उसको हिन्दु मक्का के बराबर
समझते थे) लूटने के उद्देश्य से आनंदपाल को लिखा कि वह अपनी वह अपनी सेना
के विश्वसनीय लोगों को हमारी तकलीफ दूर करने के लिये भेजे। आनंदपाल ने
महमूद की सेना के लिये भोजन आदि की व्यवस्था कर अपने भाई के साथ उसकी सेवा
में दो हजार सैनिक भेजकर प्रार्थना की, कि थानेसर मंदिर को न तोड़े, बदले
में बड़ी रकम ले ले। उसने इसे नकार दिया। क्योंकि वह सैनिकों को बुतों और
मंदिरों को तोड़ने के लिये भड़काकर लाया था। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो सैना
उसके विरुद्ध बगावत कर सकती है। सैना में धार्मिक भावना भड़काकर ही वह
हिन्दुस्तान को लूटने में सफल हुआ है। देहली के राजा ने हिन्दु महाराजाओं
का लिखा कि थानेसर की रक्षा करनी चाहिये। किन्तु इन राजाओं के थानेसर
पहुँचने के पहिले ही महमूद वहाँ पहुँच गया और शहर खाली देखकर बुरी तरह से
लूटा। इस बुतखाने से इस कदर धन, जवाहरात, सोना आदि मिला, जो गिनती की हद से
बाहर था, यहाँ से एक किला याकूत का ऐसा मिला कि जिसका तौल चार सौ मिस्काल
था और ऐसा नफीस(जवाहर) किसी ने देखा तक न था।
–त्वरीख फरिश्ता पृष्ठ 49, व त्वारीख आइनये, हकीकतनुमा वाम दवम अकबरशाह नजीब पृष्ठ 171.
3. ज्वालामुखी मंदिर- (399 हीजरी) इसके पश्चात महमूद ने ज्वाला
1.महमूद गजनबी ने नगरकोट के किले(जो पहाड़ पर स्थित था) को घेर लिया।
उसके पास रहने वाले लोंगो का कत्ल किया(हिन्द के लोग इसे बुतों का खजाना
कहते थे) सोना, चाँदी और जवाहरात वहाँ इस कदर थे कि जो किसी बादशाह के
खजाने में भी नहीं थे। महमूद को वहाँ से साठ लाख दीनार सुर्ख, सौ मन चाँदी
और सोने के वर्तन, सौ मन कुन्दन (सोना), दो हजार मन शुद्ध चाँदी तथा तीस मन
जवाहरात प्राप्त हुये।
(त्वारीख फरिश्ता 40 और त्वारीख बहारस्तान नवल किशोर प्रेम मुफती गुलाम सरवर लाहौरी पृष्ठ 259)
2. फिर महमूद ने थानेसर मंदिर को(जिसका नाम जगसोम, उसको हिन्दु मक्का के
बराबर समझते थे) लूटने के उद्देश्य से आनन्दपाल को लिखा कि वह अपनी वह अपनी
सेना के विश्वसनीय लोगों को हमारी तकलीफ दूर करने के लिये भेजे। आनंदपाल
ने महमूद की सेना के लिये भोजन आदि की व्यवस्था कर अपने भाई के साथ उसकी
सेवा में दो हजार सैनिक भेजकर प्रार्थना की, कि थानेसर मंदिर को न तोड़े,
बदले में बड़ी रकम ले ले। उसने इसे नकार दिया। क्योंकि वह सैनिकों को बुतों
और मंदिरों को तोड़ने के लिये भड़काकर लाया था। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो
उसकी सेना उसके विरुद्ध बगावत कर सकती थी। सेना में धार्मिक भावना भड़काकर
ही वह हिन्दुस्तान को लूटने में सफल हुआ था। देहली के राजा ने हिन्दु
महाराजाओं का लिखा कि थानेसर की रक्षा करनी चाहिये। किन्तु इन राजाओं के
थानेसर पहुँचने के पहिले ही महमूद वहाँ पहुँच गया और शहर खाली देखकर बुरी
तरह से लूटा। इस बुतखाने से इस कदर धन, जवाहरात, सोना आदि मिला, जो गिनती
की हद से बाहर था, यहाँ से एक किला याकूत का ऐसा मिला कि जिसका तौल चार सौ
मिस्काल था और ऐसा नफीस(जवाहर) किसी ने देखा तक न था।
(त्वरीख फरिश्ता पृष्ठ 49, व त्वारीख आइनये, हकीकतनुमा वाम दवम अकबरशाह नजीब पृष्ठ 171)
3. ज्वालामुखी मंदिर- (399 हीजरी) इसके पश्चात महमूद ने ज्वाला देवी मंदिर
की ओर रुख किया, पुरजारियों ने द्वार खोल दिये। उसे यहाँ से साठ लाख सोने
के दीनार, सात सौ मन सोने के बुत (मूर्ति), दो सौ मन सोने चाँदी की
ईंटें, दो हजार मन खालिस सोना,बीस मन चाँदी तथा अनगिनत जवाहरात, हीरा,
मोती, लाल एवं नीलम मिले।
(अहकुम तारीख अल्यारूफ महबूबस्सलातीन मुहम्मद हुसैन खाँ पृष्ठ 112-113)
4. 400 हीजरी में महमूद कन्नौज को जीतकर सनद या संतोख पहुँचा। वहाँ का
राजा कालीचन्द था। लड़ाई में पचास हजार हिन्दु सैनिक मारे गये। राजा ने
आत्महत्या कर ली। वहाँ एक बहुत ही बड़ा बुत था। दो सोने के बुत थे। एक बुत
की आँखों में दो पचास हजार दीनार के याकूत लगे थे। दूसरे बुत की आँखों में
याकूत के अजरक बहुत कीमती थे। इन दोंनो बुतों का सोना आठ हजार आठ सौ
मिस्साल था। यहाँ चार सौ चाँदी के बुत भी थे। जिन्हें वह लूटकर ले गया।
(अहकम तारीख मौहम्मद हुसैन खाँ पृष्ठ 112-113 तथा बहारस्तान तारीख मुफती सरवर लोहौरी पृष्ठ 251-252)
5. महमूद मथुरा में बिना रोक टोक के पहुँचा। यह बहुत बड़ा शहर था। पहले शहर
को लूटकर विनाश कर दिया। उसे यहाँ से लूट में पाँच बुत सोने के जिनकी
आँखों में सुर्ख याकूत जड़े थे। उस समय जिनकी कीमत पचास हजार दीनार के
करीब थी। इसके अतिरिक्त इन बुतों में एक याकूत तथा रंग नीलगू जड़ा हुआ था।
वह बुत चार सौ मिस्साल तौल का था। जब उसे तोड़ा गया तो उसमें अनठानवें
हजार तीन सौ मिस्साल सोना निकला और चाँदी के सौ से अधिक छोटे बड़े बुत
थे।यह करीब सौ ऊँटों के बराबर बोझा था। इसके बाद इमारतों में आग लगा दी।
6. 415 हीजरी में महमूद को बताया गया कि हिन्दु मानते है कि मरने के बाद
जीव सोमनाथ के सामने उपस्थित होता है। सोमनाथ कर्मानुसार फल देते हैं। जब
वह सोमनाथ पहुँचा तो लोग उच्च स्वर में चिल्लाने लगे कि हमारा देवता
इन्हें यहाँ ले आया है। वह एक बार में ही इनका वध कर देगा। वे सोमनाथ से
महमूद को नष्ट करने की बात करने लगे। महमूद मौका देख, सीढ़ी लगा, मंदिर पर
चढ़, अल्लाहो अकबर का घोष करके लगा। मंदिर में चार हजार पुजारी एवं अन्य
लोग नावों में बैठकर सिरन्दीप भाग रहे थे। मेहबूब की सेना ने हमला कर उन्हे
डुबो दिया। वहाँ से उसे 56 स्तंभ जो जवाहरात से जड़े थे और सोमनाथ की
मूर्ति थी, जो पत्थर का तराशा हुआ पाँच गज का बुत था। दो गज जमीन में और 3
गज ऊपर था। महमूद ने गुरज मार कर दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया और फिर चार
टुकड़े करके दो गजनी और दो मदीने में भेजे। इस मूर्ति को न तोड़ने के लिये
पुजारियों ने तीन करोड़ रुपये देने को कहा। लेकिन उसे बताया गया था कि
इसमें अथाह धन है। अतः उसने पुजारियों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जब इस
मूर्ति को तोड़ा गया तो इसमें इतने जवाहरात निकले कि जितना पुजारी दे रहे
थे उससे कई गुना अधिक थे। मंदिर के घंटे की एक जंजीर ही दो सौ मन सोने की
थी। कहा जाता है कि उस राज्य के पास एक लाख सैनिक थे जबकि महमूद गजनवी के
पास मात्र 10 हजार सैनिक। लेकिन पुजारियों एवं ज्योतिषियों के अंधविश्वास
से महमूद गजनवी विजय हुआ। मंदिर लूटने के बाद कोड़े मार मार कर मंदिर के
खजाने का पता पूछा और उसे भी लूट लिया। पुजारियों को गुलाम बनाकर बिगारी
करवाई, पिसना पिसवाया, घास खुदवाई तथा सारे असम्माननीय कार्य करवाये एवं
खाने के लिये चने दिये। आदि।
(तारीख फरिश्ता पृष्ठ 51-52)
7. सुल्तान महमूद को इसी प्रदेश में एक ऐसा बुतखाना(मंदिर) मिला जो बिना
किसी के सहारे के अधर में लटका हुआ था। जब इस बुतखाने की छत एवं दीवार को
तोड़ा गया तब भेद खुला कि दीवारें चुम्बक की थीं और बुत लोहे का। दीवार
टूटते ही मूर्ति स्वयं नीचे गिर गई। कहा जाता है कि जब इस मूर्ति को तोड़ा
गया तो इसमें 18 करोड़ हीरे जवाहरात आदि निकले।
8. गुजरात के बल्लभराय के शासन महानगर के एक बुतखाने में सोने, चाँदी,
पीतल, हाथी दाँत तथा हर किस्म के वेशकीमती पत्थरों और जवाहरात के बीस हजार
बुत थे। उनमें एक सोने का बुत 12 गज ऊँचा तथा सोने के तख्त पर बैठा था। यह
तख्त एक गुम्मदनुमा सफेद मोतियों और सुर्ख, सब्ज, जर्द तथा आसमानी रंग के
जवाहरात से जड़ित था। इसे लूटकर तोड़ दिया गया।
(किताब अरबी हिन्द के तअल्लकात सैय्यद सुलेमान नदवी पृष्ठ 204)
9. शाहबुद्दीन अपनी विशाल सेना लेकर बनारस में प्रविष्ट हुआ और बंगाल तक
सारा देश अपने आधीन कर लिया। लगभग एक हजार बुतों को तोड़ा चार हजार ऊँटों
पर जवाहरात और सोने को लादकर ले गया।
(भारत में मुस्लिम सुल्तान पृष्ठ 71-72)
10. जयचन्द के मारे जाने के बाद कन्नौज और बनारस पर गौरी का अधिकार हो गया।
गौरी ने एक हजार से अधिक मंदिर गिराये, अकेले बनारस में ही एक हजार
बुत(मूर्ति) तोड़े और सोना, चाँदी, जवाहरात आदि को चार हजार ऊँटों में
लादकर अफगानिस्तान ले गया।
(वाकेआत दारुल्हकुमत भाग-1 बहरुद्दीन अहमद देहली पेज 26-27)
11. मुहम्मद शाह ने हवाली पर आक्रमण कर उसे पराजित किया और कत्ले आम करते
हुये बुतखानों को तोड़कर इतना धन प्राप्त किया कि जिसकी उसने स्वप्न में भी
कल्पना नहीं की थी।
(त्वारिख फरिश्ता पेज 469)
12. मुहम्द बिन तुगलक ने एक इलाका विजय किया। वहाँ से इतना सोना मिला कि 13 हजार बैलों में लादा गया।
(त्वारिख हिन्द पर नई रोशनी पेज 40)
13. सुल्तान तुगलक ने एक इलाका विजय किया, उसमें एक तालाब था। उसके
बीच एक मंदिर था। सुल्तान का ध्यान उसमंदिर की ओर दिलाया गया। तालाब का
पानी निकाला गया। इसके बीच में जो सोना निकला, वह इतना था कि दो हजार
हाथियों और कई हजार बैलों पर लादकर ले जाया गया।
(त्वारिख हिन्द पर नई रोशनी पेज 42)
विदेशी आततायी केवल अपने देश के लिये हमें लूटने आये थे, धर्म के लिये
नहीं। वे धार्मिक भी नहीं थे। अधिकांश आततायियों ने कत्ले आम किया,
जिसकी इजाजत कोई भी धर्म ग्रन्थ नहीं देता। उन्होंने ने अपनी बात को
सही साबित करने के लिये धर्म की परिभाषायें ही बदल दी, सत्ता एवं
शक्ति हाथ में होने के कारण इतिहास को उन्होंने अपने आपको सही साबित
करने के लिये अपने हिसाब से लिखवाया। विदेशी आततायियों ने भारत को लूटकर,
कत्ले आम किया, उनकी औरतों एवं बच्चों को लौंडी एवं अपना गुलाम बनाया उनके
धार्मिक स्थलों को तोड़कर अपनी विजय के प्रतीक स्वरूप मस्जिद या चर्च
बना दिया। लेकिन खुदा के नियम के अनुसार वे उसके इबादत स्थल नहीं बन
सकते, क्योंकि वहाँ से तो लहूँ की गंध आती है। जो खुदा को बिल्कुल नहीं
भाती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें