हर गली में है दुर्योधन और दुशासन |
"क्या है इंसान की पहचान शारीरिक सुंदरता या मन की सुंदरता उसके स्वभाव और गुण " आपको क्या लगता है ?? एक बार जुलाई सन 1983 की बात बताता हूँ मै अपने दोस्तों के साथ के साथ बस में सफ़र कर रहा अथा...सफ़र क्या हम सभी लोग कॉलेज में दाखिले के लिए जा रहे थे मुझे भी मदद के लिए बुला लिया....तो मै भी उनके साथ चलने को तैयार हो गया तमाशा तब शुरू हुआ जब मै उनके साथ बस में खिड़कीवाले शीट पर बैठा .बस में एक मोटी सी काली कलूटी लडकी भी खडी थी बस शुरू - जानेवाले सभी कमेंट करना चालू हो गया....पहला कमेंट्स ....वो देख कितनी काली है एक तो काली है ऊपर से काला ड्रेस भी पहनी है......
दुसरा कमेंट्स ...देख कितनी काली और कितनी मोटी है ....तीसरा कमेंट्स ...कौन सी चक्की की आता खाती है जो इतनी मोटी है ? आदि आदि कई कमेंट्स आने लगी और ओ लडकी कुछ देर तक तो सूना फिर ओ जोर जोर से रोने लगी मैं ये सब नजारा देख रहा था ..मेरे से रहा नहीं गया और मैं पिल पडा उन लडको की तरफ ..पहले तो उन लडको को समझाया नहीं समझे तो फिर हम कई दोस्त मिलकर धुनाई करने लगे ...ड्राइवर ने डर कर बस रोक दिया और ओ लड़के उतर कर भागे और हम भी उनके पीछे पीछे भागे और उनकी धुनाई करते रहे उस धुनाई में हमें भी कई लात घुसे पड़े बस वही बात आज याद आ गई और इस ब्लॉग का जन्म हुआ ......
“अच्छे इंसान की पहचान” बहुत मुश्किल है. यह पहचान हमेशा मुश्किल रही है, हर युग में, पर चुकी यह कलियुग है तो ये कठिनाई अपने चरम की कठिनाई है. कोई अगर यह पूछे की पहले तो सतयुग था फिर त्रेता, जिस युग में अवतार हुए हो वहां भला अच्छे इंसान क्यों नही मिलेंगे , पर उनके प्रश्नों का उत्तर उन्ही क उत्तरों में है. भगवान तब ही तो अवतार लेते है जबकि अच्छे लोग कम और बुरे जयादा हो जाते है!आज के युग में कुछ भी अच्छा ढूंढना मुश्किल होता है, ना शुद्ध वायु मिलती है, ना शुद्ध पानी, ना तो शुद्ध सब्जी मिलती है और ना ही शुद्ध फल सब में मिलावट. इतनी हेरा-फेरी देखकर इंसान के मन ने सोचा जब सबमै मैं ही मिलावट करता हूँ तो मैं शुद्ध रहकर क्यों इसी नयी दुनिया में शामिल ना होऊं … बस इसीलिए अब इंसान भी ‘मिलावटी’ हो गये है..............
मनुष्य एक ‘सामाजिक पशु’ है. पशु शब्द जुड़ने से ही उसकी ऐसी संकीर्ण सोच का कारण स्पष्ट होता है. पशुओ का मन भी ऐसी ही संकुचित व विकृत सोच रखता है. लेकिन सामाजिक शब्द जुड़ने से उसके मनुष्य होने का प्रमाण भी मिलता है. मनुष्य….. जिसके पास आत्मा है व चेतना है.
यही आत्मा और चेतना ही उसे यह एहसास दिलाती है की क्या सही है, क्या गलत है. आत्मा एक चीज़ है या गुण है या यूँ कहे की आत्मा, आत्मा ही है किसी से कोई सम्बन्ध नही है, यह मुक्त है. कहा जाता है कि आज का इंसान ज्यादा आस्थिर मन का है. इसका कारण यह है कि आज के आधुनिकतम परिवेश में कथित रूप से आधुनिक बनने या समय के आनुसार चलने कि जो शर्ते है, तरीके है व नियम है, वह हमारे मूल मनुष्य के स्वभाव को बहुत पीछे छोड़ने को कहते है.
आज झूट बोलना गलत नही वरन जरुरी समझा जाता है, सीधे व सरल लोगो को लोग अच्छा नही वरन बुद्धू मानते है, अपने हित को प्रमुखता व दूसरे कि चिंता ना करने वाले को लोग Smart मानते है, बनावटीपन ना दिखने वाले को पिछली व पुरानी पीढ़ी वाले कि नज़र से देखते है, झूटी कसीदे गढ़ने वालो को आधुनिक माना जाता है…
……जहाँ अच्छे इंसान कि परिभाषा में ऐसे लोग आते है, वहां वास्तव में अच्छे इंसान दूंढ़े तो कैसे ढूंढें.??
दुसरा कमेंट्स ...देख कितनी काली और कितनी मोटी है ....तीसरा कमेंट्स ...कौन सी चक्की की आता खाती है जो इतनी मोटी है ? आदि आदि कई कमेंट्स आने लगी और ओ लडकी कुछ देर तक तो सूना फिर ओ जोर जोर से रोने लगी मैं ये सब नजारा देख रहा था ..मेरे से रहा नहीं गया और मैं पिल पडा उन लडको की तरफ ..पहले तो उन लडको को समझाया नहीं समझे तो फिर हम कई दोस्त मिलकर धुनाई करने लगे ...ड्राइवर ने डर कर बस रोक दिया और ओ लड़के उतर कर भागे और हम भी उनके पीछे पीछे भागे और उनकी धुनाई करते रहे उस धुनाई में हमें भी कई लात घुसे पड़े बस वही बात आज याद आ गई और इस ब्लॉग का जन्म हुआ ......
“अच्छे इंसान की पहचान” बहुत मुश्किल है. यह पहचान हमेशा मुश्किल रही है, हर युग में, पर चुकी यह कलियुग है तो ये कठिनाई अपने चरम की कठिनाई है. कोई अगर यह पूछे की पहले तो सतयुग था फिर त्रेता, जिस युग में अवतार हुए हो वहां भला अच्छे इंसान क्यों नही मिलेंगे , पर उनके प्रश्नों का उत्तर उन्ही क उत्तरों में है. भगवान तब ही तो अवतार लेते है जबकि अच्छे लोग कम और बुरे जयादा हो जाते है!आज के युग में कुछ भी अच्छा ढूंढना मुश्किल होता है, ना शुद्ध वायु मिलती है, ना शुद्ध पानी, ना तो शुद्ध सब्जी मिलती है और ना ही शुद्ध फल सब में मिलावट. इतनी हेरा-फेरी देखकर इंसान के मन ने सोचा जब सबमै मैं ही मिलावट करता हूँ तो मैं शुद्ध रहकर क्यों इसी नयी दुनिया में शामिल ना होऊं … बस इसीलिए अब इंसान भी ‘मिलावटी’ हो गये है..............
मनुष्य एक ‘सामाजिक पशु’ है. पशु शब्द जुड़ने से ही उसकी ऐसी संकीर्ण सोच का कारण स्पष्ट होता है. पशुओ का मन भी ऐसी ही संकुचित व विकृत सोच रखता है. लेकिन सामाजिक शब्द जुड़ने से उसके मनुष्य होने का प्रमाण भी मिलता है. मनुष्य….. जिसके पास आत्मा है व चेतना है.
यही आत्मा और चेतना ही उसे यह एहसास दिलाती है की क्या सही है, क्या गलत है. आत्मा एक चीज़ है या गुण है या यूँ कहे की आत्मा, आत्मा ही है किसी से कोई सम्बन्ध नही है, यह मुक्त है. कहा जाता है कि आज का इंसान ज्यादा आस्थिर मन का है. इसका कारण यह है कि आज के आधुनिकतम परिवेश में कथित रूप से आधुनिक बनने या समय के आनुसार चलने कि जो शर्ते है, तरीके है व नियम है, वह हमारे मूल मनुष्य के स्वभाव को बहुत पीछे छोड़ने को कहते है.
आज झूट बोलना गलत नही वरन जरुरी समझा जाता है, सीधे व सरल लोगो को लोग अच्छा नही वरन बुद्धू मानते है, अपने हित को प्रमुखता व दूसरे कि चिंता ना करने वाले को लोग Smart मानते है, बनावटीपन ना दिखने वाले को पिछली व पुरानी पीढ़ी वाले कि नज़र से देखते है, झूटी कसीदे गढ़ने वालो को आधुनिक माना जाता है…
……जहाँ अच्छे इंसान कि परिभाषा में ऐसे लोग आते है, वहां वास्तव में अच्छे इंसान दूंढ़े तो कैसे ढूंढें.??
किसी दोस्त ने यह कविता कहा है ......कि....
बन बैठा इंसान दरिंदा, तौबा इसकी बुरी नज़र ।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
नर्क बना रहे जीवन इनका, इज्जत को इनकी छीन कर ।
ये भी माँ, बहन, किसी कि बेटी है, खुद अपने घर में डाल नज़र ।।
ये भी माँ, बहन, किसी कि बेटी है, खुद अपने घर में डाल नज़र ।।
ना भरोसा आस पड़ोस का, ना बचा यकीन किसी रिश्तेदार पर ।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
औरत के बदन मैं बस, उसकी इज्जत ही सांसे लेती है ।
दो मुक्ति भय से इसको भी, क्यों डरी डरी ये रहती है ।।
दो मुक्ति भय से इसको भी, क्यों डरी डरी ये रहती है ।।
भय भरा है मन में दरिंदो का, स्वछंद भ्रमण अधिकार दो ।
ये विश्व सृजन की भागी है, इसे इज्जत दो सत्कार दो ।।
ये विश्व सृजन की भागी है, इसे इज्जत दो सत्कार दो ।।
कोलेज , बस्ती में जीना मुश्किल, छेडी जाती है हर गाँव शहर ।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
उन्नति की ये पहचान है, इसे पढ़ना आगे बड़ना है ।
पापी इसके प्रतिकार से डर, बिन मौत तुझे क्यों मरना है ।।
पापी इसके प्रतिकार से डर, बिन मौत तुझे क्यों मरना है ।।
ना इसका सीना छलनी कर, ऐसी ओछी दुराचारी कर ।
इसने ही रचा है तुझको भी, ना खुद ईश्वर से गद्दारी कर ।।
इसने ही रचा है तुझको भी, ना खुद ईश्वर से गद्दारी कर ।।
हर देश सदा आगे बड़ पाया, एक शुद्ध समाज की नीव पर ।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
कहाँ कहाँ बच पाएगीं लड़कियां, हर जगह इन्हें लुटेरों का डर ।।
नोट ----आप किसी को कोई अच्छा इंसान मिले तो मुझे इस नंबर पर जरुर बताना ....09826656698 मैं उस अच्छे इंसान से मिलना चाहुगा ..
काश हम इंसान बन पाते
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