बुधवार, 28 मार्च 2012

!!जातिवाद सिर्फ़ हिंदू धर्म में है क्या ?

वैदिक समाज को श्रम विभाजन के निमित्त चार वर्णों में विभक्त किया गया था। किन्तु कालान्तर में इससे लाखों जातियाँ बन गयीं। जाति के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव या पक्षपात करना जातिवाद कहलाता है। एक जाति स्वयं अनेक उपजातियों तथा समूहों में विभक्त रहती है। उच्च हिंदू जातियों में गोत्रीय विभाजन भी विद्यमान हैं। एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे जाते हैं। कभी कभी जब किसी जाति का एक अंग अपने परंपरागत पेशे के स्थान पर दूसरा पेशा अपना लेता है तो कालक्रम में वह एक पृथक्‌ जाति बन जाता है, किंतु उसका गोत्र वो ही रहता है| इस प्रकार एक गोत्र अनेक जातियों में विभक्त हो जाता है| इन उपजातियों में भी ऊँच नीच का एक मर्यादाक्रम रहता है। उपजातियाँ भी अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है और इनमें भी उच्चता तथा निम्नता का एक क्रम होता है जो विशेष रूप से विवाह संबंधों में व्यक्त होता है|


क्या जातियाँ, छुआ-छूट सिर्फ़ हिंदू धर्म में हैं?

ईसाइयों, मुसलमानों, जैनों और सिखों में भी जातियाँ हैं और उनमें भी उच्च, निम्न तथा शुद्ध अशुद्ध जातियों का भेद विद्यमान है| ईसा की 12 वीं शती में दक्षिण में वीर शैव संप्रदाय का उदय जाति के विरोध में हुआ था। किंतु कालक्रम में उसके अनुयायिओं की एक पृथक्‌ जाति बन गई जिसके अंदर स्वयं अनेक जातिभेद हैं। सिखों में भी जातीय समूह बने हुए हैं और यही दशा कबीरपंथियों की है। गुजरात की मुसलिम बोहरा जाति की मस्जिदों में यदि अन्य मुसलमान नमाज पढ़े तो वे स्थान को धोकर शुद्ध करते हैं। बिहार राज्य में सरकार ने 27 मुसलमान जातियों को पिछड़े वर्गो की सूची में रखा है। मुसलमानों और सिक्खों की भाँति ईसाइयों में अछूत समूह हैं जिनके गिरजाघर अलग हैं अथवा जिनके लिये सामान्य गिरजाघरों में पृथक्‌ स्थान निश्चित कर दिया गया है। किंतु मुसलमानों और सिखों के जातिभेद हिंदुओं के जातिभेद से अधिक मिलते जुलते हैं जिसका कारण यह हे कि हिंदू धर्मं के अनुयायी जब जब इस्लाम या सिख धर्म स्वीकार करते हें तो वहाँ भी अपने जातीय समूहों को बहुत कुछ सुरक्षित रखते हैं और इस प्रकार सिखों या मुसलमानों की एक पृथक्‌ जाति बन जाती है।


घर के ना घाट के

मुगल काल में औरंगज़ेब के समय में सब ज़्यादा हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया| किसी ने मजबूरी में तो किसी ने अपनी इच्छा से लालच के कारण धर्म परिवर्तन किया|

ईसाई मिशनरियों ने जाति हिंदू व्यवस्था को तोड़ने के लिए इसे ब्राह्मणवाद की रचना कहना प्रारंभ किया| देवेन्द्र स्वरूप जी बताते हैं कि "जाति प्रथा से छुटकारा दिलाने के नाम पर उन्होंने अपने धर्मांतरण के प्रयास निचली और निर्धन जातियों पर केन्द्रित कर दिये|" इसके लिए बाईबल के जिस वाक्य को आधार बनाया गया वह है कि "हे (जाति) बोझ से दबे और थके (दलित) लोगों, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा." जो लोग अपनी जाति से मुक्ति चाहते थे उन्होने ईसाईयत को मुक्ति का द्वार माना| जाति को बुरा बताने वाला चर्च अब दलित ईसाई की बात करता है| ईसाई संगठनों और चर्चों ने हमेशा यही कहा है कि अगर दलित और पिछड़े लोग छूआछूत की अभिशाप से मुक्ति चाहते है तो ईसाईयत का रास्ता पकड़ें| 2008 तक  देश में कुल दलितों में 1.5 करोड़ दलित ईसाई थे| जी लोगो ने सब्ज़ बात देख कर अपने धर्म परिवर्��न किया वो जिस स्थिति से गये थी उसी स्थिति में थे उससे बुरी स्थिति में पहुँच गये .......| भला या बुरा जैसा भी था अपना था किंतु अब तो ना घर के रहे और ना घाट के अपने लोग धर्म परिवर्तन के कारण हैय दृष्टि से देखते हैं और जिस धर्म में जाते हैं उनका समाज पूर्ण रूप से अपनाता नही ......


सामाजिक मर्यादा की दृष्टि से विभिन्न वर्गों का श्रेणीविभाजन तो सभी देशों में रहा है।

प्राचीन मिस्र में पुरोहित, सैनिक, लेखक, चरवाहे, सुअर पालनेवाले और व्यापारियों के पृथक्‌ पृथक्‌ वर्ग थे जिनके पेशे और पद वंशानुगत थे। कोई कारीगर अपना पैतृक धंधा छोड़कर दूसरा धंधा नहीं कर सकता था। सुअर पालने वाले अछूत माने जाते थे और उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।

जापान में सैनिक सामंतवाद (12वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के मध्य तक) के शासनकाल में अभिजात सैनिक समुराई वर्ग के अतिरिक्त कृषक, कारीगर, व्यापारी और दलित वर्ग थे। दलित वर्ग में एता और हिनिन दो समूह थे जो समाज के पतित अंग माने जाते थे और गंदे तथा हीन समझे जानेवाले कार्य उनके सपुर्द थे।

अफ्रीका में लोहारों का समूह प्राय: शेष समाज से पृथक्‌ रखा जाता है|

प्राचीन मिस्र, मध्यकालीन रोम और सामंती जापान में राज्य की ओर से अंतर्विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे और पेशों को वंशानुगत कर दिया गया था।


जातीय संघटन नए ढ़ग से अपने को संगठित कर रहे हैं

श्री भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में पहले दलित वर्गसंघ और बाद में रिपब्लिकन पार्टी बनी और दक्षिण भारत में पहले जस्टिस पार्टी और स्वतंत्रप्राप्ति के बाद द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम्‌ का संघटन हुआ। देश के लोकतांत्रिक निर्वाचनों में जातितत्व प्रमुख हो जाता है, सरकारी नौकरियों और सुविधाओं की प्राप्ति में भी जातीय पक्षपात प्रतिलक्षित होता है। इस प्रकार राजनीति में जाति का विशेष स्थान हो गया है।
जातिवाद तो सभी धर्मो में है ..सच्चाई देखें इस दकुमेंतरी फिल्म में जो एक सच्चाई बया करती है .




भारतीय संविधान और कानून की दृष्टि से छुआछूत का व्यवहार दंडनीय अपराध है।
!! इस्लाम में जातिवाद” के कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने !!

१. जबसे इस्लाम मज़हब बना है तभी से “शिया और सुन्नी” मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग आपस में लड़ते-मरते रहते हैं ...!!
२. अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया, पठान आदि मुस्लिमों की जातियां हैं, और हंसी की बात, यह एक ही अल्लाह को मानने वाले, एक ही मस्जिद में नमाज़ नहीं पढते!!! सभी जातियों के लिए अलग अलग मस्जिदें होती हैं .!!
३. सउदी अरब, अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि अन्य अरब राष्ट्रों के मुस्लिम पाकिस्तान, भारत और बंगलादेशी मुस्लिमों को फर्जी मुसलमान मानते हें और इनसे छुआछूत मानते हैं । सउदी अरब मे ऑफिसो मे भारत और पाक के मुसलमानों के लिए अलग पानी रखा रखता है |
४. शेख अपने आपको सबसे उपर मानते हैं और वे किसी अन्य जाति में निकाह नहीं करते.
५. इंडोनेशिया में १०० वर्षों पूर्व अनेकों बौद्ध और हिंदू परिवर्तित होकर मुस्लिम बने थे, इसी कारण से
सभी इस्लामिक राष्ट्र, इंडोनेशिया से घृणा की भावना रखते हैं..
६. क़ाज़ी मुस्लिम, ''भारतीय मुस्लिमों'' को मुस्लिम ही नहीं मानते... क्यूंकि उन का मानना है के यह सब भी हिंदूधर्म से परिवर्तित हैं !!!
७. अफ्रीका महाद्वीप के सभी इस्लामिक राष्ट्र जैसे मोरोक्को, मिस्र, अल्जीरिया, निजेर,लीबिया आदि राष्ट्रों के मुस्लिमों को तुर्की के मुस्लिम सबसे निम्न मानते हैं ।
८. सोमालिया जैसे गरीब इस्लामिक राष्ट्रों में अपने बुजुर्गों को ''जीवित'' समुद्र में बहाने की प्रथा चल रही है!!!
९. भारत के ही बोहरा मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नहीं जाते, वो मात्र मज़ारों पे जाते हैं... उनका विश्वास सूफियों पे है... अल्लाह पे नहीं !!

१०. मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-

१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ। अशरफ से तात्पर्य है 'कुलीन' और शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के मुसलमान शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है।
कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं।
उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा- जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ) मलिक और (अप) मिर्ज़ा।
२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान......
(A) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जोमूलतः हिन्दू थे, किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।
(B) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।
(C) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई,धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा,लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।
(D) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।

३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग भानार, हलालखोदर,हिजड़ा , कसंबी, लालबेगी, मोगता, मेहतर।

अल्लाह एक, एक कुरान, एक .... नबी ! और महान एकता......... बतलाते हैं स्वंय में ?
जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .
और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!
इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .
इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.
और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.
फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!
किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .
कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..
आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .
सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..
आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है .
अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...
पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है ।
और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं, जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.

!! अब आइये ... जरा हम अपने हिन्दू/सनातन धर्म को भी देखते हैं.!!

हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप-टिप्पणियों मौजूद हैं..!एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियों की विविधता,अनेकों आचार्य तथा हजारोंऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..
फिर भी, हम सभी मंदिरों में जाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .
और तो और.... पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में आपस में धर्म के नाम पर "कभी झगड़ा नहीं" हुआ .
इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ... और...."गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"...!


नोट --अंत में मैं यह निःसंकोच कह सकता हु की यह जातिप्रथा और छुआछुत निश्चय ही सनातन धर्म की देन हो सकती है !!

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