मंगलवार, 24 जनवरी 2012

!!उफ्फ ! यह जाति की दीवार आखिर कब तक ???

कहते हैं ‘Truth is stranger than Fiction ‘ .इस घटना पर यह उक्ति पूर्णतः खरी उतरती है.
काफी पहले की घटना है,मेरे गाँव से एक छोटे से लड़के को एक उच्च वर्ग वाले अपने शहर नौकर के तौर पर ले गए.उन दिनों ऐसा चलन सा था.पिता खेतों में काम करता और उनके बच्चे शहरों में किसी ना किसी के घर नौकर बन कर जाते.अब तो यह चलन समाप्तप्राय है.नयी पीढ़ी के नौजवान खुद ही पंजाब,असाम जाकर मजदूरी करते हैं. पर बीवी बच्चों को आराम से रखते हैं.
खैर, ऐसे ही हमारे ‘शालिक काका’ का बेटा ‘शिव ज्योति ‘ किसी के साथ शहर गया और दो दिनों बाद ही वहाँ से भाग निकला.उसे ना शहर का नाम पता था,ना अपने घर का पता और वह गुम हो गया.गाँव में जब पता चला तो बहुत हंगामा मचा.उन महाशय के घर के सामने शालिक काकी (हम उन्हें यही,कहते थे) ने जाकर बहुत गालियाँ दीं.उन दिनों ऐसा ही करते थे,जिस से नाराजगी हो उसके घर के सामने जाकर चिल्ला चिल्ला कर खूब गालियाँ दीं जाती थीं.और बाकी पूरा गाँव तमाशा देखता था.’शालिक काका’ ने भी अपने बाल और  दाढ़ी,मूंछ बढा ली थी . लोग कहते , उन्होंने कसम खाई है कि जिस शख्स की वजह से उनका बच्चा गुम हो गया है., उसका क़त्ल करने के बाद ही कटवाएँगे. उन महाशय का, जो ‘शिव ज्योति ‘ को गाँव से लेकर गए थे का गाँव आना बंद हो गया.
इसके बाद तो इतनी अफवाहें उड़ने लगीं, जितनी धूल भी किसी  कच्ची मिटटी पर चलती कोई बस भी क्या उड़ाएगी .रोज नए किस्से.कोई कहता,  शिव ज्योति (वैसे उसके नाम का सही उच्चारण कोई नहीं  करता…कुछ लोग ‘सिजोती’ कहते पर ज्यादातर लोग ‘सिजोतिया’ ही कहते)  को सर्कस में देखा है,कोई कहता किसी बाज़ार में तो कोई कहता किसी प्लेटफ़ॉर्म पर.ढोंगी बाबाओं की भी खूब बन आई.पता बताने के बहाने उस गरीब से खूब रुपये ऐंठते.!ऐसे ही एक बार गाँव में साधुओं का एक दल आया. उसमे से एक किशोर साधू का चेहरा थोडा बहुत शिव ज्योति से मिलता था. फिर क्या पूरा गाँव उसके पीछे.संयोग से मैं भी उन दिनों गाँव गयी हुई थी.बड़े भाई’ राम ज्योति’ ने उस साधू का हाथ कस कर पकड़ रखा था.हमारे गाँव में उस जाति विशेष में कुछ ऐसी ही प्रथा थी.,बड़े बेटे का नाम ‘राम’ पर रखते और छोटे बेटे का ‘शिव’ पर . गाँव के सारे बच्चे, बड़े उसे घेर कर खड़े.सैकड़ों सवाल उस से पूछे जाते.और हर सवाल का मतलब अपनी तरह से लोग निकाल लेते.उस से पूछा “ये पास वाले खेत किसके हैं.?”..उसने कहा,”मालिक के”..और पूरा गाँव अश अश कर उठा क्यूंकि मेरे दादाजी को सबलोग मालिक कह कर बुलाते थे.आस पास के खेत उनके ही थे.ऐसे ही उसके शरीर पर के सारे चिन्ह लोगों को शिव ज्योति से मिलते जुलते लगे,दिन भर यह तमाशा होता रहा.हार कर उसने मान लिया कि वही ‘शिव ज्योति’ है और कहा” ठीक है,चलो घर चलता हूँ”.घर जाकर उसने खाना खाया अच्छे से बातें कीं और जब सब लोग सो गए तो रात के अँधेरे में उठ कर भाग निकला.उस फूस की झोपडी में कोई मजबूत दरवाजे और ताले तो थे नहीं.,सबने शालिक काका को समझाया जाने दो ,वो साधू बन गया है.संसार त्याग दिया है.अब उसे घर बार का मोह नहीं.शालिक काका ने भी अपनी जटा से निजात पा ली.और अब उनके बेटे को यहाँ वहाँ देखने के किस्से भी बंद हो गए.उन ढोंगी बाबाओं को जरूर तकलीफ हुई होगी.
काफी सालों बाद,संयोग से मैं गाँव में ही था .उन्ही दिनों एक १७,१८ साल का एक सुन्दर नवयुवक अच्छे शर्ट पेंट,जूते पहने एक सज्जन के साथ नमूदार हुआ.उस से नाम और परिचय पूछने की जरूरत भी नहीं पड़ी क्यूंकि वह अपने भाई की कार्बन कॉपी लग रहा था.पूरे गाँव में शोर मच गया.
हमारे घर के बाहर के बरामदे में उसे कुर्सी दी गयी बैठने को,जबकि उसके पिता और भाई जिंदगी भर जमीन पर ही बैठते आए थे.पर वेश भूषा को ही तो इज्जत मिलती है.उस सज्जन ने बताया कि बरसों पहले वह लड़का उन्हें अपनी मिठाई की दुकान के पास बैठा मिला था.जब दो तीन दिन लगातार उसे एक ही जगह पर बैठा देखा तो पूछताछ की पर उसे कुछ भी मालूम नहीं था.उन्हें दया आ गयी और दुकान पर छोटे मोटे काम के लिए रख लिया.धीरे धीरे उस से अपनापन हो गया और अपने बेटे जैसा मानने लगे.उसे स्कूल भी भेजा.पर उसने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी.
इन सज्जन की एक बेटी थी…अब ये सोचने लगे कि शिवज्योति की शादी अपनी बेटी से कर दें.पर अपने देश में शादी में सबसे पहले देखी जाती है ‘जाति’.और उन्हें इस लड़के की जाति का कुछ पता नहीं.लड़के को अपना घर तक याद नहीं.उसे सिर्फ इतना याद था कि उसके गाँव के स्टेशन का नाम ‘डभौरा’(मेरे गाव से ११ किलोमीटर दूर है उत्तरप्रदेश के बार्डर पर) है और स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर एक बरगद का पेड़ है.और पेड़ के सामने उसके मामा का घर.इतने से सूत्र से वे महाशय ढूंढते हुए सही जगह पहुँच गए.उन्हें लगा बरगद का पेड़ हर जगह तो नहीं होता.और उनका सोचना सही ही था.पर इसके बाद जो कुछ भी हुआ…वह कल्पना से परे है.शालिक काका लड़के वाले बन गए और उन महाशय से जब जाति पूछी तो उनकी जाति शालिक काका की जाति से नीची थी.बस इनके भाई बन्धु सब कहने लगे नीचे घर की लड़की(मतलब उसकी साडी किस जाति में करेगे) कैसे घर में लायेंगे?? मेरे दादाजी प्रगतिशील विचारों वाले थे .उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की.पर "शालिक काका" की बड़ी बड़ी काल्पनिक मूंछे निकल आई थीं.और उसपे ताव देते हुए, वे बेटे के बाप के गुरूर में मदमस्त थे. शिव ज्योति भी अपने आपको इतने लोगों के आकर्षण का केंद्र बना देख, उन सज्जन के किये सारे अहसान भुला बैठा.और बिलकुल श्रवण कुमार बन गया .नीची निगाह किये यही कहता रहता,’जो ये लोग बोलें’.जैसे आजकल के लड़के दहेज़ लेने के नाम पर श्रवण कुमार बन जाते हैं और सर झुकाए कहते हैं,”‘हमें तो कुछ नहीं चाहिए,माता-पिता जानें”.वे सज्जन,आँखों में आंसू भरे वापस लौट गए.
कुछ दिन तो शिव ज्योति गाँव का हीरो बना घूमता रहा.हर बड़े घर वाले लोग उसे अपने घर बुलाते .कुर्सी पर बिठाते,सारी कहानी सुनते.
घर की महिलाएं भी उसे आँगन में बुला उसकी खूब खातिर तवज्जो करतीं. पर कुछ ही दिन चला ये.सब फिर सबलोग अपने काम में मशगूल हो गए.शिवज्योति को गाँव का कठिन जीवन रास नहीं आया और वह बगल के शहर भाग गया और वहाँ अब रिक्शा खींचने लगा.पर क्यों ??
इस जाति की दीवार ने उस से एक अच्छे जीवन का सुख हर लिया.वाह रे जाति की दीवार !!
नोट --सत्य घटना पर आधारित एक कहानी है यह !!

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