सोमवार, 12 दिसंबर 2011

परिश्रम क्यों ?

हर मानव की कुछ इच्छाएँ व आवश्यकतायें होती हैं। वह सुख शान्ति की कामना करता है, दुनियाँ में नाम की इच्छा रखता है।किन्तु कलपना से ही सब कार्य सिद्ध नहीं हो जाते। इसके लिये परिश्रम करना पड़ता है। जैसे सोये हुए शेर के मुख में पशु स्वयं ही प्रवेश नही करता उसे भी परिश्रम करना पड़ता है, वैसे ही केवल मन की इच्छा से काम सिद्ध नही होते उनके लिये परिश्रम करना पड़ता है। परिशम ही जीवन की सफलता का रहस्य है।
परिश्रम के बल पर मानव अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है। एक आलसी व अकर्मण्य मानव कभी अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकता।भाग्य के सहारे बैठने से कार्य सम्पन्न नहीं होते। विद्यार्थी वर्ग को भी परीक्षा में सफलता पाने के लिये अटूट श्रम करना पड़ता है।मानव परिश्रम से अपने भाग्य को बना सकता है ,कहा जाता है कि ईश्वर भी उन्ही की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं।
मानव का शारीरिक व मानसिक विकास भी परिश्रम पर निरभर करता है। आधुनिक मनुष्य वैज्ञानिक यंत्रों का पुजारी बनता जा रहा है।परिश्रम की ओर से लापरवाही इसमें घर करती जा रही हैं। नैतिक पतन हो रहा है जिससे अशांति फैलती जा रही है। फलस्वरूप समाज और रष्ट्र की प्रगति के लिये भी परिश्रम आवश्यक है।
!!सच्चे सुख व विकास के लिये परिश्रम के महत्त्व को समझना अत्यन्त आवश्यक है!!

श्रम ही ते सब होत है, जो मन सखी धीर ! श्रम ते खोदत कूप ज्यों, थल में प्रगटै नीर !!

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं किपरिश्रम करने से ही सब कार्य संपन्न होते हैं बस मन में धीरज होना चाहिए। बहुत परिश्रम करने से कुआँ खोदा जाता है तो पानी निकल ही आता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-जीवन में विकास के लिए सब लोग प्रयास करते हैं पर कुछ लोग उतावले रहते हैं कि उनको जल्दी सफलता मिल जाये और नहीं मिलती तो वह निराश हो जाते हैं। इससे उनकी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं और वह प्रयास करना छोड़ देते हैं और उससे उनको सफलता नहीं मिल पाती। उनके धीरज खोने का यह परिणाम होता है कि जो थोडा-बहुत परिश्रम उन्होने किया होता है उस पर पानी भी फिर जाता है। जो लोग अपनी सफलता में विश्वास करते हुए धीरज के साथ परिश्रम करते हैं उनको आखिर सफलती मिल ही जाती है।आजकल प्रचार माध्यमों में अच्छे भविष्य के लिए जल्दी सफलता का जो प्रचार किया जाता है वह केवल लोगों को उतेजित कर उनकी जेब से पैसे एन्ठने के लिए होता है। कई ऐसे कार्यक्रम होते हैं जिनमें तमाम तरह के लोग पुरस्कार होते हैं तो लोगों को लगता है कि हम भी ऐसी ही सफलता हासित करें, पर सबके लिए यह संभव नहीं हैं। हम इस तरह के जो कार्यक्रम देखते हैं उसमें पुरस्कार आखिर कोई अपनी जेब से नहीं देता बल्कि तमाम तरह की कंपनियां जो अपने उत्पादों को जनता में बेचकर पैसा कमाती हैं वह विज्ञापन के रूप में उन कार्यक्रमों का उपयोग करतीं हैं। इसमें चंद लोगों को पैसा तो मिल जाता है पर बाकी लोग केवल ऐसी जल्दी सफलता की कल्पना करते हैं और बाद में उनको कलपना भी पड़ता है। जीवन में आगे बढ़ने का कोई शार्टकट नहीं है। अगर कुछ लोगों को मिल जाती हैं तो उसे इतने बडे समाज को देखते हुए आदर्श नहीं माना जा सकता है। अत: जीवन में धीरज रखते हुए अपना परिश्रम जारी रखना चाहिऐ।

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