होते सिक्के के दो पहलू
एक पाप और एक पुण्य
बाध्य करते सोचने को
है पाप क्या और पुण्य क्या
है यह अवधारणा
विकसित मस्तिष्क की |
निजी स्वार्थ हित धन देना
क्या पाप नहीं होता ?
पर मंदिर में दिया दान
कैसे पुण्य हो जाता |
जहाँ किसी का हित होता
वही पुण्य निहित होता
जब पश्चाताप किसी को होता
उसके लिए वही पाप होता
आवश्यकता से अधिक संचय
आता पाप की श्रेणी में
लोक हित के लिए संचय
महान कार्य कहा जाता |
यदि पशु की बलि देते हैं
कहलाता देवी का प्रसाद
पर है पशु वध हिंसा ही
यह पाप भी कहलाती है |
है दोनों में अंतर क्या
यह कठिन प्रश्न सा लगता है |
पाप है क्या व पुण्य क्या ?
दृष्टिकोण है सब का अपना
जो जैसा सोचता है
वैसा ही उसको लगता |
एक पाप और एक पुण्य
बाध्य करते सोचने को
है पाप क्या और पुण्य क्या
है यह अवधारणा
विकसित मस्तिष्क की |
निजी स्वार्थ हित धन देना
क्या पाप नहीं होता ?
पर मंदिर में दिया दान
कैसे पुण्य हो जाता |
जहाँ किसी का हित होता
वही पुण्य निहित होता
जब पश्चाताप किसी को होता
उसके लिए वही पाप होता
आवश्यकता से अधिक संचय
आता पाप की श्रेणी में
लोक हित के लिए संचय
महान कार्य कहा जाता |
यदि पशु की बलि देते हैं
कहलाता देवी का प्रसाद
पर है पशु वध हिंसा ही
यह पाप भी कहलाती है |
है दोनों में अंतर क्या
यह कठिन प्रश्न सा लगता है |
पाप है क्या व पुण्य क्या ?
दृष्टिकोण है सब का अपना
जो जैसा सोचता है
वैसा ही उसको लगता |
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