गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

बौध धर्म की बुनियादी बाते



बौध लोगो को देखता हु की दिन बहर फालतू की बकवास करते है पर उन्हें स्वयं ही पता नहीं है की बौध धर्र्म की बुनियादी तत्व क्या है ?
किसी भी धर्म की कुल जनसँख्या का अमूमन 10% बुद्धिजीवी वर्ग धर्म का अध्यन करता है और समझता है पर 90% आम आदमी रोज़ी रोटी कमाने और अपने धर्म के गिने चुने सवालों के जानने और मानने तक ही सीमित रहता है|जैसे- हमारा पूजनीय इश्वर कोन है,हमरी धार्मिक किताब,चिन्ह,पूजास्थल क्या है,हमारे त्यौहार कौन से है और उनको कैसे मानते हैं | आजकल भारत देश के मूलनिवासयों का रुझान बौध धर्म की तरफ बहुत बढ़ रहा है क्योंकि केवल यहीं धर्म से जुडी सभी जरूरतों की पूर्ण संतुस्टी मिल पाती है| कई जगह ऐसी पारिस्थि देखी गई है की जो लोग खुद को बौध कहते हैं उन्हें भी इन गिनेचुने आम सवालों का जवाब भी नहीं मालूम होता | बौध साहित्य बहुत व्यापक है जिसे हर व्यक्ति नहीं पढ़ पता और इस देश के सत्ताधारी लोग सच में बौध धर्म को उभारना नहीं चाहते | जबकि वे लोग ये बात अच्छी तरह जानते हैं की केवल यही विशुद्ध भारतीये धर्म भविष्य में देश को अखंड और उन्नत कर सकता है| ये कितने दुःख की बात है की इन लोगों ने देश की धार्मिक रूप से असंतुस्ट आम जनता को विदेशी धर्म की तरफ मुड़कर अलगाववाद की तरफ धकेल दिया है जो देश की अखंडता के लिए खतरनाक हो सकता है|ऐसे में सर्व जीव हितकारी बौध धर्म को हर खास-ओ-आम तक उन्ही की रूचि और बौध सिद्धांत अनुसार पहुचाने के लिए “समय-बुद्ध मिशन ट्रस्ट” प्रयासरत है:

प्रश्न: बौध धम्म में परम शक्ति इश्वर कौन है? भगवान् बुद्ध ने स्वयं के इश्वर होने,किसी इश्वर का अवतार होने या किसी इश्वर का दूत होने से साफ़ इनकार किया है,उन्होंने स्वयं को मार्गदाता कहा है| किसी और के इश्वर होने के प्रश्न पर वे मौन हो गए,जिसे इंकार समझा गया|बौध धम्म पूर्णतः वैज्ञानिकता पर आधारित धर्म है जहाँ प्रमाणिकता के बिना कुछ भी स्वीकार्य नहीं, जबकि अन्य सभी धर्मों के सिद्धांत केवल आस्था और परंपरा के बल पर चल रहे हैं|
पर ये भी एक सच्चाई है की अब भी दुनियां में ऐसा बहुत कुछ है जो वैज्ञानिकता और इंसान के समझ के परे है जिसे अन्य धर्म अपने धर्म से जोड़कर जनता को अपने सात मिलाये रखते हैं| बुद्ध धम्म में ऐसा नहीं है, भगवान् बुद्ध ने इस विषय में कहा है की "सर्वोच्च सत्य अवर्णननिये है" | पर जब किसी व्यक्ति के जीवन में भीषण दुःख या परालौकिक घटनाएँ होतीं हैं तब केवल इश्वर रुपी काल्पनिक सहारा ही उसे ढाढस बंधता है|10% बुद्धिजीवी वर्ग तो अनीश्वरवाद को समझ सकता है पर मानते वे भी नहीं हैं |इसपर 90% आम आदमी को तो अटूट विशवास है की कोई न कोई सर्वशक्तिमान तो है जो दुनियां चलता है|इसी बात का फायदा उठाकर अन्य धर्म बहुसंख्यक आम जनता को काल्पनिक आस्था,चमत्कार और कर्मकांडों में फसाकर सत्य से दूर कर देते हैं |शायद इसी इश्वरिये कल्पना की जरूरत के चलते सभी धर्म किसी इश्वरिये नाम पर केन्द्रित होते हैं,यहाँ तक की कुछ अभिनज्ञ अनुयाई भगवान् बुद्ध को ही इश्वरिये शक्ति के रूप में पूजते हैं |

असल में व्यापक प्रचार न होने के कारण बौध धम्म को समझने के लिए थोडा अध्यन करना पड़ता है इसलिए ये केवल बुद्धि-जीवी वर्ग तक ही सीमित होकर रह गया है|आम आदमी चमत्कार को नमस्कार करता है,उसे कोई ऐसा चाहिए ही चाहिए जिसके आगे वो अपने सुख दुःख रख सके| वो सच्चाई जानना ही नहीं चाहता ऐसे में उन तक भगवान् बुद्ध का सन्देश कैसे पहुंचेगा? यही कारण रहा की ये महा-कल्याणकारी धर्म हर आदमी तक आज भी नहीं पहुँच पा रहा है |


हम केवल समय को ही परमशक्ति इश्वर क्यों मानते हैं ? एक सवाल हम सभी के मन में होता है की ऐसा कौन है जो भ्रमाण्ड का सर्वशक्तिमान करता धर्ता है,इस जैसे कई अद्यात्मिक सवालों की जवाब खोजते हुए मैं विभिन्न धर्मों के सिधान्तों को परखा पर बौध धम्म के सिवा मुझे कहीं भी संतुष्टि नहीं मिली|भगवान् बुद्ध ने कहा है की "किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये सदियों से चली आ रही हैं, या हमारे बुजुर्गो ने कही हैं,या किसी आस्थावादी किताब में लिखी है,किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये स्वयं मैंने कही हैं,किसी चीज को मानने से पहले यह सोचो की क्या ये सही हैं,किसी चीज को मानने से पहले ये सोचो की क्या इससे मानव का,सभी जीवों का विकास संभव है, किसी चीज को मानने से पहले उसको बुद्धि की कसोटी पर कसो और आप को अच्छा लगे तो ही मानो नहीं तो मत मानो... "
समय बुद्ध समुदाय मानता है की अगर कोई इश्वर है तो वो "समय" के अलावा और कोई नहीं | इश्वर होने के प्रश्न पर भगवान् बुद्ध ने भी मौन होकर गुज़रते हुए समय की तरफ ही इशारा किया है| केवल और केवल समय ही इश्वर शब्द की हर परभाषा को प्रमाणित ही नहीं करता अपितु हर अद्यात्मिक सवाल का एकमात्र अंतिम जवाब है क्योंकि :
-समय ही सर्वव्याप्त है अर्थात सब जगह है
-समय ही सर्वसमर्थ है अर्थात सब कुछ कर सकने में सक्षम है
-समय ही केवल ऐसा है जो निराकार है,अजन्मा है,अविनाशी है
-समय ही न्यायकर्ता है अर्थात जैसा करोगे वैसा भरने का समय आ जायेगा
-समय के ही वश में सभी नियंत्रित और अनियंत्रित घटनाएँ हैं जैसे जीवन मरण
-समय से ही हर इश्वरिये नाम,देवता,धर्म,आस्था,सिद्धांत,देश,भाषा और हर चाल अचल का अस्तित्व है
-समय का कोई आदि अंत नहीं ये अनंत है जबकि हर धर्म और उसके तथाकथित इश्वर का आदि और अंत है
-समय की सत्ता तब भी थी जब कुछ नहीं था आज भी है और तब भी रहेगी जब कुछ न रहेगा
-"समय" शब्द को आप खुद अपनी प्रार्थना के "इश्वरिये नाम" की जगह रखकर बोलिए,आपका वाक्य न केवल पूरा होगा अपितु ज्यादा सच्चा और विश्वासनिये लगेगा
समय यात्रा एक कल्पना है क्योंकि यदि भविष्य में कभी कोई टाइम मशीन बना पाया होता तो आज के युग में भी वो लौट कर आ जाता और उस मशीन का सिधांत बता देता, इस तरह हर युग में टाइम मशीन के जरिये ज्ञान विज्ञानं पहुचाया जा सकता था,सब एक सा होता कोई भूत वर्तमान और भविष्य नहीं होता|केवल समय को ही इश्वरिये शक्ति के रूप में प्रमाणित किया जा सकता है और केवल प्रमाणित तथ्य ही बौध धम्म में स्वीकार्य हैं| परम शक्ति और कोई नहीं केवल समय है,इस तथ्य को कोई भी झुठला नहीं सकता परिणामस्वरूप न केवल मूलनिवासी इसमें अटूट विश्वास करेंगे बल्कि अन्य धर्मिल सम्प्रदाए के लोग भी संतुस्ट होकर आकर्षित होंगे|केवल समय ही बौध धम्म को आत्मनिर्भर बनाकर सदा को लिए पुनः चरम पर स्थापित कर सकता है| इसी लिए हम लोग समय की वंदना करते हैं और बुद्ध धर्म के मार्ग पर चलते हैं|
हम अपने धर्म का पालन कैसे करें?

समय की वंदना कीजिये जिसे करने के लिए हर रोज सुबह उठते ही बिस्तर छोड़ने से पहले दोनों हाथों को गोलाई में समय चक्र बनाते हुए निम्नलिखित प्रार्थना करते हैं :


“हे सर्वसमर्थ समय हम जानते और मानते हैं की भ्रमंड में सभी चल अचल का अस्तित्व केवल आपसे ही है |जब न सूरज था न धरती थी,न कोई धर्म,न ही कोई इश्वरिये नाम ही था तब भी आप ही सर्व व्याप्त थे आज भी हैं, और जब कुछ न रहेगा तब भी आप ही रहोगे और फिर जीवन सर्जन करोगे|आपका कोई आदि अंत नहीं,केवल आप ही अविनाशी हो| हे न्यायदाता समय हमें सदबुद्धि और समर्थ देना ताकि हम इस समय चक्र के मार्गदाता भगवान् बुद्ध के मार्ग पर चल सकें| | हे परम शक्ति इश्वर हमपर अपनी दया दृष्टी बनाये रखना|हे सर्व शक्तिमान समय मैं आपको नमन करते हुए अपने आज का प्रारंभ करता हूँ”...


बुद्ध धर्म के मार्ग का अध्यन करिए उसपर अमल कीजिए और नियमित हर रविवार को किसी भी समय अपने निकटतम बौध विहार पर जाकर वंदना करें ज्ञान बढ़ाएं व धम्म बंधुओं से मार्ग पर विचार विमर्श करिए

बुद्ध धर्म के सिद्धांत क्या हैं ? बुद्ध सिद्धांत बहुत व्यापक है जिसे यहाँ देना संभव नहीं, फिर भी कुछ बातें यहाँ प्रस्तुत हैं:

* त्रिशरण-शील:
बुद्धम शरणम् गच्छामि- मैं बुद्ध व बुद्धि की शरण में जाता हूँ.
धम्मम शरणम् गच्छामि-मैं धम्म(धर्म) की शरण में जाता हूँ
संघम शरणम् गच्छामि-मैं संघ की शरण में जाता हूँ.

*पञ्च शील:
-पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - मैं जीव हत्या से विरत (दूर) रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
-अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - जो वस्तुएं मुझे दी नहीं गयी हैं उन्हें लेने (या चोरी करने) से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
-कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - काम (रति क्रिया) में मिथ्याचार करने से मैं विरत रहूँगा ऐसा व्रत लेता हूँ.
-मुसावादा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - झूठ बोलने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
-सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - मादक द्रव्यों के सेवन से मैं विरत रहूँगा, ऐसा वचन लेता हूँ

ये पांच वचन बौद्ध धर्म के अतिविशिष्ट वचन हैं और इन्हें हर गृहस्थ इन्सान के लिए बनाया गया था

*चार आर्य सत्य बुद्ध का पहले धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था ।
१. दुःख : इस दुनिया में दुःख व्याप्त है – जैसे जन्म, बीमारी, बूढे होने, मौत, बिछड़ने , नापसंद,चाहत सब में दुःख है ।
२. दुःख प्रारंभ : तृष्णा या अत्यधिक चाहत दुःख का मुख्य कारण है
३. दुःख निरोध : तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है ।
४. दुःख निरोध का मार्ग : तृष्णा से मुक्ति अष्टांग मार्ग के अनुसार जिन्दगी जीने से पाई जा सकती है ।

*अष्टांग मार्ग बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य- दुःख निरोध पाने का रास्ता - अष्टांग मार्ग है। जन्म से मरण तक हम जो भी करते है उसका अंतिम मकसद केवल ख़ुशी होता है,तो निर्वाण(स्थायी ख़ुशी) सुनिश्चित करने के लिए हमें जीवन में इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए:
१. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
२. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
३. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
४. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्में न करना
५. सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
६. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधारने की कोशिश करना
७. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
८. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और अहंकार का गायब होना

*प्रतीत्यसमुत्पाद
प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है।प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक(कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र होता है| कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है,हर घटना मूलतः शुन्य होती है।

*अहिंसा हमें पहल करके हिंसा नहीं करनी चाहिए |पर आत्मरक्षा के लिए भी हर तरह से तयार रहना चाहिए, क्योंकि अगर आप शांति चाहते हो युद्ध के लिए तयार रहना जरूरी है |
*सामाजिक समानता बुद्ध धम्म में सभी मानव सामान हैं कोई छोटा-बड़ा/ऊँचा-नीचा नहीं माना जायेगा, सबको एक सामान खुशहाली के अवसर मिलने चाहिए |
*हमारा धार्मिक चिन्ह
"धम्मचक्र या समयचक्र" है जिसके सभी अंगों का कुछ अर्थ है जो इस प्रकार है
१. गोल घेरा दर्शाता है बौध धर्म की शिक्षा ही सम्पूर्ण है और समय ही ऐसा है जिसका कोई आदि अंत नहीं है
२. आठ तीले () अष्टांगिक मार्ग दर्शातें हैं जो समस्त विश्व ने बुद्धिस्म के चिन्ह के रूम में स्वीकृत है
३. बारह तीले प्रतीत्यसमुत्पाद का आरंभ के १२ सिद्धांतों को दर्शाते हैं
४. चौबीस तीले प्रतीत्यसमुत्पाद का आरंभ के १२ और समाप्ति के १२ सिद्धांतों को दर्शाते हैं
५. चक्र का केंद्र अनुशाशन और ध्यान केन्द्रित करने को दर्शाता है

बौद्ध धर्मग्रंथ (धार्मिक पुस्तकें) कौन सी हैं?

* त्रिपिटक
भगवान बुद्ध ने अपने हाथ से कुछ नहीं लिखा था। उनके उपदेशों को उनके शिष्यों ने पहले कंठस्थ किया, फिर लिख लिया। वे उन्हें पेटियों में रखते थे। इसी से नाम पड़ा, 'पिटक'। पिटक तीन हैं:-

1) विनय पिटक : इसमें विस्तार से वे नियम दिए गए हैं, जो भिक्षु-संघ के लिए बनाए गए थे। इनमें बताया गया है कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों को प्रतिदिन के जीवन में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए।

2) सुत्त पिटक : सबसे महत्वपूर्ण पिटक सुत्त पिटक है। इसमें बौद्ध धर्म के सभी मुख्य सिद्धांत स्पष्ट करके समझाए गए हैं। सुत्त पिटक पाँच निकायों में बँटा है:- (1) दीघ निकाय,(2) मज्झिम निकाय, (3) संयुत्त निकाय, (4) अंगुत्तर निकाय और ( खुद्दक निकाय)
खुद्दक निकाय सबसे छोटा है। इसके 15 अंग हैं। इसी का एक अंग है 'धम्मपद'। एक अंग है 'सुत्त निपात'।

3) अभिधम्म पिटक : अभिधम्म पिटक में धर्म और उसके क्रियाकलापों की व्याख्या पंडिताऊ ढंग से की गई है। वेदों में जिस तरह ब्राह्मण-ग्रंथ हैं, उसी तरह पिटकों में अभिधम्म पिटक हैं।

* धम्मपद : हिन्दू-धर्म में गीता का जो स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान धम्मपद का है। गीता धम्मपद सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय का एक अंश है।धम्मपद में 26 वग्ग और 423 श्लोक हैं। बौद्ध धर्म को समझने के लिए अकेला धम्मपद ही काफी है। मनुष्य को अंधकार से प्रकाश में ले जाने के लिए यह प्रकाशमान दीपक है। यह सुत्त पिटक के सबसे छोटे निकाय खुद्दक निकाय के 15 अंगों में से एक है।

*हमारा मुख्य त्यौहार क्या है ?
बुद्ध जयन्ती (बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस दिन 563 ई.पू. में भगवान बुद्ध संकिसा लुम्बिनी मे जन्म हुआ था , इसी पूर्णिमा के दिन ही 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। ऐसा पूरी दुनिया में किसी अन्य के साथ आज तक नही हुआ है।

* मुख्य बौद्ध प्राचीन तीर्थ:

(1) लुम्बिनी : जहाँ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ,यह स्थान नेपाल की तराई में पूर्वोत्तर रेलवे की गोरखपुर-नौतनवाँ लाइन के नौतनवाँ स्टेशन से 20 मील और गोरखपुर-गोंडा लाइन के नौगढ़ स्टेशन से 10 मील दूर है।
(2) बोधगया : जहाँ बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया।भरत के बिहार में स्थित गया स्टेशन से यह स्थान 7 मील दूर है।
(3) सारनाथ : भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश जहाँ से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।बनारस छावनी स्टेशन से पाँच मील, बनारस-सिटी स्टेशन से तीन मील और सड़क मार्ग से सारनाथ चार मील पड़ता है।
(4) कुशीनगर :जहाँ बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से 51 किमी की दूरी पर स्थित है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें