शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

आरक्षण नीति कितनी न्यायसंगत है ???

आरक्षण नीति आज सर्वत्र  चर्चा का विषय बन चुकी है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में दलित वर्ग की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी ,इसलिए सभी नागरिकों को उपलब्धियों के समान अवसर प्रदान करने हेतु अनुसूचित जातियों को आरक्षण की सुविधा दी गयी ,किन्तु वर्तमान समय में इसके अनेक दुष्परिणाम सामने आये हैं.
आरक्षण का अर्थ -- आरक्षण का शाब्दिक अर्थ है -आरक्षित करना .एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र का दायित्व है कि वह वह एक ऐसे जातिविहीन समाज की स्थापना करे ,जहाँ योग्यता के आधार पर प्रत्येक नागरिक को विकास के सामान अवसर प्राप्त हों .इसलिए निम्न वर्ग का स्तर उठाने के लिए उन्हें शिक्षा में आरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी .प्रारंभ में आरक्षण दस वर्षों के लिए थी किन्तु स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इसकी अवधि पच्चीस वर्ष कर  दी गयी .
  • आरक्षण  एक राजनीतिक निर्णय --आरंभ में आरक्षण निम्न वर्ग के विकास के लिए एक निःस्वार्थ निर्णय था ,किन्तु समय के साथ यह राजनीतिक का एक मुद्दा बन गया.आरक्षण को वोट बैंक का एक माध्यम बना लिया गया है .आज स्वाधीनता के इतने वर्षों के पश्चात् भी यदि आरक्षण नीति यथावत है तो इसका एक मुख्य कारण है कि जो भी राजनैतिक दल सत्ता में आता है वह वोटों के लिए आरक्षण को और बढ़ावा देता है .
  • आरक्षण नीति के दुष्परिणाम -शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण के अनेक दुष्परिणामों से हम परिचित हैं .जिस प्रवेश परीक्षा में सामान्य वर्ग के छात्र उच्च अंक प्राप्त करने के बावजूद भी प्रवेश नहीं ले पाता,वहीं दूसरा छात्र उससे कम अंक प्राप्त करके सरलता से प्रवेश पा लेता है .कारण --वह आरक्षित वर्ग से है .यह सरासर अन्याय नहीं तो और क्या है ?
  • सामान्य वर्ग में आक्रोश एवं निराशा- जब मेडिकल ,इंजीनियरिंग और सिविल सर्विसेज जैसी श्रमसाध्य परीक्षाओं में सामान्य वर्ग के छात्र आरक्षण के कारण पीछे हो जाते हैं ,तब अपने अथक परिश्रम को बलपूर्वक विफल किया जाता देख वे आक्रोश की भावना से ग्रसित हो जाते हैं .इसके बाद वे विरोध प्रदर्शन ,नारेबाजी ,और  तोड़ -फोड़ जैसे कार्यों पर उतर आते हैं ,जिससे क्षति अंततः राष्ट्र की ही होती है .जब आक्रोशित व्यक्ति का क्रोध चरम सीमा पर पहुँच जाने के बाद भी उसका कोई संतोषजनक हल नहीं मिल पाता ,तब वह क्रोध हताशा एवं कुंठा का रूप ले लेता है .और इसी का परिणाम हुआ कि कई छात्रों ने विरोधस्वरूप अपनी डिग्रियां जला डालीं ,आत्मदाह तक कर लिया ,किन्तु सत्तालोभी शासन वर्ग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा .
  • बेरोजगारी और अनैतिक कार्यों में वृध्दि -इसी आरक्षण का परिणाम है कि छात्रों का अध्धयन से विश्वास उठ जाता है .बढ़ती हुई बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण आरक्षण नीति भी है .सामान्य वर्ग के छात्र आरक्षण के चंगुल में फंसकर बेरोजगारी के दंश को झेलते हैं .इसके फलस्वरूप वे हिंसात्मक एवं अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं .बेरोजगारी के कारण राष्ट्र आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है .
  • योग्यता का गौड़ हो जाना --आरक्षण नीति का अनुचित लाभ उठाकर वे व्यक्ति भी उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं ,जो वास्तव में उस पद के लिए उपुयुक्त नहीं हैं .जब शासन की डोर अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में होगी तो कितना अच्छा विकास होगा ?इसकी कल्पना हम स्वयं कर सकते हैं .
  • जातिवाद को बढ़ावा-आज जहाँ हम जाति-भावना को समाप्त करने की बात करते हैं ,वहीं जाति -भेद के आधार पर आरक्षण नीति को बढ़ावा देते हैं .यह कैसी समानता है ?भारत में प्रत्येक प्रान्त में आरक्षित वर्ग के अंतर्गत भिन्न जातियाँ हैं ,और प्रत्येक व्यक्ति आरक्षण का लाभ उठाना चाहता है ,यह भी विवाद का एक कारण है .आरक्षण ने जातिवाद को बढ़ावा दिया है और राष्ट्र के नागरिकों में विद्वेष की भावना भर दी है .गुर्जरों का आरक्षण के लिए प्रदर्शन इसका एक तत्कालिक एवं ज्वलंत उदहारण है .
  • आर्थिक और सामाजिक न्याय -आरक्षण के समर्थक प्रायः यह तर्क देते हैं कि आज भी भारत में आज भी आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर बहुत विषमतायें विद्यमान हैं .किन्तु अब प्रश्न यह उठता है कि क्या भारत में सामान्य वर्ग गरीब नहीं है ?एक निर्धन सामान्य वर्ग का छात्र भी आरक्षण का उतना ही अधिकार रखता है जितना कि एक अनुसूचित या पिछड़े वर्ग का छात्र .आरक्षण का उचित लाभ भी वही उठा पाते हैं जो समृद्ध हैं ,अतः आरक्षण का आधार आर्थिक स्तर होना चाहिए न कि जातीय स्तर .यदि प्रश्न सामाजिक न्याय का है तो आरक्षण सामाजिक न्याय का उचित विकल्प नहीं है ,अपितु इससे सामाजिक वैमनस्य में वृद्धि ही होती है .समाज में जागरूकता का प्रसार इससे बेहतर विकल्प सिद्ध हो सकता है.      
निष्कर्षतः ,यदि आरक्षण नीति वास्तव में गरीबों के लिए बनाई गयी है तो भारत में अनुसूचित जातियों ,अल्पसंख्यकों एवं पिछड़ी जातियों के अतिरिक्त और भी बहुत गरीब  हैं .यदि आरक्षण के नाम पर मेधाओं को ऐसे ही कुचला जाता रहा  तो ,भविष्य में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.............

2 टिप्‍पणियां:

  1. ab aarkshan ka sampurn virodh hi tarksangat hai !!!!! apka blag pasnd aya yadi ham sab sath sath yah ladai laden to saflata jaroor milegi !!! 1 jan 2012 idia gate par candil march par padharen ran thakur 9312844208

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  2. mandiro me kavel brahman hi pandit kyon .yoge pandit kyon nahi.isko samjo aarakshab samaj me aa jayega

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