विश्व के केवल दो समुदाय ऐसे है,
जो पुनर्जन्म को मानते है,
एक तो हमारे यदुवंशी यहूदी भाई,
ओर एक हिन्दू ....
यहूदी पंथ को Judaism कहा जाता है ।
वह Yeduism का अपभ्रंश है ।
सौराष्ट्र यह यदु लोगों का प्रदेश था ।
श्रीकृष्ण की द्वारिका उसी प्रदेश में है ।
वहाँ के शासक जाडेजा कहलाते हैं ।
जाडेजा यह " यदु-ज " शब्द का वैसा ही अपभ्रंश है
जैसे Judaism है ।
जाडेजा और Judaism दोनों का अर्थ है यदु उर्फ जदुकुलवंशी ।
उसी पंथ का दूसरा नाम है Xionism |
उसका उच्चार है "जायोनिज्म् " जो " देवनिज्म् " का अपभ्रंश है ।
भगवान कृष्ण देव थे अत : उनका यदुपंथ देवपंथ कहलाने लगा ।
द या ध का अन्य देशों में " ज " उच्चार होने लगा ।
जैसे ध्यान वौद्धपंथ का उच्चार चीन - जापान में " जेन् " बौद्ध पंथ किया जाता है ,
उसी प्रकार " देवनिजम् " का उच्चार ज्ञायोनिजम हुआ ।
यहूदी परम्परा के प्रथम नेता अब्रह्म माने गए हैं ।
यह " ब्रह्म"शब्द का अपभ्रंश है ।
उनके दूसरे नेता " मोजेस् " कहलाते हैं ,
जो महेश शब्द का विकृत उच्चार है ।
मोझेस् की जन्मकथा कृष्ण की जन्मकथा से मेल खाती है , अत : वह महा-ईश भगवान कृष्ण ही हैं , इसके सम्बन्ध में किसी को शंका नहीं रहनी चाहिए ।
महाभारतीय युद्ध के पश्चात् द्वारिकाप्रदेश में शासकों के अभाव से लूटपाट , दंगे आदि आरम्भ हुए ।
धरती कम्पन आदि से सागर तटवर्ती प्रदेश जलमग्न होने लगा ।
अत : यादव लोग टोलियाँ बनाकर अन्यत्र जा बसने के लिए निकल पड़े ।
कुल २२ टोलियों में वे निकले ।
उनमें से १० टोलियां उत्तर की ओर कश्मीर की दिशा में चल पड़ी और कश्मीर , रूस आदि प्रदेशों में जा बसीं । अन्य १२ टोलियां इराक , सीरिया , पॅलेस्टाईन , जेरूसलेम , ईजिप्त , ग्रीम आदि देशों में जा बसीं ।
मध्य एशिया के १२ देशों में यदुवंशियों की वही १२ टोलियाँ हैं । वही यहूदियों की १२ टोलियां कहलाती हैं । भगवान कृष्ण के अवतार समाप्ति के पश्चात् यहूदी लोगों को जब कठिन और भीषण अवस्था में द्वारिका प्रदेश त्यागना पड़ा तभी से यहूदी लोगों ने मातृभूमि से बिछड़ने के दिन गिनने शुरू किए । उसी को यहूदियों का passover गक कहा जाता है । उसका अर्थ है मातृभूमि त्यागने के समय से आरम्भ की गई कालगणना ।
अब कोई बताएं की यहूदियो की मातृभूमि कौनसी थी ?
यहूदी बायबल में कृष्ण का बाल नाम स्पष्ठतः उल्लेखित है ।
हिब्रू भाषा यानी " हरिबूते इति हब्रू
यहूदियों की भाषा का नाम “ हिब्रू " है । यहूदियों के आंग्ल ज्ञानकोष का नाम है Encyclopaedia Judaica |
उसमें "हब्रु" शब्द का विवरण देते हुए कहा है कि
उस शब्द का पहला अक्षर जो " ह " है वह परमात्मा के नाम का संक्षिप्त रूप है ।
अब देखिए कि ऊपरले विवरण में दो न्यून हैं ।
एक न्यून तो यह है कि " ह " से निर्देशित होने वाला यहूदियों के भगवान का पूरा नाम क्या है ? यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया । करेंगे भी कैसे , जब ज्ञानकोषकारों का ही ज्ञान अधूरा है ।
हम वैदिक संस्कृति के आधार पर उस कमी को दूर करते हैं । " हरि " यह कृष्ण का नाम है , उसी का " ह " अद्याक्षर है । अब दूसरा न्यून यह है कि यहूदी ज्ञानकोष वालों ने हब्रू शब्द में ब्रू अक्षर क्यों लगा है ? यह कहा ही नहीं । उस महत्त्वपूर्ण बात का उन्हें ज्ञान न होने से वे उसे टाल गए । ब्रु अक्षर का तो बड़ा महत्त्व है । "ब्रूते " यानी बोलता है इस संस्कृत शब्द का वह अद्याक्षर है । अतः हब्रू का अर्थ है " हरि ( यानी कृष्ण ) बोलता था वह भाषा " । ठीक इसी व्याख्यानुसार संस्कृत और हब्रू में बड़ी समानता है ।
यहूदी लोगों वा धर्मचिह्न यहूदी लोगों के मन्दिर को Synagogue कहते हैं ।
उसका वर्तमान उच्चार “ सिनेगॉग " मूल संस्कृत " संगम " शब्द है ।
" संगम " शब्द का अर्थ है " सारे मिलकर प्रार्थना करना " ।
संकीर्तन , संतसमागम आदि शब्दों का जो अर्थ है वही सिनेगॉग उर्फ संगम शब्द का अर्थ है ।
यहूदी मन्दिरों पर षट्कोण चिह्न खींचा जाता है ।
वह वैदिक संस्कृति का शक्तिचक्र है ।
देवीभक्त उस चिह्न को देवी का प्रतीक मानकर उसे पूजते हैं ।
वह एक तांत्रिक चिह्न है ।
घर के प्रवेश द्वार के अगले आँगन में हिन्दु महिलाएं रंगोली में वह चिह्न खींचती हैं ।
दिल्ली में हुमायूं की कब्र कही जाने वाली जो विशाल इमारत है वह देवीभवानी का मन्दिर था । उसके ऊपरले भाग में चारों तरफ बीसों शक्तिचक्र संगमरमर प्रस्तर पट्टियों से जड़ दिए गए हैं ।
यहूदी लोगों में David नाम होता है वह " देवि + द " यानी देवी का दिया पुत्र इस अर्थ से डेविदु उर्फ डेविड कहलाता है । अरबों में उसी का अपभ्रंश दाऊद हुआ है । अतः हब्रू और अरबी दोनों संस्कृतोद्भव भाषाएँ हैं ।
भारत में यादव का उच्चार जाधव और जाडेजा जैसे बना वैसे ही यदु लोग यहूदी , ज्यूडेइस्टस् , ज्यू और झायोनिटस् कहलाते हैं ।
निर्देशित देश ज्यू लोग जब द्वारिका से निकल पड़े तो उन्हें साक्षात्कार हुआ जिसमें उन्हें कहा गया कि " Canaan प्रदेश तुम्हारा होगा " |
"कानान " यह कृष्ण कन्हैया जैसा ही कृष्ण प्रदेश का द्योतक था ।
यहूदी लोगों को भविष्यवाणी के अनुमार भटकते - भटकते सन् १९४६ में उनकी अपनी भूमि प्राप्त हो ही गई जिसका नाम उन्होंने Isreal रखा जो Isr=ईश्वर और ael = आलय इस प्रकार का " ईश्वरालय " संस्कृत शब्द है ।
यह एक और प्रमाण है कि यहूदी लोगों की परम्परा वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा से निकली है ।
हिटलर उनसे टकराकर नामशेष हो गया । मुसलमान भी यहूदियों से टकराने के लिए आतुर हैं तो उनका भी हिटलर जैसा ही अन्त होगा ।
यहूदी ग्रन्थ की भविष्यवाणी कृस्ती बायबल का Testament नाम का जो पूर्व खण्ड है उससे समय समय पर ईश्वर का अवतरण होता है ऐसी भविष्यवाणी है । वह भगवद्गीता से ही यहूदी धर्मग्रन्थ में उतर आई है । भगवद्गीता में भगवान कहते हैं
यदा यदा हि धर्मस्यग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् " ।
यहूदी नेता Moses की जन्मकथा श्रीकृष्ण की जन्मकथा जैसी ही है । और तो और श्रीकृष्ण का जैसा विराट रूप कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने देखा वैसा ही विराट रूप यहूदी लोगों ने रेगिस्तान में मोझेस का देखा , ऐसी यहूदियों की दन्तकथा है ।
पूर्ववर्ती पर्वत यदुईशालयम् उर्फ जेरूसलेम नगरी में दो पहाड़ियाँ हैं ।
उनमें से पूर्व वी पहाड़ी पर #Dome_on_the_Rock और #अलअक्सा नाम के दो प्राचीन वैदिक मन्दिर हैं , जो सातवीं शताब्दी से मुसलमानों के कब्जे में होने के कारण मस्जिदें कहलाती हैं ।
Dome on the Rock स्वयम्भू महादेव का मन्दिर है और अल्अक्सा अक्षय्य भगवान कृष्ण का मन्दिर है, एवं शक्तिपीठ भी ।पूर्ववर्ती पहाड़ी पर ये मन्दिर बनाए जाना उनकी वैदिक विशेषता का द्योतक है ।
जिस प्रकार भारत में दो कुटुम्बों के बुजुर्गों से विवाह प्रस्ताव सम्मत होने पर युवक - युवतियों के विवाह होते हैं वैसी ही प्रथा - यहूदियों में भी है ।
वे भी भारतीयों की तरह प्रेम - विवाह को अच्छा नहीं समझते ।
वैदिक विवाहों के लिए मण्डप बनाए जाते हैं ।
यहूदियों को भी वही प्रथा है ।
वे भी मण्डपों में विवाह - संस्कार कराना शुभ समझते हैं।
यहूदियों में भी अनेक दीप लगाकर वैसा ही एक त्यौहार मनाया जाता है जैसे भारतीय लोग दीपावली मनाते हैं । वृक्ष - पूजन वैदिक संस्कृति में जिस प्रकार तुलसी , पीपल , बड़ आदि वृक्षों का पूजन किया जाता है ,
उन्हें पानी दिया जाता है और उनकी परिक्रमा की जाती है , वैसे ही यहूदी भी वृक्षों को पूज्य मानते हैं ।
यही शत्रु मुसलमान लोग यहूदियों को उतना ही कट्टर शत्रु मानते हैं जितना वे भारत के हिन्दू लोगों को मानते हैं ।
यहूदियों में वेदों का उल्लेख मार्कोपोलो के प्रवास वर्णन के ग्रन्थ में पृष्ठ ३४६ पर एक टिप्पणी इस प्रकार है- " Much has been written about the ancient settlement of Jews at Kaifungfu ( in China ) . One of the most interesting papers on the subject is in Chinese Reposi tory , Vol . XX . It gives the translation of a Chinese Jewish inscription ... Here is a passage " with respect to the Israeli tish religion we find an inquiry that its first ancestor , Adam came originally from India and that during the ( period of the ) Chau State the sacred writings were already in existence . . The sacred writings embodying eternal reason consist of 53 sections . The principles therein contained are very abstruse and the external reason therein revealed is very mysterious being treated with the same veneration as Heaven . The founder of the religion is Abraham , who is considered the first teacher of it . Then came Moses , who established the law , and handed down the sacred writings . After his time this religion entered China . " " इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा
" चीन के कायपुंगफू नगर में यहूदियों की एक बस्ती थी जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है । उसमें एक बड़ा ही रोचक लेख #Chinese_Repository नाम के ग्रन्थ के बीसवें खण्ड में सम्मिलित है । चीन में प्राप्त एक यहूदी शिलालेख का वह अनुवाद है । उसमें ऐसा उल्लेख है कि " यहूदियों के मूल धर्मसंस्थापक अँडम् ( यह " आदिम " ऐसा संस्कृत शब्द है । उसी से इस्लामी भाषा में आदमी यह शब्द बना है ) भारत - निवासी था । #चौ शासन के पूर्व ही उनके पवित्र ग्रन्थ उपलब्ध हो गए थे । उन ग्रन्थों में अनादि , अनन्त तत्स्व का विवरण ५३ भागों में प्रस्तुत है ।उसके तत्त्व बड़े गूढ़ हैं और उसमें दिया अनादि - अनन्त का वर्णन बड़ा रहस्यमय है । प्रत्यक्ष परमात्मा के जितना ही उनका महत्त्व माना गया है ।
वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास💐
शोभना राष्ट्रवादी 💐
जयति सनातन💐
जयतु भारतं💐
ॐ नमो नारायणाय💐
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