शनिवार, 20 मई 2023

2000 की नोट बंद ही होना था...??

2016 में जब नोटबन्दी हुई थी तब आपको नोटबन्दी की जरूरत बताई थी। इसमें काला धन, पाकिस्तान पर चोट आदि शामिल नही थे। बस भारत के आर्थिक हालात जो कांग्रेस कर चुकी थी उसे समझाया गया था। तो पेश है पुनः पोस्ट आपकी खिदमत में।

अर्थशास्त्र का एक अंग होता है वित्त। वित्त ही अर्थशास्त्र नही होता। अर्थशास्त्र संसाधनों के समूह को कहते है और संसाधन, प्रकृति के स्रोत से मिलता है। मतलब इकोलॉजी से निकलता है इकोनॉमिक्स और इकोनॉमिक्स से निकलता है फाइनेंस।

भारत मे हम इस पर कंफ्यूज रहते है, क्योंकि हमने संसाधन से अर्थशास्त्र को अलग कर दिया है। एक समय मे सोने से मुद्रा तय होती थी, आज सरकार अपनी पावर से मुद्रा तैयार करती है। मैं धारक को 100 रुपये अदा करने का वचन देता हूँ। उस वचन का आधार सरकारी संवैधानिक शक्ति है, ना कि संसाधन।

कई बार हम सोने से या डॉलर से तुलना कर उसे नोट में परिवर्तित समझते हैं, लेकिन ऐसा नही है। सरकार जितना चाहे मुह उठा नोट छाप सकती है और ये दुनिया भर की कहानी है। आज की अर्थव्यवस्था संसाधन से कटके वित्त पे टिक गई है। इसी लिए GDP के लिए भी आपको वित्त के अंदर आना होगा, वरना आप GDP में योगदान नही दे रहे हो।

इसी का नतीजा था नोटबन्दी। लेकिन नोटबन्दी थी क्या? इससे पहले ये समझें कि नोट होता क्या है?

नोट को बनाया गया था विनिमय के माध्यम हेतु, नोट कभी विनिमय की वस्तु नही था। माध्यम जो होता है उसे आप एक जगह रोक नही सकते हो, वस्तु एक जगह रोकी जा सकती है। नोट माध्यम के लिए बनाया गया है कि जैसे ही आपने इस्तेमाल किया इसे आगे बढ़ाए, अब दूसरा इस्तेमाल करेगा। हुआ क्या कि लोगों ने नोट को वस्तु की तरह होल्ड पे रखना शुरू कर दिया, जैसे वो सोना चांदी या सम्पत्ति रखते थे। उसकी फ्लोटिंग बंद कर दी। अब जब फ्लोटिंग बंद होती है मार्किट में नोट की कमी शुरू हो जाती है, ऐसे में बाजार में नए नोट उतारने पड़ते हैं, और फिर मांग से ज्यादा आपूर्ति मार्किट में होती है, नतीजा महंगाई।

लेकिन ये महंगाई सीधे तौर पर ना आकर, पिछले दरवाजे से आती है, जिससे देश मे एक समांतर अर्थव्यवस्था बन जाती है। वो अर्थ्यवस्था देश तो चला रही होती है लेकिन सरकार के पास उसका कोई लेखा जोखा नही रहता। उदाहरण के लिए; एक घर खरीदते वक्त 50% सफेद धन दी और 50% काला धन, तो बाजार में तो 100% पैसा घुमा लेकिन आधिकारिक रुप से आधा ही गिना गया। इसके अलावा जब हम अपने पैसे को होल्ड पर रख उसे वस्तु या कमोडिटी बना देते हैं, तो वो सार्वजनिक उपयोग से बाहर हो जाता है और काला ना भी हो लेकिन बाजार से बाहर रहता है। जिस वजह से वो जीडीपी का हिस्सा भी नही बन पाता।

एक और मुख्य बात थी कि आज जो हम नोट बना रहे हैं अगर वो 2000 की है तो उसको बनाने का खर्चा करीब 4 रुपये आता है। यानी 4 रुपया खर्च के आप 2000 का मूल्य बाजार में उत्पन्न कर सकते हैं। यही होता आया था कि आज से पहले जितने नोट बनते थे उनका कागज स्याही सब बाहर से आता था और वही कंपनियां ये कागज स्याही दुश्मन देशों को बेच देती थी और वो अपनी सरकारी प्रिंट्स में वही 1000-500 का नोट बना भारत मे उसे भेज देते थे। मतलब 4 रुपये खर्च कर दुश्मन यहां 2000 के मूल्य से काम कर रहा था।

ये वो मुख्य वजह थी जिससे नोटबंदी जरूर हो गयी थी, ताकि आज तक कि जितनी मुद्रा थी वो एक बार बैंकिंग सिस्टम में आये और इस समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करे। इससे भले ही कुछ समय के लिए बाजार रुक गया हो, रोजगार बंद हो गया हो, लेकिन यही धन जब रफ्तार पकड़ता है तो रोजगार और बाज़ार को बूम देता है। जो बाजार सुस्त हुआ भी था या रोजगार बंद भी हुआ उसका कारण भी समांतर अर्थव्यवस्था थी, नाकि नोटबन्दी। अब एक व्यापारी अपने काले धन में से दो कर्मचारी रखता है तो अचानक उसका काला धन बैंकिंग में चला गया तो स्वतः ही उसके दो कर्मचारी कम हो गए और उतना काम भी ठप्प हो गया। लेकिन कल को जब वो फिर से उस काम को गति देगा तो इस बार वो अर्थव्यवस्था के दायरे में आयेगा और जैसा बताया गया है कि दायरे में होने वाले हर वित्तीय कार्य GDP का हिस्सा बनते हैं।

कुछ लोग 2004 से 2011 के GDP की बात करते हैं कि उस समय भारत की अर्थव्यवस्था चरम पर थी, लेकिन वो एक खोखली अर्थव्यवस्था थी। ये वो दौर था जब औसतन 8.5 जीडीपी जितनी अच्छी अर्थव्यवस्था कही गयी लेकिन वो सिर्फ 27 लाख नौकरियां ही सृजन कर सकी आखरी 5 साल में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में। जबकि इससे पहले NDA1 में 5.7 की जीडीपी से 6 करोड़ नौकरियां सृजन हुई थी।

ऐसा क्यों हुआ? कि नौकरियां नही बढ़ी सिर्फ जीडीपी बढ़ी।

क्योंकि NDA1 के समय जहां महंगाई दर 4.5 थी जो 5 से कम थी, जिसे अच्छा कहा जाता है, लेकिन उस दौर में एसेट्स वैल्यू थी वो भी नियंत्रण में थी। सोने का मूल्य इस 5 साल के दौरान 38% बढ़ा, स्टॉक मार्केट 32% बढ़ा, रियल स्टेट 25 से 30% बढ़ा। वो सही तरीके से थी तो नौकरियां सृजन की।

जबकि अगले 5 साल UPA की सरकार में रियल स्टेट 10 गुना महंगा हो गया जो 5 साल में 38% बढ़ा था, स्टॉक मार्केट 300% से ज्यादा हो गया, गोल्ड 330% बढ़ गया जबकि इस दौरान नई मुद्रा बाजार में सिर्फ 17% ज्यादा आयी। तो ये इतना ज्यादा दाम वो भी बिना नौकरियां बढ़ कैसे गया?

इसका कारण था बड़े नोट, 500 और 1000. NDA1 के समय कुल बड़े नॉट थे करीब 1 लाख 40 हज़ार करोड़ थे, जो UPA1 & UPA 2 के खत्म होते होते सन 2015 में 15 लाख 50 हज़ार करोड हो गए। यानी 10 गुना ज्यादा। दूसरे अर्थों में, बड़े नोट कुल नोट में 37% से बढ़कर 87% हो गए।

जब मोदी सरकार बनी तो RBI से रिपोर्ट मांगी गई, जिसमे रघुराम राजन ने रिपोर्ट दी कि देश मे जितने 500 और 1000 के नोट हैं उनमें से एक तिहाही 500 के और 1000 के दो तिहाई नोट कभी बैंकिंग सिस्टम में वापस आये ही नही। मतलब 5 से 6 लाख करोड़ रुपया भारतीय अर्थव्यवस्था से बाहर खुद ही डील कर रहा था। यही समांतर अर्थव्यवस्था थी। यही कारण था गोल्ड, शेयर मार्केट और प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने का। जो जीडीपी को भी बढ़ा रहा था। इनमे से सबसे ज्यादा सोना वस्तु ऐसी थी जो पकड़ से बाहर रहती थी लेकिन उसकी खपत तब भी होते जा रही थी।

भारत दुनिया का एक तिहाही सोने खरीदता है और चीन भारत मिलकर दुनिया का आधे से ज्यादा सोना खरीदते हैं। कहने का मतलब दुनिया मे सोने के दाम नही बढ़ रहे थे बल्कि समांतर धन को खपाने के लिए बढ़वाए जा रहे थे, ताकि सोने के नाम पर उतने मूल्य की संपत्ति बनी रहे। लेकिन नोटबन्दी होते ही सोने के दाम तुरन्त 15% गिर गए? क्यों? क्योंकि समान्तर पैसा रोक दिया गया। ऐसा ही रियल स्टेट के साथ हुआ था।

इसके अलावा भारत के चोर जिन्होंने सहभागी नोट बनाये थे, वो हवाला के जरिये इन्हें बाहर भेजते थे और फिर मॉरिशस या सिंगापुर मार्ग से इसे भारत मे निवेश करते थे, जिससे ये दिखता था कि जीडीपी बढ़ रही है। इसके कारण  2004 में शेयर मार्केट जो 64000 करोड़ का था वो 2007 में ही 5.7 लाख करोड़ का हो गया, जिससे सेंसेक्स अपने चरम पर पहुंच गया।

रिज़र्व बैंक बार बार मना करता रहा कि बड़े नोट छपने बंद हो लेकिन वो छपते गए, यही वजह रही कि जब इस सरकार को ये सब बताया गया तो नोटबंदी का फैसला लिया गया। इसलिए जो GDP गिरने की बात हो रही है, अब आप समझ रहे होंगे कि वो क्यों गिर रही है? क्यों चिंदम्बरम जैसे हवाला अर्थशास्त्री इसे फेल बता रहे हैं, क्यों कांग्रेस जिसका काला धन डूब गया वो मनमोहन जैसे अर्थशास्त्री से इसे फेल बता रही है। क्यों दुश्मन देश के पैसे पे पलने वाले रो रहे हैं। क्यों गलत तरीके से कमाने वाले लोग और व्यापारी सरकार को गाली दे रहे हैं।

यकीन मानिए भले ही आपका रोजगार और जीडीपी कुछ समय के लिए सुस्त है, लेकिन इतने आश्वस्त हो जाइए कि आगे के समय वाली अर्थव्यवस्था समान्तर नही होगी। सोना या प्रॉपर्टी में काला धन जमा नही होगा, नोट को होल्ड पे कोई नही रखेगा। मॉरीशस सिंगापुर से कोई फ़र्ज़ी कम्पनी के नाम पर काले को सफेद नही कर पायेगा। दुश्मन देश नकली नोट नही बेच पाएंगे। क्योंकि ऐसे में वो पुनः झटका खाने को तैयार रहेगा।

मोदी जी इसीलिए डिजिटल ट्रांसक्शन की बात करते है ताकि आप बैंकिंग सिस्टम से चले। सोने पे एक्साइज इसी लिए कि उसपर नज़र रखे। मॉरीशस सिंगापुर से अग्रीमनेट इसलिए किये कि अब इस तरह की कम्पनी नही चलेंगी, हमे उनका डिटेल देना होगा और टेक्स भी वो यहां भरेंगे।

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा, इसी का नाम है। 2000 का नोट भी कब बंद हो जाये कोई नही जानता, इस देश मे अब सबसे बड़ा नोट 200 का ही रह जाएगा आने वाले दिनों में।

नोट:- पोस्ट 2016 की है इसलिए कन्फ्यूज न होयें कुछ पुरानी बातों से। पोस्ट ज्यों की त्यों चेपी गयी है।

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