सोमवार, 18 जून 2018

सरायघाट का युद्ध :



सरायघाट का युद्ध :: The Battle of Saraighat ::: असम का परमवीर योद्धा "लचित बोरफूकन" ... 
अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा .. और दिल्ली में मुग़ल शासक था औरंगज़ेब। औरंगज़ेब का पूरे भारत पे राज करने का सपना अधूरा था बिना पूर्वी भारत पर कब्ज़ा जमाए ... इसी महत्वकांक्षा के चलते औरंगज़ेब ने अहोम राज से लड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी। इस सेना का नेतृत्व कर रहा था राजपूत राजा राजाराम सिंह .. राजाराम सिंह औरंगज़ेब के साम्राज्य को विस्तार देने के लिए अपने साथ 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, २१ राजपूत सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी सैनिक और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेना लेकर चल पड़ा अहोम (आसाम) पर आक्रमण करने।
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अहोम राज के सेनापति का नाम था "लचित बोरफूकन" .. कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को मुग़ल शासन के मुक्त करा के दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था। इससे बौखलाया औरंगज़ेब जल्द से जल्द पूरे पूर्वी भारत पर कब्ज़ा कर लेना चाहता था। ......... राजाराम सिंह ने जब गौहाटी पर आक्रमण किया तो विशाल मुग़ल सेना का सामना किया अहोम के सेनापति "लचित बोरफूकन" ने ..... मुग़ल सेना का रास्ता रोक गया ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे .... इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10000 सैनिक मारे गए और लचित बोरफुकन बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गए ... अहोम सेना का बुरी तरह नुक्सान हुआ। राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण ने लिए कहा ... जिसको राजा चक्रध्वज ने यह कह कर कि "आखरी जीवित अहोम भी मुग़ल सेना से लड़ने के लिए तैयार है" अस्वीकार कर दिया। लचित बोरफुकन जैसे प्लानर और जाबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गयी थी। .. अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब मेरा देश, मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किये जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ, मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ ... हे राजा युद्ध की आज्ञा दें। ...
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इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पे वो ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया .... जिसमे "लचित बोरफुकन" ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला .. अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई .. जिसका पीछा करके लचित बोफुकन की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया ...... इस युद्ध के बाद कभी मुग़ल सेना की हिम्मत नहीं हुई पूर्वोत्तर पर आक्रमण करने की जिससे ये इलाका कभी गुलाम नहीं बना ....
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लोगों को मालूम नहीं कि आज के समय जो NDA कैडेट बेस्ट होता है उसको "लचित बोरफुकन" मैडल मिलता है ................ आज के आसाम में जोरहट शर में लचित बोरफुकन की प्रतिमा है, इसके नींचे अभी भी उनके अवशेष सुरक्षित रखे हुए हैं ....... कभी जोरहट जाना तो उन चरणों पर शीश झुका देना ......

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