सोमवार, 29 मई 2017

पीपल , को सनातन संस्कृति में देववृक्ष क्यों माना जाता है !


पीपल , को सनातन संस्कृति में देववृक्ष माना जाता है !
स्कन्द पुराण में वर्णित है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवता निवास करते हैं! आम प्रचलन में पीपल के मूल में ब्रह्मा , मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना जाता रहा है ! सरल शब्दों में कहना हो तो आमजन के लिए पीपल भगवान विष्णु का स्वरूप है।श्री कृष्ण ने तो एक जगह यह भी कह दिया कि - समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ !शास्त्रों के जानकार से बात करे तो वो कहेंगे कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।इतने भारी भारी धार्मिक व्याख्यायों का ही कमाल था की गांव-देहात में कोई पीपल को काटने की कल्पना भी नहीं कर सकता था ! ऐसा करके कौन पाप का भागीदार बनेगा ! अर्थात पीपल किसी भी सूरत में ना काटा जाये, इसके लिए भयंकर धार्मिक डर ,वो भी पुरातन काल से हरेक के मन में डाल दिया गया था ! ऊपर से आम लोक जीवन में यह भी कहलवा दिया गया कि पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी नष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति( मरणोपरांत मिलने वाली मुक्ति ) प्राप्त करते हैं। इन सब बातों का ही परिणाम था की हर कोई पीपल लगाने के चक्कर में रहता ! फलस्वरूप ये हुआ की हर गांव में एक नहीं अनेक पीपल होते ! यहाँ तक की पीपल से गांव की पहचान होती ! यही नहीं पीपल की नियमित पूजा होती ! जब अमावस्या (हिंदू कैलेंडर महीने के पन्द्रहवें दिन) हिन्दू कैलेंडर वर्ष में सोमवार को पड़ती , उस दिन सोमवती अमावस्या व्रत रखा जाता और पवित्र पीपल के पेड़ की १०८ बार परिक्रमा कर महिलाएं विशेष पूजन करती।ओफ्फ, कहाँ की ये सब पुराने ज़माने की बातें लेकर बैठ गया ,मैं भी ! ये सब ढकोसले हैं, मनुवादियों के चोचले ! कौन इन कर्मकांड में पड़े ! ये आधुनिक काल है ,अब इन मान्यतायों को कोई नहीं मानता ! किसके पास इतनी फुर्सत है ! आज की युवा जनरेशन ये सब नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती ! कुछ दिनों पहले तक तो पीपल का पेड़ सड़क निर्माण के बीच आ रहा होता तो उतना छोड़ कर सड़क आगे पीछे से निकाल ली जाती ! अब तो वो भी नहीं ! यूं तो अब पैसे लेकर पीपल काटने वाले भी मिल जाएंगे , और कुछ नहीं तो मशीन से काट दिया जाता है ! वैसे अब यह स्थिति आती ही नहीं , क्योंकि अब कोई पीपल लगाता ही नहीं और ना ही यह हमारे रास्ते में रोड़ा बन कर आता है ! कुछ एक जगह पर अगर कोई बूढ़ा पीपल आ भी गया तो उस की जड़ों को खोखला करने के कई नुस्खे हमे पता है ! धीरे से पीपल को मार कर पेड़ को गिरवा दिया जाता है ! क्या करें ,आजकल सीधी सड़क चाहिए , जिस पर हमारी तेज रफ़्तार गाडीयॉं सरपट दौड़ सकें ! वैसे भी शहरों में इतनी जगह कहाँ , जो इतना बड़ा पीपल लगाए , इतने में तो दो चार डुप्लेक्स बन जाएंगे ! गाड़ियों खड़ी करने की जगह नहीं बची और आप को पीपल के पेड़ की पडी है !  क्या कहा !! गाड़ीयों से प्रदूषण होता है ?? हाँ होता तो है , इसके समाधान के लिए अनेक विश्विद्यालय में शोध हो रहा है ! देश विदेश में पर्यावरण पर होने वाली अनेक कॉन्फ्रेंस में हमारे बड़े बड़े एक्सपर्ट हिस्सा ले रहे हैं ! सरकार सतर्क और सजग है ! हमारे मंत्री-अफसर कई विकसित देशो का दौरा कर रहे हैं, इस समस्या के हल को समझने के लिए !  अब ये सब बात करने वाली इस पीढ़ी को यह कौन बतलाये की हमारे पूर्वज , उन दिनों जब कोई गाड़ी नहीं होती थी कोई प्रदूषण भी नहीं था ,तब भी वो इस को लेकर जागरूक थे ! उन्हें पीपल की गुणों का पता था की पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है,अर्थात वे बिना किसी किताबी शोध के जानते थे की पीपल एक प्रदूषण किलर है वो भी प्राकृतिक ! जिनका वर्णन उन्होंने अपने धार्मिक ग्रंथों में किया ! यही नहीं , इसके अनेक औषधीय गुण हैं जिन्हे विस्तार से समझाने के लिए श्लोको की रचना की गई ! वे यह भी जानते थे की अधिकांश आम जनता सूक्ष्म ज्ञान नहीं जानती और ना ही जानना चाहती है , उसे जैसा बता दिया जाये बस वही करती है, इसलिए उन्होंने पीपल को देवता बना कर पूजा करवा दी ! वैसे भी देवता कौन होते हैं, जो हमारे प्राणों की रक्षा करे, हमारे जीवनदाता हों ! अब पीपल से बड़ा जीवनदायक कौन हो सकता है और इसलिए पीपल हमारे विष्णु महेश बन गए ! पीपल प्राणवायु प्रदान कर वायु मण्डल को शुद्ध करता है सिर्फ इसी गुणवत्ता के कारण भारतीय शास्त्रों में इस वृक्ष को सम्मान मिला । हमारे पूर्वज जानते थे की पीपल के जितने ज्यादा वृक्ष होंगे,वायु मण्डल उतना ही ज्यादा शुद्ध होगा। इसलिए पीपल को काटने को धार्मिक रूप से निषेध करवाया गया , ऊपर से अधिक से अधिक लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया ! क्या कमाल की संस्कृति है, जहां हमारे देवता यूं सोचों तो काल्पनिक हो सकते हैं मगर हकीकत में देव गुण वाले ही हैं ! पीपल की तरह हमारे अनेक प्राकृतिक देवता आसमानी हवाहवाई नहीं हैं ना ही कोई अवतार या ईश्वर की संतान टाइप हैं बल्कि हकीकत में हमारे रक्षक हैं ! पीपल के गुणों को देखे तो यह वर्ण को उत्तम करने वाला, योनि को शुद्ध करने वाला और पित्त, कफ, घाव तथा रक्तविकार को नष्ट करने वाला है ! पीपल पूजने का प्रमुख कारण था की पीपल की छाया में ऐसा कुछ आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है, जिसके सेवन से शरीर स्वस्थ होता है और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है!  वृक्ष की अनेक परिक्रमा के पीछे कदाचित इसी सहज प्रेरणा का आग्रह है! पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया ! श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व श्रीकृष्ण इसी दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। बोधि वृक्ष बिहार राज्य के गया जिले में बोधगया स्थित महा बोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का वृक्ष ही है, जहां भगवान बुद्ध को बोध (ज्ञान) प्राप्त हुआ था ! 
                      जब प्रदूषण नहीं था तब भी प्रदूषण की इतनी चिंता थी और उसका जबरदस्त इंतजाम किया गया था ! उसके बारे में ग्रंथों कथाओं और परम्पराओं के माध्यम से संरक्षित किया गया ! इससे ठीक उलट , आज जब चारों और प्रदूषण ही प्रदूषण पैदा किया जा रहा है इस पर कोई बात नहीं करता ! अब कोई पीपल नहीं लगाता ! इसे लगाने के लिए किसी से कहे तो वो कहेगा की आज के बाजार के युग में इसे लगाने का क्या फायदा, कोई फल भी तो नहीं होता, ना ही इसकी लकड़ी किसी काम की , कोई भला ऐसा कोई काम कैसे कर सकता है जिसमे दो पैसे ना कमाया जा सके ! कितना अज्ञानी है आज का आदमी जिसे पीपल के अनमोल मोल का मूल्य ही नहीं पता ! वो उसकी पूजा क्यों करने लगा ! पीपल के गुणों को वो लोग क्यों पढ़ाना चाहेंगे जो इस देवभूमि को सपेरों का देश और यहां की समृद्ध संस्कृति को जंगली कहते नहीं थकते ! पी से पेप्सी के युग में पी से पीपल कौन पढ़ायेगा ! और अगर किसी ने अति उत्साह में आकर पढ़ाना चाहा तो उसे साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाएगा ! सेक्युलर देश में वेद ज्ञान पढ़ने से दूसरे धर्म खतरे में पड़ सकते हैं !यह सब बाते कितनी हास्यास्पद लगती है ! जबकि पीपल के पेड़ की ऑक्सीजन का कोई धर्म नहीं, ना ही उसके औषधीय गुण व्यक्ति में भेद कर सकता है ना ही उसकी छांव का कोई मजहब है ! लेकिन इस सांस्कृतिक जीवन दर्शन की महत्ता को ना तो वो लोग समझते हैं जिनका जीवन रेगिस्तान के सूखे में प्यासा भटकता रहा ना ही उनको जो बर्फ की भयंकर ठण्ड में जीवन की तलाश में इधर से उधर भागते रहे ! ये दोनों समूह इस देव् भूमि पर आये ही इसलिए की यहाँ भरपूर जीवन है जीवन का आनंद है धरती का यौवन है जिसका आनंद आदिकाल से आदिमानव लेता आया है ! जब तक इन बाहरी लूटेरों के आने के बाद भी हमने अपनी सभ्यता को बनाये रखा अपनी संस्कृति से जुड़े रहे अर्थात पीपल का पूजन करते रहे , तब तक चारो ओर खुशहाली थी और हम गुलाम होते हुए भी गुलाम नहीं थे ! जिसका फायदा हमारे साथ साथ ये बाहरी भी उठाते रहे ! आज जब हम राजनीतिक रूप से आजाद हैं मगर अपनी संस्कृति को छोड़ते ही हमारी हालात क्या हो चुकी है वो किसी से छिपी नहीं ! पेड़ को पूजने वाली संस्कृति जब से पेड़ काट कर क्रिसमस मनाने का उत्सव मानने लगी, हमारा पतन शुरू हुआ ! आज हमारे ऊपर पश्चिम की संस्कृति हावी है !अब हमारे साहित्य कला में पीपल नहीं होता, ना ही पीपल की पूजा के दृश्य किसी फिल्म में हो सकते हैं , ऐसा होने पर इनसे आधुनिक होने का सर्टिफिकेट छीन लिया जाता है ! 
ये कैसी आधुनिकता है, जहां जींस और टी शर्ट पहने युवक युवतियों को काला चश्मा पहनना तो समझ आता है मगर वे सड़क किनारे भरी दोपहरी में पेड़ की छावं जब नहीं पाते तो कही कुछ कमी है उसे जान नहीं पाते ! बिना पेड़ की छावं के , सड़क किनारे खड़ी गाड़ियों मिनट में तप जाती है और उनकी आंखे किसी पीपल बरगद आम नीम जामुन के पेड़ को नहीं तलाशते ! इसके लिए क्या किसी विश्विद्यालय में पढ़ने की जरूरत है ? नहीं ! मगर यह जीवन ज्ञान अब घर परिवार में बाटने वाले बड़े बुजुर्ग भी नहीं रहे ! कोई जमाना था की सड़क किनारे पीपल के पेड़ अक्सर मिल जाते ! इन पेड़ो के पास अमूमन एक कुआ होता और साथ ही छोटा सा मंदिर ! यहां कोई थका हारा राहगीर छांव में दो पल सुस्ता लेता ! अब सड़क किनारे पेड़ लगाने का चलन नहीं है ! अब तो मॉल और ढाबे का कल्चर है ! इसलिए आज हर शहर प्रदूषित हैं !और जहां वातवरण ही प्रदूषित हो जाए वहा मानव जीवन कितना कष्टमय हो सकता है, किसी भी महानगर को देख ले ! हर शहर ने कैसे कैसे ओड इवन जैसे हास्यास्पद प्रयोग भी देखे मगर कोई हल नहीं निकला ! 
हमारी सारी समस्या का समाधान हमारी सनातन परम्परा से रचे बसे हमारी संस्कृति में है ! उसी के आधार पर अब एक साम्प्रदायिक सुझाव है ! शहर के चारो तरफ रिंग रोड बना कर सड़क के दोनों तरफ पीपल के पेड़ लगा दो। किसी किले की मजबूत दीवार की तरह ! और शहर वालो को कह दो की इन पेड़ों की पूजा करना ही उनका धर्म है ! और ऐसा करने पर जिसे अपना धर्म खतरे में नजर आये और जो सेक्युलर इस पर आपत्ति करे उसे हिन्दू ऑक्सीजन की जगह हिन्दू विरोधी जहरीली कार्बन डाई ऑक्साइड को निगलने का ऑप्शन दिया जा सकता है ! ऐसा करते ही उनका महान धर्म भी सुरक्षित रहेगा और वे भी दीर्घ आयु को प्राप्त होंगे !

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https://www.youtube.com/watch?v=UPUINf__sp8

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. भारतीय संस्कृति से जुड़े पीपल वृक्ष पर उपयोगी विस्तृत लेख। सभी धर्मों का आदर सभी करें तो वैमनस्यता का दायरा स्वतः सिकुड़ जाता है।

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