प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी भले देश की राजनीति को वंशवाद से मुक्त करने के प्रयासों में जुटे हों लेकिन उनकी पार्टी भाजपा के ही नेता गाहे-बगाहे ऎसे बयान दे जाते हैं जिसमें वंशवाद की बू नजर आती है । ताजा मामला केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी का है जो चाहती है कि उनके पुत्र वरूण गांधी सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभालें । लोकतंत्र में किसी भी नेता को किसी पद पर बिठाने का दारोमदार मतदाताओं पर है । माताओ पर नहीं ।
जैसे कांग्रेस हो या भाजपा अथवा अन्य दल, वंशवाद की लम्बी फेहरिस्त हर जगह है । कार्यकर्ताओं में प्रोत्साहित करने का मंत्र फूंका जाता हो लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं । किसी नेता का पुत्र होना कोई अयोग्यता नहीं मानी जा सकती लेकिन राजनीति में सिर्फ रिश्तेदारी को ही महत्व क्यों मिले ? लालबहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, पी.वी. नरसिम्हाराव, चन्द्र शेखर और नरेन्द्र मोदी समेत तमाम नेताओं को राजनीति विरासत में नहीं मिली बल्कि उन्होंने संघर्ष करके यह मुकाम हासिल किया ।
वरूण गांधी जी उत्तर प्रदेश से दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं । भाजपा की राजनीति में वरूण सक्रिय हैं, युवा हैं, उत्साही भी हैं लेकिन उनकी यही खूबी क्या मुख्यमंत्री पद की योग्यता के लिए पर्याप्त है ? उत्तरप्रदेश पहले से ही पहले ही इस वंसवादी राजनीती के कारण एक अयोग्य और अनुभवहीन मुख्यमंत्री को ढो रहा है । उत्तर प्रदेश भाजपा में तमाम ऎसे नेता होंगे जो योग्यता में वरूण से आगे होंगे । भारतीय राजनीति में अच्छे लोग खासकर युवा पीढ़ी इसलिए नहीं जुड़ पा रही है क्योंकि वह जानती हैं कि युवाओं के नाम पर यहां बड़े नेताओं के पुत्र-पुत्रियों अथवा रिश्तेदारों को ही प्रोत्साहन मिलता है । और जमीनी कार्यकर्ताओ की अनदेखी की जाती है और यह रोग सभी राजनैतिक दलों में लगा हुआ है । राजनीतिक दलों के ढांचे पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट होता है कि आज ''भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों'' को छोड़कर अधिकांश राजनीतिक दल एक व्यक्ति अथवा एक परिवार की छत्र छाया में फल-फूल रहे हैं । सेवाभाव की बजाय राजनीति व्यवसाय का रूप लेती जा रही है जो चिंता का विषय है । राजनीति को वंशवाद अथवा परिवारवाद से मुक्त करना है तो भाषणो की बजाय यथार्थ में ऎसा करके दिखाना होगा ताकि अच्छे युवा राजनीति से जुड़ने के लिए प्रेरित हो सकें । इसके लिए वरिष्ठ नेताओं को परिवारवाद के मोह से ऊपर उठना होगा, राजनीति की दशा और दिशा में सुधार की उम्मीद तभी बलवती होगी । मेनका गांधी और ऎसी इच्छा रखने वाले सभी नेताओं को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा । ऎसा करना मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव तो नहीं ।
यदि भाजपा भी वंसवाद की राजनीती की तरफ चल पडी तो अपनी विशेष पहचान खो सकती है । अतः मोदी जी को सावधान और सतर्क रहना होगा । अब मेनका जी तो माँ है , पर मेनका जी को एक नेक सलाह देता हु । जेठानी (सोनिया गांधी) नहीं बने ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें