बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

भारत का सबसे बड़ा फेकू नेता कौन है ?

मित्रों,इन दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालत कुछ ऐसी ही है जैसी कि विराटनगर के मैदान में अर्जुन की थी। मोदी ने कुछ बोला नहीं कि सारे धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार हिन्दू-अहिन्दू नेता एकसाथ टूट पड़ते हैं उनपर कि उन्होंने यह गलत बोला,वह गलत बोला,ये फेंका,वो फेंका। जबकि सच्चाई तो यह है कि फेंकनेवाले और झूठे वादे-दावे करनेवाले विपक्ष में ही ज्यादा हैं। इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जिनका इस मामले में इस वसुधा पर जोड़ ही नहीं है।

               मित्रों,अगर कभी फेंकने का ओलंपिक कहीं हुआ तो निश्चित रूप से उसके सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किए जाएंगे बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी। यह श्रीमान् तो राज्य में सिर्फ वही कर देने के वादे और दावे करते फिरते हैं जो इनके बूते में ही नहीं है। जब ये विकास-यात्रा पर होते हैं तब धड़ल्ले से रास्ते में पड़नेवाले हर गाँव-शहर में थोक में शिलान्यास करते हैं और दिन के बदलने के साथ ही उनको भूल जाते हैं। ये कभी पटना में मेट्रो ट्रेन चलाते हैं तो कभी पटना के बगल में नया पटना बसाते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने पटना से बख्तियापुर तक गंगा किनारे छः लेन की सड़क बनाने की योजना का शिलान्यास किया है जो शायद गंगा पर बिदूपुर और बख्तियारपुर के सामने बननेवाले दो महासेतुओं के साथ ही इसी शताब्दी में बनकर पूरी हो जाएगी। कभी इन्होंने राज्य के लोगों से वादा किया था कि आगे से संविदा पर बहाली नहीं की जाएगी लेकिन एक बार फिर जैसे ही दिन बदला,सूरज ने पूर्वी क्षितिज पर दस्तक दी नीतीश जी वादे को भूल गए। दिनकटवा आयोगों का गठन करने और इस प्रकार पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उपकृत कर निवर्तमान जजों को सुखद संकेत देने के मामले में सुशासन बाबू केंद्र सरकार से भी कई कदम आगे हैं। कदाचित् इन आयोगों का गठन ही इसलिए किया गया है कि इनकी रिपोर्ट कभी आए ही नहीं। फारबिसगंज न्यायिक आयोग,कुसहा बांध न्यायिक आयोग इत्यादि इसकी मिसाल हैं। बिहार में (कु)कर्मियों और अ(न)धिकारियों की भर्ती करने के लिए गठित बिहार लोक सेवा आयोग व बिहार कर्मचारी चयन आयोग इन दिनों सिर्फ नाम के लिए या उम्मीदवारों को धोखा देने के लिए परीक्षाएँ आयोजित करते हैं बाँकी सारी सीटें तो पर्दे के पीछे पैसे लेकर बेच दी जाती हैं। इसी प्रकार इन्होंने 2010 के चुनावों के समय वादा किया था कि अगली पारी में राज्य से भ्रष्टाचार को समूल नष्ट कर दिया जाएगा लेकिन हुआ मनमोहन-उवाच की तरह उल्टा और घूस की रेट लिस्ट में बेइन्तहाँ बढ़ोतरी हो गई। इन श्रीमान् के शासन में हर सरकारी दफ्तर-स्कूल-थाने भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं लेकिन ये फिर भी चाटुकार मीडिया द्वारा सुशासन बाबू कहे जाते हैं। कहने को तो राज्य में निगरानी विभाग है जो बराबर लोगों को घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार भी करती है लेकिन आज तक शायद किसी रिश्वतखोर को इसने सजा नहीं दिलवाई है। रिश्वतखोर जब जेल से छूट कर आता है तो और भी ज्यादा ढिठाई से घूस लेने लगता है। इसी प्रकार इस विभाग ने दिखाने के लिए कुछ मकान जब्त भी किए हैं लेकिन जिस प्रदेश के कदाचित् 90 प्रतिशत मकान भ्रष्टाचार की देन हैं,जहाँ छतदार मकानवाला जमीन्दार चार-चार बार इंदिरा आवास का पैसा उठाता है और असली जरुरतमंद मुँहतका बना रहता है वहाँ एक-दो दर्जन मकानों को जब्त करने से भ्रष्टाचार का क्या उखड़ जानेवाला है आप सहज ही सोंच सकते हैं। राज्य में अफसरशाही की हालत इतनी खराब है कि छोटे-छोटे अफसर भी मंत्रियों तक की नहीं सुनते। तबादलों ने राज्य में उद्योग का रूप ले लिया है।
मित्रों,इस व्यक्ति ने मीडिया को अभूतपूर्व विज्ञापन द्वारा कृतज्ञ बनाकर पूरी दुनिया में यह झूठी अफवाह फैला दी है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से सुधर गई है जबकि सच्चाई तो यह है कि आज भी यहाँ रोजाना दर्जनों अपहरण होते हैं,बैंक लूट होती है। बिहार पुलिस का गठन ही मानों सिर्फ घूस खाने,जनता पर अत्याचार करने व बलात्कार करने के लिए हुआ है अनुसंधान करना और आतंकी कार्रवाई रोकना तो इसकी कार्यसूची में ही नहीं है। पहले बोधगया और अब पटना में आतंकियों ने सफलतापूर्वक बम फोड़े और बिहार पुलिस केंद्र से चेतावनी मिलने के बावजूद मूकदर्शक बनी रही और कदाचित् आगे भी बनी रहेगी। बनी भी क्यों न रहे जबकि मुख्यमंत्री ही आतंकियों को अपना बेटी-दामाद बताते हैं। मुजफ्फरपुर में अपने घर से 18 सितंबर,2012 की रात से अपहृत 11 वर्षीय लड़की नवरुणा का आज तक महान बिहार पुलिस सुराग तक नहीं लगा पाई है जबकि जाहिर तौर पर इसके पीछे उन स्थानीय भू-माफियाओं का हाथ है जिनको स्थानीय नेताओं व प्रशासन का वरदहस्त प्राप्त है।
मित्रों,भाजपा कोटे से पथनिर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव के अथक परिश्रम से राज्य की सड़कें चिकनी क्या हुई,चंद्रमोहन राय की तत्परता से अस्पतालों और जलापूर्ति विभाग में सुधार क्या हुआ कि नीतीश जी ने मीडिया में विकास के बिहार मॉडल की हवा चला दी। जब विकास हुआ ही नहीं तो विकास का मॉडल कैसा? कई बार श्रीमान् ने उद्योगपतियों के साथ पटना में बैठकें की लेकिन पलटकर कोई उद्योगपति बिहार नहीं आया। जब राज्य के अधिकांश हिस्सों में सरकारी अधिकारी नक्सलियों को बिना लेवी दिए दफ्तरों में बैठ नहीं सकते तो फिर उद्योगपति उनसे कैसे निबटेंगे?
मित्रों,फिर एक दिन अचानक नीतीश जी ने यू-टर्न लिया और कहा कि राज्य का सुपर स्पीड में विकास तो हुआ है लेकिन उस विकास के कारण राज्य और भी ज्यादा पिछड़ गया है इसलिए उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। कैसा विकास है यह जिसमें केवल शराब-विक्रय से प्राप्त आय ही बढ़ती है? हर मोड़,हर चौराहे पर कम-से-कम एक-एक शराब की दुकान। खूब पीयो क्योंकि इससे राज्य का विकास होगा। उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल भी गया तो उद्योगों के लिए जमीन कहाँ से लाएंगे या फिर उद्योग भी उनकी बातों की तरह हवा में ही स्थापित हो जाएंगे? पिछले कई वर्षों से स्कूली छात्र-छात्राओं को सिरिमान जी साईकिलें बाँट रहे हैं। मुखियों को शिक्षक बहाली का अधिकार देकर स्कूली शिक्षा का तो बंटाधार कर दिया और बाँट रहे हैं साईकिल और छात्रवृत्ति। क्या साईकिलें व पैसे पढ़ाएंगे बच्चों को?
मित्रों,श्रीमान् ने भाजपा का दामन छोड़ा सीबीआई के डर से और भाजपा की पीठ में खंजर भोंककर उल्टे भाजपा पर ही विश्वासघात का आरोप लगा रहे हैं। बिहार में एक और नेता हुआ करते हैं लालू प्रसाद यादव जी। हवाबाजी में ये नीतीश जी से थोड़ा-सा ही कम हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में इन्होंने सीरियस मजाक करते हुए वादा किया कि अगर नीतीश साईकिलें बाँट रहे हैं तो मैं छात्र-छात्राओं को मोटरसाईकिलें दूंगा। इतना ही नहीं इन्होंने मुखियों द्वारा बहाल किए गए अयोग्य शिक्षकों को पुराने शिक्षकों जितना वेतनमान देने की भी घोषणा कर दी। अब इन्हीं से पूछिए कि मोटरसाईकिल और वेतन के लिए ये पैसा कहाँ से लाएंगे,चारा घोटाला फंड से या अलकतरा घोटाला निधि से?
मित्रों,हमारे राष्ट्रीय युवराज का नाम भाई लोगों ने भले ही पप्पू रख दिया हो मगर सच्चाई तो यह है कि फेंकने में इनका भी कोई सानी नहीं है। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने दिल्ली मेट्रो को शीला सरकार की देन ठहरा दिया जबकि यह परियोजना जापान सरकार के सहयोग से वाजपेयी सरकार द्वारा लाई गई थी। कई-कई बार ये पंचायती राज को अपने स्व. पिता की देन बता चुके हैं जबकि भारत में पंचायती राज 1993 में तब लागू किया गया जब केंद्र में नरसिंह राव जी की सरकार थी। इसी प्रकार ये सूचना क्रांति को भी अपने पिताजी की देन बताते हैं जबकि सूचना क्रांति को सर्वाधिक बढ़ावा तब मिला जब वाजपेयी प्रधानमंत्री और प्रमोद महाजन सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री थे। इंतजार करिए लोकसभा चुनावों तक ये लाल किला और कुतुबमीनार को भी क्रमशः नेहरू और इंदिरा द्वारा निर्मित बताएंगे। इसी प्रकार केंद्र व उप्र की सरकारों में भी फेंकुओं की कोई कमी नहीं है। कोई 32 रुपए कमानेवाले को अमीर बता रहा है तो कोई दो रुपए में भरपेट भोजन कर लेता है तो कोई हजार रुपए में टेबलेट बाँट रहा है तो कोई घोटाले करके भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित कर रहा है तो कोई गरीबों की झोली से प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज छीनकर भोजन की गारंटी दे रहा है तो कोई गरीबों को कागज पर शिक्षा का अधिकार देने में लगा-भिड़ा है। काम शून्य सिर्फ हवाबाजी। जब भी आतंकी हमला हुआ तो उनींदी मुद्रा में बोल दिया कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा और फिर सो गए,जब पाकिस्तान ने जवानों को मारा तो ऊंघते हुए कह दिया कि कड़े कदम उठाए जाएंगे और सो गए। जब चीन ने घुसपैठ की तो घुसपैठ होने से ही मुकर गए और चीन की एक दंडवत यात्रा कर ली। कहने को तो सेना के लिए बंदूक की गोली और टैंक का गोला तक नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री के अनुसार हमारी सेना किसी भी खतरे से निबटने में सक्षम है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच चुकी है लेकिन प्रधानमंत्री औसत के आधार पर इसे राजग कार्यकाल से अच्छा सिद्ध कर रहे हैं। महँगाई तो न जाने कब से अगले सप्ताह से ही कम हो जानेवाली है। मैं पूछता हूँ कि अगर पटेल कांग्रेस के गौरव हैं तो क्यों उनको पूरी तरह से पार्टी द्वारा भुला दिया गया और तभी क्यों उनकी याद आई जब नरेंद्र मोदी ने उनकी विश्व की सबसे बड़ी व ऊँची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणी की? छोटे युवराज अखिलेश यादव ने तो खेल के सारे नियम ही पलट दिए हैं। मुजफ्फरनगर में जो पीड़ित पक्ष है उसे ही जेलों में ठूस दिया गया है और जो व्यक्ति दंगों के दौरान अधिकारियों को कोई कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दे रहा था अभी भी उप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री ही नहीं सुपर चीफ मिनिस्टर बना हुआ है।


        मित्रों,अब आप ही बताईए कि वास्तव में बड़ा या सबसे बड़ा फेंकू कौन है? दरअसल राजनीति के मैदान में हर कोई फेंकू है और कुछ तो नीतीश की तरह ऐसे भी हैं जिनको कुछ करना आता ही नहीं है सिर्फ फेंकना आता है। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हमारे सभी राजनेताओं में सबसे बड़ा फेंकू कौन है- हँस-हँस बोले मधुर रस घोले विरोधियों पर बदइंतजामी से उतारे खीस। झूठ भी बोले सच से अच्छा का सखी मोदी ना सखी नीतीश।।


जागरण जक्सन से साभार  -------:

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

१० सालों में UPA (कांग्रेश ) की उपलब्धिया ?

प्रधानमंत्री के तौर पर पहली बार शपथ लेने के कुछ दिनों बाद जून, 2004 में एक राष्ट्रीय टीवी प्रसारण में डॉ. मनमोहन सिंह ने विकास को अंतिम लक्ष्य करार न देते हुए कहा था कि  "विकास रोजगार के मौके मुहैया कराने, गरीबी, भूखमरी दूर करने, बेघरों को घर दिलाने और आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने का UPA एक जरिया है । पर यह जरिया १० सालो  में कितना  कामयाब हुआ आप  सभी को पता है । 

प्रधानमंत्री जी की इन नाकामियों  पर एक नजर  ------:

भ्रष्टाचार 
 
देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि जब प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने शपथ ली थी, तब उनकी छवि अर्थव्यवस्था के बड़े जानकार, ईमानदार नेता की थी । लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के अंत के करीब खड़े मनमोहन सिंह आजकल कोयला घोटाले में सीबीआई से पूछताछ के लिए तैयार होने की बात कह रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री पर सरकार के बड़े ओहदे पर रहे पूर्व कोयला सचिव खुलेआम सवाल खड़े कर रहे हैं। यह मिसाल इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि यूपीए सरकार ईमानदारी के मोर्चे पर कितनी खरी है। 1.86 लाख करोड़ रुपए के कोयला घोटाले, 1.76 लाख करोड़ रुपए के 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले और  कॉमनवेल्थ घोटाले तो बानगी भर हैं। यूपीए सरकार खासकर इसके दूसरे कार्यकाल में घोटालों की बाढ़ सी आ गई। जैसे-जैसे घोटाले सामने आते गए लोगों का भरोसा इस सरकार से उठता गया। मनरेगा जैसी योजनाएं भी भ्रष्टाचार का शिकार हुई हैं। 2009 में यूपीए को दोबारा सत्ता में लौटाने में इस योजना को बहुत अहम माना जाता है ।  

महंगाई 
 
मई, 2009 में दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने देश से वादा किया था कि उनकी सरकार 100 दिनों के अंदर महंगाई को काबू में ले आएगी। लेकिन आज करीब साढ़े चार बाद देश में हालत यह है कि प्याज 100 रुपए किलो बिक रहा है। अन्य सब्जियों का भी हाल बुरा है। आज हालत यह है कि कोई भी दिल्ली जैसे शहरों में सब्जी 35-40 रुपए किलो से कम नहीं बिक रही है। दूध भी 40-50 रुपए किलो बिक रहा है। देश के ज्यादातर शहरों में पेट्रोल की कीमत 75 रुपए या उससे ऊपर है। यही हालत आटा, दाल, चावल, मसालों, तेल वगैरह का है। देश महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रहा है, लेकिन सरकार सिर्फ तमाशबीन बनकर देख रही है।  


 
बेरोजगारी 
 
यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान यूपीए सरकार ने मनरेगा योजना को बड़े जोर शोर से लागू किया था। सरकार ने इसका बहुत ढिंढोरा पीटा। लेकिन यह योजना न सिर्फ भ्रष्टाचार की शिकार हुई बल्कि इससे देश के पढ़े-लिखे और हुनरमंद युवाओं को कोई खास फायदा नहीं हुआ। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान और श्रीलंका जैसे छोटे-छोटे देश इस मामले में भारत से बेहतर हैं। भारत में बेरोजगारी दर इन सभी देशों से ज्यादा है। बेरोजगारी दर के मामले में भारत दुनिया के 25 शीर्ष देशों में 24 वें स्थान पर है। आईएमएफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर 9.9 फीसदी है। 
 

 
विकास दर घटी 
 
एक आर्थिक विशेषज्ञ के लंबे समय से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहने के बावजूद देश की आर्थिक सेहत गिरती जा रही है। केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक यूपीए सरकार की अगुवाई में देश ने पिछले एक दशक का सबसे निचला विकास दर (5 फीसदी) बीते जून में हासिल किया था। निर्माण और खनन जैसे क्षेत्रों में विकास की धीमी रफ्तार ने जीडीपी की हवा निकाल दी है।
 यूपीए सरकार: 10 साल, 10 नाकामियां
मानव विकास सूचकांक में अब भी पिछड़े 
 
मानव विकास सूचकांक में दुनिया के 185 देशों में भारत की रैंकिंग 134 वीं है। समोआ, सूरीनाम, गाबोन, मंगोलिया और इराक जैसे देश इस मामले में हमसे बेहतर हैं। 
 
       आंकड़ों के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के मामले में भारत का रिकॉर्ड बहुत खराब है। हमारे देश के पांच साल से कम उम्र के करीब 44 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। हमसे बेहतर रिकॉर्ड इथोपिया, बांग्लादेश, भूटान, अफगानिस्तान और बुरूंडी जैसे देशों का है। औसत स्कूल जाने के साल के मामले में भारत का स्कोर महज 4.4 साल है। जबकि समोआ 10.3 साल, टोंगा 10 साल, फिजी 10.7 साल जैसे देश में बच्चे भारतीय बच्चों की तुलना में ज्यादा समय स्कूल में बिताते हैं। प्रसव या गर्भ धारण के समय मां की मौत के मामले में भारत का रिकॉर्ड खराब है। यहां हर एक लाख प्रसव के दौरान करीब 230 मांएं मौत के मुंह में समा जाती हैं। जबकि श्रीलंका में यह आंकड़ा 39, चीन में 38, सूरीनाम में 100 है।  
 

 
अपनी ही जमीन पर सुरक्षित नहीं ?
 
कुछ साल पहले एक भाषण में देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था। लेकिन इस बयान के बावजूद नक्सलवाद पर काबू नहीं पाया जा सका है। मनमोहन सिंह की ही पार्टी कांग्रेस की छत्तीसगढ़ ईकाई के कई नामी गिरामी नेताओं को इसी साल मई में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ की दरभा घाटी में घात लगाकर हमले का शिकार बनाया था। नक्सलवाद के अलावा देश में बढ़ती आतंकी वारदातें भी यूपीए सरकार की नाकामियां गिनाने के लिए काफी हैं। मुंबई में 26 11, लोकल ट्रेन में सीरियल बम विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस में आग, यूपी के कई शहरों, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, मालेगांव, पुणे में कई बम धमाके भारत में आतंकवादियों के बढ़ते हौसले का सुबूत हैं। लेकिन यूपीए सरकार इन खतरों से नहीं निपट पाई है।     
 भूख और गरीबी से नहीं लड़ सकी सरकार 
 
खाद्य सुरक्षा कानून पास करवाते समय यूपीए सरकार ने कहा था कि आज भी देश में एक बड़ी आबादी भूखे पेट सोती है। सरकार ने देश की आधे से अधिक आबादी को इस कानून के दायरे में लाकर उन्हें भोजन की गारंटी दे रही है। मतलब, इस देश में आधी से अधिक आबादी के पास भरपेट भोजन नहीं है? दुनिया के 79 सबसे भूखे देशों की लिस्ट में भारत की रैंकिंग 65 वीं है। शर्मनाक बात यह है कि मलावी, माली यूगांडा, बेनिन और घाना जैसे अफ्रीकी देश भारत से बेहतर रैंकिंग लिए हुए हैं। यहां तक कि नाकाम राष्ट्र बनते जा रहे पाकिस्तान की रैंकिंग भी भारत से अच्छी है। यही हाल श्रीलंका का भी है। 
 

यूपीए सरकार: 10 साल, 10 नाकामियां
 
दुनिया से खराब हुए रिश्ते 
 
पाकिस्तान और चीन ही नहीं भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों के अलावा दुनिया के कई देशों से रिश्ता खराब हुआ है। इन देशों में नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव शामिल हैं। अब ये देश भारत को आंखें तरेरते हैं। इसके अलावा इटली ने अपने दो सैनिकों के मामले में भारतीय न्याय व्यवस्था का मखौल उड़ाने का कोशिश की। म्यांमार को लेकर भारत की नीति स्पष्ट नहीं है। भारत ने वहां की नेता आंग सान सू ची का खुलकर समर्थन नहीं किया। इससे भारत के लोकतंत्र में विश्वास को लेकर अमेरिका जैसे देशों ने सवाल उठाए। भारत ईरान से तेल खरीदने के मामले में भी अमेरिका के दबाव में दिखा। मिस्र में हुई क्रांति के पक्ष या विपक्ष में भारत ने खुलकर नहीं बोला। इन मामलों संबंधित देशों से भारत के राजनयिक रिश्ते खराब हुए हैं।  
 
 
 
पाकिस्तान से रिश्ता 
 
यूपीए सरकार की बड़ी नाकामियों में से एक पाकिस्तान से उसका रिश्ता रहा है। 2003 में हुए युद्धविराम समझौता का हाल के सालों में बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है। पाकिस्तान ने बीते एक साल में करीब 200 से ज्यादा बार एलओसी पर सीजफायर तोड़ा है। हालत यह है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से सितंबर में मुलाकात के बाद पाकिस्तान ने सीमा पर गोलीबारी और बम फेंकने की नापाक हरकत तेज कर दी है। वह अब सीमा के नजदीक भारत के गांवों को भी निशाना बना रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार पाकिस्तान को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। भारत सरकार को 9/11 के हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद, मोस्ट वॉन्टेड डॉन दाऊद इब्राहिम को पकड़ने या भारत लाने में कोई कामयाबी नहीं मिली है। उलटे 2009 में शर्म अल शेख में प्रधानमंत्री ने उस दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए थे, जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर बलूचिस्तान में बगावत को हवा देने की बात कही थी। 
 

 
चीन से संबंध  
 
भारत और चीन का रिश्ता 1962 की जंग के बाद कभी भी सामान्य नहीं रहा। दोनों देश एक दूसरे को शक की निगाह से देखते हैं। लेकिन हाल के कुछ सालों में यह मतभेद और गहरे हुए हैं। इस साल कई बार चीनी सैनिक भारत की सीमा के 20-20 किलोमीटर भीतर घुस आए। 15 से ज्यादा बैठकों के बावजूद दोनों देशों में सीमा विवाद का अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है। चीन अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को नत्थी कर वीजा देता है। वहीं, उसने जम्मू-कश्मीर में तैनात सेना के बड़े अफसर को वीजा देने से इनकार कर दिया था। यही नहीं, वियतनाम से मिलकर दक्षिणी चीन सागर में भारत की तेल की खोज पर भी चीन को भारी आपत्ति है। लेकिन इन सभी मोर्चों पर भारत सरकार नाकाम दिख रही है।  
 

शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

इस तरह के लोग मृत के समान होते है

शुप्रभात मित्रो जय जय श्री राम जय श्री कृष्णा !
 
तुलसीदास जी ने इस  तरह के लोगों के मृत समान ही माना है । अगर हममे ये एक भी दुर्गुण है तो हम भी जीते जी मृतक के समान हैं ।

कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा। अतिदरिद्र अजसि तिबूढ़ा।।
सदारोगबस संतत क्रोधी। विष्णु विमूख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी। जिवत सव सम चौदह प्रानी।।


वाम मार्गी - जो पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो।

कामवश – अत्यंत भोगी, विषयासक्त (संसार के भोगो) ने उसे मार दिया हैं। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती। ऐसा प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर जीता है।

कंजूस - कंजूस मरा हुआ हैं। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रुप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मरे समान ही है।

विमूढ़ - अत्यंत मूढ़ (मूर्ख) मरा हुआ हैं। जिसके पास विवेक बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है।

अति दरिद्र - गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारो मत क्योकि वो पहले ही मरा हुआ होता हैं।

अजसि - जिसको संसार मे बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ हैं। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र किसी भी ईकाइ में सम्मान नहीं पाता, वो व्यक्ति मरे समान ही होता है।

अति बूढ़ा - अत्यंत वृद्ध भी मरा हुआ होता है क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वो और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

सदा रोगवश - जो निरंतर रोगी है वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति का कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

संतत क्रोधी - 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत प्रायः ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना उसका काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिसके मन और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं वो जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।
परमात्मा विमुख – परमात्मा का विरोधी, लघुता ग्रंथी से पीड़ित है। जो ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं वो होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था ना रखता हो ऐसा व्यक्ति मृत माना जाता है। 

तनु–पोषक – ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह आत्म संतुष्टि के लिए जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो। जो खाने-पीने, वाहनों में स्थान, हर बात में सिर्फ ये सोचता हो कि सारी चीजें पहले मुझे ही मिल जाएं, बाकि किसी को मिले ना मिले। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं।

छद्म निंदक - अकारण निंदा करे वो भी मरा हुआ है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करे। वो इंसान मरा है!

अघ खानी – जो पाप से अर्जित धन से अपना और परिवार को पोषण करे, वो व्यक्ति भी मरे समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और इमानदारी से कमाई करके खानी चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

! एलपीजी कनेक्शन के साथ आपको इंश्योरेंस का लाभ भी मिलता है !

क्या आप जानते हैं कि एलपीजी कनेक्शन के साथ आपको इंश्योरेंस
का लाभ भी मिलता है , शायद नहीं। दस में आठ उपभोक्ताओं को यह
नहीं पता, लेकिन आप जान लें कि एलपीजी कनेक्शन के साथ
ही आपका बीमा हो जाता है। गैस सिलेंडर से दुर्घटना होने की स्थिति में
आपको 40 लाख रुपए तक का क्लेम मिल सकता है। इतना ही नहीं सामूहिक  दुर्घटना की स्थिति में क्लेम की राशि 50 लाख रुपए तक हो सकती है
। दुर्घटना के बाद इलाज का खर्च गैस कंपनी उठाती है... लेकिन प्रायोगिक रूप से ऐसा नहीं होता। जानकारी के अभाव में न तो उपभोक्ता इसकी सूचना कंपनी को नहीं सरकार और गैस कम्पनी उपभोक्ता से यह जानकारी छुपाते है!

For more information Please check these documents:
http://www.lawyersclubindia.com/forum/files/199426698_bpcl_citizen_09.03.2012.pdf
www.lawyersclubindia.com

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

! कांग्रेस के सहजादे से कुछ सवाल !

अभी कांग्रेश के सहजादे साहब मध्यप्रदेश के चुनावी दौरे पर है कुछ प्रश्न मन में उठ रहे है की लगे हाथ सहजादे साहब से कुछ जबाब मागा जाए |

 

११५ करोड़ भारतीयों पर जब एक ही परिवार की सोच ,समझ ,अक्षमता थोपी जाए ,जब चमचो का एक बड़ा वर्ग राष्ट्रहित से बड़ा परिवार हित की डुग डुगी  बजा कर चुनावी वैतरणी पर करने की चेष्टा करे तो यह स्वाभाविक है की जनता के मन में कुछ सवाल उठेगे मैं चाहता हु की कांग्रेश के सहजादे साहब मेरे कुछ सवालों का जबाब देगे ? 

  राहुल  जी सवाल है की ---:

सवाल नंबर एक --:

मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग ना बनायेगे ,न बनाने देगे की राजनीती कब तक ?

मध्यप्रदेश के १०राष्ट्रीय राजमार्गो में को  केंद्र सरकार न तो बना रही है और ना ही बनाने दे रही है ऐसा क्यों ?

 १-ग्वालियर  -देवास
 २-रीवा -लखनादोन
३- जबलपुर -भोपाल
४-ब्यावरा -राजगढ़
५- जबलपुर मंडला चिल्पी
६-इंदौर से बैतूल
७- अब्दुल्ला गंज से बैतूल
८-कटनी ,अनूपपुर सहडोल
९ सागर से  छतरपुर  
१० - भोपाल ,रायसेन सलामतपुर साची आदि रोड़ो की  मरम्मत के लिए केंद्र सरकार से सालो से निवेदन कर रही है ! इस संबध में मंत्री श्री कमलनाथ और मंत्री सी पी जोशी जी को मध्यप्रदेश सरकार ने अभी  तक २० पत्र लिख चुकी है पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई क्यों ?

   अंतत: मध्यप्रदेश कैबनेट ने प्रस्ताव पारित कर केंद्र को लिखा की कृपया इन राष्ट्रीय राजमार्गो को " डिनोटिफाई " कर दे ताकि मध्यप्रदेश सरकार इन रोड़ो को बनवा सके जैसा की इंदौर -भोपाल और लेबड़ -नीमच मार्ग के लिए किया गया आज इन दोनों रोड़ो की शानदार स्थित सबके सामने है !

 
 क्या केंद्र सरकार यह भेदभाव पूर्ण रवैया आपकी जानकारी में है ? यदि नहीं तो क्या आप इस रवैये को नानसेंस मन कर प्रदेश की जनता से माफी मागेगे ?

सवाल नम्बर दो--:

विकिलिक्क्स के अनुसार आपने एक अमरीकी राजनयिक से कहा था की भारत का सबसे बड़ा ख़तरा हिन्दू आतंकवादियों और  हिंदुत्व से  है क्या आप ऐसा मानते है यदि हां तो क्यों नहीं तो फिर हिन्दुओ से माफी मागेगे ?

सवाल नंबर तीन --:

गैस काण्ड के आरोपी एंडरसन  को सरकारी विमान में किसके आदेश पर किसके हितो के लिए फरार करवाया गया ?

सवाल नंबर चार --:

आपके जीजा जी पर लगे भूमि घोटाले के आरोपों पर आपका क्या मत है ? क्या  इसकी सी बी आई जाच हो रही है ? आपके अनुसार इन्हें क्या दंड मलना चाहिए ?

सवाल नंबर पाच --:

भ्रष्टाचार ,महगाई ,निर्भया बलात्कार पर जबव युवा सडक पर थे तब आप नदारत रहते है आखिर कार इन महत्वपूर्ण मुद्दे पर आप कब तक चुप रहेगे ?

सवाल नंबर छ --:

क्या आपके पास भारत के अलावा और किसी देश की नागरिकता है ?

सवाल नंबर सात --:

आपने जिस तरह से सार्वजानिक तौर पर प्रधानमंत्री पद की गरिमा का चीर हरण किया क्या यह मीडिया के सामने करना जरुरी था क्या आपको कभी ग्लानि हुई ?

सवाल नंबर आठ --:

सेंत स्टीफेंस कालेज में आपका दाखिला खिलाड़ी कोटे से हुआ था क्या आप देश को  बताना चाहेगे की आप किस खेल में पारंगत है ?

सवाल नम्बर नों ---:

जब सीमा पर दुश्मन ने हमारे फौजियों के सर काटे तब आपका खून खोला था ? या फिर अपनी राजनैतिक ब्यास्ताता में आप इस मुद्दे को भूल गए ? या फिर आपकी नजरो में देश के जवानो की कोई कीता नहीं है ?

सवाल नंबर दश  --:

मध्यप्रदेश के गरीबो को गरीब मानने में आनाकानी क्यों ?
तेंदुलकर कमिटी के अनुसार मध्यप्रदेश  में ६९ लाख से अधिक गरीब है लेकिन आपकी सरकार ४१.२ लाख लोगो को ही गरीब मानकर बाकी लोगो को सरकारी लाभों से वंचित रखना चाहती है क्यों ? चूकी  आपके आनुसार गरीबी एक मानसिक अवस्था है तो क्या आप प्रदेश के गरीबो को सांत्वना देकर ही संतुष्ट करेगे ? या फिर इन पक्षपात पूर्ण निर्णयों का सुधार केंद्र से करवायेगे ?

नोट--इसी  तरह के कई और  सवाल है जो समय मिलने पर लिखता  रहूगा |

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

गुजरात के साथ केंद्र सरकार का का दोहरा मापदंड


आज सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और कांग्रेस को , गुजरात के सीएनजी के मूल्य पर खूब लताड़  खानी पड़ी |

मित्रो, आप जानकर चौक जायेंगे की केंद्र की कांग्रेस सरकार गुजरात को दुसरे राज्यों से सीएनजी गैस ३०% ज्यादा महंगी देती है ..जबकि देश गुजरात के दहेज में ही एलएनजी पेट्रोनेट कम्पनी का टर्मिनल है जहाँ पर गैस आती है और पुरे देश को सप्लाई होती है |

जब तक केंद्र में वाजपेई जी की सरकार थी तब तक पुरे देश के किसी भी राज्य के साथ केंद्र भेदभाव नही करती थी भले ही किसी राज्य में कांग्रेस की सरकार हो या बीजेपी या किसी और दल की .... लेकिन जबसे ये नीच और दोगले कांग्रेसियो ने केंद्र पर सत्ता जमाये इन्होने मोदी सरकार को बदनाम और अलोकप्रिय करने के लिए गुजरात में सीएनजी का भाव ३०% बढ़ा दिया और इन दोगलो की हिम्मत देखिये उल्टे ही गुजरात कांग्रेस के नेता झूठवाडिया और जाहिल और हटेला, भागेला जैसे लोग जनता के बीच ये दुष्प्रचार फ़ैलाने लगे की गुजरात सरकार गुजरात की जनता से साथ अन्याय कर रही है |

केंद्र सरकार ने इस भेदभाव के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की गयी ..गुजरात हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि केंद्र सरकार गुजरात को उसी मूल्य पर सीएनजी दे जिस मूल्य पर वो दिल्ली और मुंबई को देती है ... लेकिन नीच कांग्रेस सरकार ने इस फैसले के खिलाफ इसे हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच में चैलेंज किया .. फिर गुजरात हाईकोर्ट ने तीनो जजों ने आदेश दिया की केंद्र सरकार किसी भी राज्य के साथ भेदभाव नही कर सकता | केंद्र सरकार को उसी मूल्य पर गुजरात को भी गैस देना होगा जिस मूल्य पर वो दुसरे राज्यों को देती है |

हाईकोर्ट ने इस आदेश के बाद गुजरात सरकार ने केंद्र से अपील किया की इस मामले को केंद्र अब सुप्रीमकोर्ट में चैलेंज न करे बल्कि हाईकोर्ट के आदेश को मानते हुए गुजरात को भी उसी मुल्य पर गैस दे जिस मूल्य पर केंद्र दुसरे राज्यों को देता है | नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात की जनता की भलाई के लिए गुजरात कांग्रेस के सभी बड़े नेताओ को पत्र लिखकर उनसे अपील किया की आप मेरे लिए नही बल्कि गुजरात की जनता के हित और भलाई के लिए दलगत राजनीती से उपर उठकर अपनी कांग्रेस की केंद्र सरकार से अपील करे की वो गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को मानते हुए गुजरात को उसी मूल्य पर गैस दे जिस मूल्य पर केंद्र दुसरे राज्यों को देती है ताकि गुजरात में गैस के दाम ३०% कम हो सके |

     केंद्र सरकार गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में गयी और आज केंद्र की कांग्रेस सरकार को सुप्रीमकोर्ट में भी लज्जित होना पडा    
 सुप्रीमकोर्ट ने तो और भी कड़क वलन अपनाते हुए केंद्र से सवाल पूछा की क्या वो गुजरात को देश का एक हिस्सा नही मानती ?? इस पर एटार्नी जनरल वहावनटी बगले झाँकने लगे |

सुप्रीमकोर्ट ने आदेश दिया की अभी और आज से ही गुजरात को केंद्र उसी मूल्य पर गैस दे जिस मूल्य पर वो दुसरे राज्यों को देता है ...

मित्रो, मुझे सबसे ज्यादा दोगलापन गुजरात कांग्रेस के नेताओ में दिखती है ... क्योकि हर एक टीवी डिबेट पर अर्जुन मोढ्वाडिया और शक्तिसिंह गोहिल आकर गुजरात की जनता से इस मामले में बेशर्मी से झूठ पर झूठ बोलते थे ... वो तो गुजरात की प्रजा बहुत समझदार है क्योकि उसने इन दोनों महाझूठे नेताओ के पिछवाड़े लात मारकर इन्हें घर पर बिठा दिया है ..