गरीब और गरीबी को मजाक बना दिया है सरकार ने
कांग्रेश
सरकार का दावा है की देश में गरीबी का अनुपात 37.2% से घटकर 21.9% पर हो
गया है जबकि जमीनी हकीकत इन AC छाप नेताओं को पता नहीं है ये तो कहते है की
1 रूपये में 5 रुपये में 12 रूपये में खाना मिलता है पेट भर अब बताये जब
इनका ये हाल है तो फिर तो इनके आकडे सही होगे ?
सरकार भले ही
गरीबी घटाने का डंका पीट रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबी मापने के लिए
उसके पास कोई ठोस पैमाना ही नहीं है। सरकार में ही अलग-अलग कमेटियां व
संस्थाएं गरीबों का अलग-अलग आंकड़ा पेश करती रही हैं ।
हालत यह है
कि पिछले एक दशक में तीन समितियां गरीबी मापने के तीन पैमाने बता चुकी हैं
तो ऐसी दो रिपोर्टे आना अभी बाकी हैं। केंद्र सरकार ने गरीबों की संख्या का
आकलन करने के लिए सुरेश तेंदुलकर कमेटी, एनसी सक्सेना समिति व अजरुन सेन
कमेटी का अलग-अलग गठन किया। इनकी रिपोर्ट लगभग एक ही समय प्रस्तुत की गई।
इनमें सभी कमेटियों ने गरीबों की संख्या का आकलन अपने-अपने पैमाने पर किया।
इनमें प्रति व्यक्ति रोजाना की कैलोरी को आधार बनाया गया। इस कैलोरी आधार
को समझना आम आदमी के लिए खासा मुश्किल है। इसके मुताबिक शहरी व्यक्ति को
रोजाना 2100 और ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी का पैमाना था। लेकिन इस पर
विवाद रहा। इसे भुखमरी का पैमाना तो माना जा सकता है, लेकिन गरीबी का
नहीं। बाद में इसकी जगह भोजन, ईधन, बिजली, कपड़े और जूते को पैमाना माना
गया। इन पैमानों पर सितंबर, 2011 में तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक
देश में गरीबों की संख्या 37.2 फीसद बताई गई।
वहीं, एनसी सक्सेना
कमेटी ने गरीबों की तादाद 70 फीसद बता डाली। बात यहीं नहीं रुकी। अजरुन
सेन कमेटी ने तो गरीबों की संख्या 77 फीसद तक बताई। सेन कमेटी ने निष्कर्ष
निकाला था कि देश की 80 फीसद आबादी 20 रुपये रोजाना पर जिंदगी बसर कर रही
है। ऐसे में सरकार ने सबसे कम गरीब बताने वाली तेंदुलकर समिति की सिफारिश
को मंजूर कर लिया। लेकिन इस पर हंगामा मचा तो सरकार ने गरीबों की संख्या का
निर्धारण करने वाला फार्मूला सुझाने के लिए सी रंगराजन कमेटी का गठन कर
दिया। अब इस समिति की रिपोर्ट 2014 में आने वाली है ।
कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार सिर्फ और सिर्फ गरीबी और गरीबो को मजाक बना कर रख दिया है ।
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