प्रतीकात्मक चित्र |
मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा बनवाया गया सोने का छत्र (छतरी ) |
यहाँ पर सदियों से यह ज्वाला प्रज्वलित है |
जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था,उन्हीं दिनों की यह घटना है......। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था........। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया...!
बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो....। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा, हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं...। अकबर ने सुनकर कहा
यह ज्वालामाई कौन है ?
और वहां जाने से क्या होगा ?
ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है....। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं....। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है....। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं....। इस पर अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी...। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर...तुम्हारी इबादत का क्या फायदा ? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है...।
इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना....। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई....।
ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की....। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई....।
बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ...। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया....। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं...। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना....। यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं करेंगी तो मै भी अपना सिर काटकर आपके चरणों मे अर्पित कर दूंगा...। क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है....।
जब कोई उत्तर न मिला इसके पश्चात भक्त ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया....। उसी समय साक्षात ज्वाला मां प्रकट हुई ध्यानू का सिर धड़ से जुड़ गया...। भक्त जीवित हो गया...।
माता ने भगत से कहा कि ध्यानु मेरे प्यारे बच्चे,दिल्ली मे घोड़े का सिर भी धड़ से जुड़ गया है, चिंता छोड़ कर दिल्ली पहुंचो....।
ध्यानु भगत ने माता के चरणों मे शीश झुका कर प्रणाम कर निवदेन किया कि जगदम्बे....! आप सर्व शक्तिशाली हैं, हम मनुष्य अज्ञानी हैं भक्ति की विधि भी नहीं जानते, फिर भी विनती करता हूं कि जगमाता आप अपने भक्तों की इनती कठिन परीक्षा न लिया करें...! उधर उस घोड़े का सर वापस जुड़ गया तब जाकर अकबर को ज्वाला देवी की शक्ती का पता चला और तब अकबर बादशाह पैदल चलकर मंदिर पहुचा और देवी के चरणों में शीस झुकाया तथा सोने का छत्र (छतरी) चढ़ाया ..और गुस्ताखी के लिए माफी भी मागा .....!
जय माँ भवानी ......!
नोट ---मुझे पता है इस जानकारी को बहुत से बिधर्मी /नास्तिक लोग कहानी मानेगे पर मुझे कोई फरक नहीं पडेगा मैं इस तरह की जानकारी आगे भी देता रहूगा ..!
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