मैंने जाति आधारित आरक्षण के बारे में बात की थी। आरक्षण रूपी दैत्य को हमारी सरकार ने एक बार फिर से बाहर निकाला है। पिछले दिनों सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण की बात की तो इसके हिमायतियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई, एक बार फिर से आरक्षण का मुद्दा गरमा गया। इसके पक्ष और विपक्ष में बहुत सारी बाते होने लगी। आज कोई मेहनत करके आगे नहीं बढ़ना चाहता, आज तो बस उन्हें हर जगह आरक्षण ही चाहिए।
कई राज्यों ने भी प्रमोशन में आरक्षण को लागू किया था लेकिन उसे न्यायपालिका ने असंवैधानिक करार कर दिया। जब हमारा संविधान ही प्रमोशन में आरक्षण की वकालत नहीं करता तो फिर हमारी सरकार संविधान में संशोधन क्यों करना चाहती है। हमारी सरकार शायद आरक्षण के माध्यम से जनता को पंगु बना देना चाहती है ताकि वो और कुछ सोच ही न सके और वो अपनी राजनितिक रोटी सेंक सके।
आज अगर हमें अपने देश को ताकतवर और समृद्धशाली बनाना है तो इस आरक्षण रूपी दैत्य को मारने होगा। वैसे तो हम हर जगह अमेरिका की नक़ल करते है फिर आरक्षण के मामले में क्यों नहीं करते ?
कई राज्यों ने भी प्रमोशन में आरक्षण को लागू किया था लेकिन उसे न्यायपालिका ने असंवैधानिक करार कर दिया। जब हमारा संविधान ही प्रमोशन में आरक्षण की वकालत नहीं करता तो फिर हमारी सरकार संविधान में संशोधन क्यों करना चाहती है। हमारी सरकार शायद आरक्षण के माध्यम से जनता को पंगु बना देना चाहती है ताकि वो और कुछ सोच ही न सके और वो अपनी राजनितिक रोटी सेंक सके।
आज अगर हमें अपने देश को ताकतवर और समृद्धशाली बनाना है तो इस आरक्षण रूपी दैत्य को मारने होगा। वैसे तो हम हर जगह अमेरिका की नक़ल करते है फिर आरक्षण के मामले में क्यों नहीं करते ?
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