महक गोएल....
जशोदा भाभी मोदी
साभार: श्री भरोडिया(नरेंद्र भाई के बचपन के मित्र)
ये बच्चा मुश्किल से १५-१६ सालका रहा होगा तब भारत-पाक की लडाई छीड गई ।
प्रधानमंत्री लाल बाहादुर शास्त्रीने मोरचा संभाला । देश का हौसला बढाने के
लिए नारा दिया ” जय जवान, जय किसान ” ईस नारे पर देश भर के सेवाभावी लोग,
सेवाभावी संस्थाएं, खडे हो गये । आर.एस.एस भी उनमें से एक संस्था थी । लडाई
के समय गुजरात के हर रोड पर, हर स्टेशन पर युवा लडके तैनात हो गये थे
जरूरी साधन सामग्री ले कर । अगर सैनिकों का जथ्था, उन की गाडियां गुजरती है
तो उन्हें जो मदद चाहिए मिल सके । ये बच्चा भी उन युवाओं के साथ स्टेशन के
प्लेटफोर्म पर भागता फिरता था ।
वो जमाना आज के मुकाबले अलग था ।
उस जमाने में माबाप के आगे बच्चों का कुछ नही चलता था । अगर बच्चा विद्रोह
भी करता तो माबाप तो बाजुमें रहते सारे गांव के चाचे ताउ कान खिंचने लग
जाते । बच्चे सब की ईज्जत करते थे तो मजबूर हो जाते थे, बडों की बात मानने
के लिए । इसी आधार पर मा बापने जशोदाभाभी से उनका ब्याह करवा दिया,१९६८ में
। लेकिन देश सेवा की ईतनी लगन लगी थी की ईसने जशोदाभाभी का स्विकार (गौना
नही करवाया , असली शादी गौना होता था, इससे पहले लडके लडकी एक दुसरे का मुह
भी नही देखते ) नही किया, चल पडे घर छोड कर ।
पिता भारत और
मां भारती की सेवा के लिए अपने खूद के माबाप की भावना को ठेस पहुंचाया ।
ये किशोरावस्था थी, जहां आदमी दोराहे पे खडा होता है । उसने बडी राह,
देशसेवा की राह पकडली । इसी दौरान पोलिटिकल सायन्स की डिग्री हासिल कर ली ।
आर.एस.एस के प्रचारक भी बन गया । आज भारत के कितने नेता के पास पोलिटिकल
सायन्स की सामान्य डिग्री भी है ?
जब ईस बच्चे का
नरेन्द्रभाई मोदी के नाम से जनता को परिचय हुआ तो एक गुजराती मेगेजीन
(१९८४) में जशोदाभाभी का ईन्टर्व्यु छपा था । उसमें तस्विर थी, भाभी अपने
पिताजी की किराने की दुकानमें हाथमें तराजु लिए बैठी थी, काफी खूश दिखती थी
। बताती थी वो मुझे बुलायेंगे तब जाउंगी तबतक पिता की दुकानमें मदद
करुंगी, मेरा भाई अशोक अभी छोटा है । लेकिन अब पता चला है भाभीने टिचरकी
नौकरी कर ली थी, अब रिटायर्ड भी हो गई है और १०००० का पेन्शन भी मिलता है ।
एक सच्ची भारतिय नारी की तरह पति के बुलावे का ईन्तजार करती रही, पति के
खिलाफ खभी नही बोली । मोदी के कारण ही उस के आसपास के लोग, अपनी स्कूल,
पूरा रसोसणा गांव उस का मान सम्मान करता रहा हैं । लोगोने हर तरह की मदद की
है, तकलिफ नही पडने दी है ।
२००७ में नरेन्द्रभाई के
साले साबह अशोकभाईने कोशीश की दीदी और जीजा को मिलाने की लेकिन सफलता नही
मिली । मोदी का कहना है के मेरा २४ घंटा सिर्फ देश के लिये ही है । ५ मिनिट
भी मै किसी सगे को नही दे सकता । बात भी सही है । अपनी मां के अलावा उसे
कोइ सगा मिल नही सकता, अपने सगे भाई भी नही । उन के सगे चचेरे भाई को मैंने
कहा था तू अब नरेंद्रभाई के पास चला जा कहीं अच्छी जगह सेट कर देंगे मैं
ईस मंदी मे कितना पगार दे देता हुं । उसने मुझे बताया छोडो सब । वो चले गए
उस के बाद मेरा जनम हुआ है । मैंने भी उन्हें एक ही बार देखा है । उन्होंने
मुझे देखा है की नही मालुम नही । अपने भाई को भी घुसने नही देते तो मै
क्यों जाउ ।
उस की बात सही थी । मोदी गांव छोडकर गये तो किसी को पता
नही था वो कहां है । कहा जाता है वो सिर्फ दो बार गांव आये हैं । एक बार
पिता के अवसान के समय और दुसरी बार स्कूल की निव रखने के कार्यक्रम के लिए ।
उस समय भीड में उनकी छोटी बेहन भी उन्हें देखने आई थी, पास जानेकी हिम्मत
नही कर पाई थी । मोदीने देख लिया या किसीने ध्यान दिलाया तो वो खूद उसके
पास गये और हालचाल पूछ लिया ।
जब मोदी पहलीबार
मुख्यमंत्री बने तो उनका ही बचपन का दोस्त उन पर उबल पडा था । ” ये घांची
अब तक लुक्खे की तरह भटकता था तो घर नही चला सकता था, अब नेता हो गया है,
अब क्या कमी है, अब बहु को बुला लेना चाहिए ” । ये एक आम आदमी की आवाज थी ।
आम आदमी सोचता है की नेता बनते ही पैसे का पेड लग जाता है । बस अब उसे
खा-पिकर राज करना है । आम नेता के लिए ये सही बात होगी मोदी के लिए नही ।
उन के तलाक के लिए भी सवाल उठे हैं । तलाक ईस लिए लिया जाता है की आदमी
दूसरी शादी कर के जीवन में सेट हो सके । ईन की उमर थी तलाक ले के दूसरी
शादी की तब शादी और तलाक का सारा मामला सामाजिक तरिके से होता था । तलाक
में कभी कानून का दखल नही होता था । दोनों पक्ष के १०-१२ आदमी मिलकर तलाक
दे देते थे । ये जिम्मेदारी माबाप की होती थी, तलाक लेनेवालों की नही ।
लेकिन समाज वकिल का बाप होता है राह देखता है बच्चों का मन बदलने का । उसे
समजाने में टाईम पास कर देता है ।
लेकिन इस दौरान ये पतिपत्नी समाज से
आगे बढ गए । भाभीने ठान लिया की मैं तलाक नही लुंगी । मरते दमतक नरेन्द्र
ही मेरा पति रहेगा । और नरेन्द्रभाई भी मजबूर है । देश सेवा का ईतना बडा
भार उठा लिया है की २४ घंटे में से ५ मिनट भी वो भाभी या अन्य सगे को नही
दे सकते । भाभी भी ये समज चुकी है । देश के लिये आदमी मर जाता है तो ये तो
सिर्फ पति का वियोग ही है ।
.
अपने घर संसार की बली,
भाभी जी के अरमानों की बली, अपने ही संबंधियो से बेरुखी । ये सब नरेंद्र
मोदीने किया है । उनका केरेक्टर ढिला है या मजबूत तय जनता करगी, कोंग्रेस
या दिग्गी राजा नही ।
नरेंद्रभाई आज जीस स्थान पर खडे हैं उन
के पिछे वो पतिपत्नि का त्याग बहुत बडी भुमिका निभा चुका है । उन के निजी
जीवन में हमारा कोइ अधिकार नही बनता दखल देने का । मिडिया में ये बात को
गलत अंदाज में उछाला गया तो ये लिखना पडा ।
http:// bharodiya.jagranjunction.com/ 2012/11/01/ %E0%A4%9C%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0% A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A4 %BE%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%A E%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80/
साभार: श्री भरोडिया(नरेंद्र भाई के बचपन के मित्र)
ये बच्चा मुश्किल से १५-१६ सालका रहा होगा तब भारत-पाक की लडाई छीड गई । प्रधानमंत्री लाल बाहादुर शास्त्रीने मोरचा संभाला । देश का हौसला बढाने के लिए नारा दिया ” जय जवान, जय किसान ” ईस नारे पर देश भर के सेवाभावी लोग, सेवाभावी संस्थाएं, खडे हो गये । आर.एस.एस भी उनमें से एक संस्था थी । लडाई के समय गुजरात के हर रोड पर, हर स्टेशन पर युवा लडके तैनात हो गये थे जरूरी साधन सामग्री ले कर । अगर सैनिकों का जथ्था, उन की गाडियां गुजरती है तो उन्हें जो मदद चाहिए मिल सके । ये बच्चा भी उन युवाओं के साथ स्टेशन के प्लेटफोर्म पर भागता फिरता था ।
वो जमाना आज के मुकाबले अलग था ।
उस जमाने में माबाप के आगे बच्चों का कुछ नही चलता था । अगर बच्चा विद्रोह भी करता तो माबाप तो बाजुमें रहते सारे गांव के चाचे ताउ कान खिंचने लग जाते । बच्चे सब की ईज्जत करते थे तो मजबूर हो जाते थे, बडों की बात मानने के लिए । इसी आधार पर मा बापने जशोदाभाभी से उनका ब्याह करवा दिया,१९६८ में । लेकिन देश सेवा की ईतनी लगन लगी थी की ईसने जशोदाभाभी का स्विकार (गौना नही करवाया , असली शादी गौना होता था, इससे पहले लडके लडकी एक दुसरे का मुह भी नही देखते ) नही किया, चल पडे घर छोड कर ।
पिता भारत और मां भारती की सेवा के लिए अपने खूद के माबाप की भावना को ठेस पहुंचाया । ये किशोरावस्था थी, जहां आदमी दोराहे पे खडा होता है । उसने बडी राह, देशसेवा की राह पकडली । इसी दौरान पोलिटिकल सायन्स की डिग्री हासिल कर ली । आर.एस.एस के प्रचारक भी बन गया । आज भारत के कितने नेता के पास पोलिटिकल सायन्स की सामान्य डिग्री भी है ?
जब ईस बच्चे का नरेन्द्रभाई मोदी के नाम से जनता को परिचय हुआ तो एक गुजराती मेगेजीन (१९८४) में जशोदाभाभी का ईन्टर्व्यु छपा था । उसमें तस्विर थी, भाभी अपने पिताजी की किराने की दुकानमें हाथमें तराजु लिए बैठी थी, काफी खूश दिखती थी । बताती थी वो मुझे बुलायेंगे तब जाउंगी तबतक पिता की दुकानमें मदद करुंगी, मेरा भाई अशोक अभी छोटा है । लेकिन अब पता चला है भाभीने टिचरकी नौकरी कर ली थी, अब रिटायर्ड भी हो गई है और १०००० का पेन्शन भी मिलता है । एक सच्ची भारतिय नारी की तरह पति के बुलावे का ईन्तजार करती रही, पति के खिलाफ खभी नही बोली । मोदी के कारण ही उस के आसपास के लोग, अपनी स्कूल, पूरा रसोसणा गांव उस का मान सम्मान करता रहा हैं । लोगोने हर तरह की मदद की है, तकलिफ नही पडने दी है ।
२००७ में नरेन्द्रभाई के साले साबह अशोकभाईने कोशीश की दीदी और जीजा को मिलाने की लेकिन सफलता नही मिली । मोदी का कहना है के मेरा २४ घंटा सिर्फ देश के लिये ही है । ५ मिनिट भी मै किसी सगे को नही दे सकता । बात भी सही है । अपनी मां के अलावा उसे कोइ सगा मिल नही सकता, अपने सगे भाई भी नही । उन के सगे चचेरे भाई को मैंने कहा था तू अब नरेंद्रभाई के पास चला जा कहीं अच्छी जगह सेट कर देंगे मैं ईस मंदी मे कितना पगार दे देता हुं । उसने मुझे बताया छोडो सब । वो चले गए उस के बाद मेरा जनम हुआ है । मैंने भी उन्हें एक ही बार देखा है । उन्होंने मुझे देखा है की नही मालुम नही । अपने भाई को भी घुसने नही देते तो मै क्यों जाउ ।
उस की बात सही थी । मोदी गांव छोडकर गये तो किसी को पता नही था वो कहां है । कहा जाता है वो सिर्फ दो बार गांव आये हैं । एक बार पिता के अवसान के समय और दुसरी बार स्कूल की निव रखने के कार्यक्रम के लिए । उस समय भीड में उनकी छोटी बेहन भी उन्हें देखने आई थी, पास जानेकी हिम्मत नही कर पाई थी । मोदीने देख लिया या किसीने ध्यान दिलाया तो वो खूद उसके पास गये और हालचाल पूछ लिया ।
जब मोदी पहलीबार मुख्यमंत्री बने तो उनका ही बचपन का दोस्त उन पर उबल पडा था । ” ये घांची अब तक लुक्खे की तरह भटकता था तो घर नही चला सकता था, अब नेता हो गया है, अब क्या कमी है, अब बहु को बुला लेना चाहिए ” । ये एक आम आदमी की आवाज थी । आम आदमी सोचता है की नेता बनते ही पैसे का पेड लग जाता है । बस अब उसे खा-पिकर राज करना है । आम नेता के लिए ये सही बात होगी मोदी के लिए नही ।
उन के तलाक के लिए भी सवाल उठे हैं । तलाक ईस लिए लिया जाता है की आदमी दूसरी शादी कर के जीवन में सेट हो सके । ईन की उमर थी तलाक ले के दूसरी शादी की तब शादी और तलाक का सारा मामला सामाजिक तरिके से होता था । तलाक में कभी कानून का दखल नही होता था । दोनों पक्ष के १०-१२ आदमी मिलकर तलाक दे देते थे । ये जिम्मेदारी माबाप की होती थी, तलाक लेनेवालों की नही । लेकिन समाज वकिल का बाप होता है राह देखता है बच्चों का मन बदलने का । उसे समजाने में टाईम पास कर देता है ।
लेकिन इस दौरान ये पतिपत्नी समाज से आगे बढ गए । भाभीने ठान लिया की मैं तलाक नही लुंगी । मरते दमतक नरेन्द्र ही मेरा पति रहेगा । और नरेन्द्रभाई भी मजबूर है । देश सेवा का ईतना बडा भार उठा लिया है की २४ घंटे में से ५ मिनट भी वो भाभी या अन्य सगे को नही दे सकते । भाभी भी ये समज चुकी है । देश के लिये आदमी मर जाता है तो ये तो सिर्फ पति का वियोग ही है ।
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अपने घर संसार की बली, भाभी जी के अरमानों की बली, अपने ही संबंधियो से बेरुखी । ये सब नरेंद्र मोदीने किया है । उनका केरेक्टर ढिला है या मजबूत तय जनता करगी, कोंग्रेस या दिग्गी राजा नही ।
नरेंद्रभाई आज जीस स्थान पर खडे हैं उन के पिछे वो पतिपत्नि का त्याग बहुत बडी भुमिका निभा चुका है । उन के निजी जीवन में हमारा कोइ अधिकार नही बनता दखल देने का । मिडिया में ये बात को गलत अंदाज में उछाला गया तो ये लिखना पडा ।
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