कृष्ण जी का योगी रूप |
जन्माष्टमी के अवसर पर महाकवी सैय्यद इब्राहीम "रसखान" कि कुछ पन्तिया
"धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी
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"धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी
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कृष्ण जी का बालपन |
ग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।"
यह पहले मुसलमान थे। बाद में वैष्णव होकर ब्रज में रहने लगे थे। इनका वर्णन 'भक्तमाल' में है। इनके एक शिष्य कादिर बख्श हुए। उन्होंने एक बार एक बनिए के यहाँ भगवान् कृष्ण का एक सुंदर चित्र देखा चित्रपट में भगवान् की अनुपम छवि देखकर रसखान का मन आनंदमय हो गया । प्रेम की विह्वल दशा में श्रीकृष्ण जी का दर्शन करने यह गोकुल पहुँचे। गोसाई विट्ठलदास जी ने इनके अंतर के परात्पर प्रेम को पहचानकर इन्हें अपनी शरण में ले लिया। रसखानि श्रीकृष्ण जी के अनन्य भक्त हो गए। शुद्ध ब्रजभाषा में रसखानि ने प्रेमभक्ति की अत्यंत सुंदर प्रसादमयी रचनाएँ की हैं। यह एक उच्च कोटि के भक्त कवि थे
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
रसखान के पदों में कृष्ण के अलावा कई और देवताओं का जिक्र मिलता है। शिव की सहज कृपालुता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि उनकी कृपा दृष्टि संपूर्ण दुखों का नाश करने वाली है-
यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है। चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफनी पहरावत हैं। रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं। गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।
See Moreयह पहले मुसलमान थे। बाद में वैष्णव होकर ब्रज में रहने लगे थे। इनका वर्णन 'भक्तमाल' में है। इनके एक शिष्य कादिर बख्श हुए। उन्होंने एक बार एक बनिए के यहाँ भगवान् कृष्ण का एक सुंदर चित्र देखा चित्रपट में भगवान् की अनुपम छवि देखकर रसखान का मन आनंदमय हो गया । प्रेम की विह्वल दशा में श्रीकृष्ण जी का दर्शन करने यह गोकुल पहुँचे। गोसाई विट्ठलदास जी ने इनके अंतर के परात्पर प्रेम को पहचानकर इन्हें अपनी शरण में ले लिया। रसखानि श्रीकृष्ण जी के अनन्य भक्त हो गए। शुद्ध ब्रजभाषा में रसखानि ने प्रेमभक्ति की अत्यंत सुंदर प्रसादमयी रचनाएँ की हैं। यह एक उच्च कोटि के भक्त कवि थे
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
रसखान के पदों में कृष्ण के अलावा कई और देवताओं का जिक्र मिलता है। शिव की सहज कृपालुता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि उनकी कृपा दृष्टि संपूर्ण दुखों का नाश करने वाली है-
यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है। चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफनी पहरावत हैं। रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं। गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।
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