गुरुवार, 19 जुलाई 2012

!! पंडित किसे कहते हैं !!


यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पंडितं बुधाः ॥
श्रीमद भगवदगीता – (४:१९ )
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अर्थ: जिसके सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत कर्म बिना कामना और संकल्पके होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञानरूप अग्निद्वारा भस्म हो गए हैं, उस महापुरुषको ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं ॥

भावार्थ : कर्मका शास्त्रसम्मत होना परम आवश्यक है; अन्यथा कर्मफलके सिद्धान्त अनुसार अच्छे कर्मका फल पुण्यके रूपमें एवं बुरे कर्मका फल पापके रूपमें भोगना पडता है | कर्मफल ज्ञानरूपी अग्निमें तब भस्म होता है, जब कर्म करनेवाला बिना कर्तापनके कर्म करता है, अर्थात अपने कर्मके कर्तापनका श्रेय वह परमेश्वर या गुरुको अर्पण कर देता है | ऐसे कर्मयोगीद्वारा किये कर्म ‘अकर्म-कर्म’ होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें अपने कर्मोंका फल भोगना नहीं पडता और यह ८०% एवं उसके आगेके आध्यात्मिक स्तरसे साध्य हो पाता है | इससे पहले साधक, जो कर्तापन अर्पण करनेका प्रयास करता है, वह मानसिक स्तरपर होता और उसे कर्मोंके फल भोगने पड़ते हैं | अतः साधकको सतर्कतासे कर्म करना चाहिए | प्रत्येक चूक पापकर्म एवं संचित दोनोंको बढाती है | जिन्हें अपने कर्मोका कर्मफल नहीं भोगना पडता, ऐसे सतपुरुषको ज्ञानीजन पंडित कहते हैं .........

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