इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।।
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गुरुवार, 19 जुलाई 2012
!! पंडित किसे कहते हैं !!
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः । ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पंडितं बुधाः ॥ श्रीमद भगवदगीता – (४:१९ ) ...
अर्थ: जिसके सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत कर्म बिना कामना और संकल्पके होते हैं
तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञानरूप अग्निद्वारा भस्म हो गए हैं, उस महापुरुषको
ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं ॥
भावार्थ : कर्मका शास्त्रसम्मत होना
परम आवश्यक है; अन्यथा कर्मफलके सिद्धान्त अनुसार अच्छे कर्मका फल पुण्यके
रूपमें एवं बुरे कर्मका फल पापके रूपमें भोगना पडता है | कर्मफल ज्ञानरूपी
अग्निमें तब भस्म होता है, जब कर्म करनेवाला बिना कर्तापनके कर्म करता है,
अर्थात अपने कर्मके कर्तापनका श्रेय वह परमेश्वर या गुरुको अर्पण कर देता
है | ऐसे कर्मयोगीद्वारा किये कर्म ‘अकर्म-कर्म’ होते हैं, जिसका अर्थ है
कि उन्हें अपने कर्मोंका फल भोगना नहीं पडता और यह ८०% एवं उसके आगेके
आध्यात्मिक स्तरसे साध्य हो पाता है | इससे पहले साधक, जो कर्तापन अर्पण
करनेका प्रयास करता है, वह मानसिक स्तरपर होता और उसे कर्मोंके फल भोगने
पड़ते हैं | अतः साधकको सतर्कतासे कर्म करना चाहिए | प्रत्येक चूक पापकर्म
एवं संचित दोनोंको बढाती है | जिन्हें अपने कर्मोका कर्मफल नहीं भोगना
पडता, ऐसे सतपुरुषको ज्ञानीजन पंडित कहते हैं .........
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