बुधवार, 16 मई 2012

!! धर्म ग्रंथो पर अज्ञानियों द्वारा निरर्थक वर्तापाल !!

मैं कई दिनों नहीं बल्कि कई माहीनो से देख रहा हु की बहुत से अज्ञानी ब्यक्ति दिन भर धार्मिक बाते मो रस लेकर लेकर बाते करते है जिन्हें ज्ञान नहीं है ओ भी जिन्हें  ज्ञान है ओ भी इन मूर्खो के बीच में अपना कीमती समय नस्त करते है .जबकि वेदों की रिचाए और संस्कृत के श्लोको का सत्य ज्ञान नहीं है इन दुराग्रहियो को .अनर्गल वार्तालाप करते रहते है  ..   कई दिनों से कुछ एक स्वयम्भू विद्वानों द्वारा धर्म ग्रंथो के श्लोकों की मनमानी व्याख्या पढने को मिल रही है ये तथाकथित विद्वान हिन्दू धर्म के लिए किसी सिरफिरे मानसिक विकृत लेखकों की पुस्तको का हवाला देते रहते है पर ये ये क्यों नहीं समझते कि जिन मानसिक विकृत लेखको ने इस तरह का साहित्य लिखा है उसे स्वीकार किसने किया है ? क्या सलमान रुश्दी का लिखा हुआ किसी ने स्वीकार किया है ? क्या तसलीमा नसरीन द्वारा लिखी हुई पुस्तके उसके समाज व धर्म वालों ने स्वीकार की है ? तो ये लोग ये क्यों नहीं समझते कि कुछ घटिया मानसिक सोच रखने वाले लेखकों द्वारा हिन्दू धर्म के अपमान वाली पुस्तके कैसे स्वीकार की जा सकती है ?
जिन वेदों के एक एक श्लोक की व्याख्या के लिए पूरा लेख छोटा पड़ जाता है, जिन्हें समझने के लिए कई जन्म कम पड़ जाते है उन वेदों की ये तथाकथित विद्वान अपने हिसाब से विवेचना करने में लगे है | जिन लोगों को इंसानियत और मानव धर्म तक की समझ नहीं है उन्हें वेदों और धर्म के बारे में बड़ी बड़ी बाते लिखते देख आज मुझे एक किस्सा याद आ गया -
एक में चार अंधे रहते थे , एक दिन उस गांव में एक हाथी आ गया , हाथी आया , हाथी आया की आवाजें सुनकर अंधे भी वहां आ गए कि क्यों न हाथी देख लिया जाये पर बिना आँखे देखे कैसे ? सो एक बुजुर्ग ग्रामवासी के कहने पर महावत ने उन अंधों को हाथी को छूने दिया ताकि अंधे छू कर काठी को महसूस करने लगे | और अंधों ने हाथी को छू लिया , एक अंधे के हाथ में हाथी सूंड आई , दुसरे अंधे के हाथ पूंछ आई तो तीसरे अंधे के हाथ हाथी के पैर लगे | और चौथे के हाथी के दांत | इस तरह अंधों ने हाथी को छू कर महसूस कर देख लिया | दुसरे दिन चारो अंधे एक जगह इक्कठे होकर हाथी देखने छूने के अपने अपने अनुभव के आधार पर हाथी की आकृति का अनुमान लगा रहे थे | पहला कह रहा था - हाथी एक चिकनी सी रस्सी के सामान होता है , दूसरा कहने लगा - तुम्हे पूरी तरह मालूम नहीं रस्सी पर बाल भी थे अत: हाथी बालों वाली रस्सी के समान था , तीसरा कहने लगा - नहीं ! तुम दोनों बेवकूफ हो | अरे ! हाथी तो खम्बे के समान था | इतनी देर में चौथा बोल पड़ा - नहीं तुम तीनो बेवकूफ हो | अरे ! हाथी तो किसी हड्डी के समान था और बात यहाँ तक पहुँच गयी कि अपनी अपनी बात सच साबित करने के चक्कर में चारो आपस में लड़ने लगे |
चारों अन्धो में जूतम-पैजार होते देख पास ही गुजरते गांव के एक ताऊ ने आकर पहले तो उन्हें लड़ते झगड़ते छुड्वाया फिर किसी डाक्टर के पास ले जाकर उनकी आँखों का ओपरेशन करवाया | जब चारो अंधों को आँखों की रोशनी मिल गई तब ताऊ उनको एक हाथी के सामने ले गया और बोला - बावलीबुचौ ! ये देखो हाथी ऐसा होता है | तब अंधों को पता चला कि उनके हाथ में तो हाथी का अलग- अलग एक एक अंग हाथ आया था और वो उसे ही पूरा हाथी समझ रहे थे |
ठीक उसी तरह ये तथाकथित विद्वान भी कहीं से एक आध पुस्तक पढ़कर अपने आप को सम्पूर्ण ज्ञानी समझ रहे और ये तब तक समझते रहेंगे जब तक इन्हें कोई ताऊ नहीं मिल जाता जो इन्हें धर्म का मर्म समझा सके | जिस दिन इन्हें इंसानियत और मानव धर्म का मर्म समझ आ जायेगा इन्हें पता चल जायेगा कि धर्म क्या है ? और कौनसा धर्म श्रेष्ट है ?



BY Naveen Verma ji ----जातिवादी लोग अक्सर , पौराणिक ग्रंथों से प्रसंगो को ढूंड-ढूंड कर विवाद खड़ा करने के लिए, उनकी मन गढ़ंत व्याख्या करते रहते हैं. उस समय वो ये भी भुला देते हैं कि- उस भेदभाव करने वाले व्यक्ति को अपनी गलती का परिणाम भी भुगतना पद गया था . उदाहरण के लिए एकलव्य और द्रोणाचार्य का प्रसंग -

द्रोणाचार्य का गुरुकुल एक बड़ा और महंगा गुरुकुल था जिसमे केवल राजघराने के लोग ही शिक्षा ले सकते थे. ठीक बैसा ही जैसा आ...जकल के महंगे पब्लिक स्कुल जिनमे कोई गरीब पढने नहीं जा सकता है. एकलव्य का स्वयं धनुर्विद्या सीख लेना, उन्हें अपने गुरुकुल का अपमान दिखाई देता था. ये उनको किसी के अर्जुन से आगे निकलने से भी कहीं ज्यादा इसलिए दुःखदाई था. इसीलिए उन्होंने उसको बातों में उलझाकर उसका अंगूठा कटवा दिया था.

महाभारत में द्रोणाचार्य ने केवल यही एक अपराध नहीं किया था, राजाश्रय न छिन जाए इसलिए राज सभा में, पांडव कुलबधू द्रौपदी के अपमान को चुचाप देखते रहे. युद्ध में अपने द्वारा रचे हुए चक्रव्यूह को, अभिमन्यु द्वारा तोड़ने पर, सात महारथियों के द्वारा एकसाथ एक निहत्थे बालक की ह्त्या करने के भागी दार भी बने.

महाभारत में भी द्रोणाचार्य को उनकी योग्यता की बजह से आदरणीय तो माना गया है , लेकिन साथ ही उनके उपरोक्त अपराधों की बजह से पूज्यनीय नहीं माना है. उनके पापो की सजा भी मिली कि - जिस अर्जुन को महान सिद्ध करने के लिए एकलव्य का अंगूठा कटवा दिया था, उसी अर्जुन के खिलाफ युद्ध लड़ना पड़ा और उसी अर्जुन के पुत्र की हत्या का कारण भी बने थे. और उसी अर्जुन के साले के हाथों म्रत्यु को प्राप्त हुए .

महाभारत में एक से बढ़कर एक, अनेकों ब्राह्मण और क्षत्रीय पात्र होने के बाबजूद केवल एक ही व्यक्ति यदुवंशी 'श्री कृष्ण' को ही पूज्यनीय का दर्जा प्राप्त है और किसी को नहीं . महाभारत में जिसके पुत्रो की कहानी है वो सत्यवती निषाद कन्या थी और महाभारत लिखने वाले 'व्यास' भी निषाद जाति के थे और व्यास जी का संत समाज में किसी ब्राह्मण से भी ज्यादा सम्मान था .

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