यह बात सन १९७९ की है जब मैं कक्षा ९वी में रीवा मद्यप्रदेश के
मार्तंड हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ता था ! उस समय एक दिन लंच की अवकास में
सभी बच्चे ग्राउंड में खेल रहे थे ,और ग्राउंड में ही एक पुराना कुआ था
उस कुए की जगत (कुए का ओटला)के पास बहुत से बच्चो की भीड़ लगी थी
,,उत्सुकता बस मैं भी उस भीड़ के पास गया वहा जाकर देखा की एक बूढी अम्मा
जो मेरी दादी सा की उम्र की थी उनको शहर के बच्चे चिढा रहे थे और पत्थर
मार रहे थे और ओ बूढी अम्मा रो रही थी और अपनी पोटली से पत्थर की मार से
बचने की कोशिस कर रही थी मैं जब यह सब देखा तो मुझे मेरी दादी सा याद आ गई
और बहुत गुस्सा आ गया मुझे तो मैं पतःर मारने वाले दो तीन बच्चो से भीड़ गया
और उनकी जम कर धुनाई कर दिया (मैं गाव का हट्टा -कट्टा था जबकि सहर के
डालडा क्षाप थे) और धुनाई के बाद बहुत से बच्चे भाग गए हम कुछ बच्चे बचे तो
दादी सा से पूचने लगा की आप कहा जायेगी तो उन्होंने "मनगवा" का नाम लिया
जो की रीवा से करीब 65 KM दूर है , मैं उनको बोला की चलिए आपको बस स्टैंड
छोड़ देता हु (बस स्टैंड पास ही आधा KM पर है ) तो दादी सा ने कहा की हमारे
पास पैसे नहीं है किराए के लिए ..तो मैंने अपनी जेब टटोला तो देखा की
सिर्फ १ रुपये पचास पैसे ही है ,जबकि किराया 7 रुपये था रीवा से मनगवा का
,तो हम दो तीन गाव के बच्चो ने आपस में चन्दा किया फिर भी 7 रूपये इकठा
नहीं हुए तो अपने द्विवेदी सर जी के पास गए और उनकी सहायता मागे तो
उन्होंने सहर्ष ५ रुपये दे दिया और प्रिंसपल सर के पास ले गए तो वहा से भी ५
रुपये मिल गए ! अब हम लोगो ,के पास करीब १४ रुपये हो गए ,,तो प्रिंसपल
सर से अनुमति लेकर दादी सा को बस स्टैंड ले जाकर उस बस में बैठा दिया जो
मनगवा को जाती थी ! दादी सा के चरण स्पर्श किया तो दादी सा ने बहुत खुसी हो
कर हम दोस्तों को आशीर्वाद दिया होगा हमने कंडेक्टर को समझा दिया की
इन्हें मनगवा में उतार दीजिएगा ..और दादी सा को कुछ फल खरीद कर दे दिया और
अपने स्कूल आ गया ....तो प्रिंसपल साब और स्कूल का पूरा स्टाफ हम दोस्तों
की पीठ थपथपाया ...ओ दिन आज भी याद है क्योकि ओ मेरा मेरे जीवन का पहला नेक
कार्य था जो आज भी याद है ..और दादी सा का चेहरा आज भी याद है ..! मानव
सेवा से बढ़कर इस संसार में कोई सेवा नहीं है ....मैंने यही निष्कर्ष निकला
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