देश की रक्षा तैयारियों के बारे में 12 मार्च को आर्मी चीफ जनरल वी. के. सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को जो चिट्ठी लिखी है, वह विस्फोटक और चिंतित करने वाला है। लीक हुई चिट्ठी में बहुत से मुद्दों को उठाया गया है। कुछ अहम मुद्दे निम्न हैं...
1. दुश्मन को शिकस्त देने के लिए टैंक के बेड़े के पास गोला-बारूद का भारी अभाव।
2. हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और बेकार हो गए हैं, हवाई हमले से बचाने का भरोसा नहीं दे सकते।
3. पैदल सेना के पास पर्याप्त हथियारों का अभाव, रात में लडऩे की क्षमता की भारी कमी है।
4. आर्मी की एलीट स्पेशल फोर्स के पास के पास चिंताजनक रूप से जरूरी हथियारों की कमी है।
5. सेना की निगरानी क्षमता में बड़े स्तर पर खामियां मौजूद हैं।
सरकार के साथ टाली जा सकने वाली जुबानी जंग में उलझे जनरल द्वारा उठाए गए पॉइंट्स को पढ़ने के बाद कोई भी समझ सकता है कि वह किस ओर इशारा कर रहे हैं। वह रक्षा सौदों की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, जिसने हमारी तैयारियों को अपंग बना दिया है। वह यह भी बता रहे हैं कैसे पूरा सिस्टम करप्ट हो चुका है।
घूस स्कैंडल सामने आने के बाद इस बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है, पर एक बात साफ है। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि चीन को पीछे छोड़कर भारत हथियार का सबसे बड़ा आयातक देश बन चुका है और दुनिया के कुल हथियार आयात में उसकी हिस्सेदारी 10 फीसदी हो गई है। द स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच भारत के हथियारों की खरीद में आश्चर्यजनक रूप से 38% की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत अगले 15 सालों में हथियारों पर 100 अरब डॉलर खर्च कर सकता है।
क्या यह खबर किसी बड़ी चीज की ओर इशारा नहीं कर रही है? जो जनरल कह रहे हैं, क्या यह उसके उलट नहीं है? अगर हम दुनिया में हथियार के सबसे बड़े आयातक हैं, तो क्यों और कैसे रक्षा तैयारियों में इतने पिछड़े हुए हैं? इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला, हम अभी जितना खर्च कर रहे हैं, उससे काफी ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। जिस तरह से जनरल ने डरावनी तस्वीर पेश की है कि एयर डिफेंस के मामले में 97% उपकरण पुराने पड़ चुके हैं, इससे तो लग रहा है कि हथियार खरीद के मामले में खाई को पाटने के लिए हमें हथियार आयात में हिस्सेदारी बढ़ाकर 20 फीसदी करनी होगी। दूसरा कारण यह हो सकता है कि हथियार-उपकरण खरीदने के लिए इस्तेमाल होने वाली राशि कहीं और जा रही है।
अब यह फैसला मैं आपकी समझ पर छोड़ता हूं कि दोनों में सही कारण कौन-सा है।
हालांकि, इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं। लोग आर्मी चीफ पर पिले पड़े हैं। कुछ सांसद तो उन्हें बर्खास्त करने तक की मांग तक कर रहे हैं। मेरा उनसे कहना है कि संदेशवाहक को गोली नहीं मारी जाती। ऐसा पहली बार हो रहा है कि रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है। इसका श्रेय आर्मी चीफ को ही जाता है। नहीं तो अब तक तो इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर दबा दिया जाता था।
आम आदमी सरकारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। उसकी सहनशक्ति दिन पर दिन कम हो रही है। और, समझ लीजिए कि जिस दिन हमारे सुरक्षा साजोसामान में भ्रष्टाचार का असर सबको दिखने लगेगा, लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। तब उसे संभाल पाना संभव नहीं होगा। बहुत अच्छा होगा कि हमारे सांसद, जिनकी अपनी ही विश्वसनीयता गर्त में है, इस मौके का इस्तेमाल सिस्टम की सफाई में करें न कि साहस दिखाने वाले जनरल पर निशाने साधने में क्योंकि उनके निजी हितों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
1. दुश्मन को शिकस्त देने के लिए टैंक के बेड़े के पास गोला-बारूद का भारी अभाव।
2. हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और बेकार हो गए हैं, हवाई हमले से बचाने का भरोसा नहीं दे सकते।
3. पैदल सेना के पास पर्याप्त हथियारों का अभाव, रात में लडऩे की क्षमता की भारी कमी है।
4. आर्मी की एलीट स्पेशल फोर्स के पास के पास चिंताजनक रूप से जरूरी हथियारों की कमी है।
5. सेना की निगरानी क्षमता में बड़े स्तर पर खामियां मौजूद हैं।
सरकार के साथ टाली जा सकने वाली जुबानी जंग में उलझे जनरल द्वारा उठाए गए पॉइंट्स को पढ़ने के बाद कोई भी समझ सकता है कि वह किस ओर इशारा कर रहे हैं। वह रक्षा सौदों की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, जिसने हमारी तैयारियों को अपंग बना दिया है। वह यह भी बता रहे हैं कैसे पूरा सिस्टम करप्ट हो चुका है।
घूस स्कैंडल सामने आने के बाद इस बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है, पर एक बात साफ है। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि चीन को पीछे छोड़कर भारत हथियार का सबसे बड़ा आयातक देश बन चुका है और दुनिया के कुल हथियार आयात में उसकी हिस्सेदारी 10 फीसदी हो गई है। द स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच भारत के हथियारों की खरीद में आश्चर्यजनक रूप से 38% की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत अगले 15 सालों में हथियारों पर 100 अरब डॉलर खर्च कर सकता है।
क्या यह खबर किसी बड़ी चीज की ओर इशारा नहीं कर रही है? जो जनरल कह रहे हैं, क्या यह उसके उलट नहीं है? अगर हम दुनिया में हथियार के सबसे बड़े आयातक हैं, तो क्यों और कैसे रक्षा तैयारियों में इतने पिछड़े हुए हैं? इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला, हम अभी जितना खर्च कर रहे हैं, उससे काफी ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। जिस तरह से जनरल ने डरावनी तस्वीर पेश की है कि एयर डिफेंस के मामले में 97% उपकरण पुराने पड़ चुके हैं, इससे तो लग रहा है कि हथियार खरीद के मामले में खाई को पाटने के लिए हमें हथियार आयात में हिस्सेदारी बढ़ाकर 20 फीसदी करनी होगी। दूसरा कारण यह हो सकता है कि हथियार-उपकरण खरीदने के लिए इस्तेमाल होने वाली राशि कहीं और जा रही है।
अब यह फैसला मैं आपकी समझ पर छोड़ता हूं कि दोनों में सही कारण कौन-सा है।
हालांकि, इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं। लोग आर्मी चीफ पर पिले पड़े हैं। कुछ सांसद तो उन्हें बर्खास्त करने तक की मांग तक कर रहे हैं। मेरा उनसे कहना है कि संदेशवाहक को गोली नहीं मारी जाती। ऐसा पहली बार हो रहा है कि रक्षा मामलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है। इसका श्रेय आर्मी चीफ को ही जाता है। नहीं तो अब तक तो इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर दबा दिया जाता था।
आम आदमी सरकारी भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। उसकी सहनशक्ति दिन पर दिन कम हो रही है। और, समझ लीजिए कि जिस दिन हमारे सुरक्षा साजोसामान में भ्रष्टाचार का असर सबको दिखने लगेगा, लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। तब उसे संभाल पाना संभव नहीं होगा। बहुत अच्छा होगा कि हमारे सांसद, जिनकी अपनी ही विश्वसनीयता गर्त में है, इस मौके का इस्तेमाल सिस्टम की सफाई में करें न कि साहस दिखाने वाले जनरल पर निशाने साधने में क्योंकि उनके निजी हितों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
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