जिहाद" के बारे मे बात करने से पहले हम दहश्तगर्दों के बारे में बात करेंगे क्यौंकी लोगो के "जिहाद" के बारे मे इन लोगो की वजह से पता लगा है। आप लोगो की नज़र में दहश्तगर्द कौन है? दहश्तगर्द का मतलब क्या है?
मेरे हिसाब से हर मुस्लमान दहश्तगर्द होना चाहिये। दहश्तगर्द का क्या मतलब है? दहश्तगर्द का मतलब है की "अगर कोई भी इन्सान दुसरे इन्सान के दिल मे दहशत पैदा करता है उसे कहते है दहश्तगर्द"। मिसाल के तौर पर जब कोई चोर किसी पुलिसवाले को देखता है तो उसके दिल में दहशत पैदा होती है तो उस चोर के लिये वो पुलिसवाला दहश्तगर्द है। तो इस हिसाब से हर असामाजिक तत्व, एन्टी-सोशल एलीमेन्ट, किसी मुस्लमान को देखे तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। जब भी कोई चोर किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये, जब भी कोई बलात्कारी किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो लोग जो हक के खिलाफ़ है उनके दिल में दहशत पैदा करें और अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह अनफ़ाल सु. ८ : आ. ६० में कि "जो लोग हक के खिलाफ़ है उनके दिल में मुसलमानों को दहशत पैदा करनी चाहिये"। एक मासुम के दिल मे कभी भी दहशत पैदा नही करनी चाहिये उसे उनके दिल में दहशत पैदा करनी चाहिये जो खुसुसन हक के खिलाफ़ हैं, समाज के खिलाफ़ हैं, इन्सानियत के खिलाफ़ है। <p><br /> </p>
हम अकसर देखते है की इन्सान को उसके किसी काम के लिये दो नाम दिये जाते है मिसाल के तौर पर हमारे देश के कुछ लोग आज़ादी के लिये अंग्रेज़ो से झगड रहे थे इन लोगो को अंग्रेज़ो ने कहा कि ये लोग दहश्तगर्द है और उन्ही लोगो वो आम हिन्दुस्तानी देशभक्त कहते थे यानी वही लोग, वही काम लेकिन दो अलग-अलग नाम। अगर आप अंग्रेज़ो के नज़रिये से सहमत है की अंग्रेज़ो को हिन्दुस्तान पर हुकुमत करनी चाहिये तो आप उन्हे दहश्तगर्द कहोगें और अगर आप आम हिन्दुस्तानी के नज़रिये से सहमत है की अंग्रेज़ यहां कारोबार करने आये थे, हुकुमत करने नही तो आप उन्हे देशभक्त कहेंगें, अच्छे हिन्दुस्तानी है वगैरह वगैरह, वही इन्सान वही अमाल (कर्म) दो अलग नाम। तो एक नाम देने से पहले फ़र्ज़ है की हम ये जाने की वो इन्सान किस वजह के लिये झगड रहा है? किस वजह के लिये जद्दोजह्द कर रहा है?
दुनिया में ऐसी सैकडों मिसाले है जैसे साउथ अफ़्रीका को आज़ादी मिलने से पहले सफ़ेद लोग साउथ अफ़्रीका पर हुकुमत कर रही थी और ये सफ़ेद हुकुमत नेल्सन मंडेला को सबसे बडा दहश्तगर्द कहती थी और इस नेल्सन मंडेला को पच्चीस साल से ज़्यादा रोबिन आयलैंड में कैद रखा गया था। सफ़ेद हुकुमत नेल्सन मंडेला को दहश्तगर्द कहती थी और आम अफ़्रीकी नेल्सन मंडेला को कहती थी की वो बहुत अच्छा इन्सान है। वही इन्सान, वही अमाल लेकिन दो अलग-अलग नाम। अगर आप सफ़ेद हुकुमत के नज़रिये से सहमत है तो नेल्सन मंडेला आपके लिये दहश्तगर्द है लेकिन अगर आप आम अफ़्रीकी से सहमत है की चमडी का रंग इन्सान को ऊंचा या नीचा नहीं कर पाता जिस तरह अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह हुजुरात सु. ४९ : आ. १३"ऎ इन्सानों, हमनें तुम्हे एक जोडें से पैदा किया है आदमी और औरत के, और आप लोगों को कबीलों में बांटा है ताकि आप एक दुसरों को पहचान सको ना कि आप एक दुसरे से नफ़रत करें और आप लोगो में से सबसे बेहतर इन्सान वो है जिसके पास तकवा है"। तो इस्लाम के नज़रिये से कोई भी इन्सान ऊंचा-नीचा जात-पात से नही होता, चमडी के रंग से नहीं होता, माल से नही होता लेकिन होता है तो सिर्फ़ "तकवे" के साथ, खुदा के खौफ़ के साथ, अच्छे अमाल के साथ। अगर आप इस्लाम और आम अफ़्रीकी के नज़रिये से सहमत है तो ये मानना होगा की नेल्सन मंडेला दहश्तगर्द नही था और एक अच्छा इन्सान था। में
साउथ अफ़्रीका की आज़ादी के चन्द साल बाद उस नेल्सन मंडेला को अमन के लिये नोबेल पुरस्कार मिलता है वो ही शख्स जिसको पच्चीस साल तक कैद किया गया और पच्चीस साल तक उसे दहश्तगर्द कहा गया था उसे चन्द साल बाद उसे दुनिया का सबसे बडा पुरस्कार मिलता है अमन के लिये। तो वही शख्स, वही अमाल लेकिन दो अलग-अलग नाम इसीलिये नाम देने से पहले हमें ये जानना ज़रुरी है की किस वजह से वो इन्सान जद्दोजह्द कर रहा है।
आज सबसे ज़्यादा गलतफ़हमी जो इस्लाम के मुताल्लिक है वो है लफ़्ज़ "जिहाद" । इस लफ़्ज़ को लेकर सबसे ज़्यादा गलफ़हमियां है और ये गलफ़हमियां गैर-मुस्लिमों के बीच ही नही, मुसलमानों के बीच मे भी है। गैर-मुस्लिम और कुछ मुस्लमान ये समझते है की कोई भी जंग कोई मुस्लमान लडं रहा है चाहे वो ज़्यादती फ़ायदे के लिये हो, चाहे अपने नाम के लिये हो, चाहे माल के लिये हो, चाहे ताकत के लिये हो। अगर कोई भी जंग कोई भी मुस्लमान लडं रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। इसे "जिहाद" नही कहते
"जिहाद" लफ़्ज़ आता है अरबी लफ़्ज़ "जहादा" से जिसको अंग्रेज़ी में कहेंगे "To strive to struggle" उर्दु मे इसका मतलब हुआ "जद्दोजहद"। और इस्लाम के हिसाब से अगर कोई इन्सान अपने नफ़्ज़ (इंद्रियों) को काबु करने की कोशिश कर रहा है सही रास्ते पर आने के लिये तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई इन्सान जद्दोजहद कर रहा है समाज को सुधारने के लिये तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई सिपाही जंग के मैदान मे अपने आप को बचाने के जद्दोजह्द कर रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई इन्सान जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। "जिहाद" के मायने है जद्दोजहद सिर्फ़ जद्दोजहद।
लोगो को गलतफ़हमी है गैर-मुसलमानों को भी और मुसलमानों को भी की "जिहाद" सिर्फ़ मुसलमान ही कर सकते है। अल्लाह तआला कुरआन मजीद मे कई जगह ज़िक्र करते है कि गैर-मुसलमानों ने भी "जिहाद" किया। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह लुकमान सु. ३१ : आ. १४ में "ऎ इन्सानों, हमनें तुम पर फ़र्ज़ किया है की आप अपने वालदेन की खिदमत करों और आपकी वालदा ने आपको तकलीफ़ के साथ आपको पेट मे रखा और तकलीफ़ के साथ आपको पैदा किया और दुध पिलाया"। इसके फ़ौरन बाद अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह लुकमान सु. ३१ : आ. १५ में "लेकिन अगर आपके वालदेन आपके साथ जिहाद करे, जद्दोजहद करें, आपको अल्लाह के अलावा उसकी इबादत करने के लिये जिसका आपको इल्म नहीं है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन तब भी उनके साथ अच्छा सुलुक करों"। यहां अल्लाह तआला फ़र्माते है की गैर-मुसलमान वालदेन जिहाद कर रहें है अपने बच्चों से उसकी इबादत करने लिये अल्लाह के अलावा जिसका उन्हें इल्म नही है, उन्हे शिर्क करने पर मजबुर कर रहें है। यही चीज़ अल्लाह तआला दोहराते है सुरह अनकबुत सु. २९ : आ. ८ में की "अल्लाह तआला ने सारे इन्सानों पर फ़र्ज़ कराया है की वो अपने वालदेन की अच्छी देखभाल करें लेकिन अगर वालदेन जिहाद के, जद्दोजहद करें, आपको अल्लाह के अलावा उसकी इबादत करने के लिये जिसका आपको इल्म नहीं है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन तब भी उनके साथ अच्छा सुलुक करों"। यहां भी अल्लाह तआला ने वही फ़र्माया है गैर-मुसलमान वालदेन जिहाद कर रहें है, उन्हे शिर्क करने पर मजबुर कर रहें है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन उनके साथ अच्छा सुलुक करों।
तो इन आयतों से हमें ये पता लगता है की जिहाद गैर-मुसलमान भी कर सकते है। अल्लाह तआला फ़र्मातें हैं सुरह निसा सु. ४ : आ. ७६ में "की मोमिन वो इन्सान है जो अल्लाह की राह में हक के लिये जद्दोजहद करता है और वो इन्सान जो हक के खिलाफ़ है वो लोग जद्दोजहद गलत रास्ते पर करते है, शैतान के रास्ते पर करते है"। अल्लाह तआला फ़रमाते है की मोमिन और मुसलमान "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" करते हैं और जो लोग हक के खिलाफ़ है वो करते है "जिहाद-फ़ी-सबीशैतान" इसका मतलब जद्दोजहद कर रहे हैं शैतान के रास्ते पर, तो जिहाद की कई किस्में है लेकिन आमतौर जब भी ये लफ़्ज़ "जिहाद" का इस्तेमाल होता है तो ये माना जाता है की ये "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" हैं, "जिहाद" अल्लाह की राह में हैं। अगर खुसुसन कोई चीज़ का ज़िक्र है अल्लाह के खिलाफ़ तो पता लगता है "जिहाद" नही है लेकीन आमतौर पर जब भी ये लफ़्ज़ "जिहाद" इस्तेमाल होता है इस्लाम को लेकर तो इसके माईने है "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" यानी जद्दोजहद करना अल्लाह की राह में।
और अकसर गैर-मुस्लिम इस लफ़्ज़ "जिहाद" का तर्जुमा अंग्रेज़ीं मे करते है "होली वार" "HOLY WAR" "पाक जंग" "जंगे मुक्द्द्स"। ये लफ़्ज़ "होली वार" सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था "क्रुसेड्र्स" (Crusaders) को डिस्क्राइब करने के लिये। सैकडों साल पहले जब ईसाई ताकत के बल के ऊपर अपना धर्म फ़ैला रहे थे तो उसे कहते थे "होली वार"। अफ़सोस की बात है की वही नाम आज मुसलमानों के लिये इस्तेमाल होता है और बहुत अफ़सोस की बात है कुछ मुस्लिम उलमा जो अपने आपको आलिम कहते है वो भी "जिहाद" का तर्जुमा अंग्रेज़ी में "होली वार" करते है।
"जिहाद" के मायने Holy War है ही नही, "Holy War" का तर्जुमा अरबी में होता है "हर्बो्मुक्द्द्सा" और अगर हम कुरआन मजीद मे देखें तो "हर्बोमुक्द्द्सा" मौजुद ही नही है। इसीलिये "जिहाद" के मायने "Holy War", "हर्बोमुक्द्द्सा", "पाक जंग" नही है, "जिहाद" के मायने है "जद्दोजहद"।
मेरे हिसाब से हर मुस्लमान दहश्तगर्द होना चाहिये। दहश्तगर्द का क्या मतलब है? दहश्तगर्द का मतलब है की "अगर कोई भी इन्सान दुसरे इन्सान के दिल मे दहशत पैदा करता है उसे कहते है दहश्तगर्द"। मिसाल के तौर पर जब कोई चोर किसी पुलिसवाले को देखता है तो उसके दिल में दहशत पैदा होती है तो उस चोर के लिये वो पुलिसवाला दहश्तगर्द है। तो इस हिसाब से हर असामाजिक तत्व, एन्टी-सोशल एलीमेन्ट, किसी मुस्लमान को देखे तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। जब भी कोई चोर किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये, जब भी कोई बलात्कारी किसी मुसलमान को देखें तो उसके दिल में दहशत पैदा होनी चाहिये। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो लोग जो हक के खिलाफ़ है उनके दिल में दहशत पैदा करें और अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह अनफ़ाल सु. ८ : आ. ६० में कि "जो लोग हक के खिलाफ़ है उनके दिल में मुसलमानों को दहशत पैदा करनी चाहिये"। एक मासुम के दिल मे कभी भी दहशत पैदा नही करनी चाहिये उसे उनके दिल में दहशत पैदा करनी चाहिये जो खुसुसन हक के खिलाफ़ हैं, समाज के खिलाफ़ हैं, इन्सानियत के खिलाफ़ है। <p><br /> </p>
हम अकसर देखते है की इन्सान को उसके किसी काम के लिये दो नाम दिये जाते है मिसाल के तौर पर हमारे देश के कुछ लोग आज़ादी के लिये अंग्रेज़ो से झगड रहे थे इन लोगो को अंग्रेज़ो ने कहा कि ये लोग दहश्तगर्द है और उन्ही लोगो वो आम हिन्दुस्तानी देशभक्त कहते थे यानी वही लोग, वही काम लेकिन दो अलग-अलग नाम। अगर आप अंग्रेज़ो के नज़रिये से सहमत है की अंग्रेज़ो को हिन्दुस्तान पर हुकुमत करनी चाहिये तो आप उन्हे दहश्तगर्द कहोगें और अगर आप आम हिन्दुस्तानी के नज़रिये से सहमत है की अंग्रेज़ यहां कारोबार करने आये थे, हुकुमत करने नही तो आप उन्हे देशभक्त कहेंगें, अच्छे हिन्दुस्तानी है वगैरह वगैरह, वही इन्सान वही अमाल (कर्म) दो अलग नाम। तो एक नाम देने से पहले फ़र्ज़ है की हम ये जाने की वो इन्सान किस वजह के लिये झगड रहा है? किस वजह के लिये जद्दोजह्द कर रहा है?
दुनिया में ऐसी सैकडों मिसाले है जैसे साउथ अफ़्रीका को आज़ादी मिलने से पहले सफ़ेद लोग साउथ अफ़्रीका पर हुकुमत कर रही थी और ये सफ़ेद हुकुमत नेल्सन मंडेला को सबसे बडा दहश्तगर्द कहती थी और इस नेल्सन मंडेला को पच्चीस साल से ज़्यादा रोबिन आयलैंड में कैद रखा गया था। सफ़ेद हुकुमत नेल्सन मंडेला को दहश्तगर्द कहती थी और आम अफ़्रीकी नेल्सन मंडेला को कहती थी की वो बहुत अच्छा इन्सान है। वही इन्सान, वही अमाल लेकिन दो अलग-अलग नाम। अगर आप सफ़ेद हुकुमत के नज़रिये से सहमत है तो नेल्सन मंडेला आपके लिये दहश्तगर्द है लेकिन अगर आप आम अफ़्रीकी से सहमत है की चमडी का रंग इन्सान को ऊंचा या नीचा नहीं कर पाता जिस तरह अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह हुजुरात सु. ४९ : आ. १३"ऎ इन्सानों, हमनें तुम्हे एक जोडें से पैदा किया है आदमी और औरत के, और आप लोगों को कबीलों में बांटा है ताकि आप एक दुसरों को पहचान सको ना कि आप एक दुसरे से नफ़रत करें और आप लोगो में से सबसे बेहतर इन्सान वो है जिसके पास तकवा है"। तो इस्लाम के नज़रिये से कोई भी इन्सान ऊंचा-नीचा जात-पात से नही होता, चमडी के रंग से नहीं होता, माल से नही होता लेकिन होता है तो सिर्फ़ "तकवे" के साथ, खुदा के खौफ़ के साथ, अच्छे अमाल के साथ। अगर आप इस्लाम और आम अफ़्रीकी के नज़रिये से सहमत है तो ये मानना होगा की नेल्सन मंडेला दहश्तगर्द नही था और एक अच्छा इन्सान था। में
साउथ अफ़्रीका की आज़ादी के चन्द साल बाद उस नेल्सन मंडेला को अमन के लिये नोबेल पुरस्कार मिलता है वो ही शख्स जिसको पच्चीस साल तक कैद किया गया और पच्चीस साल तक उसे दहश्तगर्द कहा गया था उसे चन्द साल बाद उसे दुनिया का सबसे बडा पुरस्कार मिलता है अमन के लिये। तो वही शख्स, वही अमाल लेकिन दो अलग-अलग नाम इसीलिये नाम देने से पहले हमें ये जानना ज़रुरी है की किस वजह से वो इन्सान जद्दोजह्द कर रहा है।
आज सबसे ज़्यादा गलतफ़हमी जो इस्लाम के मुताल्लिक है वो है लफ़्ज़ "जिहाद" । इस लफ़्ज़ को लेकर सबसे ज़्यादा गलफ़हमियां है और ये गलफ़हमियां गैर-मुस्लिमों के बीच ही नही, मुसलमानों के बीच मे भी है। गैर-मुस्लिम और कुछ मुस्लमान ये समझते है की कोई भी जंग कोई मुस्लमान लडं रहा है चाहे वो ज़्यादती फ़ायदे के लिये हो, चाहे अपने नाम के लिये हो, चाहे माल के लिये हो, चाहे ताकत के लिये हो। अगर कोई भी जंग कोई भी मुस्लमान लडं रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। इसे "जिहाद" नही कहते
"जिहाद" लफ़्ज़ आता है अरबी लफ़्ज़ "जहादा" से जिसको अंग्रेज़ी में कहेंगे "To strive to struggle" उर्दु मे इसका मतलब हुआ "जद्दोजहद"। और इस्लाम के हिसाब से अगर कोई इन्सान अपने नफ़्ज़ (इंद्रियों) को काबु करने की कोशिश कर रहा है सही रास्ते पर आने के लिये तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई इन्सान जद्दोजहद कर रहा है समाज को सुधारने के लिये तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई सिपाही जंग के मैदान मे अपने आप को बचाने के जद्दोजह्द कर रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। अगर कोई इन्सान जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है तो उसे कहते है "जिहाद"। "जिहाद" के मायने है जद्दोजहद सिर्फ़ जद्दोजहद।
लोगो को गलतफ़हमी है गैर-मुसलमानों को भी और मुसलमानों को भी की "जिहाद" सिर्फ़ मुसलमान ही कर सकते है। अल्लाह तआला कुरआन मजीद मे कई जगह ज़िक्र करते है कि गैर-मुसलमानों ने भी "जिहाद" किया। अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह लुकमान सु. ३१ : आ. १४ में "ऎ इन्सानों, हमनें तुम पर फ़र्ज़ किया है की आप अपने वालदेन की खिदमत करों और आपकी वालदा ने आपको तकलीफ़ के साथ आपको पेट मे रखा और तकलीफ़ के साथ आपको पैदा किया और दुध पिलाया"। इसके फ़ौरन बाद अल्लाह तआला फ़र्माते है सुरह लुकमान सु. ३१ : आ. १५ में "लेकिन अगर आपके वालदेन आपके साथ जिहाद करे, जद्दोजहद करें, आपको अल्लाह के अलावा उसकी इबादत करने के लिये जिसका आपको इल्म नहीं है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन तब भी उनके साथ अच्छा सुलुक करों"। यहां अल्लाह तआला फ़र्माते है की गैर-मुसलमान वालदेन जिहाद कर रहें है अपने बच्चों से उसकी इबादत करने लिये अल्लाह के अलावा जिसका उन्हें इल्म नही है, उन्हे शिर्क करने पर मजबुर कर रहें है। यही चीज़ अल्लाह तआला दोहराते है सुरह अनकबुत सु. २९ : आ. ८ में की "अल्लाह तआला ने सारे इन्सानों पर फ़र्ज़ कराया है की वो अपने वालदेन की अच्छी देखभाल करें लेकिन अगर वालदेन जिहाद के, जद्दोजहद करें, आपको अल्लाह के अलावा उसकी इबादत करने के लिये जिसका आपको इल्म नहीं है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन तब भी उनके साथ अच्छा सुलुक करों"। यहां भी अल्लाह तआला ने वही फ़र्माया है गैर-मुसलमान वालदेन जिहाद कर रहें है, उन्हे शिर्क करने पर मजबुर कर रहें है तो आप उनकी बात नही मानों लेकिन उनके साथ अच्छा सुलुक करों।
तो इन आयतों से हमें ये पता लगता है की जिहाद गैर-मुसलमान भी कर सकते है। अल्लाह तआला फ़र्मातें हैं सुरह निसा सु. ४ : आ. ७६ में "की मोमिन वो इन्सान है जो अल्लाह की राह में हक के लिये जद्दोजहद करता है और वो इन्सान जो हक के खिलाफ़ है वो लोग जद्दोजहद गलत रास्ते पर करते है, शैतान के रास्ते पर करते है"। अल्लाह तआला फ़रमाते है की मोमिन और मुसलमान "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" करते हैं और जो लोग हक के खिलाफ़ है वो करते है "जिहाद-फ़ी-सबीशैतान" इसका मतलब जद्दोजहद कर रहे हैं शैतान के रास्ते पर, तो जिहाद की कई किस्में है लेकिन आमतौर जब भी ये लफ़्ज़ "जिहाद" का इस्तेमाल होता है तो ये माना जाता है की ये "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" हैं, "जिहाद" अल्लाह की राह में हैं। अगर खुसुसन कोई चीज़ का ज़िक्र है अल्लाह के खिलाफ़ तो पता लगता है "जिहाद" नही है लेकीन आमतौर पर जब भी ये लफ़्ज़ "जिहाद" इस्तेमाल होता है इस्लाम को लेकर तो इसके माईने है "जिहाद-फ़ी-सबीलिल्लाह" यानी जद्दोजहद करना अल्लाह की राह में।
और अकसर गैर-मुस्लिम इस लफ़्ज़ "जिहाद" का तर्जुमा अंग्रेज़ीं मे करते है "होली वार" "HOLY WAR" "पाक जंग" "जंगे मुक्द्द्स"। ये लफ़्ज़ "होली वार" सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था "क्रुसेड्र्स" (Crusaders) को डिस्क्राइब करने के लिये। सैकडों साल पहले जब ईसाई ताकत के बल के ऊपर अपना धर्म फ़ैला रहे थे तो उसे कहते थे "होली वार"। अफ़सोस की बात है की वही नाम आज मुसलमानों के लिये इस्तेमाल होता है और बहुत अफ़सोस की बात है कुछ मुस्लिम उलमा जो अपने आपको आलिम कहते है वो भी "जिहाद" का तर्जुमा अंग्रेज़ी में "होली वार" करते है।
"जिहाद" के मायने Holy War है ही नही, "Holy War" का तर्जुमा अरबी में होता है "हर्बो्मुक्द्द्सा" और अगर हम कुरआन मजीद मे देखें तो "हर्बोमुक्द्द्सा" मौजुद ही नही है। इसीलिये "जिहाद" के मायने "Holy War", "हर्बोमुक्द्द्सा", "पाक जंग" नही है, "जिहाद" के मायने है "जद्दोजहद"।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें