हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों विशेषत: वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि में सूर्य भगवान को जगत की आत्मा बताया गया है। सूर्य हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए सूर्य की उपासना करना हर मनुष्य के लिए नितांत जरूरी है। सूर्य की सभी संक्रांतियों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मकर संक्रांति का गुणगान इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों में किया गया है, जिससे आम जनमानस भगवान सूर्य की आराधना करके अपने जीवन का लक्ष्य हासिल कर सके। इस वर्ष 14 जनवरी की अर्धरात्रि में सूर्य भगवान देवताओं के गुरु बृहस्पति की राशि धनु छोड़ कर अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। इसलिए संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को ही है।
मकर संक्रांति के आते ही देवताओं की रात समाप्त हो जाती है, दक्षिणायन समाप्त होता है और देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं, उत्तरायण शुरू हो जाता हैं। उत्तरायण में सूर्य का गोचर मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में होता है अर्थात दिन बड़े होते जाते हैं। दक्षिणायन में सूर्य का गोचर कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में होता है और रात बड़ी होती जाती है। इस दिन से ही लोग मलमास के कारण रुके हुए अपने शुभ कार्य-गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, विवाह आदि भी शुरू कर देते हैं। मलमास, बृहस्पति की राशियों - धनु और मीन में सूर्य भगवान के प्रवेश करने पर शुरू होता है। तब सूर्य भगवान देवगुरु बृहस्पति के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा में मग्न रहते हैं। इसीलिए भोग-विलास आदि सांसारिक कार्यों से दूर होते हैं। द्वापर काल में महाभारत के युद्ध में गंगा पुत्र भीष्म अर्जुन के हाथों मरणासन्न हो गए थे, लेकिन उन्होंने दक्षिणायन के बीतने का इंतजार किया और इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होने के कारण सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने पर ही अपनी देह का त्याग किया।भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि उत्तरायण के 6 माह में मरे हुए योगीजन ब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं और दक्षिणायन में मृत्यु मिलने वाले स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोग कर वापस लौट आते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश जहां उनके अपने पुत्र शनि (जिनकी दो राशियां मकर और कुंभ हैं) के साथ रहने का प्रतीक है, वहीं प्राणों को हरने वाली शीत ऋतु के प्रकोप को कम करने का संकेत है। जाहिर है, इस मौसम में पिता की सेवा पुत्र या संतान के हाथों होना ईश्वर कृपा प्राप्त होने का संकेत भी है। इसीलिए इसे सौभाग्य काल की संज्ञा भी दी जाती है। मनुष्यों को शनि और सूर्य ग्रह के सकारात्मक फल मिलें, इसीलिए तीर्थ स्नान, दान आदि के विषय में हमारे शिष्यों ने पहले ही उपाय बता दिए हैं। तिल जहां शनि ग्रह का प्रतीक है, वहीं गुड़ सूर्य का द्योतक है। यही वजह है कि इस दिन तिल और गुड़ के बने खाद्य पदार्थ की बहुतायत होती है। साथ ही इसे ही दान देने की परंपरा भी है। इस संक्रांति से ही वसन्त ऋतु के आगमन की पूर्व सूचना भी मिलती है।
उत्तरायण में देवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन, यज्ञ आदि को शीघ्रता से ग्रहण करते हैं। मकर संक्रांति माघ माह में आती है, जिसमें भगवान विष्णु की आराधना हर कोई करता है। संस्कृत में मघ शब्द से माघ निकला है। मघ शब्द का अर्थ होता है-धन, सोना-चांदी, कपड़ा, आभूषण आदि। स्पष्ट है कि इन वस्तुओं के दान आदि के लिए ही माघ माह उपयुक्त है। इसीलिए इसे माघी संक्रांति भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में दूध और चावल की खीर तैयार कर पोंगल मनाया जाता है तो संक्रांति के एक दिन पूर्व पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है। लोग घर-घर जाकर लकड़ियां इकट्ठा करते हैं और फिर लकड़ियों के समूह को आग के हवाले कर मकई की खील, तिल व रवेड़ियों को अग्न देव को अर्पित कर सबको प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि इन दिनों में खिचड़ी खाई भी जाती है और दान में भी दी जाती है। देसी घी, खिचड़ी में डाल कर खाने का प्रचलन उत्तर प्रदेश व बिहार में इसी संक्रांति से शुरू होता है। महाराष्ट्र और गुजरात में मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घर के सामने रंगोली अवश्य रचते हैं। फिर एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हैं। साथ ही कहते हैं- तिल और गुड़ खाओ और फिर मीठा-मीठा बोलो। इस दिन असम में माघ बिहु या भोगाली बिहु के रूप में मनाया जाता है। यहां चावल से बने व्यंजन प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं। मकर संक्रांति को पतंग पर्व के रूप में भी जाना जाता है।भगवान राम द्वारा पतंग उड़ाने का प्रसंग रामचरितमानस के बाल कांड में उपलब्ध है-राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुंची जाई॥
पूरे भारत में इस दिन पतंग उत्सव देखते ही बनता है। इस दिन भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों-प्रयाग,हरिद्वार, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, गंगासागर आदि में पवित्र नदियों गंगा, यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नान करते हैं। प्रयाग में तो माघ मेला 9 जनवरी से 7 फरवरी तक लगा ही है। अथर्ववेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु और स्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखा है कि-हे देवाधिदेव भास्कर, वात, पित्त और कफ जैसे विकारों से पैदा होने वाले रोगों को समाप्त करो और व्याधि प्रतिरोधक रश्मियों से इन त्रिदोशों का नाश करो। पश्चिम बंगाल के गंगासागर तीर्थ में मेले का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि वरुण देवता इन दिनों में यहां आते हैं। शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि किसी को किसी कारणवश नदी या समुद्र में स्नान करने का अवसर ना मिले तो इस दिन कुएं के जल या सामान्य जल में गंगा जल मिला कर सूर्य भगवान को स्मरण करते हुए स्नान कर सूर्य को तांबे के लोटे में शुद्ध पानी भर कर रोली, अक्षत, फूल, तिल तथा गुड़ मिला कर पूर्व दिशा में गायत्री या सूर्य मंत्र के साथ अर्ष्य देना चाहिए।
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