बुधवार, 18 दिसंबर 2024

रसूल ऐसा ही होता है ?


इस्लामी मान्यता है कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है .और बिना किसी योग्यता के और बिना कोई परीक्षा लिए ही किसी को भी अपना नबी और रसूल नियुक्त कर सकता है .और इसी शक्ति का प्रयोग करके अल्लाह ने आदम से लेकर मुहम्मद तक इस एक लाख चौबीस हजार लोगों को अपना नबी और रसूल नियुक्त करके इस दुनियां में भेजा था .चूँकि मुहम्मद साहब अल्लाह के सबसे प्यारे रसूल थे .इसलिए आचार , विचार , व्यवहार सभी नबियों से अलग और अनोखे थे .वैसे तो उनके वचनों और जीवनी के बारे में अधिकांश जानकारी प्रमाणिक हदीसों में उपलब्ध हैं .जिनको मुसलमान धार्मिक ग्रन्थ भी मानते हैं .और उन पर ईमान रखते हैं .
ऐसी ही एक हदीस की किताब है , जिसका नाम " समाइल मुहम्मदिया الشمائل المحمدية " है जिसमे इमाम " अबू ईसा अत तिरमिजी " ने मुहम्मद साहब के निजी जीवन के बारे में लिखा है .इमाम तिरमिजी हि ० 210 से 279 तक जीवित रहे .इन्होने अपनी हदीस की किताब में कुल 417 हदीसें जमा की थीं , जो 56 बाब ( अध्याय ) में विभक्त हैं .लेकिन इस हदीस की किताब में मुहम्मद साहब के बारे में ऐसी ऐसी चौंकाने वाली बातें दी गयी है कि जिनको पढ़कर मुहम्मद साहब को रसूल तो क्या इन्सान कहने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा .चूँकि कुछ हदीसें काफी लम्बी हैं , इसलिए सारांश में केवल मुख्य जरूरी बातें हि दी जा रही है .मुहम्मद साहब का असली रूप देखिये और पढ़कर समझिये कि रसूल कैसा होता है .
1-रसूल के पाशविक दांत
अबू हुरैरा ने कहा कि एक व्यक्ति ने रसूल को खाने के लिए एक बकरी भेजी ,लेकिन उस समय रसूल के पास जिबह करने के लिए चाकू नहीं था ." इसलिए रसूल ने अपने दांतों से ही उसे फाड़ डाला ,और खा गए .यानि उन्होंने चाकू का प्रयोग नहीं किया "
" صلى الله عليه وسلم بِلَحْمٍ، فَرُفِعَ إِلَيْهِ الذِّرَاعُ، وَكَانَتْ تُعْجِبُهُ، فَنَهَسَ مِنْهَا‏.‏ "

English reference: Book 25, Hadith 158
Arabic reference: Book 26, Hadith 167

2-पशुओं का पिछला भाग उत्तम है 
"अब्दुल्लाह बिन जाफर ने कहा कि रसूल ने उस बकरी को खाते हुए कहा कि " पिछले हिस्से का मांस उत्तम होता है "
"وسلم، يَقُولُ‏:‏ إِنَّ أَطْيَبَ اللَّحْمِ لَحْمُ الظَّهْرِ‏.‏ "
English reference: Book 25, Hadith 162

Arabic reference: Book 26, Hadith 171

3-रसूल उंगलियाँ चाटते थे 
"कअब बिन मालिक ने कहा कि रसूल खाने के बाद अपने हाथ नहीं धोते थे , बल्कि चाट चाट कर अपनी उंगलियाँ साफ कर देते थे "
" عليه وسلم كَانَ يَلْعَقُ أَصَابِعَهُ ثَلاثًا‏ "
English reference: Book 23, Hadith 130

Arabic reference: Book 24, Hadith 137
4-रसूल के तेल से चीकट बाल
" अनस ने कहा कि रसूल सिर पर खूब तेल लगाकर मलते थे , और कभी कंघी नहीं करते थे सिर पर एक कपड़ा डाल लेते थे . लेकिन दाढ़ी में कंघी करते थे .जिस से उनका पूरा सिर तेल का कपड़ा लगता था "
"يُكْثِرُ دَهْنَ رَأْسِهِ وَتَسْرِيحَ لِحْيَتِهِ، وَيُكْثِرُ الْقِنَاعَ حَتَّى كَأَنَّ ثَوْبَهُ، ثَوْبُ زَيَّاتٍ‏. "
English reference: Book 4, Hadith 32

Arabic reference: Book 4, Hadith 33

5-रसूल के सिर में जुओं की फ़ौज 
"अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल "उम्मे हारान बिन्त मिलहान" के घर गए , जो "उदबा बिन सामित " कि पत्नी थी .उसने जब रसूल को खाना खिलाया तो देखा कि उनके सिर में जुएँ भरे हुए है . फिर वह जुएँ निकालने लगी . जिस से रसूल को नींद आ गयी .
"انها قدمت له الطعام وبدأوا في البحث عن القمل في رأسه. ثم نام رسول الله "
Sahih Bukhari-Volume 4, Book 52, Number 47: 
6-रसूल के घर में लिंग पूजा 
" आयशा ने कहा कि मैं रसूल को एक बर्तन में बिठा लेती थी ,और उनके गुप्तांग ( private Part ) पानी डालकर इस तरह से साफ करती थी , जैसे नमाज के लिए वजू किया जाता है .
اعتاد كلما النبي تهدف الى النوم في حين أنه كان جنبا، ليغسل فرجه ويتوضأ من هذا القبيل للصلاة. "

नोट - इस हदीस में गुपतांग ( private Part ) के लिए अरबी में " फुर्ज فرجه " शब्द प्रयोग गया है . जो अश्लील शब्द है यही शब्द कुरान की सूरा-अहजाब 33 :35 में "फुरूजहुम- فُرُوجَهُمْ रूप में आया है हिंदी कुरान में इस का अर्थ " गुप्त इन्द्रियां , या शर्मगाह बताया है .इसी तरह बुखारी कि जिल्द 1 किताब 5 के अध्याय "ग़ुस्ल" में 7 बार " फुर्ज " शब्द आया है .इस से पता होता है कि रसूल अपनी पत्नियों के के साथ मिलकर इस शब्द का प्रयोग करते थे 

Sahih al Bukhari Volume 1, Book 5, Number 286
7-रसूल का लिंग वजू करता था 
"मैमूना ने बताया कि रसूल को वजू करवाते समय उनकी औरतें रसूल के पैर नहीं धोती थीं , और पैरों बजाय उनका वीर्य से सना हुआ गुप्तांग धोया करती थी .और उसी का वजू कर देती थी .

"رواه ميمونة:
(زوجة النبي) يؤديها رسول الله الوضوء من هذا القبيل للصلاة لكنها لم يغسل قدميه. انه يغسل قبالة إفرازات من أجزاء حياته الخاصة ومن ثم سكب الماء على جسده.  
"
Sahih al Bukhari Volume 1, Book 5, Number 249:

8-बुढियां जन्नत नहीं जा सकतीं 
" हसन बसरी ने कहा कि एक बार रसूल के पास एक बूढ़ी औरत आई और बोली कि अप अल्लाह से मेरे लिए दुआ करिए कि वह मुझे जन्नत में प्रवेश करने दे ." रसूल ने उस से कहा कि बूढ़ी औरत जन्नत में नहीं जा सकती , यह सुन कर वह औरत रोते हुए वापिस चली गयी "
" فَقَالَتْ‏:‏ يَا رَسُولَ للهِ، ادْعُ اللَّهَ أَنْ يُدْخِلَنِي الْجَنَّةَ، فَقَالَ‏:‏ يَا أُمَّ فُلانٍ، إِنَّ الْجَنَّةَ لا تَدْخُلُهَا عَجُوزٌ "

English reference: Book 35, Hadith 230

Arabic reference: Book 36, Hadith 240

9-लाश दफ़न करने की विधि 
"अनस ने कहा कि जब रसूल की लडकी उम्मे कुलसुम की मौत हुयी रसूल की आँखों से आंसू निकल गए .औए दफ़न की तय्यारी हो रही थी . तभी रसूल बोले केवल वही व्यक्ति कबर के अन्दर उतारे जिसने पिछली रात सम्भोग नहीं किया हो .अबू तल्हा बोले मैंने नहीं किया . तब रसूल ने कहा तुम अन्दर उतरो "
"، فَقَالَ‏:‏ أَفِيكُمْ رَجُلٌ لَمْ يُقَارِفِ اللَّيْلَةَ‏؟‏، قَالَ أَبُو طَلْحَةَ‏:‏ أَنَا، قَالَ‏:‏ انْزِلْ فَنَزَلَ فِي قَبْرِهَا‏.

English reference: Book 44, Hadith 310

Arabic reference: Book 45, Hadith 327

दी गयी इन सभी हदीसों का गंभीर रूप से अध्ययन करते से यह निष्कर्ष निकलते हैं .1 . यदि कोई सचमुच का समझदार अल्लाह होता तो , वह अपने दांतों से जानवरों को फाड़ कर खाने वाले ,गंदे मैले , जुओं से भरे सिर वाले ,व्यक्ति को अपना रसूल कभी नहीं बनाता. 2 . और अगर मुहम्मद वाकई नबी और रसूल होता तो ,लिंग का वजू नहीं कराता .या अपनी औरतों से अपने लिंग पर जल नहीं डलवाता.वास्तव में मुहम्मद एक सनकी और मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति था , वर्ना वह अपनी पुत्री को दफ़न से पहले ऐसी शर्त क्यों रखता ,और ऐसा क्यों कहता कि बूढ़ी औरतें जन्नत में नहीं जा सकती .इस से यह भी पता होता है कि मुहम्मद जवान औरतों का शौक़ीन था .बताइए क्या रसूल ऐसा ही होता है ?
(200/54)

शनिवार, 21 सितंबर 2024

भारतीय मंदिरों का अधिग्रहण


सदियों से, हिंदू धार्मिक पहचान मंदिरों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। इन पवित्र स्थानों ने न केवल सीखने को बढ़ावा दिया बल्कि चर्चा और बहस के लिए मंच भी प्रदान किए। साथ ही भारतीय मंदिर अनंतकाल से संपदा के भंडार रहे है। वार्षिक मंदिर उत्सवों ने कई भक्तों को आकर्षित किया और सांस्कृतिकआदान-प्रदान और पारस्परिक संबंधों को सुविधाजनक बनाया।मंदिरों के आसपास व्यापारी संघों की उपस्थिति ने व्यापार केमाध्यम से समृद्धि में योगदान दिया। 

भारतीय मंदिर की इस परंपरा ने ना जाने कितने लुटेरों को भारत की ओर आकर्षित किया है- ना जाने कितने बर्बर डाकू आये और मंदिरों को ढा कर लूट कर चले गये। इस शृंखला में हालाँकि फोकस मंदिरों का सरकारी नियंत्रण रहेगा।

वर्ष ७११ में सबसे पहला पतन सिंध के मुलतान के मंदिरों का हुआ था जब प्राचीन सूर्य मंदिर जो श्रीकृष्ण पुत्र सांब द्वारा बनवाया गया था- उसे लूट क़ासिम ने भारतीय मंदिरों की इस अनचाही शृंखला का आग़ाज़ किया। पूर्व में इस विषय पर एक विस्तृत शृंखला पोस्ट हुई थी। मुलतान अर्थात् मूलस्थान का सूर्य मंदिर पहला उदाहरण था जब किसी मंदिर से स्वर्ण भंडार एवं मूर्ति आदि लूटी गई- फिर काष्ठ प्रतिमा स्थापित कर फिर से पूजा शुरू हुई हालाँकि शहर और मंदिर पर क़ब्ज़ा मज़हबियो के गैंग ने कर लिया था। 

मुलतान के इस मंदिर पर क़ब्ज़े से दो कारण सिद्ध हुए- पहला- मंदिर पर आये चढ़ावे आदि का पूर्ण नियंत्रण। दूसरा- हिंद से आने वाले प्रतिरोध को एक कवच मिलना। हालाँकि कालांतर में ये मंदिर भी पूर्ण रूप से ढाया गया। लेकिन इतिहास में मुलतान का ये मंदिर सर्वप्रथम सत्ता ने अपने क़ब्ज़े में लिया था। इस से पूर्व मंदिरों के पास ज़मीन, गाँव आदि का स्वामित्व रहता रहा था जो राजा महाराजा आदि प्रदान करते थे। तब टोटल कंट्रोल परंपरागत तरीक़े से पुजारी दल और उनके मुख्य महंत आदि के पास रहता था।

इस के तीन सौ साल बाद भारत पर मंदिरों पर हमले बढ़ने लगे- निरंतर हमले से पस्त हिंदू समाज संघर्ष करता रहा- पुजारी विग्रह की पवित्रता बनाये रखने हेतु भागते रहे, बलिदान देते रहे। सोमनाथ मंदिर भी कदाचित् ऐसा मंदिर रहा जो बारंबार हमले का शिकार बनता और पुनः उठ खड़ा होता। 

अनेक विदेशी यात्रियों ने इन वैभवशाली मंदिरों पर अनेक वृतांत लिखे है- अब्दुल रज़ाक़ , निकेतन, मानुची , टेवरनीयर, बर्नियर आदि आदि- लिस्ट अपार है। इस विषय पर भी अनेक पोस्ट आ चुकी है। तो ये बात तो साफ़ है- मध्यकाल में भारतीय मंदिरों का वैभव ग़ज़ब का था- सब अपने अपने तौरतरीक़ों से संचालन कर रहे थे- सत्ता का हस्तक्षेप ना के बराबर था।

बारहवीं शताब्दी में ऐबक से शुरू हुआ मंदिरों का विध्वंस औरंगज़ेब काल तक एक विकृत रूप ले चुका था- अनगिनत देवस्थान या विध्वंस किए गए , लूटे गये, क़ब्ज़ा किए गए या फिर दीनहीन अवस्था को प्राप्त हुए। यही कारण है कि भारत के अनेक देवस्थान और पौराणिक स्थानों पर अवैध इमारतों का आज भी जमावड़ा है।

ऐबक के आने के बाद भारत में एक मेजर चेंज आया- अब ये लुटेरे गजनवी आदि की भाँति लूट कर वापस जाने के लिए नहीं आए थे- अब ये देहली में लूट का अड्डा बना रहते- भारत के भिन्न भिन्न स्थानों में डकैती डालते। साथ साथ में जज़िया कर वसूलते। जज़िया कर के भी अलग अलग स्वरूप थे। मसलन सूर्यग्रहण पर होनी वाली मंदिरों और गंगा तट पर होनी वाली पूजा पर भी पहले ही एकमुश्त रक़म जज़िया के रूप में जमा करवानी होती ताकि जनमानस अपने आराध्याओ को पूज सकें। यही क़ानून मंदिरों पर भी लागू था।

एक उदाहरण के तौर पर तिरूपति मंदिर को ही लीजिए। ऐसा नहीं था कि यहाँ डकैती डालने की चेष्टा इन लुटेरों ने नहीं की। इस स्थान का वैभव तो हर किसी की विदित था। अलाउद्दीन ख़िलजी के नरभोगी यार काफ़ूर ने बाक़ायदा सैन्य अभियान चलाया किंतु यहाँ के वराह मंदिर के विषय में सुन टिड्डों का दल वापस चला गया। किंतु औरंगज़ेब के समधी गोलकोंडा का सुल्तान अब्दुल्ला क़ुतुब शाह ने वो कार्य भी कर डाला। तिरूपति पर किए हमले में उसने अकूत दौलत लूटी- मंदिर को हानि भी पहुँचाई। लेकिन उसके वज़ीरों ने उसे समझाया इस स्थान को नष्ट करने का मतलब होगा सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हलाल कर देना। लिहाज़ा सुल्तान ने भारी भरकम वार्षिक कर लगा कर मंदिर को संचालित होने दिया। मंदिर सुचारू रूप से चलता रहा- कर भरते रहे। भक्त गण आकर पूजा कर अपार संपत्ति जमा करते रहे। 

मुग़ल काल के आते आते कहानी में अब ट्विस्ट आया। मथुरा काशी आदि में विखंडित देवस्थानों को पुनः स्थापित करने में अनेक राजा महाराजाओं ने योगदान दिया। मुग़ल बादशाहों से वायदा लिया कि अब इन मंदिरों के निर्माण में कोई विघ्न ना डाला जाएगा। औरंगज़ेब से पहले अनेक मंदिर काफ़ी अच्छी अवस्था में आ चुके थे। काशी के मंदिरों का दौरा करते अनेक विदेशी यात्रियों का लेखन बताता है इन मंदिरों को इन राजा आदि से भूमि गाँव आदि मिलते है जो इनके संचालन में वित्तपोषण आदि का कार्य करते है। जगन्नाथ मंदिर में तो विशाल गौशाला थी जो केवल मंदिर में बंटने वाले प्रसाद आदि हेतु संचालित होती थी।

लेकिन इस सब में मंदिरों को वार्षिक रूप से कर देना पड़ता रहा। जब जब किसी बादशाह या सुल्तान में मज़हबी हिलौरा मारा या उसे अधिक धन की ज़रूरत पड़ी- वो मंदिर की संपदा लूटने में गुरेज़ ना करता। इस संदर्भ में एक बात और नोट करिए- अनेक सुल्तान बादशाह कई मंदिरों को जागीर आदि भी देते- कारण साधारण था- यहाँ से होने वाली वार्षिक आय; जज़िया का स्रोत सूख ना जाएँ। औरंगज़ेब तक ने ऐसा किया। किंतु १६६९ में जब उस पर मज़हबी उन्माद सर चढ़ कर बोला तो सिरे से उसने विध्वंस मचाना शुरू किया।

कहानी की शुरुआत काफ़ी लंबी हो चली है। इस अंक में बस यही तक। 

नोट- इस शृंखला में कुछ क़ानून और बिल आदि का उल्लेख रहेगा। पोस्टकर्ता क़ानूनी एक्सपर्ट नहीं है महज़ एक किताबी कीड़ा है। तो यदि कोई कमी दिखाई पड़ें तो संदर्भ सहित पॉइंट आउट कर दें। सुधार कर लिया जाएगा।

आगे है- अंग्रेज़ी काल के क़ानून से । आज़ादी तक के क़ानून की कहानी ।
साभार....Maan ji FB