इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।।
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गुरुवार, 20 सितंबर 2012
!! जो मरने को राजी है, वह जीवन पा लेता है.......??
एक
भिखारी भीख मांगने निकला था। वह बूढ़ा हो गया था और आंखों से उसे कम
दिखता था। उसने एक मंदिर के सामने आवाज लगाई। किसी ने उससे कह, 'आगे बढ़।
यह ऐसे आदमी का मकान नहीं है, जो तुझे कुछ दे सके।'भिखारी ने कहा, 'आखिर इस
मकान का मालिक कौन है, जो किसी को कुछ नहीं देता?' वह आदमी बोला, 'पागल,
तुझे यह भी पता नहीं कि यह मंदिर है! इस घर का मालिक स्वयं परमपिता
परमात्मा है।' भिखारी ने सिर उठाकर मंदिर पर एक नजर डाली और उसका हृदय
एक जलती हुई प्यास से भर गया। कोई उसके भीतर बोला,'अफसोस, असंभव है इस
दरवाजे आगे बढ़ना। आखिरी दरवाजा आ गया। इसके आगे और दरवाजा कहां है?'
उसके भीतर एक संकल्प घना हो गया। अडिग चट्टान की भांति उसके हृदय ने कहा,
'खाली हाथ नहीं लौटूंगा। जो यहां से खाली हाथ लौट गए, उनके भरे हाथों का
मूल्य क्या?' वह उन्हीं सीढि़यों के पास रुक गया। उसने अपने खाली हाथ जोड़ कर बैठ गया वही , वह प्यास था- और प्यास ही प्रार्थना है।
दिन आये और गये। माह आये और गये। ग्रीष्म बीती, वर्षा बीती,सर्दियां भी
बीत चलीं। एक वर्ष पूरा हो रहा था। उस बूढ़े के जीवन की मियाद भी पूरी हो
गई थी। पर अंतिम क्षणों में लोगों ने उसे नाचते देखा था..... उसकी आंखें एक अलौकिक दीप्ति से भर गयीं थीं। उसके वृद्ध शरीर से प्रकाश झर रहा था... उसने मरने से पूर्व एक व्यक्ति से कहा था, 'जो मंगता है, उसे मिल जाता है। केवल अपने को समर्पित करने का साहस चाहिए,,' अपने को समर्पित करने का साहस... अपने को मिटा देने का साहस.. जो मिटने को राजी है, वह पूरा हो जाता है,जो मरने को राजी है, वह जीवन पा लेता है.......
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