अज्ञानता
कोई मुर्खतई से सम्बन्धित नही हो सकती क्यों की ज्ञान हर जीव-जन्तु को
होता हे,.जेसे न्याजन्मा शिशु बिना ज्ञान के तो माँ के स्तनों से दूध
निकल कर नही पी सकता बिना बोले माँ को बडे आराम से बता देता हे की उस को
भूख लगी हुई हे इस सबके बाद उस शिशु को अज्ञानी तो कह नही सकते जब उसी का
ज्ञान माया की पकड़ में आजाता हे तो अज्ञानता आते देर नही लगा करती
अज्ञानता बड़ जाती हे मा(जो)या (नही हे ) माया सच को झूठ और झूठ को सच कर
के दिखलाती हे जेसे आकाश में खेती कर के दिखा देना हिजडे के उलाद पैदा कर
देना सब माया ही हे ,अगर ज्ञान और विज्ञानं दोनों का मिलन हो जावे तो
प्रत्यक्ष में झूठ सच में बदल गया होता हे सत्य ही ईश्वर होता हे सत्य का
साथ सत्संग कहलाता हे बिना ज्ञान के प्रति दिन सत्संग होते हें एक
व्यक्ति ऊँचे से मंच पर बैठ कर जो भाषण देता हे ,उसी भाषण को अज्ञानी जन
सत्संग मान लेते हे जब की एक समूह द्वारा आपसी बात चीत को सत्संग कह सकते
हेंइसी ईश्वरीय बातचीत के निर्णय को ईश्वर मान सकते हें पूर्ण ज्ञानी इस
संसार में सिवा भगवान के और कोई हो मुझे नजर नही आया मेरे एक मित्र
कस्तुरी लाल जी हें बापू आसाराम जी को अज्ञयानता वश पूर्ण ज्ञानी ,इसी
परकार हमारे एक मित्र है मनुजेन्द्र सिंह परिहार ..जय गुरुदेव के पक्के
भक्त है ये लोग इन्हें ईश्वर का अवतार बताते नही थकते मुझे बहुत आश्चर्य
होता हें ये कस्तुरी जी और मनुजेन्द्र सिंह परिहार जी ही
नही और भी कईलोग आजकल के धर्म गुरुओं को ईश्वरीय अवतार मान रहे हें उनको
दान में ज्ञान इन ढोंगियों द्वारा दिया गया बतलाते हें शास्त्रों कई आगया
हें कि (पानी पियो छान कर गुरु करो जानकर )बिनाजाने गुरु बनाना एक तो
सनातन धरम के वरुध ही नही पाप भी हें इन पाखंडी गुरु बाबाओं को तो इतना
भी ज्ञान नही होता कि अपने आश्रम से उस स्टेज तक जिस पर विराजमान हो कर
यह सत -संग करने आए हें उस रस्ते में कितने वृक्ष आए थे परन्तु इनको
पूर्ण ज्ञानी या अवतार मान कर हम गलती ही नही तो और क्या कर रहे हें ? इन
को सरकारों ,राजनेतिक पार्टियों का संरकशंन मिला हो ता हें सनातन धर्म
के अपमान और दमन कीकिसी भी कोशिश को हाथ से जाने नही देना चाहते नतीजतन
सनातन धर्म लग-भग लुप्त ही होता जा रहा हें जब-जब धर्म की हानि होतीहें
तब-तब भगवान को अवतार ले कर सनातन धरम की स्थापना करनी पडती हें कलयुगी
भगतों को यह ज्ञान तो हें भगवन के प्रति उन के प्रेम को भी देखो फिर भगवन
का अवतार हो और फिर भगवान जंगलों में भटकें हमे क्या पडी हें हमतो
अज्ञानता के बलबूते ही गुरु हो गये हें क्या यही अज्ञान होता हें ?
इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।। !! दुर्भावना रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और कई वेब साइटों पर आधारित हैं!! Contact No..7089898907
सोमवार, 24 सितंबर 2012
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Shriman,
जवाब देंहटाएंAapka lekh Bobhot hi acha laga parantu apse maya ka arth samjhane me chhoti galti ho gayi h, kripaya use atisheeghra badle. asal me "MA" ka arth 'nahi' hota h aur "YA" ka arth 'jo' jo apse galti se ulta likha gaya h.