शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

Happy Birthday Namo जी ❤️

राम यज्ञ से पैदा हुए थे, आकाश पुत्र थे। उनकी पत्नी सीता भूमि से पैदा हुई थी, भूमिजा थी, वन्य कन्या थी। राम सारी उम्र अरण्य के पशुओं और ग्राम के मानवों को मॅनेज करने में लगे रहे, पशुओं को इंसान बनाते रहे। राम ग्राम वासी भी थे और वनवासी भी। राम शिव भक्त भी है इसलिए राम के फैसलो में, भाव में दिगम्बर परम्परा दिखती है। माँ के कहने पर राज्य त्याग दिया, आभूषण त्याग दिए, मुकुट त्याग दिया। धोबी के कहने पर रानी सीता त्याग दी। "जीवन पर्यन्त नियमों का पालन करते रहे, नियम सही हो या गलत उन्हें पालन करना ही था।"

इसके विपरीत कृष्ण कभी किसी बंधन में नहीं रहे। उनके ऊपर परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने का भार नहीं था। वो छोटे थे इसलिए स्वतंत्र थे और चंचल भी। मर्यादा का भार नहीं था उनपर। उन्होंने अरण्य और ग्राम में बॅलेंन्स साधने की कोशिश कभी नहीं की। उन्होंने वन को ही मधुवन बना लिया। गलत नियम मानने को बाध्य नहीं थे कृष्ण। अतः उन्होंने नियमों को नहीं माना। राम वचन के पक्के थे, उन्होने अयोध्या वासियों को वचन दिया था कि चौदह वर्ष बाद लौट आऊँगा। समय से पहुँचने के लिए उन्होंने पुष्पक विमान का उपयोग किया। 

कृष्ण ने गोपियों को वचन दिया था, मथुरा से लौट कर जरुर आऊँगा, वो कभी नहीं लौटे। राम ने गलत सही हर नियम माना, कृष्ण ने गलत नियम तोड़े। राम के राज्य में एक मामूली व्यक्ति रानी पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के नियम के तहत गॉसिप कर सकता था,  मगर कृष्ण को शिशुपाल भी सौ से ज्यादा गाली नहीं दे सकते थे। राम मदद तभी करते है जब आप खुद लड़ो। वो पीछे से मदद करेंगे। सुग्रीव को दो बार बाली से पिटना पड़ा तब राम ने बाण चलाया। कृष्ण स्वयं सारथी बन के आगे बैठते हैं।

नरेंद्र मोदी को देखिए। वो भी त्यागने की बात करते हैं। पुराने नोट त्याग दो, दो नम्बर का पैसा त्याग दो, गैस सब्सिडी त्याग दो। उनके सारे फैसले राज-धर्म, संविधान के अनुरूप ही होते है, भले ही संविधान का वो नियम सही हो या गलत। मोदी हमेशा अरण्य और ग्राम में बैलेंस साधने की कोशिश करते हैं। 'सबका साथ सबका विकास'। वो पशुओं को मानव बनाने का प्रयास करते हैं। 

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम अपना पराया कोई भी उन्हें 24  घण्टे गाली दे सकता है। मोदी में दिगम्बर भाव है, सब त्याग बैठे हैं, अपमान सम्मान सब। आपकी गालियों से उन्हें ताकत मिलती है। विरोध के अधिकार के नाम पर आप उनकी नाक के नीचे सड़क जाम कर महीनों बैठ सकते हैं। वो देश के बड़े बेटे है, नियम अनुरूप ही आचरण करेंगे। भेदभाव करते हुए नहीं दिख सकते।

वहीं योगी आदित्यनाथ को देखिए। उसी अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर एक उन्हें एक गाली दे दीजिए, 24 घण्टे के अंदर आप पर मुकदमा होगा औऱ 48  घण्टे में जेल में होंगे। कनिका कपूर मुंबई, दिल्ली, लखनऊ कानपुर गई। कहीं मुकदमा दर्ज नहीं हुआ उस पर सिवाय यूपी के। "आपिये दिन रात फ़र्ज़ी खबरें शेयर करते हैं"  मोदी के विरोध मे। मोदी प्रतिक्रिया  नहीं देते। योगी आदित्यनाथ पर एक फ़र्ज़ी ट्वीट में ही राघव चड्ढा पर मुकदमा दर्ज हो जाता है। 

जिस विरोध के अधिकार के तहत दिल्ली में सौ दिन से ज्यादा प्रदर्शन होता रहा, उन्हीं नियमों के तहत यूपी में एक भी प्रदर्शन नहीं चल पाया। राजनीति का नियम है कि सरकार बदलने पर बदला नहीं लिया जाता लेकिन योगी जी ने आज़म खान के पूरे परिवार को जेल में सड़ा दिया। मोदी का भाव दिगम्बर है योगी का आचरण दिगम्बर है। मोदी तब मदद करेंगे जब आप खुद लड़ोगे। योगी शंखनाद होते ही रथ की लगाम थाम लेते हैं।

मोदी ट्रेंड फॉलो करते है.....          ..
योगी ट्रेंड सेट करते हैं.... क्रिएट करते हैं, 

यू हॅव राम इन त्रेता.... यू हैव कृष्ण इन द्वापर।
"यू हैव बोथ इन कलयुग"  

हैप्पी बर्थडे मोदी जी ( be later)
(जोया मंसूरी)

संविधान V/S कांग्रेस का संविधान..

भीम राव अंबेडकर  के संविधान में....
 (1)वक्फ बोर्ड नहीं था।
(2) मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड नहीं था।
(3) अल्पसंख्यक बोर्ड नहीं था।
(4) मदरसों को सरकारी पैसा नहीं था।
(5) मौलवी को सरकारी तनख्वाह नहीं थी।
(6)सभी पुरषों को समान अधिकार था।
(7) सभी महिलाओं को समान अधिकार था।

कांग्रेस पार्टी का संविधान

(1) वक्फ बोर्ड है।
(2)मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड है।
(3) अल्पसंख्यक बोर्ड हैं।
(4) मदरसों को सरकारी पैसा है।
(5)मौलवियों को सरकारी तनख्वाह है।
(6) सभी महिलाओं को समान अधिकार नहीं है। मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता तक नहीं है।
(7) सभी पुरषों को समान अधिकार नहीं है,हिन्दू 1 शादी करेगा तो मुस्लिम 4 शादी कर सकता है।

कांग्रेस पार्टी का सेकुलरवाद एवं धर्म निरपेक्षता।

(1) मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड हो सकता है हिन्दू पर्सनल बोर्ड नहीं।
(2) मुस्लिम वक्फ बोर्ड हो सकता है हिन्दू वक्फ बोर्ड नहीं।
(3) मुस्लिम 4 शादी कर सकता है हिन्दू नहीं।
(4)मदरसों में धार्मिक शिक्षा देने के लिए भारत सरकार पैसा देगी हिन्दू अपनी धार्मिक शिक्षा नहीं दे सकता है।
(5) मस्जिद का पैसा मस्जिद कमेटी लेगी हिन्दू मंदिरों का पैसा सरकार लेगी।
(6)मुस्लिम भारत में दूसरे स्थान पर है फिर भी अल्पसंख्यक है। हिन्दू 8 राज्य मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम , लक्षद्वीप, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, पंजाब, और जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक है फिर भी उन्हें बहुसंख्यक बताया गया।

समाज मे ऐसे दोहरे चरित्र से क्या असर पड़ेगा लोग एक दूसरे से नफरत करने लगते है नफरत का बीज बोया गया और आज नफरत शुरू हो गई तो बोलते है हिन्दू मुस्लिम हो रहा है ।

 हिन्दू मुस्लिम के बीच नफरत की दीवार कॉंग्रेस पार्टी ने ही खड़ी कर दी। आज लोग बाबा साहब भीम राव अंबेडकर जी के संविधान के अनुसार अपना अधिकार मांग रहे है बस सबको समान अधिकार चाहिए जब हिन्दू अपने ही देश मे अपना अधिकार मांग रहा है तो कॉंग्रेस बोलती है हिन्दू मुस्लिम हो रहा है।।
2014 के पहले सिर्फ मुस्लिम मुस्लिम होता था।।🔥🔥🔥

सोमवार, 15 सितंबर 2025

भगवा क्रांति कब ??

कुछ दिन पहले भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा :- 

"अगर इस देश में धार्मिक हिंसा भड़काने के लिए कोई जिम्मेदार है, तो वह सुप्रीम कोर्ट और उसके जज हैं!"

उनके इस बयान से बड़ा विवाद खड़ा हो गया और विपक्षी दलों ने उनकी कड़ी आलोचना की। हालांकि, जाने-माने वैज्ञानिक, लेखक और वक्ता आनंद रंगनाथन ने दुबे का पूरा समर्थन करते हुए एक वीडियो बयान जारी किया। 

धाराप्रवाह अंग्रेजी में रंगनाथन ने सुप्रीम कोर्ट से 9 शक्तिशाली सवाल पूछे। ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं।इसका नीचे एक संक्षिप्त सारांश दिया गया है :-

आनंद रंगनाथन के सुप्रीम कोर्ट से 9 सवाल:

1. 'कश्मीर मुद्दे पर दोहरे मापदंड:' सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ विपक्षी दलों की याचिकाओं पर तुरंत विचार किया। लेकिन जब 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ़ अत्याचारों के बारे में याचिकाएँ दायर की गईं - जैसे जबरन विस्थापन, घरों पर कब्ज़ा, मंदिरों को तोड़ना, हत्याएँ, बलात्कार और सामूहिक पलायन - तो उन्हें कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, "यह बहुत पहले हुआ था।"

क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है ? 
क्या इससे हिंदुओं में गुस्सा नहीं पैदा होता? 
क्या यह धार्मिक संघर्ष का कारण नहीं बनता ?*

2. 'वक्फ बोर्ड के दुरुपयोग पर चुप्पी:` सुप्रीम कोर्ट अब वक्फ बोर्ड के सुधारों को लेकर चिंतित है। लेकिन पिछले 30 वर्षों में, वक्फ बोर्ड ने अवैध रूप से संपत्ति जब्त की, करों taxes से परहेज किया और एक समानांतर न्यायिक प्रणाली संचालित की - फिर भी कोर्ट चुप रहा। यदि सुधारों को इस्लाम के लिए खतरा माना जाता है, तो हिंदू भूमि पर मस्जिद और दरगाह बनाना कैसे स्वीकार्य था? 

वक्फ बोर्ड ने 2 मिलियन से अधिक हिंदुओं की संपत्ति जब्त की। सुप्रीम कोर्ट चुप रहा। अगर यह धार्मिक पक्षपात नहीं है, तो क्या है ?

3. `मंदिरों का धन कहीं और खर्च किया जाता है, हिंदुओं पर प्रतिबंध:` हिंदू मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है। उनकी आय का उपयोग मदरसों, हज यात्राओं, वक्फ बोर्ड, इफ्तार दावतों और ऋणों के लिए किया जाता है। लेकिन हिंदू धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध हैं। हिंदू अधिकारों से संबंधित याचिकाएँ अक्सर खारिज कर दी जाती हैं। अल्पसंख्यकों को हमेशा विशेष प्राथमिकता दी जाती है। 

क्या यह उचित है ? या यह हिंदुओं के गुस्से को भड़काने का एक तरीका है ?

4. `हिंदुओं के खिलाफ शिक्षा में भेदभाव:` शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत, हिंदू स्कूलों को अल्पसंख्यकों के लिए 25% सीटें आरक्षित करनी पड़ती है । लेकिन मुस्लिम और ईसाई संस्थानों को इस नियम से छूट दी गई है। हजारों हिंदू स्कूलों को बंद करना पड़ा, और हिंदू बच्चे अब गैर-हिंदू संस्थानों में पढ़ते हैं।

क्या यह धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं दे रहा है ? 
सुप्रीम कोर्ट इस एकतरफा नियम को क्यों नहीं देखता ?

5. `स्वतंत्र भाषण का पाखंड:` जब हिंदू बोलते हैं, तो इसे “घृणास्पद भाषण” कहा जाता है। जब दूसरे बोलते हैं, तो इसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" कहा जाता है। नुपुर शर्मा ने केवल हदीस से उद्धरण दिया, और न्यायालय ने इसे घृणास्पद भाषण कहा। लेकिन जब स्टालिन और अन्य नेताओं ने सनातन धर्म को "बीमारी" कहा, तो न्यायालय चुप रहा। 

क्या यह न्याय है ?

6. `हिंदू परंपराओं पर पक्षपातपूर्ण प्रतिबंध:` सर्वोच्च न्यायालय ने दशहरा पशु बलि जैसी हिंदू प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन ईद के दौरान सामूहिक हलाल पशु वध के बारे में कोई सवाल नहीं उठाया गया। जन्माष्टमी के दौरान, दही हांडी समारोह में ऊंचाई प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है। लेकिन मुहर्रम से संबंधित हिंसा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। दिवाली के पटाखों को पर्यावरण के लिए हानिकारक कहा जाता है, लेकिन क्रिसमस की आतिशबाजी की कोई आलोचना नहीं होती।

क्या यह भेदभाव नहीं है?

7. `पूजा स्थल अधिनियम हिंदू पुनर्स्थापना को रोकता है:` 1991 के पूजा स्थल अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि 15 अगस्त, 1947 तक के स्थानों के धार्मिक चरित्र को नहीं बदला जाना चाहिए। यह कानून हिंदुओं को उन प्राचीन मंदिरों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है जिन्हें मुस्लिमों शासकों ने नष्ट कर दिया था या परिवर्तित कर दिया था। राम मंदिर के लिए कई दशकों तक लड़ाई लड़नी पड़ी। कई अन्य मंदिरों पर अतिक्रमण जारी है। 

क्या यह ऐतिहासिक अन्याय नहीं है?

8. `केवल हिंदू परंपराओं को निशाना बनाना:` सबरीमाला मामले में, न्यायालय ने हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँचाई। कुछ हिंदू मंदिरों में केवल पुरुषों या केवल महिलाओं के रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। लेकिन न्यायालय ने केवल हिंदू परंपराओं पर सवाल उठाया। इस्लाम में, महिलाएँ मस्जिदों में प्रवेश नहीं कर सकती हैं या कुछ खास परिस्थितियों में कुरान नहीं पढ़ सकती हैं। ईसाई धर्म में, महिलाएँ पुजारी नहीं बन सकती हैं। 

न्यायालय ने उन धर्मों पर सवाल क्यों नहीं उठाया?

9. `सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान निष्क्रियता:` शाहीन बाग़ विरोध और सीएए विरोधी दंगों के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक सड़कें जाम कर दीं, लेकिन न्यायालय ने इसे नहीं रोका।

क्या यह कानून का मज़ाक नहीं है? क्या इससे भी हिंदुओं का गुस्सा नहीं बढ़ा ?

यह शक्तिशाली संदेश सभी तक पहुँचना चाहिए।