मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

इस्लाम की निशानियां मिटाने का विरोध क्यों नहीं होना चाहिए

सऊदी अरब ने मोहमद साहब के जन्म स्थान.. और उस पहाड़ी जहाँ उन्होंने पहली बार उपदेश दिया था.. उसके उपर बुलडोजर चलवाकर प्रिंस के लिए आलिशान महल और पार्किंग बनवा दी
पिछले कुछ सालों में सऊदी सरकार ने वह तमाम ऐतिहासिक निशानियां मिटा दीं जो पैगम्बर मुहम्मद साहेब से जुड़ी थीं। मेरे एक मित्र पिछले साल हज से लौटे तो वह बहुत दुखी थे। उन्होंने बताया जहां कल तक पैगम्बर साहब के शुरूआती साथियों की कब्रें थीं वे अब नजर नहीं आतीं। कई ऐतिहासिक मस्जिदें जिन्हें हम पवित्र मानते थे वहां अब बिजनेस सेंटर या शाही परिवार का महल नजर आता है। कहीं-कहीं तो इन प्राचीन इमारतों को तोड़ कर भव्य पार्किंग बना दी गई।
  मक्का में हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहब का जन्म जिस घर में हुआ उसके तमाम पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं। क्योंकि यह घटना बहुत पुरानी नहीं। मोहम्मद साहेब का जन्म 570 ईसवी में हुआ था। इसमें कोई विवाद भी नहीं है। बाद में उसे लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया था। उस घर को गिरा दिया गया।
हजरत के दौर की कई मस्जिदें और इमारतें मक्का में अभी दो चार साल पहले तक मौजूद थीं जिन पर अरब के बादशाह ने बुलडोजर चला कर जमींदोज कर दिया। इसमें पैगम्बर की पहली नेकदिल बेगम खदीजा का घर भी शामिल था। इसमें इस्लाम के पहले खलीफा अबू बकर का घर भी शामिल है जहां आज होटल हिलटन खड़ा है। जिस ऊंची पहाड़ी की चोटी "फारान" से हजरत मोहम्मद साहब ने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की थी, आज वहां सऊदी शाह ने अपना आलीशान महल बनवा दिया है। मक्का से लौटे अपने दोस्त की इस बात पर मुझे यकीन नहीं हुआ। मैंने अपने दूसरे हिन्दुस्तानी मुस्लिम दोस्तों से इस बारे में पूछा तो जैसी की उम्मीद थी उनका कहना था कि ये गप्प है बकवास है। मैंने नेट खंखाला तो उसमें इस तरह की कई सूचनाएं थीं। फिर भी मुझे यकीन नहीं हुआ तो मैंने सऊदी में रहने वाले अपने दोस्त  को फोन लगाया। उन्होंने मुझसे कहा ये सच है। मेरा दिल बैठ गया।
नेट पर ही मैंने सऊदी सरकार का इस पर बयान पढ़ा कि पैगम्बर साहब का मकान इन भव्य इमारतों के पास पार्किंग के स्थान में अवरोध पैदा करता था। इस मकान के कारण रास्ता तंग हो गया और वाहनों के आने-जाने में लगातार बाधा होती थी। इसलिए इस घर को ध्वस्त करना जरूरी हो गया था। हैरत की बात है कि पैगम्बर साहब का घर तोड़ते वक्त विरोध की एक भी आवाज दुनिया के किसी कोने से नहीं सुनाई दी। इस्लामिक जगत में ऐसी चुप्पी और खामोशी अजब है। मैंने अपने एक मुसलमान दोस्त से पूछा तो उनका जवाब था-किस मुसलमान में हिम्मत है कि वह अरब के शाह के खिलाफ आवाज उठाए। जो उठाएगा वह दोजख में जाएगा। उसकी आने वाली नस्लों का हज पर जाना बंद हो जाएगा। फिर आगे वह बोले कि वैसे इसमें गलत क्या है? पैगम्बर का पुश्तैनी घर, उनकी बेगमों के घर, पुरानी मस्जिदें, ये सब इमारतें हाजियों की सुविधा के लिए गिराई गईं। इस्लाम प्रतीक पूजा की इजाजत नहीं देता। हम मुसलमानों की श्रद्धा हज यात्रा में है प्रतीकों में नहीं।
मैंने सिर्फ तर्क के लिए कहा-फिर बाबरी मस्जिद के ढहाने पर पूरी दुनिया का इस्लाम नाराज क्यों है? उसके नाम पर क्यों दंगे हुए? कुछ उन्मादियों की हरकत के बदले सड़क पर दोनों तरफ के लोगों के खून क्यों बहाए गए? (हालांकि निजी तौर पर उसके ढहाए जाने को गैर अखलकी कदम मानता हूं क्योंकि हमारा संविधान इसकी इजाजत नहीं देता) वे जवाब नहीं दे पाए। मैं अपने अन्य मुस्लिम और कम्युनिस्ट दोस्तों से इस सवाल का जवाब मांगता हूं। इस्लाम की निशानियां मिटाने का विरोध क्यों नहीं होना चाहिए? अरब के ऐसे शाह का हाथ क्यों चूमा जाए जिसने इन पवित्र स्‍थानों को नेस्तानबूद कर दिया ? 
उम्मीद है मुझे तर्कपूर्ण जवाब मिलेगा।

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