सोमवार, 15 सितंबर 2014

मानो वे सरकारी मकानों का सुख भोगने के लिए ही राजनीति में आए हों ?

लानत है ऎसे नेताओं पर जो दिल्ली में एक अदद सरकारी मकान के लिए समूची राजनीतिक बिरादरी को शर्मसार करने से बाज नहीं आते। देश को कानून का पाठ पढ़ाने और संसद में बैठकर कानून बनाने वाले ऎसे राजनेता, राजनीति पर किसी धब्बे से कम नहीं माने जा सकते। लोकसभा के चुनावी नतीजे आने के चार महीने बाद भी सरकारी आवास खाली नहीं करने वाले पूर्व मंत्रियों व सांसदों की नजर में शायद नियमों व कानून की कोई कीमत है ही नहीं। लोकसभा के लिए चुनकर आए नए सांसद एक तरफ मकान आवंटन के लिए भटक रहे हैं तो दूसरी तरफ पूर्व सांसद मकानों से चिपके रहने में ही अपनी शान समझते हैं।
''मानो वे सरकारी मकानों का सुख भोगने के लिए ही राजनीति में आए हों''।  दिल्ली में पूर्व मंत्रियों-सांसदों के आवास की बिजली-पानी बंद करके सरकार ने इस बार जो कदम उठाया है वह प्रशंसनीय है। जरूरत अभी और सख्त कदम उठाने की है। होना तो ये चाहिए कि ऎसे राजनेताओं के खिलाफ सरकारी सम्पत्ति पर अवैध कब्जे का मामला दर्ज कराया जाए और उनके खिलाफ अदालत में मामला चलाया जाए । साथ ही बाजार दर से अब तक का बकाया किराया और बिजली-पानी का बिल वसूल किया जाए। ऎसे मामलों में जब तक एकाध राजनेता को सजा नहीं होगी, तब तक सुधार की गुंजाइश नजर नहीं है। सिद्धांतों की राजनीति की दुहाई देने वाले राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं से भी अपेक्षा की जाती है कि ऎसे नेताओं के खिलाफ वे भी कार्रवाई की पहल करें मोदी सरकार ।