शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

क्या हम सभी धूर्तो के शिकार है ?

धूर्त और धूर्तता के बारे में तो आपने पढ़ा ही होगा,छठी-सातवीं शताब्दी के साहित्य में जोरदार रचनाएं मिलती हैं जिन्हें पढ़ कर लगता है कि हमारे पूर्वज कितने बड़े ''मनोविज्ञानी'' थे। उन किस्से, कहानियों और नाटकों में एक से बढ़कर एक धूर्त पात्र मिलते हैं। इससे एक बात तो साफ है कि धूर्तता आदमी के स्वभाव में तब से ही विद्यमान थी जब से वह इस धरती पर पैदा हुआ है । लेकिन तब की धूर्तता और आज की धूर्तता में बहुत बड़ा अन्तर है ।

तब जनसंख्या इतनी नहीं थी । जिन्दगी एकदम सहज थी और धूर्त की पहचान शीघ्र ही कर ली जाती थी लेकिन आजकल तो पता ही नहीं चलता कि कौन धूर्त है और कौन शरीफ व ईमानदार । देश के एक जाने-माने अरबपति-खरबपति महाशय जेल में बैठे हैं । वे जेल में नेताओं की बदौलत नहीं हैं क्योंकि ये जनाब नेताओं, अभिनेताओं, नामी खिलाडियों और खबरनवीसों को तो अपनी जेब में रखते हैं । यह तो भला हो न्यायालयों का, जिनकी कुशलता से वे इस हालत में कई दिनों से वहां रहने को विवश हैं । हालांकि नेताओं का बस चले तो वे पल भर में उन्हें मुक्त करवा उनकी चरणरज माथे पर लगाने लगें ।

धूर्तता का ही परिणाम है कि आज जनता मारी-मारी फिरती रहती है और उसके दुखड़े सुनने वाला कोई नहीं है । यह तो मुखर मध्य वर्ग है जो कि जरा-सी असुविधा होने पर ही रोना-पीटना मचा देता है जिससे सरकारें भीर चौकन्नी हो जाती है वरना गरीब का तो कोई ''धणी-धोरी'' ही नही है । धूर्तो ने मिलकर अपना-अपना एक "संगठन" बना लिया है जिसके अंदर वे एक-दूसरे को सहलाते-दुलारते रहते हैं । अब मैं यहाँ उस संगठनो का नाम नहीं लिखुगा क्योकि मुझे भी अपने परिवार को पालना -पोसना है ,उन्हें सुरक्षा देना है  । वैसे पाठक गण उन सभी धूर्त संगठनो को समझ ही गए होगे  ।

धूर्त अपना काम निकालने के लिए धूर्तता का सहारा लेते हैं । एक धूर्त दूसरे धूर्त का काम तुरंत कर देता है क्योंकि वह जानता है कि आज उसका काम पड़ा है कल मेरा भी तो इससे पड़ सकता है । यही कारन है की ये धूर्त संगठन वाले दिखावा करते है आपसे लड़ाई का । कहने को तो सरकार न जाने कौन-कौन सी सुविधाओं की जब-तब घोषणा  करती रहती है पर सारी घोषनाये  धूर्तो को भेंट चढ़ाने से पहले आम जन को नहीं मिल पाती । अब रोते रहो इनके नाम को । पता नहीं धूर्तो का यह तंत्र कब जाकर कैसे टूटेगा । धूर्त जनता को बेवकूफ बना कर करोड़ों इकटा करके नौ दो ग्यारह हो जाते हैं और जनता हैरत से उन्हें ताकती रह जाती है । मजे की बात कि सोमनाथ से बद्रीनाथ और अमरनाथ से कन्याकुमारी तक धूर्तो का महाजाल फैला हुआ है । गरीब का कहीं कोई ''धणी-धोरी'' नहीं दिखता ।

वैसे जब से मोदी सरकार आई है तब से धूर्तो की दाल गलना बंद हो गई । अब ये तो समय ही बताएगा की नरेंद्र मोदी जी इन धूर्तो के नकेल कस पायेगे या धूर्तो की जमात में शामिल हो जायेगे ?